Adaptation, Assimilations, Accommodation , Cognitive structure, Mental operation, Schemes, Schema

जीन पियाजे की थ्योरी के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –

(1) अनुकूलन ( Adaptation ) 

पियाजे के अनुसार बच्चों में अपने वातावरण के साथ समायोजन की प्रवृति जन्मजात होती है । बच्चे की इस प्रवृति को अनुकूलन कहा जाता है । पियाजे के अनुसार बालक अपने प्रारभिंक जीवन से ही अनुकूलन करने लगता है । जब कोई बच्चा वातावरण में किसी उद्दीपक परिस्थितियो के समाने होता है तो उस समय उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएं अलग अलग कार्य न करके एक साथ संगंठित होकर कार्य करती हैं और ज्ञान अर्जित करती हैं। यही क्रिया हमेशा मानसिक स्तर पर चलती है। वातावरण के साथ मनुष्य का जो संबंध होता है उस संबंध को संगठन आन्तरिक रूप से प्रभावित करता है जबकि अनुकूलन बाहरी रूप से। पियाजे ने अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिक महत्वपूर्ण माना है।

पियाजे ने अनुकूलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो उप -प्रक्रियाओं बांटा गया है।

आत्मसात्करण ( Assimilations )

समंजन ( Accommodation  )

(1) आत्मसात्करण ( Assimilations ) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बालक किसी समस्या का समाधान करने के लिए पहले सीखी हुई योजनाओं या मानसिक प्रक्रियाओं का सहारा लेता है । यह एक जैव वैज्ञानिक प्रक्रिया है । 

(2) समंजन ( Accommodation  ) एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानासिक प्रक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है । पियाजे कहते हैं कि बालक आत्मसात्करण और सामंजस्य की प्रक्रियाओ के बीच संतुलन कायम करता है । जब बच्चे के सामने कोई नई समस्या होती है, तो उसमें सांज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है। उस असंतुलन को दूर करने के लिए वह आत्मसात्करण या समंजन या दोनों प्रक्रियाओं को प्रारंभ करता है ।

संज्ञानात्मक संरचना ( Cognitive structure ) : पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक संरचना से तात्पर्य बालक का मानसिक संगठन से है । अर्थात् बुद्धि में संलिप्त विभिन्न क्रियाएं जैसे – प्रत्यक्षीकरण स्मृति, चिन्तन तथा तर्क इत्यादि ये सभी संगठित होकर कार्य करते हैं । वातावरण के साथ सर्मयाजन , संगठन का ही परिणाम है ।

मानसिक संक्रिया ( Mental operation ): बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए जाने वाले चिन्तन को ही मानसिक संक्रिया कहते हैं ।

स्कीम्स ( Schemes ) : यह बालक द्वारा समस्या – समाधान के लिए किए गए चिन्तन का आभिव्यकत रूप होता । अर्थात् मानसिक संक्रियाओं का अभिव्यक्त रूप ही स्कीम्स होता है ।

स्कीमा ( Schema ) : एक ऐसी मानसिक संरचना जिसका सामान्यीकरण किया जा सके, स्कीमा होता है ।

Some important facts of Jean Piaget’s theory –

(1) Adaptation

According to Piaget, children have an innate tendency to adjust with their environment. This tendency of the child is called adaptation. According to Piaget, the child begins to adapt from his early life. When a child is exposed to any stimulating situation in the environment, at that time his various mental activities work together and acquire knowledge, not doing separate tasks. This action always goes on at the mental level.The relationship that man has with the environment is influenced by the organization internally while adaptation externally. Piaget considered the process of adaptation to be more important.

Piaget divided the whole process of adaptation into two sub-processes.

  1. Assimilations
  2. Accommodation

(1) Assimilation is a process in which the child uses previously learned plans or mental processes to solve a problem. It is a biological process.

(2) Accommodation is a process that is done only for adjustment when the previously learned plan or mental processes do not work. Piaget says that the child strikes a balance between the processes of assimilation and reconciliation. When a child is faced with a new problem, a cognitive imbalance arises in him. To remove that imbalance, he initiates the process of assimilation or adjustment or both.

Cognitive structure: According to Piaget, cognitive structure refers to the mental organization of the child. That is, the various activities involved in the intellect such as perception, memory, thinking and reasoning, etc., all of them work in concert. Engaging with the environment is the result of the organization itself.

Mental operation: The thinking done by the child to solve the problem is called mental operation.

Schemes: This would have been an expression of the thinking done by the child to solve the problem. That is, the manifestation of mental operations is schemas.

Schema: A mental structure that can be generalized is a schema.

Adaptation and Assimilation (अनुकूलन और आत्मसात्करण) Piaget, Kohlberg & Vygotsky for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Adaptation and Assimilation (अनुकूलन और आत्मसात्करण) Piaget, Kohlberg & Vygotsky for CTET, all State TETs, KVS, NVS, DSSSB etc

Q. Who gave the concept of Adaptation and Assimilation in his Cognitive Development Theory?

  1. Kohlberg
  2. Piaget
  3. Skinner
  4. Vygotsky

Ans- Option B

Through his study of the field of education, Piaget focused on two processes, which he named assimilation and accommodation. To Piaget, assimilation meant integrating external elements into structures of lives or environments, or those we could have through experience. Assimilation is how humans perceive and adapt to new information. It is the process of fitting new information into pre-existing cognitive schemas. Accommodation is the process of taking new information in one’s environment and altering pre-existing schemas in order to fit in the new information. This happens when the existing schema (knowledge) does not work, and needs to be changed to deal with a new object or situation.

Q. अपने संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत में अनुकूलन और आत्मसात्करण की अवधारणा किसने दी-

  1. कोहलबर्ग
  2. पियाजे
  3. स्किनर
  4. वाइगोत्सकी

Ans- विकल्प B

स्वयं के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में पियाजे दो पदों का उपयोग करते हैं। संगठन और अनुकूलन। हालांकि इन पदों के अलावा भी पियाजे ने कुछ अन्य पदों का प्रयोग अपने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत में किया है।

(1) अनुकूलन ( Adaptation ) 

पियाजे के अनुसार बच्चों में अपने वातावरण के साथ समायोजन की प्रवृति जन्मजात होती है । बच्चे की इस प्रवृति को अनुकूलन कहा जाता है । पियाजे के अनुसार बालक अपने प्रारभिंक जीवन से ही अनुकूलन करने लगता है । जब कोई बच्चा वातावरण में किसी उद्दीपक परिस्थितियो के समाने होता है तो उस समय उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएं अलग अलग कार्य न करके एक साथ संगंठित होकर कार्य करती हैं और ज्ञान अर्जित करती हैं। यही क्रिया हमेशा मानसिक स्तर पर चलती है। वातावरण के साथ मनुष्य का जो संबंध होता है उस संबंध को संगठन आन्तरिक रूप से प्रभावित करता है जबकि अनुकूलन बाहरी रूप से। पियाजे ने अनुकूलन की प्रक्रिया को अधिक महत्वपूर्ण माना है।

पियाजे ने अनुकूलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को दो उप -प्रक्रियाओं बांटा गया है।

  • आत्मसात्करण ( Assimilations )
  • समंजन ( Accommodation  )

(1) आत्मसात्करण ( Assimilations ) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें बालक किसी समस्या का समाधान करने के लिए पहले सीखी हुई योजनाओं या मानसिक प्रक्रियाओं का सहारा लेता है । यह एक जैव वैज्ञानिक प्रक्रिया है । 

(2) समंजन ( Accommodation  ) एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूर्व में सीखी योजना या मानासिक प्रक्रियाओं से काम न चलने पर समंजन के लिए ही की जाती है । पियाजे कहते हैं कि बालक आत्मसात्करण और सामंजस्य की प्रक्रियाओ के बीच संतुलन कायम करता है । जब बच्चे के सामने कोई नई समस्या होती है, तो उसमें सांज्ञानात्मक असंतुलन उत्पन्न होता है। उस असंतुलन को दूर करने के लिए वह आत्मसात्करण या समंजन या दोनों प्रक्रियाओं को प्रारंभ करता है ।

(Child Development & Pedagogy : Piaget, Kohlberg & Vygotsky)

पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत (Principle of Piaget, Kohlberg and Vygostky)

विकास की अवस्थाओं के  सिद्धांत(Principle of Development Stages)
मानव विकास की वृद्धि के कई आयाम होते हैं। विकास की अलग अलग अवस्थाओं में बालक में विशेष गुण देखने को मिलते हैं। इनके आधार पर मनोवैज्ञानिक  अवस्थाओं के अनेक सिद्धांत बनाते हैं। विकास की अवस्थाओं से सम्बंधित सिद्धांतों में पियाजे, कोह्लबर्ग, वाइगोत्स्की के सिद्धांत विशेष रूप से प्रसिद्द हैं।
 जीन प्याजे के विकास की अवस्थाओं के सिद्धांत 

जीन प्याजै स्विट्ज़रलैंड के एक प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक थे। बच्चों में बुद्धि का विकास कैसे होता है यह जानने के लिए उन्होंने अपने ही बच्चो पर खोज की। जैसे जैसे वे बड़े हुए उनकी मानसिक विकास की क्रियाओं का बारीकी से अध्ययन किया गया। इन अध्ययनों के अनुसार जिन सिद्धांतों को बताया गया है वे पियाजे के मानसिक विकास  के नाम से जाने जाते हैं। संज्ञानात्मक विकास का अभिप्राय बच्चों की  एकत्रित करने की क्रिया से है। इसमें भाषा चिंतन समरण शक्ति और तर्क शामिल हैं।पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धांत के अनुसार जिससे संज्ञानात्मक संरचना को संसोधित किया जाता है समावेशन कहलाती है। पियाजे ने अपने सिद्धांत में कहा है की बच्चो की बुद्धि का विकास जन्म से ही शुरू हो जाता है। जब भी बालक का जन्म होता है वह कुछ क्रियाएं करने में सक्षम होता है। जैसे चूसना , देखना, पकड़ना, वस्तुओं तक पंहुचना। उस समय उसकी बौद्धिक संरचना इसी प्रकार की होती है जो उसे केवल यही क्रियाएं करने योग्य बनाती हैं। जैसे जैसे वह बड़ा होता है उसके बौद्धिक सरंचना का दायरा भी बढ़ता है और वह बुद्धिमान बनता चला जाता है।  पियाजे के अनुसार संज्ञानात्मक विकास एक निश्चित अवस्थाओं के क्रम में होते हैं। पियाजे ने बालक के संज्ञानात्मक विकास को चार भागों में बांटा है 
१ इन्द्रियजनित गामक अवस्था (जन्म से दो वर्ष तक)  मानसिक क्रियाओं का विकास इसी अवस्था में संपन्न होता है। भूख लगने की स्थिति में बालक  करता है। जिन वस्तुओं को देखते हैं उनके लिए उन्ही वस्तुओं का अस्तित्व होता है। इस अवस्था में बालक की बुद्धि उसके द्वारा किये हए कार्यों द्वारा व्यक्त होती है।  तरह  की अवस्था अनुकरण , स्मृति, और मानसिक निरूपण से सम्बंधित है .

पूर्व संक्रियात्मक अवस्था (दो से सात वर्ष तक )
 इस  अवस्था में बालक अपने परिवेश की वस्तुओं को पहचानने लगता है एवं उनमें अंतर पहचानने लगता है। इस दौरान उसमे भाषा का विकास भी प्रारम्भ हो जाता है। इस अवस्था में बालक नई सूचनाओं को इकठ्ठा करता है वह पहली अवस्था की तुलना में अधिक समस्याओं को सुलझाने में सक्षम हो जाता है। 

मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (सात वर्ष से ग्यारह वर्ष तक) 
इस अवस्था में बालक वस्तुओं को और अच्छी तरह पहचानने और उनका वर्गीकरण करने लगता है। उनका चिंतन और अधिक तर्कसंगत होने  लगता है।  बालक सामाजिक अनुकूलन के लिया भोत से नियम सीख लेता है। इस अवस्था में बालकक को लगता है की अंक लम्बाई तथा भर स्थिर हैं।  

अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (ग्यारह वर्ष से आगे)
 यह अवस्था ग्यारह वर्ष से प्रौढ़ावस्था तक चलते है। अमूर्त चिंतन की इस अवस्था में प्रमुख विशेषता है। इस अवस्था में भाषा सम्बन्धी योग्यता अपने चरम पर होती है बालक अच्छी तरह सोचने लगता है और किसी भी समस्या के समाधान ढूंढ़ने के लिए अमूर्त विचारों का निर्माण करता है।  अब उसमे निर्णय लेने की क्षमता का विकास हो जाता है।  
जीन पियाजे के अन्य सिद्धांत 
निर्माण और खोज का सिद्धांत प्रत्येक बालक अपने अनुभवों को अर्थपूर्ण बनाने की कोशिश करता रहता है। बालक नए नए व्यावहारिक गुण सिखने की कोशिश करता है जिनको उसने पूर्व में अनुभव नहीं किया। पियाजे के अनुसार बौद्धिक विकास केवल नक़ल नहीं है वह खोज पर आधारित है। 
कार्यात्मक क्रिया का अर्जन कार्यात्मक क्रिया से अभिप्राय है उस क्रिया से जिसमे बालक  कार्य कर रहा होता है उसी काम के प्रारम्भ में आजाता है। जैसे वह एक मिटटी के चक्र को दो भागों में जोड़ देता है और फिर उन दो भागों को  जोड़ कर पुनः चक्र का निर्माण कर देता है। बौद्धिक विकास का केंद्र यही क्रियात्मक क्रियाओं का अर्जन है। पियाजे के अनुसार जब तक बालक किशोरावस्था तक नहीं पंहुच जाता वह भिन्न भिन्न विकास की अवस्थाओं में भिन्न भिन्न वर्गों की कार्यात्मक क्रियाओं का अर्जन करता है। एक विकास की अवस्था से दूसरे पर जाने के लिए दो तथ्य अत्यंत आवश्यक हैं। सात्मीकरण और संतुलन स्थातिप करना। सात्मीकरण का अर्थ है बालक में उपस्थित विचारों में किसी अन्य विचार का समावेश करना। संतुलन का अर्थ है किसी नयी वास्तु अथवा विचार  साथ समायोजन स्थापित करना। या अपने विचारों और गुणों को दूसरे नए गुणों और विचारों साथ समावेशित करना।  

लॉरेंस कोह्लबर्ग का नैतिक विकास की अवस्था का सिद्धांत 
कोह्लबर्ग के अनुसार बालको के नैतिक विकास की क्रिया में को निश्चित अवस्थाएं सम्मिलित हैं। ये अवस्थाएं इस प्रकार हैं –
⇭पूर्व नैतिक स्तर 
⇭परम्परागत नैतिक स्तर 
⇭आत्म अंगीकृत नैतिक मूल्य स्तर 
पूर्व नैतिक अवस्था में बालक की उम्र चार वर्ष से दस वर्ष तक होती है। परम्परागत नैतिक स्तर में आयु दस से तेरह वर्ष होती है। आत्म अंगीकृत नैतिक मूल्य स्तर  आयु तेरह वर्ष से ऊपर होती है। कोह्लबर्ग  अध्ययन के आधार पर नैतिक विकास को निम्न अवस्थाओं में बांटा गया है पूर्व नैतिक अवस्था , सवकेन्द्रित अवस्था , परम्पराओं को धारण करने वाली अवस्था , आधारहीन आत्मचेतना अवस्था , आधारयुक्त आत्मचेतना अवस्था। 

पूर्व नैतिक अवस्था 
यह अवस्था जन्म से लेकर दो वर्ष की आयु तक रहती है। इस अवस्था में बालक को कोई किसी प्रकार के नैतिक मूल्यों को धारण करने के लिए नहीं कहता क्योंकि इस अवस्था में उसे यह समझ नहीं होती की उसके किसी कार्य से किसी को परेशानी या नुकसान तो नहीं होगा।  अवस्था में उसे अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता  वह अपनी भावनाओं तथा इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाता तथा बात बात पर जिद्द करता है। 

स्वकेन्द्रित अवस्था 
यह अवस्था तीसरे वर्ष से शुरू होकर छह वर्ष तक रहती है। इस अवस्था में बालक की सभी नैतिक क्रियाएं अपनी आवश्यकताओं तथा इच्छाओं पर केंद्रित होती हैं। बालक के लिए वही क्रिया नैतिक होता है जो उसके हित में होती है। 
परम्पराओं को धारण करने वाली अवस्था
सातवें वर्ष से किशोरावस्था तक होती है। इस अवस्था में बालक सामाजिकता के गुणों को धारण करता है। उसमे सामाजिक नियमों के प्रति नैतिकता का विकास होता है। इस अवस्था में उसे अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाता है वह समझने लगता है की कोनसा व्यव्हार उसके  समाज के हित में है या नहीं। 

आधारहीन आत्मचेतना अवस्था 
 अवस्था किशोरावस्था से सम्बंधित है। इसमें बालक में स्वयं के गुणों की  प्रवृति उत्पन होजाती है।  पूर्णता की चाह उसे संतुष्ट नहीं रहने देती। यही असंतुष्टि उसे समाज या परिवेश में जो गलत हो रहा है उसे बदलने या परम्पराओं का विरोध करने के लिए उकसाती है। 

आधार युक्त आत्मचेतना अवस्था 
 नैतिक विकास की यह चरम अवस्था है  अवस्था में व्यक्ति अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रख कर अपनी मानसिक शक्तियों का परयोग करते हुए विशेष नैतिक व्यवहार करता हुआ पाया जाता है। 

वायगॉट्स्की का सिद्धांत 
इस सिद्धांत के अनुसार बालक की वास्तविक क्षमता स्तर तथा कार्यकारी विकास स्तर के मध्य अनन्तर से सम्बंधित है।  अंतर को निकट विकास का क्षेत्र कहते हैं 
वायगॉट्स्की निकट विकास क्षेत्र सिद्धांन्त 
रटकर सिखने और निष्क्रिय रूप से सीखते जाने की अपेक्षा रचनावादी तरीके से सिखने का अर्थ है किसी बात को समझना। मार्गदर्शन में कुछ समझकर सीख्नना एक ऐसी प्रिक्रिया है जो चार चरणों से होकर गुजरती है। 

प्रथम चरण प्रथम चरण वह है जिसमे व्यक्ति को किसी अपने से अधिक योग्य व्यक्ति से  सीधे  सहायता प्राप्त होती है। इसमें योग्य व्यक्ति बच्चे के साथ काम करते हुए यह देखने में मदद करता है की वह पहले से क्या जनता है और इसका उस प्रश्न से क्या सम्बन्ध है जिसका हल वह निकलना चाहता है। प्रश्न का हल वह खुद खोजता है

द्वितीय चरण
इस चरण में बच्चा स्वयं अपनी मदद करता है जो की पहले किसी बड़े के द्वारा की जाती थी बड़े की मदद सिर्फ इतनी चाहिए की वह पहले और अब के सवाल के बीच की समानता को इंगित करे। 

त्तृतीय चरण 
यह चरण तब अत है जब बच्चों को न तो किसी योग्य व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता होती है और न ही उन्हें बार बार सोचना पड़ता है की आगे क्या करना है? 
चतुर्थ चरण 
जब बच्चा एक तरह के क्षेत्र में महारत हासिल कर लेता है तब वह दूसरे क्षेत्रों में भी सिखने के लिए तैयार होते हैं। जिस प्रक्रिया में बड़े बच्चो की किसी सवाल का हल करने में सहायता करते हैं को स्कैफ़ोल्डिंग कहते हैं जैसे जैसे बच्चा आत्मनिर्भर होता है और उसका आत्मविश्वास है वैसे वैसे बड़ो के सहयता करने का तरीका भी बदल जाता है। 
वायगॉट्स्की के निकट विकास क्षेत्र में खेल का महत्त्व 
वायगॉट्स्की के अनुसार खेल बौद्धिक तथा सामाजिक विकास को बढ़ावा देता है विकास के विषय में खेल के प्रति वायगॉट्स्की  दृष्टिकोण समन्वयकारी था 
उनके अनुसार खेल एक ऐसा उपकरण जिससे वह अपनी भावनाओं और व्यहवहार पर नियन्त्रन करना सीखता है। अधिगम की अन्य गतिविधियों की तुलना में खेल में बच्चों का मानसिक स्तर उच्चतम स्तर पर होता है। उनके अनुसार खेल बच्चे के विकास को तीन तरीके से प्रभावित करता है। 
१ खेल बच्चे के निकट विकास क्षेत्र का निर्माण करता है। 
२ खेल कार्यों और वस्तुओं को विकार से अलग करने  करता है 
३ खेल अभिनियन्त्रण के विकास में सहायता करता है। 

निकट विकास क्षेत्र के निर्माण में खेल का महत्त्व 
वायगॉट्स्की के अनुसार खेल बच्चो बके लिए निकट विकास क्षेत्र का निर्माण करता है। खेल में बच्चा अपनी आयु से अधिक और अपनी दिनचर्या से ऊपर उठ कर व्यव्हार करता है। इसके विषय में निम्न तथ्य दिए गए हैं 
1 खेल में विकास के सभी तत्व शामिल हैं इसमें बालक सामान्य क्षमता से अधिक करने के लिए तत्पर रहता है। 
2 खेलने के लिए बालक जिस मानसिक प्रक्रिया का प्रयोग करता है वह निकट विकास क्षेत्र की रचना करती है। बच्चा निकट विकास क्षेत्र पर काम कर सके उसके लिए खेल क नियम , भूमिका , तथा प्रेरणा सहायता करते हैं। 
3 वायगॉट्स्की  शिष्यों लियोंतयेव और ऐलकोनिने ने  विचार का अध्ययन करके यह धरना बनाई  खेल एक प्रमुख गतिविधि है। उनका मानना था की खेल 3 से 6 वर्ष के बालक के लिए एक महत्त्वपूर्ण गतिविधि है जिसमे बालक बहुत कुछ सीखता है।   

वस्तुनिष्ट प्रश्न 
निम्न में से कोण सा बुद्धिमान बच्चे का लक्षण नहीं है 
१ वह लम्बे निम्बंधो को जल्दी रटने की क्षमता रखता है। 
२ वह जो प्रवाहपूर्ण एवं उचित तरीके से सम्प्रेषण करने की क्षमता रखता है 
३ वह जो अमूर्त रूप से सोचता रहता है 
४ वह जो नए परिवेश में स्वयं को समायोजित  सकता है 

Ans- 1

2 बच्चे दुनिया में अपनी समझ का सृजन करते है इसका श्रेय जाता है 
१ पियाजे को 
२ पॉवलोक को 
३ कोहलबर्ग को 
४ स्किनर को 

Ans- 1

3 शिक्षा मनोविज्ञान की दृष्टि में कोना सा कथन सत्य है 
१ बच्चे अपने ज्ञान का सृजन स्वयं करते है 
२ विद्यालय में आने से पूर्व बच्चो में कोई पूर्व ज्ञान नहीं होता है 
३ अधिगम प्रक्रिया में बच्चों को कष्ट होता  है  
४ बच्चे केवल वही सीखते हैं जो उन्हें सिखाया जाता है 

Ans- 1

4 घटना तथा वस्तुओं के बारे में बच्चा तार्किक  रूप से सोच सकता है पियाजे के चरणों में निम्न कथन सही है 
१ सेंसरी तंत्रिका तंत्र
२ प्रारंभिक सञ्चालन प्रक्रिया 
३ मूर्त सञ्चालन प्रक्रिया 
४ औपचारिक संचालन प्रक्रिया 

Ans- 3

5 वायगॉट्स्की ने बालक विकास के बारे में कहा है 
१ यह  संस्कारों की अनुवांशिकी के कारण है 
२ यह सामाजिक अन्तर्क्रियाओं का उत्पाद है 
३ औपचारिक शिक्षा  उत्पाद है 
४ यह समावेश और समायोजन का परिणाम है 

Ans- 2