आगमन तथा निगमन विधि / Inductive & Deductive Method for CTET, MPTET, REET and other State TETs

  • आगमन विधि – (Inductive Method)

आगमन विधि उस विधि को कहते हैं जिसमें विशेष तथ्यों तथा घटनाओं के निरीक्षण तथा विश्लेषण द्वारा सामान्य नियमों अथवा सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता हैं। इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर, विशिष्ट से सामान्य की ओर तथा मूर्त से अमूर्त की ओर नामक शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता हैं।

दूसरे शब्दों में, इस विधि का प्रयोग करते समय शिक्षक बालकों के सामने पहले उन्हीें के अनुभव क्षेत्र से विभिन्न उदाहरणों के सम्बन्ध में निरीक्षण, परीक्षण तथा ध्यानपूर्वक सोच विचार करके सामान्य नियम अथवा सिद्धान्त निकलवाता है। इस प्रकार आगमन विधि में विशिष्ट उदाहरणों द्वारा बालकों को सामान्यीकरण अथवा सामान्य नियमों को निकलवाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता हैं। उदाहरण के लिये व्याकरण पढ़ाते समय बालकों के सामने विभिन्न व्यक्तियों, वस्तुओं तथा स्थानों एवं गुणों के अनेक उदाहरण प्रस्तुत करके विश्लेषण द्वारा यह सामान्य नियम निकलवाया जा सकता हैं कि किसी व्यक्ति, वस्तु तथा स्थान एवं गुण को संज्ञा कहते हैं।
जिस प्रकार आगमन विधि का प्रयोग हिंदी में किया जा सकता है, उसी प्रकार इस विधि को इतिहास, भूगोल, गणित, नागरिक शास्त्र, तथा अर्थशास्त्र आदि अनेक विषयों के शिक्षण में भी सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। आगमन विधि में शिक्षण क्रम को निम्नलिखित सोपाणो में बांटा जाता है-

  1. उदाहरणों की प्रस्तुतीकरण
    इस सोपान में बालकों के सामने एक ही प्रकार के अनेकों उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं l
  1. विश्लेषण
    ऐसे सोपान में प्रस्तुत किए हुए उदाहरणों का बालकों से निरीक्षण कराया जाता है तत्पश्चात शिक्षक बालकों से विश्लेषणात्मक प्रश्न पूछता है अंत में उन्हें उदाहरणों में से सामान्य तत्व की खोज करके एक ही परिणाम पर पहुंचने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
  2. सामान्यीकरण
    इस सोपान में बालक सामान्य नियम निकालते हैं.
  3. परीक्षण
    इस सोपान में बालकों द्वारा निकाले हुए सामान्य नियमों की विभिन्न उदाहरणों द्वारा परीक्षा की जाती है l

आगमन विधि के गुण
आगमन विधि के निम्नलिखित गुण है
आगमन विधि द्वारा बालकों को नवीन ज्ञान के खोजने का प्रशिक्षण मिलता है l य‍ह प्रशिक्षण उन्हें जीवन में नए नए तथ्यों को खोज निकालने के लिए सदैव प्रेरित करता रहता है l अतः विधि शिक्षण की एक मनोवैज्ञानिक विधि हैl
आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर तथा सरल से जटिल की ओर चलकर मूर्त उदाहरणों द्वारा बालकों से सामान्य नियम निकलवाए जाते हैंl इससे वे सक्रिय तथा प्रसन्न रहते हैं ज्ञानार्जन हेतु उनकी रुचि निरंतर बनी रहती है एवं उनमें रचनात्मक चिंतन, आत्मविश्वास आदि अनेक गुण विकसित हो जाते हैं l
आगमन विधि में ज्ञान प्राप्त करते हुए बालक को सीखने के प्रत्येक स्तर को पार करना पड़ता है l इससे शिक्षण प्रभावशाली बन जाता हैl
इस विधि में बालक उदाहरणों का विश्लेषण करते हुए सामान्य नियम एवं स्वयं निकाल लेते हैंl इससे उनका मानसिक विकास सफलतापूर्वक हो जाता हैl
इस विधि द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान स्वयं बालकों का खोजा हुआ ज्ञान होता हैl अतः ऐसा ज्ञान उनके मस्तिष्क का स्थाई अंग बन जाता हैl
यह विधि व्यवहारिक जीवन के लिए अत्यंत लाभप्रद है अतः यह विधि एक प्राकृतिक विधि हैl

आगमन विधि के दोष
आगमन विधि के निम्नलिखित दोष हैं-
इस विधि द्वारा सीखने में शक्ति तथा समय दोनों अधिक लगते हैंl
यह विधि छोटे बालकों के लिए उपयुक्त नहीं हैl इसका प्रयोग केवल बड़े और वह भी बुद्धिमान बालक ही कर सकता हैl सामान्य बुद्धि वाले बालक तो प्रायः प्रतिभाशाली बालकों द्वारा निकाले हुए सामान्य नियमों को आंख मिचकर स्वीकार कर लेते हैंl
आगमन विधि द्वारा सीखते हुए यदि बालक किसी अशुद्ध सामान्य नियम की ओर पहुंच जाए तो उन्हें सत्य की ओर लाने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैl
आगमन विधि द्वारा केवल सामान्य नियमों की खोज ही की जा सकती है l अतः इस विधि द्वारा प्रत्येक विषय की शिक्षा नहीं दी जा सकती है l
यह विधि स्वयं में अपूर्ण हैl इसके द्वारा खोजे हुए सत्य की परख करने के लिए निगमन विधि आवश्यक हैl

आगमन विधि ही ऐसी विधि है जिसके द्वारा सामान्य नियमों अथवा सिद्धांतों की खोज की जा सकती है l अतः इस विधि द्वारा शिक्षण करते समय यह आवश्यक है कि शिक्षक उदाहरणों तथा प्रश्नों का प्रयोग बालकों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए करें इससे उसकी नवीन ज्ञान को सीखने में उत्सुकता निरंतर बढ़ती रहेगीl

निगमन विधि (INDUCTIVE METHODS)

शिक्षण के निगमन विधि उस विधि को कहते हैं जिसमें सामान्य से विशिष्ट अथवा सामान्य नियम से विशिष्ट उदाहरण की ओर बढ़ा जाता है l इस प्रकार निगमन विधि आगमन विधि के बिल्कुल विपरीत है l इस विधि का प्रयोग करते समय शिक्षक बालकों के सामने पहले किसी सामान्य नियम को प्रस्तुत करता हैl तत्पश्चात उस नियम की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए विभिन्न उदाहरणों का प्रयोग करता हैl

कहने का तात्पर्य है कि निगमन विधि में विभिन्न प्रयोगों तथा उदाहरणों के माध्यम से किसी सामान्य नियम की सभ्यता घोषित करवाया जाता हैl उदाहरण के लिए, विज्ञान की शिक्षा देते समय बालकों से किसी भी सामान्य नियम को अनेक प्रयोग द्वारा सिद्ध कराया जा सकता है l इस प्रकार इस विधि का प्रयोग विज्ञान के शिक्षण में की या जा सकता है l उसी प्रकार इसका प्रयोग सामाजिक विज्ञान, व्याकरण, अंक गणित, ज्यामिति आदि अन्य विषयों के शिक्षण में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है l निगमण विधि में निम्नलिखित सोपाण होते हैं-

  1. सामान्य नियमों का प्रस्तुतीकरण
    इस सवाल में शिक्षक का लोगों के सामने सामान्य नियमों को कर्म पूर्वक प्रस्तुत करता हैl
  2. संबंधों की स्थापना
    इस सप्ताह में विश्लेषण की प्रक्रिया आरंभ होती है l दूसरों शब्दों में, शिक्षक प्रस्तुत किए हुए नियमों के अंदर तर्कयुक्त संबंधों का पर निरूपण करता हैl
  3. इस सोपाण में सामान्य नियमों की परीक्षा करने के लिए विभिन्न उदाहरणों को ढूंढा जाता है l दूसरे शब्दों में सामान्य नियमों का विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है l इस सत्यता का ठीक-ठीक परीक्षण हो जाए l

निगमन विधि के गुण
निगमन विधि के गुण में निम्नलिखित हैं

  1. या विधि प्रत्येक विषय को पढ़ने के लिए उपयुक्त है.
  2. निगमन विधि द्वारा पालक शुद्ध नियमों की जानकारी प्राप्त करते हैं उन्हें अशुद्ध नियमों को जानने का कोई अवसर नहीं मिलता.
  3. इस विधि द्वारा कक्षा के सभी बालकों को एक ही समय में पढ़ाया जा सकता है.
  4. इस विधि के प्रयोग से समय तथा शक्ति दोनों की बचत होती है.
  5. निगमन विधि में शिक्षक बने बनाए नियमों को बालकों के सामने प्रस्तुत करता हैl इस विधि में शिक्षक का कार्य अत्यंत सरल होता हैl

निगमन विधि के दोष

इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान अस्पष्ट एवं अस्थायी होता है।
इस विधि में भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्नों के लिए अनेक सूत्र याद करने होते हैं जो कठिन कार्य है। इसमें क्रियाशीलता का सिद्धान्त लागू नहीं होता।
यह विधि बालक की तर्क, विचार व निर्णय शक्ति के विकास में सहायक नहीं है।
यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के विपरीत है क्योंकि यह स्मृति केन्द्रित विधि है।
यह विधि खोज करने की अपेक्षा रटने की प्रवृत्ति पर अधिक बल देती है। अतः छात्र की मानसिक शक्ति का विकास नहीं होता हैं
हिन्दी प्रारम्भ करने वालों के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है।
यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है, क्योंकि छोटी कक्षाओं के बालकों के लिए विभिन्न सूत्रों, नियमों आदि को समझना बहुत कठिन होता हैं।
इस विधि के प्रयोग से अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया अरुचिकर तथा नीरस बनी रहती हैं।
स्वतन्त्रतापूर्वक इस विधि का प्रयोग सम्भव नहीं हो सकता।
इस विधि द्वारा बालकों को नवीन ज्ञान अर्जित करने के अवसर नहीं मिलते हैं।
छात्र में आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होता हैं।
इस विधि में बालक यन्त्रवत् कार्य करते हैं क्योंकि उन्हें यह पता नहीं रहता है कि वे अमुक कार्य इस प्रकार ही क्यों कर रहे हैं।
इस विधि में तर्क, चिन्तन एवं अन्वेषण जैसी शक्तियों को विकसित करने का अवसर नहीं मिलता है।
इसके द्वारा अर्जित ज्ञान स्थायी नहीं होता है।

आगमन विधि एवं निगमन विधि के बारे में जानकारी
Important post for inductive and deductive teaching method…
आगमन विधि कक्षा शिक्षण की महत्वपूर्ण विधि है।
इस विधि में विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण के दौरान सबसे पहले उदाहरण दिए जाते हैं तत्पश्चात सामान्य सिध्दांत का प्रस्तुतीकरण किया जाता है।
आगमन विधि की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं
1- उदाहरण से नियम की ओर
2- स्थूल से सूक्ष्म की ओर
3- विशिष्ट से सामान्य की ओर
4- ज्ञात से अज्ञात की ओर
5- मूर्त से अमूर्त की ओर
6- प्रत्यक्ष से प्रमाण की ओर
आगमन विधि को प्राय: थकान वाली शिक्षण विधि माना जाता है क्योंकि इसमें शिक्षण प्रक्रिया काफी लम्बी होती है।
आगमन विधि अरस्तू ने दी थी।

निगमन विधि
कक्षा शिक्षण में निगमन विधि का महत्वपूर्ण स्थान है यह विधि विज्ञान व गणित शिक्षण के लिए अत्यंत उपयोगी है।
निगमन विधि के प्रतिपादक अरस्तू हैं।
निगमन विधि की शिक्षण के दौरान प्रस्तुत विषयवस्तु प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार हैं
1- सूक्ष्म से स्थूल की ओर
2- सामान्य से विशिष्ट की ओर
3- अज्ञात से ज्ञात की ओर
4- प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर
5- अमूर्त से मूर्त की ओर
शिक्षण की निगमन विधि में शिक्षण प्रक्रिया सामान्य से विशिष्ट की ओर उन्मुख होती है॥
इस विधि में पाठ्यचर्या का क्रम सूक्ष्म से स्थूल की ओर होता है। विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण का क्रम अमूर्त से मूर्त की तरफ होता है। कक्षा शिक्षण प्रमाण से प्रत्यक्ष की ओर होता है एवं विषयवस्तु की प्रकृति अज्ञात से ज्ञात की ओर होती है।
निगमन विधि को विज्ञान व गणित शिक्षण के लिए उपयोगी माना जाता है लेकिन कुछ विद्वान मानते हैं इस शिक्षण की इस विधि में विद्यार्थी रटने की प्रवृत्ति को ओर बढने लगते हैं जो शिक्षण अधिगम की गति को धीमी करता है।
आगमन निगमन विधि के जनक/प्रतिपादक अरस्तू हैं।