Assessment and Evaluation (आकलन और मूल्यांकन)

Assessment and Evaluation in Hindi

आकलन और मूल्यांकन

आकलन और मूल्यांकन दोनों का उद्देश्य बच्चों की अभिव्यक्ति, क्षमता, अनुभूति, आदि का मापन करना है। आकलन एक संक्षिप्त प्रक्रिया है और मूल्यांकन एक व्यापक प्रक्रिया है। मूल्यांकन किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम में किसी भी पक्ष के विपक्ष में विषय में सूचना एकत्र करना उसका विया करना श्लेषण करना और व्याख्या करना है।

Assessment (आकलन)

किसी व्यक्ति या किसी चीज़ के बारे में जानकारी प्राप्त करने, समीक्षा करने और उपयोग करने के तरीके को आकलन करना यानि Assessment कहते है, assessment का उदेश्य यही होता है की जहां आवश्यक हो, सुधार किया जा सके।

Type of Assessment

Summative Assessment
Interim Assessment
Formative Assessment

आंकलन का उद्देश्य (objective of Assessment)

आंकलन का निर्देश देता है।
आंकलन सीखने को प्रेरित करता है।
आंकलन उनकी प्रगति के छात्रों को सूचित करता है।
आंकलन शिक्षण अभ्यास को सूचित करता है।
आंकलन में ग्रेडिंग की भूमिका होती है।

Evalution (मूल्यांकन)

मूल्यांकन किसी व्यक्ति या किसी चीज को मापने या अवलोकन करने की एक व्यवस्थित और वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया है, यह एक व्यक्ति के प्रदर्शन, पूर्ण परियोजना, प्रक्रिया या उत्पाद का प्रदर्शन करता है, ताकि इसकी कीमत या महत्व निर्धारित किया जा सके।मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है मूल्यांकन शिक्षण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है।

इसका सीधा संबंध शिक्षा के उद्देश्य से होता है।यह बालकों के परिणामों की गुणवत्ता मूल्य और प्रभाव प्रभाव एकता के आधार पर उनके भावी कार्यक्रमों का निर्धारण करता है।मूल्यांकन का प्रमुख प्रयोजन व्यवहारगत परिवर्तन की दिशा प्रकृति एवं स्तर के संबंध में निर्णय करना है यह शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति की सीमा का निर्धारण करने वाली प्रक्रिया है।

मूल्यांकन का उद्देश्य (Objective of Evalution)

  • बच्चों में अपेक्षित व्यवहार एवं आचरण परिवर्तन की जांच करना।
  • यह जांचना कि बच्चों ने कुशलताओं, योग्यता, आदि को कितना ग्रहण किया है।
  • बालकों की सभी कठिनाइयों का निर्धारण करने तथा दोषो को जानना।
  • उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करना।
  • बालकों की चहुमुखी विकास को निरंतर गति प्रदान करना।
  • इससे अध्ययन और अध्यापन दोनों का मापन कर सकते हैं।
  • मूल्यांकन द्वारा प्रयोजन, शिक्षण विधियों की उपयोगिता एवं विद्यालय की समस्त क्रियाओं का अंकन करना।

 मूल्यांकन का महत्व (Importance of Evaluation)

  • छात्रों को अध्ययन की ओर अग्रसित करता है।
  • छात्रों के व्यक्तिगत मार्गदर्शन में सहायता करता है।
  • शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है।
  • बच्चों की कमजोरियों को जानने में सहायक होता है।
  • बच्चों की प्रगति में सहायक है।
  • शैक्षिक व व्यवसायिक मार्गदर्शन में सहायक है।

मूल्यांकन प्रक्रिया या मूल्यांकन के पद (Steps of Evaluation Process)

  • मूल्यांकन के उद्देश्यों का चयन व निर्धारण।
  • उद्देश्यों का निर्धारण विश्लेषण (व्यवहारगत परिवर्तन के संदर्भ में)।
  • मूल्यांकन प्रविधियों का चयन करना।
  • मूल्यांकन प्रविधियों का प्रयोग एवं परिणाम निकालना।
  • परिणामो की व्याख्या सामान्यकरण करना।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के अनुसार-

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation)

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन में यह तथ्य सम्मिलित होने चाहिए :-
निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है।
कक्षा में प्रदान किए गए अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे हैं।
व्यवहार परिवर्तन की प्रक्रिया कितने अच्छे ढंग से पूर्ण हो रही है।

हम किसी भी बच्चे का शैक्षणिक मूल्यांकन प्रश्न पत्र द्वारा कर सकते हैं।
जब हम प्रश्नपत्र प्यार करते हैं तो उसमें हम प्रश्नों को आधार बनाते हैं।

प्रश्नों के प्रकार (Types of Questions)

  1. मुक्त अंत / मुक्त उत्तरीय प्रश्न
  2. बंद अंत / सीमित उत्तर वाले प्रश्न

1. मुक्त अंत (Open Ended) :-  मुक्त अंत प्रश्नों में हमें अपने विचार प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता होती है। हम अपने विचारों को अपने तरीकों से प्रस्तुत कर सकते हैं। जैसे: Answer the following question, One word answer.
2. बंद – अंत (Close Ended) :- बंद अंत प्रश्नों में हमें अपने विचारों को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता नहीं होती। हमें प्रश्न के विकल्प में से एक को छांटना होता है।

बंद अंत प्रश्नों के प्रकार (Types of Close Ended Questions)

  • बहु विकल्प प्रश्न (Objective type Question)- कई विकल्प में से एक को चुनना।
  • सत्य /असत्य(True/False)  –  हां और ना में उत्तर देना।
  • मिलान (Match the Following) – सही विकल्प का मिलान करना।
  • खाली स्थान (Fill in the Blanks) – खाली जगह के स्थान पर सही विकल्प।
  • वर्गीकृत प्रश्न (odd one out) – पांच छह शब्दों के एक समूह में से अलग शब्द निकालना।
  • व्यवस्थितकरण प्रश्न( Arrange the word in proper manner) – शब्दों को व्यवस्थित रुप से लगाना।

नोट बंद अंत को वस्तुनिष्ट प्रश्न भी बोल सकते हैं बहुविकल्प, सत्यासत्य, मिलान, खाली स्थान, वर्गीकृत और व्यवस्थितकरण प्रश्न सभी वस्तुनिष्ट प्रश्न है।

ब्लूम के अनुसार शैक्षिक उद्देश्यों का वर्गीकरण (Bloom Taxonomy of Educational Objectives)

ब्लूम के अनुसार व्यवहार के तीन पक्ष है :-

  • ज्ञानात्मक पक्ष
  • भावात्मक पक्ष
  • क्रियात्मक पक्ष

प्रथम ज्ञानात्मक पक्ष का वर्गीकरण ब्लूम ने 1956 में, दूसरे पक्ष का वर्गीकरण ब्लूम में उसके सहयोगी कथवाल  मारिया ने 1965 में और तीसरे क्रियात्मक पक्ष का वर्गीकरण सिंपसन तथा हैरो ने प्रस्तुत किया।

ज्ञानात्मक पक्ष के उद्देश्यों का वर्गीकरण (Taxonomy of Objectives in the Cognitive Domain)

ब्लूम ने ज्ञानात्मक पक्ष के उद्देश्यों को सरल से कठिन और शिक्षण अधिगम के निम्न स्तर से शुरू करके ऊँचे से ऊँचे स्तर तक ले जाने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए 6 भागों में विभाजित किया है :-

(i) ज्ञान (Knowledge) :- इस वर्ग में विद्यार्थियों को पाठ्यवस्तु के विशिष्ट तथ्य पदों, परंपराओं, प्रचलनों, वर्गो, कसौटियों का प्रत्यय विज्ञान और प्रत्यास्मरण कराने का प्रयास किया जाता है।
उदाहरण – परिभाषा देना, सूची देना, मापन करना, प्रत्यास्मरण, पहचानना, पुनरुत्पादन आदि।

(ii) बोध (Comprehension) :- ज्ञान वर्ग में बच्चों को जो ज्ञान कराया जाता है।  बोध में उसके बारे में समझ विकसित की जाती है।  ज्ञान के बिना अवबोध करना आसान नहीं है।
उदाहरण – वर्गीकरण, भेद करना, व्याख्या, प्रतिपादन करना, उदाहरण देना, संकेत करना, सारांश, रुपांतरण करना आदि।

(iii) प्रयोग (Application) :- आत्मसात किए हुए ज्ञान को परिस्थितियों के अनुसार प्रयोग करना।
उदाहरण – जांच करना, प्रदर्शित करना, संचालित करना, गणना करना, संशोधित करना, पूर्व कथन देना, परिपालन करना।

(iv) विश्लेषण (Analysis) :-  आत्मसात किये हुए ज्ञान में से अलग – अलग करने की क्षमता।
उदाहरण – विश्लेषण करना, संबंधित करना, तुलना करना, आलोचना, विभेद, इंगित करना, अलग – अलग करना।

(v) संश्लेषण (Synthesis) :- पाठ्यवस्तु में दिए हुए संप्रत्यय, नियमों के आधार पर उनमें से अपने अनुसार संप्रत्य निकालना।  उदाहरण – तर्क देना, निष्कर्ष देना, निकालना, वाद – विवाद करना, संगठित करना, सिद्ध करना।

(vi) मूल्यांकन (Evaluation) :- सीखे हुए ज्ञान का मूल्यांकन करना कि ज्ञान को कितनी हद तक आत्मसात किया है। उदाहरण – चुनना, बचाव करना, निश्चित करना, निर्णय लेना आदि।

भावात्मक पक्ष (Affective Domain)

ब्लूम ने भावात्मक पक्ष को पांच भागों में बांटा :-

1. आग्रहण या ध्यान देना (Receiving or Attending) :- बच्चों को अभिप्रेरित करना ताकि बच्चे अध्यापक द्वारा पढ़ाई गई सामग्री में  इच्छित हो। बच्चों को इस प्रकार से अभी प्रेरित करना कि विद्यार्थियों में मानवीय मूल्यों को भली भांति ग्रहण करने के लिए पर्याप्त इच्छा जागृत हो जाए।
उदाहरण – पूछना, स्वीकार करना, ध्यान देना, अनुसरण करना, प्रत्यक्षीकरण।

2. अनुक्रिया (Responding) :- दिए हुए उद्देश्य के प्रति काम करना।
उदाहरण – उत्तर देना, मदद करना, पूर्ण करना, पूरा करना, विकसित करना, लेबल देना, आज्ञा पालन करना अभ्यास करना।

3. आकलन (Value) :- इस स्तर पर विद्यार्थियों में किसी विशेष मूल्य को स्वीकार करने व किसी विशेष मूल्य के प्रति अधिक लगाव या अभिरुचि प्रकट करते हुए उसके पालन के लिए वचनबद्ध होने की योजना को विकसित करने का प्रयास किया जाता है।
उदाहरण :- अभिरुचि को कर्म देना वृद्धि करना संकेत करना।

4. संगठन (Organization) :- पूर्व अनुभव को संगठित करना।
उदाहरण – जोड़ने से संबंध स्थापित करना, पाना बनाना, सामान्यीकरण करना, योजना बनाना , व्यवस्थित करना।

5. मूल्यों का चरित्रीकरण / विशेषीकरण करना (Characterization by a value or Value Complex) :-इसमें विद्यार्थियों के व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों के समन्वय से उत्पन्न जिस मूल्य प्रणाली अथवा चरित्र की भूमिका बन चुकी होती है उसे विशेष रूप से प्रदान करने का प्रयत्न  किया जाता है।
उदाहरण – चरित्रकरण, निश्चय करना, प्रयोग करना, सामना करना, पुष्टिकरण करना, हल करना आदि।

क्रियात्मक पक्ष / मनोगत्यात्मक पक्ष (Psychomotor)

ब्लूम ने क्रियात्मक पक्ष को 6 भागों में बांटा है :-

1. सहज क्रियात्मक अंगसंचालन (Reflex Movement) :- सहज क्रियात्मक अंग संचालन में बच्चा अपने चारों ओर फैले किसी उद्दीपन के संपर्क में आता है तो वह कोई ना कोई प्रतिक्रिया अनजाने में ही व्यक्त करता है।  जैसे हाथ पर चींटी गिरते ही हाथ झटक देना।
उदाहरण – काटना, झटका देना, ढीला करना, छोटा करना आदि।

2. आधारभूत अंगसंचालन (Basic Fundamental Movement) :- किसी प्रकार का आदेश मिलने पर अंग संचालन करना आधारभूत अंग संचालन कहलाता है।
उदाहरण – उछलना, कूदना, पकड़ना, रेंगना, पहुंचना, दौड़ना आदि।

3. शारीरिक योग्यताएं (Physical Ability) :- अंग संचालन क्रियाओं को करने के लिए काम करने की क्षमता को बढ़ाना।
उदाहरण – शुरू करना, सहन करना, झुकना, व्यवहार करना, सुधारना, रोकना, टुकड़े टुकड़े करना आदि।

4. प्रत्यक्षीकरण योग्यताएं (Perceptual Ability) :- प्रत्यक्षीकरण योग्यताएं बच्चों के ज्ञानेन्द्रियो व कमेन्द्रिओ के सामंजस्य पर निर्भर करती है।वह वातावरण में फैले उद्दीपन को पहचानने व समझते हुए उनके साथ समायोजन करने में सफल होता है।
उदाहरण –  सूंघकर या सुनकर पहचान करना, स्मृतिचित्रण करना, लिखना, फेंकना आदि।

5. कौशलयुक्त अंगसंचालन (Skilled Movement) :- अभ्यास के द्वारा किसी काम में पूर्ण होना।
उदाहरण- नृत्य करना, खोदना, चलाना, गोता लगाना, नाव खेना, तैरना, निशाना लगाना आदि।

6. सांकेतिक संप्रेषण (Non Discursive Communication) :- बिना बोले भावों को प्रदर्शित करना।
उदाहरण – नकल उतारना, भाव-भंगिमा बनाना, चित्रांकन करना, मुस्कुराना, चिढ़ाना आदि।

मूल्यांकन के प्रतिमान (Pattern of Evaluation/Assessment)

1. अधिगम के लिए मूल्यांकन / आकलन (Evaluation/Assessment for Learning):- अधिगम के लिए मूल्य मूल्यांकन निर्माणात्मक मूल्यांकन पर आधारित होता है अर्थात जब हम किसी काम को करते समय उसके बीच में ही जांच करते हैं कि हम कितना सीख रहे हैं।
उदाहरण – जब हम खाना बनाते समय अगर बीच में ही चखते हैं तो हम खाने की जांच कर रहे हैं कि हमने कैसा खाना बनाना सीखा है।

2. अधिगम का मूल्यांकन / आकलन (Evaluation/Assessmentof Learning) :- अधिगम का मूल्यांकन योगात्मक योगात्मक मूल्यांकन पर आधारित होता है। अर्थात हम काम को खत्म करके उसकी जांच करते हैं कि हमने कितना सीखा।
उदाहरण – जब कोई अध्यापक बच्चों को किसी भ्रमण के लिए लेकर जाता है और बाद में स्कूल वापस आने पर प्रश्न करता है तो वह जांच रहा है कि बच्चों ने वहां क्या-क्या सीखा परंतु इसमें काम के बीच में न कर अंत में मूल्यांकन करते हैं।

3. आकलन / अधिगम के रूप में मूल्यांकन (Assessment/Evaluation as Learning) :- अधिगम के रूप में मूल्यांकन नैदानिक मूल्यांकन पर आधारित होता है। छात्र आपने अधिगम और अन्य लोगों के अधिगम के बारे में गुणवत्तापूर्ण सूचना उत्पन्न करने के लिए अधिक दायित्व लेते हैं।

आकलन एवं मूल्यांकन में अंतर

आकलन एवं मूल्यांकन

आकलन एवं मूल्यांकन दो अलग-अलग पद हैं एवं इन दोनों के अर्थ में भिनता है । आकलन को जहां एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया माना जाता है, जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विद्यार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं ।
वही मूल्यांकन को योगात्मक प्रक्रिया माना जाता है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक कार्यक्रम अथवा पाठ्यक्रम की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात की जाती है ।

आकलन :–का उद्देश्य निदानात्मक होता है । अर्थात शिक्षण अधिगम कार्यक्रम में सुधार करना, छात्रों व अध्यापकों को पृष्ठपोषण प्रदान करना तथा छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को ज्ञात करना आदि ।
मूल्यांकन:–का उद्देश्य मूल्य निर्धारण करना होता है । यथा निर्धारित पाठ्यक्रम की समाप्ति पर विद्यार्थियों की उपलब्धि को ग्रेड अथवा अंक के माध्यम से प्रदर्शित करना है ।

इस प्रकार, आकलन एवं मूल्यांकन दोनों भिन्न-भिन्न उद्देश्य से भिन्न-भिन्न समय पर विद्यार्थियों की उपलब्धि का अनुमान लगाने की प्रक्रिया है ।

भाषा शिक्षण में आकलन एवं मूल्यांकन

–भाषा शिक्षण में आकलन एवं मूल्यांकन का आशय उन प्रक्रियाओं से हैं जिनकी सहायता से एक शिक्षक विद्यार्थियों के भाषा संबंधी समस्त कौशलों के संबंध में शिक्षण अवधि के दौरान एवं पाठ्यक्रम की समाप्ति पर निर्णय करता है ।

आइए अब हम जानते हैं की जब एक भाषा शिक्षक आकलन करता है तब वह अपने विद्यार्थियों में क्या देखता है? –

*–विद्यार्थी कितना पढ़ पाता है?
*– कैसे पढ़ पाता है ?
*–रुक रुक कर पढ़ता है या धारा-प्रवाह पढ़ता है ।
*–ठीक से नहीं पढ़ पा रहा है तो उसका क्या कारण है ? जैसे एक डॉक्टर बिना मरीज के रोग को जाने वह उस रोग का कैसे इलाज करेगा?
*–क्या वह अक्षरों को पहचान नहीं पा रहा है या शब्दों को एक इकाई के रूप में पढ़ने का अभ्यस्त नहीं है ?

*–भाषा को सुनकर कितना समझ पाता है ?
*–कितने आत्मविश्वास से वह स्वयं को अभिव्यक्त कर पाता है?

आइए अब हम जानते हैं भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन के बिंदु कौन-कौन से हैं ?

*सबसे पहले जब हम प्राथमिक स्तर की बात करते हैं जब विद्यार्थी भाषा सीखने की शुरुआत करता है तो उस अस्तर पर हम सबसे पहले विद्यार्थी की प्रवाहिता की जांच करते हैं ।

  • फिर हम प्राथमिक स्तर पर शुद्धता की बात करते हैं कि विद्यार्थी कितना शुद्ध बोल रहा है ? कितना शुद्ध लिख रहा है ? कितना किसी की बातों को सुनकर शुद्ध समझ रहा है ?

अतः सबसे पहले हमें प्रवाहिता पर बल देना चाहिए इसके बाद ही हमें उसके बोलने की शुद्धता पर बल देना चाहिए ।

  • हमें यह देखना चाहिए कि विद्यार्थी की प्रवाहिता तथा शुद्धता दोनों का तालमेल बना रहे । इसके बाद ही भाषाई कौशलों का आकलन होती है ।
  • भाषाई कौशलों का आकलन के अंतर्गत चार प्रमुख कौशल है जो निम्नलिखित है ।
  1. श्रवण कौशल ।
  2. भाषण कौशल ।
  3. पठन कौशल तथा
  4. लेखन कौशल ।

आप तो जानते हैं कि मूल्यांकन की प्रक्रिया निरंतर चलती है परंतु किन तरीकों से चलती है यह जानना बहुत जरूरी है ।

आइए हम जानते हैं अपने विद्यालय में एक शिक्षक के द्वारा भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन के तरीके कौन-कौन से है ? –
सामान्यता दो तरीकों का प्रयोग किया जाता है :–

  1. लिखित परीक्षा एवं ।
  2. मौखिक परीक्षा ।
    इसके लिए बनाए गए प्रश्न पत्र पाठ्यपुस्तकों पर आधारित होते हैं जो भाषाई ज्ञान का आकलन कम एवं विद्यार्थी के स्मरण शक्ति का आकलन अधिक करते हैं ।

लिखित परीक्षा में विद्यार्थी को प्रश्न पत्र दे दिया जाता है जो उसके पाठ्यपुस्तकों पर आधारित होते हैं । अगर विद्यार्थी उन प्रश्न पत्रों का संतुष्टि तक उत्तर दे दिया तो वह उत्तीर्ण हो जाता है । नहीं तो उसे अनुत्तीर्ण कर दिया जाता है ।

क्या इससे विद्यार्थी का भाषा कौशल का मूल्यांकन हुआ नहीं न? चुकी लिखित परीक्षा से हम विद्यार्थी का केवल स्मरण शक्ति का ही मूल्यांकन कर सकते हैं । जो हमारे लिए उद्देश्यहीन मूल्यांकन है ।

आइए अब हम जानते हैं मूल्यांकन का सही तरीका

भाषा में आकलन एवं मूल्यांकन की निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जाना चाहिए ।

  1. मौखिक परीक्षण जो औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों हो सकते हैं ।
    यहां अनौपचारिक का मतलब है कक्षा में पढ़ाते-पढ़ाते किसी विद्यार्थियों से कोई प्रश्न पूछ दिया या किसी शब्द का अर्थ बताने को पूछ दिया ।
    1) प्रश्न-उत्तर का सत्र चलाया जाए
    2) कहानी कथन का सत्र चलवाया जाए ।
    3) विद्यार्थी को बोल बोलकर पढ़ाया जाए । ऐसा करवाने से विद्यार्थी द्वारा किया गया शुद्ध या अशुद्ध उच्चारण शिक्षक के साथ-साथ सभी विद्यार्थियों तक पहुंचता है तथा एक दूसरे को अपनी त्रुटियों से अवगत कराते हैं
    4) विद्यार्थी द्वारा देखी या सुनी बात का वर्णन करवाया जाए । जैसे कि विद्यार्थी से पूछा जाए कि जब आप स्कूल आ रहे थे तो आपने रास्ते में क्या देखा क्या सुना कृपया बताइए । यहां हम उसकी स्मरण क्षमता का मूल्यांकन नहीं करते हैं । यहां हम उसके अभिव्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं उसके विचारों का मूल्यांकन करते हैं कि वह कैसे अपने बातों को व्यक्त करता है ?
  2. लिखित परीक्षा –
    लिखित परीक्षा में सिर्फ प्रश्नों का उत्तर ले लेना ही पर्याप्त नहीं है । इसके लिए हमें निम्नलिखित युक्तियों का प्रयोग करना चाहिए ।
    जैसे 1. श्रुतलेख :–इसमें एक व्यक्ति बोलता है तो दूसरा व्यक्ति सुनकर लिखता है। ऐसा करने से हम विद्यार्थी के श्रवण तथा लेखन क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  3. आपूर्ति परीक्षण:- जिसे हम अंग्रेजी में क्लोज टेस्ट कहते हैं इसमें हम किसी कहानी या निबंध से कोई अनुच्छेद ले लेते हैं फिर उन अनुच्छेदों में से कुछ–कुछ शब्द निकालकर विद्यार्थियों के सामने रखते है फिर विद्यार्थियों को भरने के लिए कहां जाता है कि उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति करें । ऐसा करने से हम विद्यार्थी के व्याकरण क्षमता, शब्द भंडार,पढ़कर समझने की क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  4. कहानी का अपनी मातृभाषा में पुनर्लेखन : इसमें हम विद्यार्थी द्वारा पहले से पढ़ा गया पाठ को हम उनकी मातृभाषा में पुनर्लेखन को कहते हैं यहां हम उनकी लेखन क्षमता की जांच कर लेते हैं । साथ ही साथ हम एक भाषा से दूसरी भाषा में उनके द्वारा अनुवाद करने का क्षमता का भी आकलन कर लेते हैं ।
  5. कहानी का शीर्षक लिखना : इसमें हम विद्यार्थी को किसी निबंध,उपन्यास तथा अनुच्छेद का शीर्षक लिखने को कह कर हम उनके पठन की समझ क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  6. कहानी से प्रश्न बनाना: ऐसा करने से हम विद्यार्थी के प्रश्न बनाने की क्षमता का आकलन कर लेते हैं ।
  7. नाटक का मंचन एवं संवाद लेखन : ऐसा करने से हम पाते हैं कि विद्यार्थी को कहां तक समझ आया कि वह किस अभिनय कर्ता को किस समय पर क्या प्रस्तुत करना है नाटक का मंच कैसा हो ? आदि के बारे में आकलन कर लेते हैं
  8. कविता की व्याख्या या उसका भावार्थ लेखन आदि ।

अतः मूल्यांकन का आकलन करते समय हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसा कि मैंने पहले भी ऊपर में बताया है कि परीक्षण विद्यार्थी की भाषा ज्ञान एवं क्षमता का आकलन एवं मूल्यांकन करने वाला होना चाहिए ना कि उनकी स्मरण शक्ति का ।
दूसरी बात आकलन करते समय हमें विद्यार्थी के मात्र कमजोर पक्षों को ही नहीं देखना चाहिए बल्कि उनकी कारण को भी ढूंढना चाहिए जिनके कारण विद्यार्थी की आपेक्षित पहलू कमजोर है ।