Problematic children- Nature of education notes by India’s top learners

🌷 समस्यात्मक बालकों की🌷
शिक्षा का स्वरूप

1.🌺माता-पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें –

अर्थात हम जानते हैं , कि किसी भी बच्चे को सबसे पहले उनके माता- पिता ही सबसे ज्यादा समझते हैं तो , ऐसे बच्चों के माता पिता को गुस्सा और तेज तर्राट बाला स्वभाव न अपनाकर बल्कि सहानुभूति और स्नेह का स्वभाव अपनाना चाहिए ।

2.🌺 उनकी मूल प्रवृत्तियों का दमन ना करें :-

ऐसे बच्चों की जो मूल प्रवृत्तियां होती हैं तो हमें उनका दमन नहीं करना चाहिए नहीं तो बो कुंठा , हीन भावना का शिकार हो सकते है भले ही बो समस्यात्मक हों , पर दमन करने की अपेक्षा हमें उनको सही तरीके से सही और गलत को समझना चाहिए तभी बो बच्चा समझ सकेगा।

3.🌺 यदि कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा भी करवाएं :-

यदि आवश्यकता लगे तो ऐसे बच्चों की किसी विशेष मनोचिकित्सक से चिकित्सा भी करवायें।

4.🌺 बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित / प्रोत्साहित और पुरस्कृत भी करें :-

अर्थात शिक्षक , समस्यात्मक बालकों को शैक्षिक क्षेत्र में सुधारने के लिये उन्हें प्रेरित, प्रोत्साहित करें, और जरूरत हो तो उन्हें पुरस्कार भी दें । अतः इन सब कार्यों से ऐसे बालकों की समस्यात्मक मानसिकता में सुधार लाया जा सकता है।

5.🌺 उन्हें नैतिक शिक्षा दें :-

एक शिक्षक , समस्यात्मक बालकों में नैतिक शिक्षा का विकास कर उनमें सुधार सकते हैं, और शिक्षित भी कर सकते हैं।

6.🌺 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान :-

इसमें शिक्षक और माता -पिता दोनों की ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है ,..
जिसमें कि वह ऐसे बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान रखकर सही और गलत का निर्णय कर सुधार कर सकते हैं।

7.🌺 बच्चों को मनोरंजन का भी उचित अवसर दें :-

समस्यात्मक बालकों को भी उनके मनोरंजन का उचित अवसर दें ताकि हम उनकी समस्यात्मक मानसिकता पर कुछ सुधार कर पाएंगे।

8.🌺 आदर्श पूर्ण व्यवहार करें , जो बच्चों के लिए अनुकरणीय हो :-

अर्थात शिक्षकों को खुद से ही आदर्श पूर्ण व्यवहार करना चाहिये ताकि बच्चे भी उनको देखकर, सुनकर उनका अनुकरण कर सकें, उनसे सीख सकें।

9.🌺 बच्चों को संतुलित जेब खर्च दें :-

इसमें माता पिता का विशेष स्थान है कि वह बच्चों को सीमित जेब खर्च (पैसा) दें और उनके खर्च करने के बारे में भी समय – समय पर जानकारी लेते रहें ताकि बच्चे अनौपचारिक रूप से खर्च न कर सकें।

10.🌺 शिक्षण विधि मनोरंजक हो :-

एक शिक्षक को अपनी शिक्षण विधि को मनोरंजक बनाये रखना चाहिए , नये नये तरीके अपनाने चाहिए ताकि ऐसे बालकों में शिक्षा के प्रति जिज्ञासा बनी रहे।

11.🌺 संतुलित पाठ्यक्रम (कार्यक्रम) हो, अनावश्यक बोझ न हो :-

शिक्षक को ध्यान रखना चाहिए कि विशेषकर समस्यात्मक बालकों की शिक्षा का पाठ्यक्रम सरल,संतुलित होना चाहिए जिससे उनका पढ़ने में मन लगे , न कि अनावश्यक हो।

12.🌺 सहायक शिक्षण कार्यक्रम :-
भ्रमण , खेलकूद , नाटक , संगीत आदि के द्वारा समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है।

अर्थात् विभिन्न सकारात्मक कार्यों के द्वारा ऐसे बालकों को व्यस्त रख कर हम उनके समस्यात्मक व्यवहार को रोक सकते हैं।

13.🌺 आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपें :-

जैसा कि पहले ही बता चुके हैं कि सकारात्मक व्यस्तता जरूरी है , अर्थात समस्यात्मक बालकों को कुछ भी उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य (जिम्मेदारी बाले कार्य) देकर उनमें आत्मविश्वास की भावना विकसित कर सकते हैं।

अतः इस प्रकार का स्वरूप अपनाकर समस्यात्मक बालकों को शिक्षित कर सकते हैं। 🌹जूही श्रीवास्तव🌹

🔆 समस्यात्मक बालकों की शिक्षा का स्वरूप

▪️बालक का विकास स्वाभाविक क्रिया प्रतिक्रिया द्वारा होता है यदि स्वभाविक समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं तो सामान्य व्यवहारिक समस्याओं के कारण उसके व्यवहार में भी इन लक्षणों का विकास होता दिखाई देता है ।यदि समय रहते इन समस्याओं का संशोधन कर लिया जाए तो बालक का व्यक्तिगत रूप से संतुलित हो जाते है अन्यथा उसे अनेक समस्याओं विशेष रूप से समायोजनात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमें समस्यात्मक बालकों की शिक्षा के समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए अर्थात शिक्षा का स्वरूप निम्न प्रकार से होना चाहिए।

🌀 माता-पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें

▪️बच्चों की देखभाल में पारिवारिक संबंधों का अधिक महत्व होता है। इसलिए बच्चों के माता-पिता से मिलकर यह सुनिश्चित करें कि बच्चे के साथ माता-पिता का व्यवहार प्रेम और सहानुभूति पूर्ण वाला हो।
पारिवारिक संबंधों की मदद से
समस्यात्मक बालक की मानसिक सबलता को या क्षमता को या सोच को सकारात्मक दृष्टिकोण में लाने की जरूरत है।

  • क्योंकि जब घर का वातावरण अभिभावक द्वारा सकारात्मक पूर्ण रहेगा तो बच्चे भी घर के बाहर ठीक वैसा ही सकारात्मक पूर्ण व्यवहार करेंगे।
    यदि वातावरण नकारात्मक होगा तो बालकों में समस्यात्मक व्यवहारों का विकास होता रहेगा और उनका व्यक्तित्व कुंठित हो जाएगा।

🌀 समस्यात्मक बालक की मूल प्रवृत्ति का दमन ना करें

▪️मूल प्रवृत्ति एक प्रकृति दत्त शक्ति है यह शक्ति मानसिक रूप में प्राणी के मन में स्थित रहती है इसका अर्जन नहीं किया जा सकता मूल प्रवृत्तियां शरीर की आंतरिक क्रियाओं तथा आवश्यकता से प्रेरित होती हैं।

  • मूल प्रवृत्ति कर्म व्यवहार का जनमजात ढ़ंग है। अर्थात मूल प्रवृत्ति व्यक्ति की स्वभाविक क्रियाएं है।

*यदि हम किसी व्यक्ति के बेसिक नेचर या मूल प्रवृत्ति में कोई बाधा डालते है या उसका दमन या रोकते हैं तो व्यक्ति को परेशानी आती है और वह मानसिक रूप से भी परेशान हो जाता है।और वह कई असामाजिक रूप से व्यवहार करने लगता है।
जैसे चिड़चिड़े हो जाना,चीजे इधर उधर फेकना,गुस्सा करना,लड़ाई या झगड़े करना आदि।
जो समस्या के रूप में हमारे सामने आते हैं।

🌀 अगर कोई दोष या समस्या का पता चले और संभव हो तो मानसिक रूप से चिकित्सा करवाएं
▪️समस्यात्मक बालक की समस्या का या दोष का उचित और सही रूप से पता चलने पर या पहचान हो जाने पर मानसिक रूप से चिकित्सा करवा सकते है।जिससे बालक की इस समस्या को ठीक प्रकार से ठीक समय पर निदान व उपचार कर सकते है।

🌀 बच्चे को शिक्षक द्वारा प्रेरणा,प्रोत्साहन,पुरूस्कार दिया जाए।

▪️प्रोत्साहन/प्रेरणा/पुरूस्कार किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी विशेष क्रिया के लिए अभिप्रेरित के रूप में दी जाने वाली चीज है जिससे वह प्रेरित होता है
और उनमें सकारात्मक मनोबल बढ़ता है। और प्रभावी ढ़ंग से काम करना,कार्य प्रदर्शन में काफी सुधार आता है इसीलिए बालक को शिक्षक के द्वारा प्रेरणा/ प्रोत्साहन और जरूरत पड़ने पर पुरस्कार दिया जाना चाहिए।

🌀 नैतिक शिक्षा दी जाए

▪️समाज में व्यक्ति दो चीजों से पहचाना जाता है। पहला है ज्ञान और दूसरा है उसका नैतिक व्यवहार।
इंसान के सर्वांगीण विकास के लिए यह दोनों ही अति आवश्यक है। अगर ज्ञान सफलता की चाबी है तो नैतिकता सफलता की सीढ़ी। एक के अभाव में दूसरे का पतन तय है। व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। समाज में बने रहने के लिए सामाजिक नियमों का पालन करना जरूरी होता है।
*बच्चा जब जन्म लेता है तो उस वक्त उसे न तो नैतिकता की समझ होती है और न ही अनैतिकता की। ऐसे में उसे जैसी शिक्षा मिलेगी वह वैसा ही बन जाएगा। इसलिए नैतिकता का पाठ जरूरी है। और नैतिकता ही वह गुण है जो बच्चों को सामाजिक प्राणी बनने में मदद करती है। और किसी भी कार्य को करने के लिए सही गलत की पहचान करवाने में नैतिकता ही मदद करती है।

🌀 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान
▪️अच्छी संगति व्यक्ति को कुछ नया करते रहने की समय-समय पर प्रेरणा देती है, वहीं बुरी संगति से व्यक्ति गहरे अंधकूप में गिर जाता है।
इसीलिए बच्चे की समझ, सोच और तौर-तरीकों पर संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है।
संगति के प्रभाव को हम इस उदाहरण के द्वारा भी समझ सकते है कि
छत्रपति शिवाजी बहादुर बने। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी मां ने उन्हें वैसा वातावरण दिया। नेपोलियन जीवन भर बिल्ली से डरते रहे, क्योंकि बचपन में बिल्ली ने उन्हें डरा दिया था।

🌀 बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर दें
▪️बच्चो को समय समय पर मनोरंजन के अवसर दे जिससे वह शिक्षा को निरन्तर रूप से व रोचक या प्रभावी रूप से आनंद के साथ शिक्षा ग्रहण करे
और साथ ही साथ इस मनोरंजन वातावरण से इन बालकों कि जिस भी क्षेत्र में रचनात्मकता होगी उसके प्रदर्शन का भी अवसर उन्हें मिल पाएगा।

🌀 अध्यापक आदर्शपूर्ण व्यवहार करे
▪️शिक्षक की क्रिया और व्यवहार का प्रभाव उसके छात्र पर पड़ता है क्योंकि छात्र शिक्षक के व्यवहार को दोहराते हैं अर्थात शिक्षक का व्यवहार अनुकरणीय होता है ।
इसलिए जब शिक्षक द्वारा उचित और आदर्श पूर्वक व्यवहार किया जाएगा तो छात्र भी उसी तरह के व्यवहार का अनुकरण करेंगे।

🌀 बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें
▪️माता-पिता द्वारा बच्चे को संतुलित जेब खर्च दिया जाए क्योंकि अत्यधिक जेब खर्चे से बच्चे उन पैसों का गलत उपयोग कर सकते हैं और यह समस्या या मुसीबत बच्चे व माता पिता दोनों के लिए बन सकती हैं।

🌀 शिक्षण विधि मनोरंजक हो
▪️मनोरंजक तरीके से सीखने में किसी भी कार्य को लंबे समय तक याद रखा जा सकता है। अधिकतर शिक्षक, शिक्षण की प्रक्रिया में अनुभवों की भूमिका को समझते हैं। सीखने का मनोरंजक माहौल, हंसी-मजाक और सीखने वाले की क्षमताओं के प्रति सम्मान का भाव आदि अनुभवात्मक शिक्षण के वातावरण को कामयाब बनाने का काम करते हैं।
इसीलिए शिक्षक मनोरंजक शिक्षण विधियों का प्रयोग कर आसानी से खेल खेल में प्रभावी रूप से समस्यात्मक बालकों को सीखा सकते हैं।

🌀 पाठ्यक्रम संतुलित हो अनावश्यक बोझ ना हो
▪️समस्यात्मक बालकों के लिए पाठ्यक्रम को संतुलित रखा जाए अर्थात जरूरत से ज्यादा ना हो और साथ ही साथ अनावश्यक ना हो यदि यह असंतुलित होगा तो यह छात्र व शिक्षक दोनों को बोझ लगेगा।

🌀 सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे भ्रमण,खेलकूद,नाटक, संगीत आदि के माध्यम से शिक्षा
▪️समस्यात्मक बालकों को इस तरह के विभिन्न कार्यक्रम जैसे भ्रमण, खेलकूद, नाटक, संगीत व अन्य क्रियाकलापों के द्वारा समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है। जिसके माध्यम से समस्यात्मक बालक इस कार्यक्रम में व्यस्त रहेंगे तो समस्या भी उत्पन्न नहीं कर पाएंगे

🌀 आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपा जाए

▪️समस्यात्मक बालकों में जिम्मेदारी या जवाबदेही या उत्तर दायित्व पूर्ण कार्य को सौंप कर उनके अंदर आत्मविश्वास की भावना को जागृत किया जा सकता है।

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Notes By-Vaishali Mishra

🌀 समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप 🌀 समस्यात्मक बालक के शिक्षा के स्वरूप में किसी भी बालक में सुधार करने के लिए हमें निम्नलिखित निदान एवं उपचार करना चाहिए जिससे कि बालक की अवस्था में सुधार हो सके और वह आगे बढ़ सके । जो कि निम्नलिखित है :– ▪माता – पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें ➖और उनको उचित वातावरण में रखें ताकि उन्हें समुचित वातावरण देकर हम उनके स्तर में सुधार कर सके क्योंकि एक बच्चे के करीब उसके माता-पिता सबसे ज्यादा होते हैं और इस साथ में अपने परिवार के लोगों को बच्चों से सहानुभूति पूर्ण व्यवहार रखने और उन्हें एक अच्छा वातावरण देने के लिए प्रेरित करें । ▪ उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन ना करें ➖ अगर किसी बच्चे की रूचि किसी चीज में है और वह उस काम को करना चाहता है तो हमें उस काम को करने के लिए उसे प्रेरित करना चाहिए ।बजाय कि उस काम को करने पर डांट ने या फटकार लगाने की क्योंकि बच्चा जिस चीज में अपनी रुचि लेगा उस काम को बेहतर तरीके से और सबसे अच्छा करेगा। बस हमको जरूरत है तो उसको देखने की को सही दिशा में जा रहा है या नहीं । ▪ अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराएं ➖ अगर किसी बच्चे में किसी भी प्रकार की समस्या है या कोई दोस है और यदि हम उसके दोस को दूर करने में सक्षम है तो उस दोष को दूर करने के लिए आवश्यक चिकित्सा अवश्य कराएं कोई ना कोई उपाय अवश्य करें ताकि उस बच्चे के स्तर में सुधार आ जाए। ▪ बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित करें/ प्रोत्साहित करें/ जरूरत लगे तो पुरस्कार भी दें ➖ यदि बच्चा कोई अच्छा कार्य करता है या उचित कार्य करता है तो हमें उसके काम की प्रशंसा अवश्य करनी चाहिए ताकि जब वह अगली बार काम करें तो उसे यह पता रहे कि मैंने यह काम अच्छा किया है और अगर गलत किया है तो उसमें भी हम उसको बताएं समझाएं कि यह गलत है ताकि उसे अच्छे और बुरे की समझ हो जाए और वह और वह उचित काम से प्रेरित होकर और भी अच्छे कार्य करें और आवश्यकतानुसार उसके कार्य के कार्य के अनुसार पुरस्कार देना भी आवश्यक है । ▪ उन्हें नैतिक शिक्षा दें ➖ नैतिक शिक्षा अर्थात उन्हें उचित आचरण दें जैसे – कि दूसरों की मदद करना ,बड़ों का सम्मान करना, ईमानदारी से काम करना , अपने कार्य को जिम्मेदारी से पूरा करना इस प्रकार इस प्रकार कई प्रकार से हम उन्हें समझा या बता सकते हैं और उन्हें नैतिक शिक्षा का ज्ञान दे सकते हैं। ▪ बच्चों की संगत पर विशेष ध्यान दें ➖ बच्चों की संगत पर विशेष ध्यान देने से तात्पर्य है – कि बच्चे कैसे और क्या किस समय कर रहे हैं किसके साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं किसके साथ उठते बैठते हैं उनके काम करने के तरीकों और बाकी सारे व्यवहारों को हमें समय-समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिए यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो बच्चों की प्रतिक्रियाओं के बारे में जानेंगे नहीं और उन्हें हम उचित और अनुचित का ज्ञान नहीं दे पाएंगे इसलिए हमें उनकी संगत पर विशेष ध्यान देना है । ▪ बच्चों के मनोरंजन का भी उचित अवसर दें ➖ समय-समय पर और आवश्यकतानुसार बच्चों की रुचियों को ध्यान रखते हुए हमें उनके हमें उनका मनोरंजन करना भी आवश्यक है क्योंकि यदि वह किसी भी चीज में मनोरंजन या रूचि नहीं लेंगे तो वह चीज उनके लिए बोझ बन जाएगी और धीरे-धीरे किसी भी कार्य को करने को चीजें उन्हें बोझ लगती है करने की इच्छा समाप्त हो जाएगी इसलिए बच्चों का मनोरंजन करना अति आवश्यक है । ▪ अध्यापक आदर्श पूर्ण व्यवहार करें जो बच्चों के लिए अनुकरणीय हो ➖ अध्यापक को आदरपूर्वक करना आवश्यक है क्योंकि बच्चा अपने बड़ों से अपने शिक्षक से या किसी ना किसी को देखकर ही किसी चीज को सीखते हैं इसलिए शिक्षक को घर परिवार वालों को भी हमें ऐसा व्यवहार करना है कि बच्चे हम से जो भी सीखें वह आदर्श उचित एवं अनुकरणीय हो ▪ बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें ➖ बच्चों को संतुलित जेब खर्च देने से तात्पर्य यह है कि हमें यह ध्यान देना है कि हम जो पैसा दे रहे हैं वह उसका कहां प्रयोग कर रहा है कहीं इसका अनुचित या किसी गलत जगह पर प्रयोग तो नहीं कर रहा है इसलिए हमें उन्हें उतना ही पैसा देना है जितने कि उन्हें आवश्यकता है । या जरूरत पड़ने पर ही देना है अनावश्यक जेब खर्च देने से बच्चा गलत आदत पकड़ सकता है इसलिए हमें इस बात का विशेष ध्यान देना है । ▪ शिक्षण विधि मनोरंजक हो ➖ हमें ऐसे तरीकों का या ऐसी शिक्षण विधि का उपयोग करना है जिससे बच्चे उस विधि या उस चीज को पढ़ते समय उत्साहित रहे उसको पढ़ने के लिए रुचि लें और जब वह किसी भी चीज को रुचि के साथ करेंगे तो यह जरूर आवश्यक है कि वह उनको अच्छे से समझ आएगा और मैं उसको उस कार्य को करने में सफल भी होंगे । ▪ संतुलित पाठ्यक्रम हो अनावश्यक बोझ ना हो ➖ संतुलित पाठ्यक्रम से तात्पर्य है कि उन्हें ऐसा पाठ्यक्रम देना है जो उनके जीवन से जुड़ा हुआ और आगे आने वाले समय में उपयोगी हो बच्चों के ऊपर अनावश्यक बोझ नहीं डालना है ▪ सहायक शिक्षण कार्यक्रम भ्रमण खेलकूद नाटक संगीत के द्वारा समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है ➖ बच्चों में खेल प्रतियोगिता भ्रमण/ नाटक/ संगीत इत्यादि के द्वारा हम उनके व्यवहार को शायद बदल सकते हैं बच्चे अनुकरण से सीखते हैं और यदि हम उन्हें दूसरे बच्चों के साथ गतिविधि का हिस्सा बनाएंगे तो बच्चे उस कार्य को करेंगे उसमें कुछ न कुछ सीखेंगे और दूसरों के साथ सामूहिक प्रक्रिया करने के आचरण को भी जानेंगे इसमें इनका उनका खुद का ज्ञान बढ़ेगा दूसरों से वह अनुकरण करेंगे सीखेंगे प्रतियोगिता संगीत कला इत्यादि के माध्यम से वह सीखेंगे । ▪ आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपे ➖ यदि बच्चा खाली रहता है तो कुछ ना कुछ उसके दिमाग में उल्टी बातें या विपरीत चीजें आती हैं और यदि वह किसी काम में व्यस्त रहता है तो वह उस काम के बारे में सोचता है उस चीज के बारे में सोचता है जो वह कर रहा है इसलिए उनको किसी काम की जिम्मेदारी देना आवश्यक है यदि वह किसी काम की जिम्मेदारी लेते हैं तो उस काम को निभाएंगे और उस कार्य के प्रति जागरूक रहेंगे और उस जिम्मेदारी उस कार्य को पूर्ण करने के लिए व आवश्यक प्रयास भी करेंगे। 👉 इस प्रकार कई महत्वपूर्ण प्रयास करके अनेक गतिविधियां करवाकर समस्यात्मक बालक की शिक्षा के स्वरूप में उनके व्यवहार में हम परिवर्तन ला सकते हैं और यथोचित सहयोग से उनके स्तर में सुधार कर सकते हैं ✍️ notes by Pragya shukla

🌳🍁🦚समस्यात्मक बालकों के शिक्षा का स्वरूप 🦚🍁🌳

🌟माता – पिता प्रेम व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करें।
🌟उनकी मूल – प्रवृत्तियों का दमन ना करें।
🌟यदि कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा करें।
🌟बच्चों को उचित कार्य हेतु प्रेरित/प्रोत्साहित और पुरस्कृत करें।
🌟बच्चों को नैतिक शिक्षा दें।
🌟बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान दें।
🌟बच्चों को मनोरंजन का भी उचित अवसर दें।
🌟आदर्शपूर्ण व्यवहार करें जो उनके लिए अनुकरणीय हो।
🌟बच्चों को संतुलित जेब खर्च दें।
🌟शिक्षण विधि मनोरंजक हो।
🌟पाठ्यक्रम संतुलित हो,अनावश्यक बोझ ना हो।
🌟सहायक शिक्षण कार्य,जैसे :- भ्रमण,खेलकूद, नाटक, संगीत आदि के माध्यम से शिक्षा।
🌟आत्मविश्वास जागृत करने हेतु उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपा जाता है।

🌟 माता – पिता प्रेम व सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें :-
🌸 जैसा कि हम जानते हैं कि किसी भी बच्चे की सर्व प्रथम पाठशाला उनके माता-पिता अथवा उनका परिवार ही होता है। इसलिए हमें परिवार में भी बालकों के साथ अच्छे से प्रेम पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। उन से तेज आवाज में बात करना,गुर्राना,डांटना,झपटना इत्यादि करने से उनमें नकारात्मकता आ जाती है।

🌟 उनकी मूल – प्रवृत्तियों का दमन ना करें :-
🌸 बच्चों में सर्वप्रथम मूल प्रवृत्तियों का विकास होता है मूल प्रवृत्ति बच्चों में पाई जाती है इसलिए उनके मूल प्रवृत्तियों का दमन ना करते हुए उन्हें किसी भी समस्या या चीजों का सही गलत में अर्थ बताना चाहिए।

🌟 यदि कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा करें :
🌸 ऐसी स्थिति हो कि बच्चे में कोई दोष पाई जाए तो यथाशीघ्र उसे मानसिक चिकित्सा दी जानी चाहिए।

🌟 बच्चों को उचित कार्य हेतु प्रेरित/प्रोत्साहित और पुरस्कृत करें :-
🌸 जब कभी भी बच्चे अच्छे कार्य करें या नहीं तो उन्हें बच्चों को उचित कार्य हेतु प्रेरित/प्रोत्साहित और पुरस्कृत भी करना चाहिए।जिससे उनका मनोबल बढ़े और और वह आगे और भी अपने कार्य करने में सक्षम हो पाएं। तथा दृढ़ता पूर्वक आगे बढ़ते रहें।

🌟 बच्चों को नैतिक शिक्षा दें :-
🌸 जैसा कि हम जानते हैं शिक्षा का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है।हमें बच्चों को नैतिक शिक्षा भी दी जानी चाहिए ताकि बच्चे को केवल एक ही क्षेत्र में सक्षम ना बनाकर सभी क्षेत्रों में उनका अवलोकन कर विस्तृत रूप से शिक्षण अधिगम कराना चाहिए।

🌟 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान दें :-
🌸 बच्चों की संगति पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है इसमें भी माता-पिता शिक्षक और अभिभावकों का विशेष स्थान होता है जिनके द्वारा यह अवलोकन किया जाता है तथा उनके सही गलत का निर्णय कर उस पर प्रतिबंध लगाई जाती है।

🌟 बच्चों को मनोरंजन का भी उचित अवसर दें :
🌸 हमें बच्चों को समय-समय पर मनोरंजन का भी उचित अवसर देना चाहिए ताकि शिक्षण अधिगम कार्य में उनकी रुचि और प्रेरणा बनी रहे तथा उनकी मानसिकता में भी सुधार हो सके।

🌟 आदर्श पूर्ण व्यवहार करें तो उनके लिए अनुकरणीय हो :-
🌸 जैसा कि हम जानते हैं कि बालकों के ऊपर सबसे अधिक प्रभाव माता-पिता,अभिभावक,मित्रों और शिक्षकों का पड़ता है इसलिए हमें समस्यात्मक बालकों से आदर्शपूर्ण व्यवहार करना चाहिए जो कि उनके लिए अनुकरणीय हो तथा वह उन्हें अपने जीवन में उतार सके।

🌟 बच्चों को संतुलित जेब खर्च दें :-
🌸 समस्यात्मक बच्चों को संतुलित जेब खर्च भी दी जानी चाहिए ताकि बच्चे पैसों का महत्व समझ सके और व्यर्थ के कार्यों में खर्च नहीं करें। वरना कुछ ही दिनों में यह माता पिता और अभिभावकों के लिए भी मुसीबत बन सकता है।

🌟 शिक्षण विधि मनोरंजक हो :-
🌸 शिक्षकों का उत्तरदायित्व यह है कि समस्यात्मक बालकों के लिए शिक्षण विधि मनोरंजक और प्रभावशाली हो। ताकि बच्चे रुचि और प्रेरणा के साथ शिक्षा ग्रहण कर सकें और इस प्रकार से मनोरंजक पूर्ण शिक्षण के द्वारा ली गई शिक्षा बहुत ही लंबे समय तक याद भी रहती है।

शिक्षण विधि को मनोरंजक बनाने के लिए :-
खेल खेल में शिक्षा कराना चाहिए,कक्षा में बच्चों को सक्रिय रखना चाहिए तथा उनसे ज्यादा से ज्यादा प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए,कक्षा में हंसी – मजाक का माहौल भी होना चाहिए इससे भी हमारे शिक्षण कार्य मनोरंजक बनते हैं।

🌟 पाठ्यक्रम संतुलित हो, अनावश्यक बोझ ना हो:-
🌸 समस्यात्मक बालकों के लिए किसी भी पाठ्यक्रम को संचालित करने से पूर्व हमें यह निर्णय कर लेना चाहिए,कि पाठ्यक्रम संतुलित हो, इसमें अनावश्यक बोझ भी नहीं होना चाहिए। ताकि बालकों को पाठ्यक्रम बोझ ना लगे और वे रूचिपूर्ण शिक्षा ले सकें।

🌟 सहायक शिक्षण कार्य,जैसे :- भ्रमण,खेलकूद,नाटक,संगीत आदि के माध्यम से शिक्षा :-
🌸 समस्यात्मक बालक को समस्या उत्पन्न करने जैसी कार्य से रोकने के लिए उन्हें शिक्षण सहायक कार्य जैसे :- भ्रमण,खेलकूद,नाटक और संगीत इत्यादि के माध्यम से शिक्षा देकर उन्हें उसी कार्यों में व्यस्त रखकर भी हम उन्हें समस्यात्मक कार्य करने से रोक सकते हैं।

🌟 आत्मविश्वास जागृत करने हेतु उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपा जाए :-
🌸 किस प्रकार के समस्यात्मक बालकों को उन्हें आत्मविश्वास जागृत करने हेतु उनके लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य भी सौंपा जा सकता है।जिससे वे अपने मानसिक विशेषताओं को सटीक जगह प्रयोग कर अपनी प्रतिभा को उजागर कर सकें।

🌸🌸समाप्त 🌸🌸

🌟Notes by :- Neha Kumari 😊

🌷🌷🙏🙏धन्यवाद् 🙏🙏🌷🌷

📖 📖 समस्यात्मक बालक 📖 📖

🌻🌿🌻समस्यात्मक बालक के लिए शिक्षा का स्वरूप 🌻🌿🌻
समस्यात्मक बालक, वह बालक होता है, जो कि समस्या उत्पन्न करता है। अर्थात हम सभी जानते हैं, कि यह सामान से भिन्न होते हैं। तो इनके लिए शिक्षा की व्यवस्था भी भिन्न नहीं होगी। अतः इन बालकों की शिक्षा व्यवस्था हमें व्यवस्थित तरीके से इनके व्यवहार के अनुरूप करनी होगी।

🌺🌺समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप कि उनके लिए शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए? और हमें उन्हें किस तरह से इस समस्या से बाहर निकालने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए? 🌺🌺
इसी संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं~

🍃🍂 माता पिता बालक के प्रति प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें~
हम सभी यह जानते हैं, कि बालक के जीवन में माता-पिता अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बालक का व्यवहार काफी हद तक माता-पिता के व्यवहार के कारण ही विकसित होता है। अगर माता-पिता बालक के प्रति सकारात्मक व्यवहार रखेंगे या सकारात्मक दृष्टिकोण में रखेंगे, तो बालक अभी सकारात्मक व्यवहार का ही अनुकरण करेंगे।
अतः शिक्षक को माता पिता के साथ मिलकर समस्यात्मक बालक की समस्या को दूर करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। माता-पिता को बालक के प्रति प्रेम और सहानुभूति व्यवहार रखना चाहिए। जिससे कि बालक हताश ना रहे वह यह ना समझे, कि मुझे मेरे माता-पिता के द्वारा सहानुभूति प्राप्त नहीं हुई है। जिससे कि उसमें समस्यात्मक प्रवृत्ति के होने के कम अवसर रहे।

🍂🍃 उनकी मूल प्रवृत्तियों का दमन न करें~
किसी भी इंसान की मूल प्रवृत्तियां उसके जन्म से ही होती है, एवं कुछ अर्जित भी की जाती हैं। इन्हीं मूल प्रवृत्तियों में अगर किसी भी प्रकार की खलल उत्पन्न हो या इन मूल प्रवृत्तियों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जाए। तो व्यक्ति को अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
अगर बालक की मूल प्रवृत्तियों का दमन नहीं होगा, वह अपने अनुसार कार्य कर पायेगा। जिससे कि उसमें किसी भी प्रकार की नकारात्मक भावनाओं की उत्पत्ति नहीं होगी अतः बालक की मूल प्रवृत्तियां उसके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। अगर बालक की मूल प्रवृत्तियों की पूर्ति होगी, तो उसके समस्यात्मक ना होने में उसे काफी सहायता मिलेगी।

🍃🍂 बालक में किसी दोष का पता चले तो उसे मानसिक चिकित्सा करवाऐ~
अगर बालक में किसी दोस्त या समस्या मानसिक स्तर पर हो या अत्यधिक हो जाए। तो हमें उस बालक को मानसिक चिकित्सक के पास ले जाया जाना चाहिए। जिससे कि बालक की समस्या को दूर किया जा सके, क्योंकि मस्तिष्क संबंधी समस्या को मनोचिकित्सक भली-भांति प्रकार से जान सकता है। कि बालक को किस प्रकार की समस्या है, एवं समस्या का पता करने के बाद वह उचित रूप से उसका उपचार कर सकता है।

🍂🍃 बच्चों को उचित कार्य हेतु प्रोत्साहन/प्रेरित और पुरस्कार~
अगर बालक कोई कार्य अच्छा करता है, तो बालक की प्रशंसा की जानी चाहिए। एवं बालक को प्रेरित किया जाना चाहिए, कि वह और इस तरह के कार्य करें क्योंकि बालक को प्रोत्साहन मिलेगा। तो वह कार्य को करने के लिए और उत्सुक होगा, एवं कार्य की पूर्ति होने के बाद बालक को पुरस्कार भी दिए जाने चाहिए। क्योंकि बालक को पुरस्कार प्राप्ति होने पर वह कार्यों को ओर अच्छे ढंग से करने का अत्यधिक प्रयास करेगा।
अगर समस्यात्मक बालक को भी ठीक इसी प्रकार से पुरस्कार एवं प्रोत्साहन मिले तो वह भी अपनी इस प्रवृत्ति का दमन कर पाएगा।

🍃🍂 बालकों को नैतिक शिक्षा देना~
बालक को समाज में जीवन व्यतीत करने के लिए नैतिक शिक्षा की आवश्यकता अत्यधिक होती है, क्योंकि अगर बालक समाज में रहना चाहता है। तो उसे नैतिकता का ज्ञान होना अति आवश्यक है।बिना नैतिकता के बालक सामाजिक जीवन सुख पूर्ण व्यतीत नहीं कर सकता हैं।
बालक के जीवन में नैतिकता का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है। अगर बालक घर में भी रहेगा तो उसे नैतिकता अपनानी होगी। अपनों से बड़े व्यक्तियों से किस तरह बात करना है, इत्यादि सभी बातों का ध्यान उसे नैतिक शिक्षा के माध्यम से ही मिलता है।

🍂🍃 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान देना~
एक बालक के जीवन में या व्यक्ति के जीवन में संगति का विशेष महत्व होता है। अगर बालक अच्छी संगति में रहेगा तो उसका व्यवहार भी अच्छा ही होगा। लेकिन अगर बालक अच्छी संगति में ना रहकर बुरी संगति की तरफ आकर्षित होगा तो उसका व्यवहार भी बुरा ही होगा।
अतः माता-पिता को बालक की संगति पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। माता-पिता को यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए, कि बालक जिन बालको या दोस्तों के साथ रह रहा है। वह कैसे हैं ? एवं उनका व्यवहार कैसा है? इन सभी बातों का ध्यान माता-पिता को भलीभांति प्रकार से होना चाहिए।

🍃🍂 बच्चों को मनोरंजन का भी उचित अवसर दें~
बच्चों को शिक्षण प्रक्रिया करवाते समय मनोरंजन का भी उचित अवसर दिया जाना चाहिए क्योंकि बालक को अगर मनोरंजन पूर्ण व्यवहार ना मिले तो वह कक्षा में शिक्षण प्रक्रिया में उतना रुचि पूर्ण नहीं हो पाएगा जितना कि वह मनोरंजक विधियों इत्यादि के माध्यम से पढ़ाई जाने पर होगा।
अतः बालक को शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन का भी उतना ही अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। समय-समय पर उसे मनोरंजक उदाहरणों से संबंधित किया जाना चाहिए।

🍂🍃 अध्यापक का आदर्श पूर्वक व्यवहार करना~
शिक्षक का आदर्श पूर्ण व्यवहार करने का अर्थ यह है, कि बालक सदैव ही शिक्षक का अनुकरण करता है। शिक्षक द्वारा किए गए प्रत्येक कार्यों को वह अपने जीवन में करने का प्रयास करता है, इसलिए शिक्षक का व्यवहार बालक के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अतः शिक्षक का व्यवहार आदर्श पूर्ण होना अति आवश्यक है अगर शिक्षक उचित व्यवहार नहीं करेगा तो बालक भी उसका अनुकरण कर उचित व्यवहार नहीं करेगा।

🍃🍂 बच्चे को संतुलित जेब खर्च देना~
बच्चे को उसके अनुसार से ही जेब खर्च दिया जाना चाहिए। अगर छोटा बालक है, तो उसे कम पैसे दिए जाए, या ना भी दिए जाए। लेकिन उसकी जरूरतों को पूरा किया जाना चाहिए। अत्यधिक जेब खर्च देने पर बालक उन पैसों का इस्तेमाल हमेशा जरूरी नहीं है, कि अच्छे कार्यों में ही करें उन पैसों से वह कई बार गलत कार्यों में भी लगा देता है। जो कि एक समस्यात्मक बालक का लक्षण है। इसे दूर करने के लिए माता-पिता को इन बातों का ध्यान रखना होगा, कि बालक को उसकी उम्र एवं जरूरतों के हिसाब से ही संतुलित जेब खर्च दें।

🍂🍃 मनोरंजक शिक्षण विधियों का प्रयोग~
बच्चों का ध्यान कक्षा में अत्यधिक लगाए रखने के लिए एक शिक्षक होने के नाते, हमें इस प्रकार की शिक्षण विधियों का उपयोग किया जाना चाहिए।जो की सफल तो हो, लेकिन मनोरंजक भी हो। जिससे कि बालक खेल-खेल में ही सीख जाए। उन्हें ऐसा ना लगे कि यह विधियां बहुत ही कठिन है। क्योंकि बालक कठिन विधियों में रुचि नहीं लगाते हैं। बालको में रुचि उत्पन्न करने के लिए हमें अपने विधियों में बदलाव करने होंगे, एवं मनोरंजन को भी विधियों में शामिल करना होगा।

🍃🍂 संतुलित पाठ्यक्रम या कार्यक्रम हो~
पाठ्यक्रम को ऐसा बनाना चाहिए जो कि लचीला हो, एवं पाठ्यक्रम में अनावश्यक चीजों को नहीं जोड़ना चाहिए।पाठ्यक्रम में ऐसी इकाइयों का समावेश किया जाना चाहिए। जो कि दैनिक जीवन से संबंधित हो, क्योंकि हमें शिक्षण कराते समय बालक में रूचि लाना अति आवश्यक है। और अगर पाठ्यक्रम दैनिक जीवन से संबंधित होगा। तो बालक भी पाठ्यक्रम में रुचि ले सकेगा। इसके माध्यम से हम समस्यात्मक बालक को भी कक्षा में उपस्थित रख पाएंगे एवं उसकी समस्या को भी दूर कर पाएंगे। अतः पाठ्यक्रम संतुलित होना अति आवश्यक है।

🍂🍃 उत्तरदायित्व पूर्ण कार्यों को देना~
समस्यात्मक बालक को ऐसे कार्यों का दिया जाना चाहिए, जो कि उत्तरदायित्व पूर्ण हो। क्योंकि बालक अपने उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए उस कार्य में अपना पूरा योगदान देगा। एवं उस कार्य को भलीभांति पूर्ण कर भी पाएगा। जिससे कि हम बालक को व्यस्त भी रख सकते हैं। अगर बालक व्यस्त रहेगा, तो वह समस्या उत्पन्न नहीं करेगा। अतः बालक को समस्यात्मक प्रवृत्ति से अलग करने के लिए उसे उत्तरदायित्व पूर्ण कर दिए जाने चाहिए।

🍃🍂 अतिरिक्त सहायक कार्यक्रम एवं प्रतियोगिताओं का आयोजन~
समस्यात्मक बालक को अन्य माध्यमों से भी शिक्षित किया जा सकता है, एवं उसकी इस प्रवृत्ति को भी दूर किया जा सकता है। जिस के संदर्भ में कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं~
👉🏻 शिक्षक को समस्यात्मक बालक की शिक्षा को उचित दिशा देने के लिए सहायक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे कि समस्यात्मक बालक उन कार्यक्रमों में व्यस्त रहे।

👉🏻 समस्यात्मक बालक को अन्य भ्रमण के लिए ले जाया जाना चाहिए। उन्हें ऐसे प्रोजेक्ट या कार्य दिए जाने चाहिए, जिससे कि वह अन्य जगहों का भ्रमण करके पूर्ण कर सके। इससे भी हम बालक को व्यस्त रख सकते हैं, एवं उसकी समस्यात्मक प्रवृत्ति को दूर कर सकते हैं।

👉🏻 इन बालकों को खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहन किया जाना चाहिए बालक खेल में अपनी रुचि अधिक दिखाता है, अतः वह खेल के माध्यम से भी अपनी समस्या तो प्रवृत्ति को कम कर सकता है।

👉🏻 विद्यालय में ऐसी प्रतियोगिताओं एवं कार्यों का आयोजन किया जाना चाहिए जैसे कि नाटक जिसमें बालक अपने आप को एक किरदार के लिए तैयार करेगा।

👉🏻 विभिन्न प्रकार की संगीत प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाना चाहिए, जिससे कि बालक अपने इन कार्यों में अपना योगदान दें, ना कि समस्यात्मक प्रवृत्ति को बढ़ाने में।

🌷🌷 उपरोक्त दिए गए सभी तथ्यों के माध्यम से हम समस्यात्मक बालक की प्रवृत्ति को खत्म करने के प्रयास कर सकते हैं, एवं उसे शिक्षित भी किया जा सकता है। इस सब के लिए शिक्षक एवं माता-पिता को मिलकर प्रयास करने होंगे। इन सभी प्रयासों के फलस्वरूप बालक की इस प्रवृत्ति को हम पूर्ण रूप से हटा सकते हैं, एवं उसे भी सामान्य बालक के भांति ही कर सकते हैं। 🌷🌷 📚📚📗समाप्त 📗📚📚

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻
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💠 समस्यात्मक बालकों के शिक्षा का स्वरूप 💠

प्रायः समस्यात्मक बालकों की आवश्यकता पूरी ना होने ,अत्यधिक लाड प्यार ,कठोर अनुशासन आदि के कारण बालक समस्यात्मक व्यवहार करने लगते हैं ऐसे बालको को शारीरिक दंड ना देकर मनोवैज्ञानिक ढंग से शिक्षा प्रदान करना चाहिए ।

ऐसे बालकों के शिक्षा के स्वरूप में सुधार करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं जो इस प्रकार से है➖

🌀 माता पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें➖ जैसा कि हम जानते हैं कि बालक सबसे करीब अपने माता पिता से ही होता है इसलिए समस्यात्मक बालकों के लिए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि माता-पिता प्रेम पूर्वक और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें । ऐसे बालकों को माता पिता के द्वारा या अपने परिवार के द्वारा समय-समय पर परामर्श दिया जाना चाहिए। उन्हें एक अच्छा वातावरण देना चाहिए। जिससे वे उस वातावरण में अच्छे से समायोजित कर ले।

🌀 उनकी मूल प्रवृत्ति का दामन ना हो

समस्यात्मक बालकों की मूल प्रवृत्ति जैसे सोना, खाना, पढ़ना आदि प्रवृत्तियों का दमन या अनदेखा नहीं करना चाहिए ऐसे समस्यात्मक बालकों के सोने या उठने का समय में परिवर्तन नहीं करना चाहिए जिसमें उनकी रूचि है अगर वह कार्य सही है तो उस काम को करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

🌀 अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक रूप से चिकित्सा कराएं➖ यदि समस्यात्मक बालकों में कोई दोष है तो उनके लिए मनोचिकित्सा की व्यवस्था करवाई जानी चाहिए जिससे समस्यात्मक बालकों के मन की परेशानी को चिकित्सक दूर करने का प्रयास कर सके। मानसिक रूप से चिकित्सा करा कर ऐसे बालकों की शिक्षा के स्तर में सुधार ला सकते हैं।

🌀 बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित करें, प्रोत्साहित करें ,पुरस्कार दे

समस्यात्मक बच्चे को उन्हें उनके उचित कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए एवं प्रोत्साहन भी मिलना चाहिए और जरूरत हो तो पुरस्कार भी देना चाहिए ताकि समस्यात्मक बालक प्रेरित होकर सही गलत को पहचान कर सके और अच्छे काम कर सके और आवश्यकता के अनुसार ही उन्हें उनके कार्यों के स्वरूप ही पुरस्कार दिया जाना चाहिए।

🌀 उन्हें नैतिक शिक्षा दें
समस्यात्मक बालकों को नैतिक शिक्षा अवश्य ही दिया जाना चाहिए नैतिक शिक्षा अर्थात सब का सम्मान करना ,सबसे उचित व्यवहार करना, मां पिता की बात मानना, सच बोलना ,ईमानदारी से काम करना, झूठ नहीं बोलना आदि जैसे कार्य उन्हें बताना और सिखाना चाहिए, कि बड़ों से किस प्रकार से बात करनी चाहिए।

🌀 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान देना
समस्यात्मक बालकों की संगति पर विशेष ध्यान अवश्य ही देना चाहिए की बच्चे किस प्रकार का आचरण या कैसे कार्य कर रहे हैं या उनके व्यवहार कैसे हैं और वे अपने कक्षा के अन्य बच्चों की साथ कैसा व्यवहार करते हैं समय-समय पर शिक्षक अभिभावक के द्वारा इनकी संगति पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऐसे बालक किस संगति में है और उन्हें की संगति पर रहना चाहिए और अगर ऐसे बच्चे किसी गलत संगति के साथ है तो उन्हें सही या गलत का ज्ञान देकर उन्हें समझाना चाहिए।

🌀 बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर दें

समस्यात्मक बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर प्रदान करना चाहिए उनकी रुचि के या आवश्यकता के अनुसार ही मनोरंजन करवाना अति आवश्यक हैं। ऐसे बच्चों को मनोरंजन में व्यस्त रखकर उन्हें उनकी समस्या से दूर किया जा सकता है।

🌀 अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करें जो बच्चों के लिए अनुकरणीय हो

अध्यापक को प्रेम पूर्वक एवं आदर पूर्वक कि ऐसे बच्चों से व्यवहार करना चाहिए क्योंकि बालक माता-पिता के बाद विद्यालय में शिक्षक के व्यवहार को देखकर ही उचित व्यवहार
, बड़ों का सम्मान पढ़ाई पर मन लगाना , अच्छी बातें आदि सीखता है जो बच्चों के अनुकरणीय होता है ।

🌀 बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें➖ समस्यात्मक बच्चे को उतना ही पैसा देना चाहिए जितना उन्हें जरूरत हो जरूरत से ज्यादा उन्हें पैसे देने से वे गलत चीज पर उसका उपयोग कर सकते हैं। तो हमें ऐसे बालकों के पैसे खर्च करने पर ध्यान देना चाहिए कि वे किस जगह पर इसका उपयोग कर रहे हैं। जरूरत से ज्यादा जेब खर्च देने से बालक की गलत आदत भी बन सकती है। इसलिए हमें बच्चे को संतुलित जेब खर्च ही देना चाहिए और इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि वह इस जेब खर्च का सही जगह , उचित उपयोग करें।

🌀 शिक्षण विधि मनोरंजक हो

अध्यापकों को सिखाने की शिक्षण विधि में मनोरंजक विधि को अपनाना चाहिए जिससे समस्यात्मक बालक कक्षा में पढ़ते समय रुचिपूर्ण उत्साहित होकर या मन लगाकर पढ़ें। और यदि बालक उत्साह पूर्वक पढ़ाई में रुचि लेंगे तो ऐसे बालकों को उनके कार्यों में सफलता अवश्य मिलेगी।

जैसे मनोरंजक विधि के अंतर्गत कहानी सुना कर या खेल विधि अपनाकर उन्हें शिक्षण देना चाहिए।

🌀 संतुलित कार्यक्रम (पाठ्यक्रम) हो अनावश्यक बोझ ना हो

संतुलित कार्यक्रम या पाठ्यक्रम से तात्पर्य है कि उन्हें उनकी आयु या उनके जरूरत के अनुसार ही पाठ्यक्रम प्रदान करना है जो उनके जीवन से जुड़ा हुआ हो और यह पाठ्यक्रम उन्हें बोझ ना लगे इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए पाठ्यक्रम रुचिपूर्ण ,सरल एवं सहज होना चाहिए। समस्यात्मक बालकों के ऊपर किसी भी प्रकार से अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहिए।

🌀 सहायक शिक्षण कार्यक्रम की व्यवस्था

सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे भ्रमण ,खेलकूद, नाटक, संगीत इत्यादि के द्वारा उनके समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है। ऐसे बच्चों को समय-समय पर गतिविधियां कराने से वे व्यस्त रहेंगे और इन गतिविधियों को करते समय वे स्वयं भी परेशान नहीं होंगे और दूसरे से अंतः क्रिया करके सहयोग की भावना उनमें आएगी इसलिए समस्यात्मक बालकों के लिए समय-समय पर गतिविधियां कराना अत्यंत आवश्यक है।

🌀 आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपे

समस्यात्मक बालकों में आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उन्हें उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य दिए जाने चाहिए जिससे वह अपने जिम्मेदारी से उस कार्य को पूर्ण करें , यदि समस्यात्मक बालक खाली रहेंगे तो वे खुद भी परेशान रहते हैं और दूसरों को भी परेशान करते हैं और इसी बीच यदि उन्हें कुछ जिम्मेदारी का कार्य दे दिया जाए तो वे उस उत्तरदायित्व को ईमानदारी से करते हैं। और अपनी जिम्मेदारी से उस कार्य को पूर्ण करने के लिए आवश्यक रूप से प्रयत्न भी करते हैं।

🪔 उपरोक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि समस्यात्मक बालकों के शिक्षा का स्वरूप सुधारने के लिए शिक्षक, अभिभावक या परिवार के अन्य सदस्यों के द्वारा भी विभिन्न प्रकार के प्रयास किए जा सकते हैं जिसके द्वारा इनके शिक्षा में सुधार लाया जा सकता है।

🪔✍🏻 Notes by manisha gupta ✍🏻🪔

💫समस्यात्मक बालकों के शिक्षा का स्वरूप 💫

समस्यात्मक बालक समस्यात्मक इसलिए होता है क्योंकि कभी-कभी वह वंशानुक्रम का शिकार हो जाता है या कभी-कभी वह अपने आसपास के वातावरण के कारण भी समस्यात्मक हो सकता हैऐसे बालकों के शिक्षा के स्वरूप में सुधार करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं जो इस प्रकार से है:-

माता पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार कर
समस्यात्मक बालक की शिक्षा के लिए हमें सबसे पहले उसके माता-पिता से संपर्क करके उन्हें समझाइश देनी चाहिए कि आप अपने बालक के साथ प्रेम एवं सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें ताकि बालक अपने परिवार में जैसा देखेगा जैसा सीखेगा वह भी दूसरी जगह पर वैसा ही व्यवहार अपने दोस्तों या अन्य लोगों के साथ करेगा।

उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन ना हो
शिक्षक होने के नाते हमें समस्यात्मक बालक की मूल प्रवृत्तियों का दमन नहीं करना चाहिए। यदि हम बालक की मूल प्रवृत्तियों का दामन करते हैं तो उसमें चिड़चिड़ापन तथा हमारे प्रति क्रोध की भावना हमेशा बनी रहेगी जिससे बालक को शिक्षण अधिगम में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक रूप से चिकित्सा कराएं
यदि समस्यात्मक बालकों में कोई दोष है तो उनके लिए मनोचिकित्सा की व्यवस्था करवाई जानी चाहिए जिससे समस्यात्मक बालकों के मन की परेशानी को चिकित्सक दूर करने का प्रयास कर सके। मानसिक रूप से चिकित्सा करा कर ऐसे बालकों की शिक्षा के स्तर में सुधार ला सकते हैं।

बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित करें, प्रोत्साहित करें ,पुरस्कार दे

समस्यात्मक बच्चे को उन्हें उनके उचित कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए एवं प्रोत्साहन भी देना चाहिए और पुरस्कार भी देना चाहिए ताकि समस्यात्मक बालक प्रेरित होकर सही गलत को पहचान कर सके और अच्छे काम कर सके।

उन्हें नैतिक शिक्षा दें
समस्यात्मक बालकों को नैतिक शिक्षा अवश्य ही देना चाहिए नैतिक शिक्षा का अर्थ है सब का सम्मान करना ,सबसे उचित व्यवहार करना, मां पिता की बात मानना, सच बोलना ,ईमानदारी से काम करना आदि कार्य उन्हें बताना और सिखाना चाहिए।

बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान देना
समस्यात्मक बालकों की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए की बच्चे किस प्रकार का आचरण या कैसे कार्य कर रहे हैं या उनके व्यवहार कैसे हैं और वे अपने कक्षा के अन्य बच्चों की साथ कैसा व्यवहार करते हैं समय-समय पर शिक्षक अभिभावक के द्वारा इनकी संगति पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऐसे बालक किसकी संगति में है और उन्हें किसकी संगति करना चाहिए और अगर ऐसे बच्चे किसी गलत संगति के साथ है तो उन्हें सही या गलत का ज्ञान देकर उन्हें समझाना चाहिए।

बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर दें

समस्यात्मक बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर प्रदान करना चाहिए बालक को उनकी रूचि के अनुसार मनोरंजन कराया जाएगा तो वह अपने काम में व्यस्त रहेगा तथा अपने साथी को या किसी अन्य व्यक्ति को अपने कामों से परेशान नहीं करेगा।

अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करें जो बच्चों के लिए अनुकरणीय हो

समस्यात्मक बालक के साथ अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करना चाहिए जो बच्चों के लिए अनुकरणीय होगा अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करेगा तो बालक भी उसका अनुकरण करेगा और समस्यात्मक परिस्थिति उत्पन्न होने का खतरा कम हो जाएगा।

बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें

माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बालक को एक लिमिट में जेब खर्च दे क्योंकि आजकल देखा जाता है कि बालक समस्यात्मक होने के प्रमुख कारण यह हो सकते हैं कि वह अपने जेब खर्च का गलत उपयोग करता है तथा अपने साथ ही को भी उसके लिए उकसाता हैसमस्यात्मक बालक कुछ तो गलत काम करता ही है साथ ही वह अपने साथी को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है यदि बालक के पास पैसे नहीं होते हैं तो फिर वह बालक भी अपने घर में चोरी या किसी वस्तु को चुराकर उसे बेचकर पैसे प्राप्त करने की कोशिश करता है इस प्रकार उस बालक का प्रभाव दूसरे बालक पर भी पड़ता है
शिक्षण विधि मनोरंजक हो

अध्यापकों शिक्षण कराते समय शिक्षण विधि में मनोरंजक विधि को अपनाना चाहिए जिससे समस्यात्मक बालक कक्षा में पढ़ते समय रुचिपूर्ण वातावरण पाकर पढ़ने में मन लगाएगाऐसे बालक को पढ़ाते समय शिक्षक को t.l.m. का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए जैसे मनोरंजक विधि के अंतर्गत कहानी सुना कर या खेल विधि अपनाकर उन्हें शिक्षण देना चाहिए।

संतुलित कार्यक्रम (पाठ्यक्रम) हो अनावश्यक बोझ ना हो

संतुलित कार्यक्रम या पाठ्यक्रम से तात्पर्य है कि उन्हें उनकी आयु या उनके जरूरत के अनुसार ही पाठ्यक्रम प्रदान करना जो उनके जीवन से जुड़ा हुआ हो और यह पाठ्यक्रम उन्हें बोझ ना लगे इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए पाठ्यक्रम रुचिपूर्ण ,सरल एवं सहज होना चाहिए। समस्यात्मक बालकों के ऊपर किसी भी प्रकार से अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहिए।

सहायक शिक्षण कार्यक्रम की व्यवस्था

सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे भ्रमण ,खेलकूद, नाटक, संगीत इत्यादि के द्वारा उनके समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है। ऐसे बच्चों को समय-समय पर गतिविधियां कराने से वे व्यस्त रहेंगे और इन गतिविधियों को करते समय वे स्वयं भी परेशान नहीं होंगे और दूसरे बालक उनको भी तंग नहीं करेंगे ऐसा शिक्षा प्राप्त करके वह समस्यात्मक बालक से धीरे धीरे सामान्य बालको की श्रेणी में आने लगेंगे

आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपे

समस्यात्मक बालकों में आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उन्हें उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य दिए जाने चाहिए। समस्यात्मक बालक अपने कार्यों को इमानदारी से करेगा और उसके मन में यह आएगा कि सामान्य बालक की तरह शिक्षक मुझे भी सराहे और वह शिक्षक द्वारा दिए गए कार्य को इमानदारी से पूर्ण करेगा।

✍🏻✍🏻Notes by-Raziya khan✍🏻✍🏻

💐💐 समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप💐💐
🌴समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप स्वभाविक होता है उन्हें समय रहते ही सुधार करना चाहिए अन्यथा उन्हें अनेक समस्याओं का समायोजन करने में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
⛲ माता पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें:-
👁‍🗨 समस्यात्मक बालक के साथ उसके माता-पिता प्रेम और सहानुभूति से व्यवहार करना चाहिए और सुनिशचित करना चाहिए। बच्चे सबसे ज्यादा मां पापा के पास ही जाते हैं अगर उन्हें कोई दिक्कत होती है तो बच्चे की मानसिक स्थिति को बदलना है ताकि बच्चे सकारात्मक सोचे क्योंकि बच्चे घर पर सबसे ज्यादा रहते इसलिए घर का वातावरण ऐसा रखे जिससे बच्चे पर सकारात्मक प्रभाव पड़े नहीं तो घर का माहौल अगर नकारात्मक नहीं होता है तो बच्चे के मन में कहीं न कहीं वह बात सोचते रहते इसलिए माता-पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए और माता-पिता प्रेम सहानुभूति का व्यवहार करें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए।
⛲ समस्यात्मक बालक की मूल प्रवृत्ति का दामन ना करें:-
प्रत्येक बच्चे का मूल प्रवृत्ति अलग होता है कोई बच्चे बहुतचिड़चिड़े होते हैं तोकोई भी परेशानी आती है तो मूल प्रवृत्ति पर असर करती है कोई बच्चा समस्यात्मक है तो मूल प्रवृत्ति दबेगी और समस्या उत्पन्न होगी और वह मानसिक रूप से परेशान हो जाते है और वह और भी गुस्से और चिड़चिड़े हो जाते है जो समस्या के रूप में हमारे सामने आते हैं।
⛲ अगर कोई दोष या समस्या का पता चले और संभव हो तो मानसिक रूप से चिकित्सा करवाएं:-
👁‍🗨 समस्यात्मक बालक का अगर कोई समस्या या दोष का पता चलता है तो उन्हें मानसिक रूप से चिकित्सा को दिखाना चाहिए और उनका ठीक करवाना चाहिए जिससे बालक की सही समय पर निदान व उपचार कर सकते हैं।
⛲ बच्चे को शिक्षक द्वारा प्रेरणा प्रोत्साहन पुरस्कार दिया जाए:-
👁‍🗨 बच्चे को शिक्षक द्वारा प्रेरणा प्रोत्साहन पुरस्कार दिया जाना चाहिए जिससे वह प्रेरित होते हैं उन्हें सकारात्मक का मनोबल बढ़ता है और वह कार्य करने में भी रुचि लेते हैं इसलिए बालको को शिक्षक के द्वारा प्रोत्साहन और प्रेरणा जरूरत पड़ने पर पुरस्कार भी दिया जाना चाहिए।
⛲ नैतिक शिक्षा दी जाए:-
👁‍🗨 व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है व्यक्ति समाज में ही रह कर सिखता है कि उन्हें क्या करना है नहीं करना है बच्चे समाज में रहकर सीखते हैं उन्हें किसके बारे में क्या बोलना है कैसे रहना है कैसे किसी के साथ व्यवहार करना है झूठ बोलना है या नहीं गलत काम नहीं करना चाहिए यह सभी बच्चे को नैतिकता से ही सिखाया जा सकता है और इससे नैतिकता का भाव क्या करना है।
⛲ बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान दें:-
👁‍🗨 बच्चों की संगति पर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि बच्चे संगति में ही बहुत कुछ सिखते हैअगर अच्छा संगति है तो अच्छे व्यवहार सीखते हैं अगर गलत संगति में है तो बच्चे गलत व्यवहार सीखते हैं इसलिए बच्चों पर संगति का विशेष ध्यान देना चाहिए।
⛲ बच्चों को मनोरंजन का भी उचित अवसर दें:-
👁‍🗨 बच्चों को मनोरंजन का भी अवसर देना चाहिए जो समस्यात्मक बच्चे होते हैं उन्हें कभी भी सिर्फ एक ही काम को करने के लिए नहीं कहना चाहिए क्योंकि उन्हें मनोरंजन का भी मौका देना चाहिए जिससे वह अपनी रचनात्मकता दिखा सके अगर बच्चे को सिर्फ एक ही काम देंगे जिससे उनका रुचि समाप्त हो जाता है और वह अपने काम करने में उन्हें खुशी भी नहीं मिलेगी ना वह अपने काम का आनंद उठा पाएंगे इसलिए उन्हें ऐसा वातावरण उपलब्ध कराना चाहिए जिससे उनका रचनात्मकता दिख सके।

⛲ अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करें:-
👁‍🗨 बच्चे से अध्यापक को आदर्श पूर्वक व्यवहार करना चाहिए जिससे बच्चे आगे बढ़े ना की पीछे बढे़ अध्यापक को आदर्श पूर्वक व्यवहार करे जो बच्चे के लिए अनुकरणीय हो बच्चे क्योंकि शिक्षक को अपना मार्गदर्शक मानते हैं।
⛲ बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें:-
👁‍🗨 बच्चे को संतुलित जेब खर्च देना चाहिए क्योंकि बच्चे को अगर ज्यादा जेब खर्च पैसे मिल जाते हैं तो उनका वह गलत उपयोग कर सकते हैं और यह समस्या मुसीबत करती है माता-पिता और बच्चो दोनो के लिए बन जाती हैं।
⛲ शिक्षण विधि मनोरंजन हो:-
👁‍🗨 बच्चे को शिक्षण मनोरंजन विधि से पढ़ाते हैं तो बच्चे को वह आसानी से बहुत दिन तक याद रहती है हंसी मजाक में बच्चे ज्यादा सीखते भी हैं अपने वातावरण के साथ जोड़कर पढ़ते हैं इसलिए शिक्षा को मनोरंजन शिक्षण विधियों से बच्चों को पढ़ाना चाहिए और खेल खेल के माध्यम से भी पढ़ाना चाहिए बच्चों को छोटे-छोटे भागों में बांटकर पढ़ाना चाहिए जिससे उन्हें अपने कार्य का भार ना लगे और रुचि के साथ पढ़े।
⛲ पाठ्यक्रम संतुलित हो अनावश्यक बोझ ना हो:-
👁‍🗨 समस्यात्मक बालकों को पाठ्यक्रम संतुलित ही पढाना चाहिए उन्हें आवश्यक से ज्यादा ना पढे़ हैं यदि वह असंतुलित होगा तो छात्र और शिक्षक दोनों को बोझ लगेगा।
⛲ सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे भ्रमण खेलकूद नाटक संगीत आदि के माध्यम से शिक्षा:-
👁‍🗨 समस्यात्मक बालकों को विभिन्न कार्यक्रम से पढ़ाना चाहिए जैसे भ्रमण खेलकूद नाटक संगीत अन्य क्रियाकलापों के द्वारा समस्यात्मक व्यवहार को रोक सकते हैं बालक को ऐसा कार्यक्रम करवाएंगे जिससे वह व्यस्त रहेंगे जिससे उनको समस्या भी उत्पन्न नहीं होगी।
⛲ आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपे :-
👁‍🗨 समस्यात्मक बालक को जिम्मेदारी या जवाबदेही का कार्य देगे जिससे उनके अंदर आत्मविश्वास की भावना का विकास किया जा सकता है।

Notes By :-Neha Roy

🌼🌼 समस्यात्मक बालक🌼🌼

✍🏻 समस्यात्मक बालक वह बालक है जो किसी ना किसी रूप में कोई ना कोई समस्या उत्पन्न करता है, ऐसे बालक स्कूल में किसी भी कार्यक्रम में सक्रिय नहीं होते हैं वह दूसरों को शारीरिक और मानसिक कष्ट देकर आनंद लेते हैं।

🌹 समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप🌹

🍁 माता पिता का बच्चे के प्रति प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार-

सभी बच्चे अपने माता पिता के सबसे अधिक नजदीक होते हैं उनका व्यवहार उनके माता-पिता के व्यवहार पर ही निर्भर करता है तथा वह सकारात्मक व्यवहार रखेंगे तो बच्चे का सकारात्मक दृष्टिकोण ही रहेगा और वह उसी के अनुसार अनुकरण करेगा।
अतः शिक्षक को बच्चे के माता-पिता से मिलकर उसकी समस्या पर बात करके उसको दूर करने के प्रयास करने चाहिए माता-पिता को बालक के प्रति प्रेम और सहानुभूति व्यवहार करना चाहिए जिससे उसकी समस्यात्मक प्रवृत्ति कम हो सके।

🍁 उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन ना करें- सर्वप्रथम बच्चों में मूल प्रवृत्तियों का विकास होता है इसीलिए हमें उनकी मूल प्रवृत्तियां का दमन नहीं करना चाहिए उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन होने से बच्चे का व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता है और वह गलत मार्ग पर चला जाता है इसीलिए हमें समस्यात्मक बालकों की मूल प्रवृत्ति का दमन नहीं करना चाहिए।

🍁 यदि कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराएं-
अगर हमें बच्चों में ऐसा दोस्त पता चले तो शीघ्र ही हमें उसे मनोचिकित्सक को दिखाकर चिकित्सा करानी चाहिए।

🍁 बच्चे को उचित कार्रवाई हेतु प्रेरित करना- समस्यात्मक बालक को अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करें वहां पुरस्कृत करण जिससे उसके मन में सही कार्य करने की जिज्ञासा उत्पन्न होगी और सकारात्मक सोच बढ़ेगी। और उसका मनोबल भी बढ़ेगा।

🍁 उन्हें नैतिक शिक्षा दें- सभी बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक शिक्षा देना अनिवार्य है जिससे बच्चे का ना केवल शिक्षा के क्षेत्र में अपितु सभी क्षेत्र में सक्षम हो जाता है और उसने उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है।

🍁बच्चे की संगति पर विशेष ध्यान देना– बच्चों की संगति पर माता पिता शिक्षक सभी को विशेष ध्यान देना अनिवार्य है क्योंकि बाहरी वातावरण हमारे जीवन में बहुत प्रभाव डालता है हमारी संगति अच्छी होगी तो बच्चे अच्छे मार्ग की तरफ जाएंगे अगर हमारी संगति गलत होगी तो बच्चे गलत मार्ग पर चले जाते हैं इसीलिए बच्चे की संगति पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

🍁 बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर दें- शिक्षण अधिगम के बीच-बीच में हमें बच्चों के मनोरंजन को ध्यान में रखकर उनके लिए उचित अवसर देने चाहिए जिससे वह अपनी रचनात्मकता को दिखा सकें ।

🍁 अध्यापक मा आदर्श पूर्वक व्यवहार करें जो बच्चों के लिए अनुकरणीय हो:- जैसा कि हम जानते हैं कि बालक के ऊपर शिक्षक के आदर्श व्यवहार का भी प्रभाव पड़ता है क्योंकि बच्चा माता पिता के अलावा शिक्षक को भी अपना आदर्श मानता है इसीलिए समस्यात्मक बालकों के लिए एक शिक्षक को आदर्श पूर्ण व्यवहार करना चाहिए जिससे कि वह उसके व्यवहार का अनुकरण कर सके और उसके अनुरूप व्यवहार करें।

🍁 बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें:-
समस्यात्मक बच्चों को संतुलित जेब खर्चा देना चाहिए ताकि बच्चा गलत कार्यों में पैसा ना लगाएं जो आगे जाकर अल्वा बकों के लिए मुसीबत बन सकता है उसको इतना ही पैसा दे जितना कि उसकी जरूरत हो। अतिरिक्त पैसा नहीं दे।

🍁 शिक्षण विधि मनोरंजक हो:- समस्यात्मक बालकों के लिए शिक्षक को ऐसी शिक्षण विधि अपनानी चाहिए जिसमें बच्चा रुचि और मनोरंजन से शिक्षा ग्रहण कर सके।
मनोरंजक पुर से शिक्षण के द्वारा ली गई शिक्षा बहुत ही लंबे समय तक याद रहती है।

🍁 संतुलित पाठ्यक्रम हो,अनावश्यक बोझ ना हो :- समस्यात्मक बालकों के लिए सीमित पाठ्यक्रम होना चाहिए उनके बस्ते का बोझ नहीं बढ़ाना चाहिए सी में पाठ्यक्रम होने से बच्चा पढ़ने में रुचि लेगा और वह सही ढंग से अध्ययन करेगा। अनावश्यक पाठ्यक्रम के बोझ में बच्चा अपने को दबा हुआ महसूस करता है।

🍁 सहायक शिक्षण कार्यक्रम:- समस्यात्मक बालकों को सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे भ्रमण खेलकूद नाटक संगीत आदि के माध्यम से व्यस्त रखकर हम उनके समस्यात्मक कार्यो को करने से रोक सकते हैं।

🍁 आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपे:-
समस्यात्मक बालकों को उन्हें आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उन्हें उत्तरदायित्व पूर्ण कार्यों को सौंपना चाहिए जिससे कि वह उस कार्य में व्यस्त रहें और अपनी प्रतिभा को उजागर कर सकें जिससे कि वह कोई भी समस्या उत्पन्न करने के बारे में नहीं सोचते है। 🌼🌼🌼🌼🌼

🌹NOTE BY:-
SHASHI CHOUDHARY🌹

🌈समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप :-

🦚माता- पिता का प्रेमपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार :-
माता – पिता को चाहिए की वह बालक के साथ प्रेमपूर्ण औउ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करे क्योंकि बालक माता – पिता के करीब होता है अगर वह बालक से चिल्ला चिल्लाकर बखत करेंगे तो बालक भयभीत हो जायेगा |

🦚मूल प्रवृत्ति का दमन :-
बालक की मूल प्रवृत्ति का दमन करने से बालक हीन भावना का शिकार हो जाता है गलत संगति में पड़ जाता है उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए उनकी बातें सूननी चाहिए कि वे क्या बोलना चाहते हैं |

🦚अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मनोचिकित्सा को दिखाएं :-
अगर कोई दोष पता चले तो उन्हें समझाये और अगर जरूरत हो तो मनोचिकित्सा से भी जांच कराएं |

🦚बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित, प्रोत्साहित और पुरस्कार दे:-
ऐसे बालक को अच्छे कार्यो के लिए प्रेरित ,प्रोत्साहित और जरूरत पड़े तो पुरस्कार देना चाहिए और उनकी कार्यो कि प्रशंसा करनी चाहिए जिससे की वह और अच्छा प्रदर्शन करे |

🦚उन्हें नैतिक शिक्षा दे :-
बालक को नैतिक देनी चाहिए कि वह सबसे अच्छा प्रेमपूर्ण व्यवहार करे और उनकी सहायता करे समाज के नियमों का पालन करे शिक्षक कि आज्ञा का पालन करे |
🦚बच्चों कि संगति पर विशेष ध्यान :-
बालक कि संगति पर माता – पिता को पूरा ध्यान देंना चाहिए कि बालक किसकी और कैसे संगति में अच्छी या गलत संगति में है अच्छी संगति में अच्छी आदतें सीखेंगा गलत संगति में गलत सीखेंगा |

🦚मनोरंजन का उचित अवसर देना :-
बालक को खेलने का पूरा अवसर देना चाहिए बालक को रोकना नहीं चाहिए उसे उचित अवसर देना चाहिए जिससे की वह खेल के माध्यम से अपने कला का निखार सके |

🦚अध्यापक आदर्शपूर्ण व्यवहार करे :-
शिक्षक को चाहिए कि वे बालक के साथ आदर्शपूर्ण व्यवहार करे क्योंकि जैसा शिक्षक को बालक देखेंगे वैसे ही सीखेंगे और करेंगे |

🦚बच्चे को संतुलित जेब खर्च :-
माता – पिता को बालक को कम से कम जेब खर्च देना चाहिए जिससे की बालक अनावश्यक चीजों पर पैसे ना खर्च करे और गलत चीजों पर भी न खर्च करे |

🦚शिक्षण विधि मनोरंजक हो :-
शिक्षक को चाहिए कि वह गंभीर होकर न पढ़ाए शिक्षण का वातावरण मनोरंजक होना चाहिए जिससे की बालक रुचि लेकर शिक्षण करे उनके उपर बोझ न हो |

🦚संतुलित पाठ्यक्रम हो, अनावश्यक बोझ न हो :-
पाठ्यक्रम बालक कि योग्यता अनुसार और रुचिकर होना चाहिए जिससे की बालक आसानी से पढ़ और समझ सके |

🦚सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे भ्रमण , नाटक , खेलकूद , संगीत आदि माध्यम से:-
ऐसे बालकों को नाटक, खेलकूद संगीत , भ्रमण आदि में व्यस्त रखना चाहिए जिससे की इनमें विकास होगा और ये गलत आदतें नहीं सीखेंगे |
इनका व्यवहार भी सकारात्मक रहेगा |

🦚आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौपें :-
ऐसे बालकों को जिम्मेदारी पूर्ण कार्य सौपें जिससे की वे जिम्मेदारी समझे और उस कार्य को अच्छी तरह से करे और आत्मविश्वास के साथ करे|

🌺🌺Thank you 🌺🌺

📝 Meenu Chaudhary 📝
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🌟 समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप 🌟

समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत किया गया है, जो निम्नलिखित है–

💫 १. माता–पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करे– जैसा की बच्चे की पहली शिक्षा उनके माता-पिता के द्वारा या परिवार के द्वारा ही, दी जाती है अतः बच्चे का पहला विद्यालय भी इन्हीं को कहा जाता है ,तो अगर जब बच्चे के माता–पिता या परिवार के द्वारा उन्हें प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार नहीं किया जाएगा तो बच्चे को घर का जैसा वातावरण प्राप्त होगा बच्चा भी वैसे ही व्यवहार करेगा। इसलिए माता–पिता को अपने बच्चे को बहुत अच्छे से और प्रेम सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए,जिससे बच्चा सबके साथ सकारात्मक रूप से व्यवहार कर सके।

💫 २. उनकी मूल प्रवृत्तियों का दमन न करें – बच्चों में उनकी मूल प्रवृत्तियों का दमन नहीं करना चाहिए अगर बच्चों की मूल प्रवृत्तियों का दमन करेंगे तो बच्चा चिड़चिड़ा और परेशान हो जाएगा जिससे वह समस्या उत्पन्न करने लगेगा।

💫 ३. अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो, तो मानसिक चिकित्सा कराएं– अगर बच्चे के व्यवहार में कोई दोष का पता चलता है तो उन्हें मनोचिकित्सक की व्यवस्था कराई जाए जिससे बच्चे के दोषों का सही तरीके से उपचार किया जा सके और बच्चे के व्यवहार में सुधार किया जा सके।

💫 ४. उचित कार्य हेतु प्रेरित करें प्रोत्साहित करें तथा पुरस्कार भी दे– बच्चे को उनके द्वारा किए गए कार्य में उनको प्रेरित एवं प्रोत्साहित करना चाहिए अतः जरूरत पड़ने पर बच्चे को पुरस्कार भी देना चाहिए , जिससे बच्चे के अंदर उत्साह की भावना जागृत हो सके और बच्चे का सकारात्मक बल भी बढ़ता है।

💫 ५. उन्हें नैतिक शिक्षा दे– समस्यात्मक बालक को नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी देनी चाहिए जिससे बच्चा समाज में सही तरीके से रहने का व्यवहार तथा उनके तौर तरीको को सीख पाए और सही –गलत का निर्णय भी ले सके । जैसे –चोरी नहीं करनी चाहिए , किसी को गाली नहीं देनी चाहिए , सबसे प्यार और आदर से बात करनी चहिए इत्यादि।

💫 ६. बच्चे की संगति पर विशेष ध्यान दे– समस्यात्मक बच्चो की संगति पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है , क्युकी बच्चा अपने मित्रो के साथ किस प्रकार से व्यवहार या उनके मित्रो का व्यवहार किस प्रकार का है इस सब बातो का विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ,क्युकी बच्चा माता– पिता के बाद ,बाहर ज्यादा तर अपने मित्रो के साथ ही रहता है जिससे उनकी संगति का असर बच्चे पे पड़ता है । अगर बच्चा गलत संगति के लोगो के साथ रहता है तो दोनों बच्चो को अच्छे से समझाएंगे और उनका सही से मार्गदर्शन करेंगे ।

💫 ७. बच्चो को मनोरंजन का उचित अवसर दे– समस्यात्मक बालक को मनोरंजन का उचित अवसर देना चाहिए ,जिससे बच्चा अपनी अलग–अलग प्रकार की रचनात्मक को दिखा सके तथा उनकी रुचियों को भी महतवपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए ।

💫 ८. आदर्श पूर्वक व्यवहार करें– एक अध्यापक को चाहिए कि वह बच्चों के साथ एक आदर्श पूर्वक व्यवहार करे ताकि, बच्चे भी उनके व्यवहार से प्रभावित हो कर अध्यापक का अनुकरण कर सकें।

💫 ९. बच्चे को संतुलित जेब खर्च दे– माता–पिता की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करें लेकिन बच्चों की उन्हीं आवश्यकता को पूरा किया जाना चाहिए जो बच्चे के लिए सही हो तथा बच्चे को अनावश्यक चीजों के लिए जेब खर्च ना दे । माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वह बच्चों पर ध्यान दें की जो पैसा हम बच्चों को देते हैं ,बच्चा उसका सही उपयोग करता है या नहीं । क्युकी अगर ऐसा नहीं करेंगे तो बच्चा अपने मन का करने लगता है और बाद में ज्यादा पैसा ना मिलने पर गलत कार्य करने लगता है।

💫 १०. संतुलित पाठ्यक्रम हो – अध्यापक की जिम्मेदारी है कि शिक्षण प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए, बच्चों का पाठ्यक्रम संतुलित होना चाहिए तथा उन पर अनावश्यक पाठ्यक्रम का बोझ नहीं डालना चाहिए । बच्चे के संपूर्ण पाठयक्रम में , लचीलापन और संतुलित वातावरण प्राप्त हो सके और बच्चे आंनद के साथ – साथ अध्यन कर सकें ।

💫 ११. सहायक शिक्षण विधि– अध्यापक को प्रभावी शिक्षण विधियों के माध्यम से पढ़ाना चाहिए जिससे बच्चे के अंदर रुचि , उनकी कल्पनाशक्ति तथा किसी चीज को जानने के प्रति इच्छा जागृत या उत्पन्न हो सके , जैसे –बच्चे को संगीत, नाटक , कविता–कहानी , खेल –कूद , चार्ट तथा वास्तविक जीवन से चीजों को जोड़ कर भ्रमण इत्यादि करवाए ।

💫 १२. आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य – समस्यात्मक बालकों में आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उनको उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य दिए जाने चाहिए ,जिससे समस्यात्मक बालक अपनी जिम्मेदारियों को समझेगा और उत्तरदायित्व को पूरी ईमानदारी से पूर्ण करने की कोशिश करेगा।तथा अपने कार्य में व्यस्त होने के कारण कोई समस्या भी उत्पन्न नहीं करेगा।

Notes by–Pooja

समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप :➖

☘️ समस्यात्मक बालक अर्थात् समस्या उत्पन्न करना।
यह बालक हमेशा किसी न किसी रूप में समस्या उत्पन्न करते रहता है लेकिन ऐसे बालकों को सुधारा भी जा सकता है लेकिन इसके लिए हमें पहले बालकों की विभिन्न पहलूओ को जानने की कोशिश करना होगा। समस्यात्मक बालक की समस्या का सबसे बड़ा कारण शिक्षा है इसके कारण ही उसे उचित परिवेश, दिशा- निर्देशन ,सहयोग ,नहीं मिल पाते हैं जिसके कारण वह रास्ता भटक जाते हैं। इसलिए हमें समस्यात्मक बालक के शिक्षा का विभिन्न स्वरूपों का अध्ययन करना होगा। जो निम्न प्रकार से है :➖

1] माता पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें:-

समस्यात्मक बालकों को शिक्षा देने से पहले हमें उनके परिवार में उनके माता-पिता का बच्चों के प्रति कैसा व्यवहार रहता है यह जानने का प्रयास करेंगे क्योंकि समस्यात्मक बालक मानसिक रूप से कमजोर होता है इसलिए हमें उनकी मानसिकता को दूर करना होगा उनमें आत्मविश्वास शक्ति क्षमता को सकारात्मक दृष्टिकोण में लाने की जरूरत है।
अगर घर में नकारात्मकता रहेगी तो वह बाहर भी झगड़ालू या नकारात्मक प्रवृत्ति के हो जाएंगे। इसलिए हमें सबसे पहले उनके घरेलू माहौल को जानना और परखना होगा इसलिए यह जरूरी है कि उनके माता-पिता उनके साथ प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें।

2] उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन ना हो:-

हम जानते हैं कि सभी बच्चे में एक मूलभूत प्रवृत्ति होती है जो बचपन से ही सभी बच्चों के अंदर पाई जाती हैं अगर हम उनकी मूल प्रवृत्ति में खलल डाले तो बच्चों के अंदर क्रोध और चिड़चिड़ापन जैसी भावना उत्पन्न होने लगती है। यह केवल सामान्य बालक मे ही नहीं बल्कि समस्यात्मक बालक में भी पाई जाती हैं अगर हम बच्चों के भावनाओं का दमन करेंगे ड तो वह मानसिक रूप से चिड़चिड़े हो जाएंगे और समस्यात्मक बालकों की समस्या और उत्पन्न हो जाएगी।

3] अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराएं:-

समस्यात्मक बालकों की भावना का दमन होने के कारण यह मानसिक रूप से बहुत असक्रिय व्यवहार करने लगते हैं ऐसे बालकों को मानसिक चिकित्सा के पास ले जाने चाहिए ताकि उस बालक की भावनाओं को समझें और उनका सही इलाज करें।

4] उचित कार्य हेतु प्रेरित,प्रोत्साहित और पुरस्कार दें:-

अगर हम उस बालक को सामान्य बालकों की तरह प्रेरणा, प्रोत्साहित तथा जरूरत पड़ने पर पुरस्कार देंगे तो इससे उस बालक का मनोबल और बढ़ जाता है तथा वह ज्यादा से ज्यादा मात्रा में किसी भी काम के प्रति अपना भरपूर योगदान देते हैं और पूरी रुचि के साथ करते हैं।

5] उन्हें नैतिक शिक्षा दें:-

समस्यात्मक बालक का नैतिक शिक्षा मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है अर्थात् (हम कह सकते हैं कि अगर जड़ मजबूत होगा तभी फल और फूल अच्छे से होंगे)।
हमें बच्चों को नैतिक या बुनियादी शिक्षा जैसे:- बचपन से ही हमें बच्चों को क्या करना है? कैसे करना है ?क्या नहीं करना है?क्या सही है ?और क्या गलत? अर्थात् जो हमारी नैतिकता हमें सिखाती हैं वैसा शिक्षा बच्चों को देना चाहिए जिससे बच्चों के अंदर बचपन से ही सही और गलत के बीच अंतर को समझने की क्षमता हो सके।

6] बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान:-बाहरी वातावरण समस्यात्मक बालक हो या सामान्य दोनों पर काफी प्रभाव डालती है इसलिए माता-पिता और शिक्षक की यह जिम्मेदारी होती है की बच्चों की संगति पर भी ध्यान दें कई बार संगति के कारण बच्चे बिगड़ भी जाते हैं और कई बार सही मार्गदर्शन भी मिल जाता है इसलिए हमें बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

7] बच्चों को मनोरंजन का भी उचित अवसर:-

बच्चों को शिक्षित करना एक शिक्षक का कर्तव्य होता है लेकिन कई बार बच्चों के अंदर बहुत सारी प्रतिभा होती है इसलिए एक शिक्षक का यह दायित्व होता है कि बच्चों को मनोरंजन करने का भी एक उचित अवसर का मौका दें ताकि वह अपनी अलग-अलग प्रकार की रचनात्मक क्रियाओं को दिखा सकें।

8] अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करें:-

अध्यापक को बालकों के प्रति आदर्श पूर्वक व्यवहार करना चाहिए जो कि बालकों के लिए अनुकरणीय हैं।

9] बच्चों को संतुलित जेब खर्च दें:-

बच्चों की जरूरत को माता-पिता ही पूरा करते हैं लेकिन बच्चों को जो जरूरी है बस वही चीज दे अगर बच्चों को जेब खर्च दे रहे हैं तो जितनी आवश्यकता है उतनी ही ।ज्यादा मिलने पर बच्चे उसका गलत उपयोग करते हैं जो कि एक बच्चों के लिए बिल्कुल सही नहीं है।

10] शिक्षण विधि मनोरंजक हो:-

एक शिक्षक होने के नाते हम बच्चों को शिक्षित करने के लिए अनेक – अनेक प्रकार के कौशलों का सहारा लेते हैं इसलिए हमें यह देखना चाहिए कि बच्चों को किस चीज में ज्यादा रुचि है उन्हीं के अनुसार कक्षा वर्ग में अलग-अलग तरीकों से बच्चों को शिक्षित करने के लिए शिक्षण विधि का प्रयोग करेंगे।

11] संतुलित कार्यक्रम हो अनावश्यक बोझ ना हो:-

ऐसे बच्चों की शिक्षण प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए शिक्षक को बच्चों के ऊपर पढ़ाई के प्रति ज्यादा भार देना नहीं चाहिए पढ़ाने का कर्म तथा पाठयक्रम संतुलित और लचीला पूर्ण रखना चाहिए ताकि बच्चे आसानी से समझ सके और सीख सकें।

12 ] सहायक शिक्षण कार्यक्रम:-

सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे ➖ भ्रमण, खेलकूद नाटक ,संगीत इत्यादि द्वारा समस्यात्मक बालक के व्यवहार को रोका जा सकता है ऐसे बालक को समय-समय पर विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में व्यस्त रखना चाहिए ताकि उसके अंदर दूसरे को परेशान करने की भावना उत्पन्न नहीं होगी।

13] आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तर दायित्व कार्य सौंपे:-

अगर कोई बच्चा ज्यादा समस्या उत्पन्न कर रहा है जैसे समाज परिवार या आस पड़ोस में तो हमें उस बच्चे को किसी ऐसे काम में व्यस्त रखना चाहिए जिसमें उसका रुचि हो वह बच्चे ऐसे काम को पूरी ईमानदारी और कर्म निष्ठा से करते हैं वह उस काम को अपना उत्तरदायित्व समझते हैं। ☘️🍃🌼🌼🍃☘️

Notes by➖Mahima kumari

🌺🌺🌺समस्यात्मक बालक🌺🌺🌺

🍁⭐🍁समस्यात्मक बालकों के शिक्षा का स्वरूप 🍁⭐🍁

🎯माता -पिता प्रेम व सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करे:–
बच्चे का परिवार ही सबसे पहला विद्यालय होता है इसीलिए बच्चे के साथ माता पिता को प्रेम पूर्वक और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए उनके साथ तेज आवाज में बात करना डांटना आदि करने से उनमें नकारात्मकता आती है

🎯उनकी मूल- प्रवृत्तियों का दमन ना करे:-
अगर हम बच्चे की मूल प्रवृत्तियों का दमन करेंगे तो बाय अपने कार नहीं कर पाएंगे और उन में नकारात्मक भावना उत्पन्न होगी तथा बालक की मूल प्रतियां उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती है इसीलिए बालक की मूल पर बस्तियों का दमन नहीं करना चाहिए

🎯यदि कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा करवाएं:-
अगर किसी बालक को दोष समस्या मानसिक स्तर पर है तो उसका उपचार करने हेतु मानसिक चिकित्सक को दिखाना चाहिए जिससे बाला की समस्या को दूर किया जा सके बालक को किस प्रकार की समस्या है यह समस्या पता करने के बाद वह उचित रूप से उसका उपचार कर सकता है इसलिए इनके लिए मनोचिकित्सक भली प्रकार से जान सकते हैं

🎯बच्चों को उचित कार्य हेतु प्ररित/प्रोत्साहित और पुरस्कृत करे:–
समस्यात्मक बालक को किस प्रकार से प्रेरित किया जाए हमें उसी प्रकार की व्यवस्था करनी चाहिए अगर बच्चे को प्रोत्साहित और पुरस्कार के माध्यम से बच्चा उत्साह उत्सुक होता है तो वह कार्य को करने के लिए उत्सुक रहता है समस्यात्मक बालक को भी ठीक इसी प्रकार से प्रोत्साहन और पुरस्कार मिले तो वह अपनी इस प्रवृत्ति का दमन कर पाएंगे

🎯बच्चों को नैतिक शिक्षा दे:– समस्यात्मक बालक को समाज में जीवन व्यतीत करने के लिए उन्हें नैतिक शिक्षा की आवश्यकता होती है क्योंकि अगर पालक समाज में रहना चाहता है तो उसे समाज में कैसा व्यवहार करना है समाज सामंजस्य बनाने के लिए नैतिक शिक्षा की आवश्यकता होती है बालक की जीवन में नैतिक शिक्षा का अत्यधिक महत्व होता है

🎯बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान दें:–
समस्यात्मक बालक के साथ अनेक व्यक्ति होते हैं जिनकी संगति का असर होता है इसीलिए बच्चे अच्छी संगति में रहना चाहिए जिससे उनका व्यवहार भी अच्छा हो और वह बुरी संगति की तरफ आकर्षित ना हो तो उनका व्यवहार भी अच्छा होगा अतः माता-पिता को बालक की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि बालक किन बालकों या दोस्तों के साथ रहता है वह कैसे हैं इन सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए

🎯बच्चों को मनोरंजन का भी उचित अवसर दे:-
समस्यात्मक बच्चों को शिक्षण प्रक्रिया कराते समय उन्हें समय-समय पर मनोरंजन का भी उचित अवसर दिया जाना चाहिए मनोरंजन द्वारा बच्चे अपने कार्य को करने में रुचि लेते हैं बाला को शिक्षा के साथ-साथ मनोरंजन का भी अवसर दिया जाना चाहिए

🎯अध्यापक को आदर्शपूर्ण व्यवहार करना:– एक शिक्षक को बच्चे के सामने आदर्श पूर्ण व्यवहार प्रस्तुत करना चाहिए जिससे कि वह बच्चा अनुकरण कर सके शिक्षक द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य को आए अपने जीवन में करने का प्रयास करेगा इसीलिए शिक्षक को बच्चे के सामने हमेशा आदर्श पूर्व व्यवहार करना चाहिए

🎯बच्चों को संतुलित जेब खर्च दे:–
बच्चे को उनके अनुसार ही जेब खर्च दिया जाना चाहिए अगर छोटा बालक है तो उसे कम पैसे दिए जाएं और अगर बड़ा बालक है तो उसे उसके हिसाब से पैसे दिए जाने चाहिए लेकिन बालक को उसके हिसाब से अधिक पैसे नहीं दिए जाने चाहिए जिससे कि वह अनावश्यक कार्य कर सकें अपने पैसे का गलत उपयोग कर सके माता-पिता को इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बालक को उसकी उम्र और जरूरतों के हिसाब से ही जेब खर्च पैसे दिए जाने चाहिए

🎯शिक्षण विधि मनोरंजक हो:–
बच्चों को ध्यान में रखकर उन्हें शिक्षण विधि को मनोरंजन के साथ करानी चाहिए जिससे कि बालक की शिक्षण ग्रहण करते समय रुचि उत्पन्न हो और उन्हें वह विषय अच्छा लगे किसी भी विषय को पढ़ते समय बच्चे में अरुचि नहीं आनी चाहिए इसीलिए शिक्षण विधि के उपयोग करते समय मनोरंजन लेकर आना चाहिए बालक को खेल-खेल में ही सिखाना उन्हें ऐसा ना लगे कि यह विधि बहुत कठिन है

🎯पाठ्यक्रम संतुलित हो अनावश्यक बोझ ना हो:–
पाठ्यक्रम लचीला होना चाहिए पाठ्यक्रम में अनावश्यक चीजों को नहीं जोड़ना चाहिए जिससे बालक को शिक्षण करते समय कठिनाई हो ऐसी इकाई का समावेश किया जाना चाहिए कि बच्चे की अपने दैनिक जीवन से संबंधित क्योंकि हमें शिक्षण कराते समय बालकों की रुचि लाना अति आवश्यक है अगर बालक की पाठ्यक्रम में रुचि नहीं होगी तो वह सही तरीके से नहीं सीख पाएगा और उसमें समस्या होगी समस्यात्मक बालक को कक्षा में उपस्थित रखने के लिए पाठ्यक्रम संतुलित होना अति आवश्यक है

🎯सहायक शिक्षण कार्य जैसे-भ्रमण, खेल कूद, नाटक, संगीत आदि के माध्यम से शिक्षा:–
समस्यात्मक बालक को शिक्षण विधि कराते समय उनको समाज समाचार खेल नाटक संगीत कराना चाहिए इससे बच्चों में शिक्षण विधि में रुचि उत्पन्न होगी

🎯 आत्मविश्वास जागृत करने हेतु उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपा जाए:-
समस्यात्मक बालकों को जिम्मेदारी पुकार सौंपी जिससे कि वे जिम्मेदारी समझे और उस कार को अच्छी तरीका से करें तथा उनमें आत्मविश्वास भी बढ़ेगा

✍🏻✍🏻notes by– Menka patel ✍🏻✍🏻

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◾ समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप◾
🔹 समस्यात्मक बालक में कुछ ऐसी प्रक्रिया होती है, जो स्वाभाविक होती हैं इनको लगातार प्रयास के द्वारा बच्चे में सुधार किया जा सकता है।

✳️माता पिता प्रेम और
सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें।

माता-पिता द्वारा बच्चों की भावनाओं को समझना चाहिए। और उन्हें उनकी परेशानियों को समझने की कोशिश करें अपने बच्चों के प्रति हमेशा सहानुभूति का भाव रखना चाहिए, जिससे कि बच्चों में हीनता की भावना ना हो।

✳️ उनकी मूल प्रवृत्तियों का दामन ना करें।

बच्चे की कुछ मूल प्रवृत्तियां होती हैं, जैसे उनकी कुछ इच्छाएं होती है छोटी-छोटी जिससे दबाना नहीं चाहिए अगर ऐसा होता है तो बच्चे की मानसिकता पर भी प्रभाव पड़ता है और उनकी व्यवहार में भी परिवर्तन आ जाते हैं।

✳️ अगर कोई दोस्त पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराएं।

बच्चों में अगर मानसिक नेवले में ज्यादा गड़बड़ी है तो उसे चिकित्सा का सहायता लेना चाहिए ताकि बच्चों की परेशानियों का समाधान हो सके और वह साधारण बच्चों की तरह अपना कार्य करने में सक्षम हो सके।

✳️ बच्चों की उचित कार्य हेतु प्रेरित और प्रोत्साहन एवं पुरस्कार दे।

अगर बच्चे को किसी कार्य में रुचि है तो उसे वह बेहतर तरीके से करता है ,तो उसे करने देना चाहिए ताकि उसका मनोबल और बढ़ सके और बच्चों की हौसला और आगे कुछ करने के लिए प्रोत्साहित हो इसके लिए बच्चों को पुरस्कार या प्रोत्साहित किया जा सकता है।

✳️ उन्हें नैतिक शिक्षा दे।

बच्चों को हम नैतिक शिक्षा देकर बड़ों का आदर सम्मान जैसे सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेने जैसी प्रक्रिया को जागृत कर सकते हैं ताकि वह सभी भावनाओं को समझ पाए

✳ बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान।

बच्चों की संगति पर इसलिए विशेष ध्यान देना चाहिए ,क्योंकि संगति का प्रभाव सबसे ज्यादा बच्चों के जीवन में पड़ता है जिससे उसकी पूरी दिनचर्या चलती है उसी के अनुसार वह कार्य करता है अगर उन्हें सही समय पर संगति को ना आकर जाए तो बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है।

✳️बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर।

बच्चों में सही विकास की दिशा देने के लिए मनोरंजन भी बहुत सहायक होता है जो कि मानसिक स्तर को संतुलित बनाए रखता है जिसके कारण कोई भी कार्य भाव नहीं लगता है।

✳️ बच्चों को संतुलित जेब खर्च देना।

बच्चों को जरूरत से ज्यादा खर्च नहीं देना चाहिए इसके कारण उनकी अनावश्यक कार्य बढ़ जाएंगे जिससे काफी बुरा प्रभाव पड़ सकता है और उनकी मानसिकता में भी बदलाव आ सकता है।

✳️ संतुलित पाठ्यक्रम हो अनावश्यक बोझ ना दें।

बच्चे की मानसिक स्तर के अनुसार ही उन्हें पाठ्यक्रम का चयन करना चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो बच्चे कार्य को ज्यादा करने में सक्षम नहीं होंगे और मुन्नी की बोझ बढ़ जाएगी, ऐसा करना ठीक नहीं होगा।

🟡Notes by—-Abha kumari🟡

समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप

प्राय देखा जाता है कि विद्यालय में बहुत से बच्चे समस्यात्मक होते हैं ऐसे बालक दूसरों लिए समस्या पैदा करते हैं इन बालकों की शिक्षा के लिए विशेष प्रकार से शिक्षा देना आवश्यक है ताकि यह बच्चे अपनी समस्याओं से बाहर आकर एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकें

1 माता पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें:- समस्यात्मक बालक के माता पिता अपने बच्चों से प्रेम एवं सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए बच्चे को कब किस चीज की जरूरत है उन्हें वह समझना चाहिए और अपने बच्चे पर पूर्ण रूप से ध्यान देना चाहिए बच्चे सबसे ज्यादा अपने माता-पिता से ही आशा रखते हैं और सबसे ज्यादा वह अपने माता पिता के पास ही रहते हैं यदि माता-पिता उन्हें अच्छी तरह से समझेंगे तो हो सकता है वह अपनी समस्याओं से बाहर निकल सके

2 समस्यात्मक बालक की मूल प्रवृत्तियों का दमन ना करें:- प्रत्येक व्यक्ति कि अपनी मूल प्रवृतियां होती हैं बच्चों की मूल प्रवृत्तियां (आवश्यकताएं) का पूरा होना आवश्यक है यदि उनकी मूल प्रवृत्तियां पूरी नहीं होती है तो बच्चे समस्यात्मक व्यवहार अपनाने लगते हैं

3 समस्यात्मक बालकों में कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा करना चाहिए:- बच्चे के माता-पिता को चाहिए कि यदि उनके बच्चे में किसी प्रकार का दोष या कमी पाई जाती है तो वह उसका मानसिक चिकित्सा से उसका इलाज कराएं हो सकता है बच्चा थोड़ा सा ही चिकित्सा प्राप्त करके समस्यात्मक बालकों की श्रेणी से बाहर निकल आए

4 बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित प्रोत्साहित और पुरस्कार दें:- यदि बच्चा किसी कार्य को अच्छे तरीके से करता है तो बच्चे को कार्यों के लिए प्रेरित करना चाहिए एवं उसे प्रोत्साहित पुरस्कार देना चाहिए इससे बच्चे में कार्य के प्रति रुचि एवं प्रेरणा बनी रहती है जिससे वह आगे के कार्य भी बहुत आसानी से करता है

5 बच्चे को नैतिक शिक्षा देनी चाहिए:- हमें बच्चों को नैतिक शिक्षा देनी चाहिए उन्हें शुरू से ही यह ज्ञान कराना चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत सही गलत की पहचान कराना बहुत आवश्यक है इससे बच्चे अपने जीवन में अच्छे निर्णय ले सकते हैं एवं बुराइयों को पीछे छोड़ सकते हैं
हमें अपनी नैतिकता कभी नहीं छोड़नी चाहिए बंद कमरे में भी हमें अपनी नैतिकता दिखानी चाहिए

6 बच्चे की संगति पर विशेष ध्यान दें:- हमें बच्चों की संगति पर ध्यान देने की आवश्यकता है कहते हैं कि संगति का असर बहुत गहरा होता है संगति से बच्चे सही रास्ते को अपना लेते हैं और गलत रास्ते को भी चुन सकते हैं यदि बच्चों की संगति अच्छी हो गई तो वह अच्छाई का मार्ग अपनाएंगे और अपने भ भविष्य एवं वर्तमान को अच्छा बना लेंगे बुरी संगति में बच्चे अपने पूरे कैरियर को बर्बाद कर सकते हैं

7 बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर देना चाहिए:- कहते हैं स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है यदि बच्चों का स्वास्थ्य ठीक होगा तो उनका मन भी अच्छा होगा और मनोरंजन एवं खेल कौन से शरीर स्वस्थ बनता है यदि हम बच्चे को एक ही प्रकार के कार्य अधिक देर तक कर आते रहेंगे तो वह बोर हो जाएगा उसका मन नहीं लगेगा और वह उस कार्य को अच्छे से नहीं करेगा उस कार्य में अपनी रचनात्मकता नहीं दिखाएगा परंतु यदि हम बच्चे को अलग अलग कार्य एवं समय-समय पर उसे मनोरंजन का मौका दें तो वह अपनी रचनात्मकता को अच्छे से स्पष्ट कर सकता है

8 अध्यापक आदर्शपूर्वक व्यवहार करें जो बच्चे के लिए अनुकरणीय हो:- बच्चे टीचर को अपना आदर्श के रूप में चुनते हैं वह अपने टीचर को माता-पिता से भी बढ़कर समझते हैं अतः टीचर को ऐसे व्यवहार तथा चरित्र को उनके सामने प्रस्तुत करना चाहिए जिससे उनको एक सकारात्मक सोच मिले और वह उसका अनुसरण कर सके

9 शिक्षण विधि मनोरंजक हो:- बच्चों को खेल खेल में शिक्षा दी जानी चाहिए खेल खेल में वह बहुत आसानी से सीख जाते हैं और बोर भी नहीं होते खेल खेल में बच्चे अपने रचनात्मक एवं सृजनात्मक कार्य को भी दिखाते हैं

10 बच्चे को संतुलित जेब खर्च देना:- हमें बच्चे को उसकी आवश्यकता के अनुसार ही उसको जेब खर्च देना चाहिए उससे ज्यादा देने पर वह उसका गलत है फायदा उठाते हैं और यह आगे चलकर बच्चे तथा परिवार के लिए समस्या बन जाती है

11 संतुलित कार्यक्रम हो अनावश्यक बोझ ना करें:- बच्चों के लिए किसी भी प्रकार का कार्य उनकी क्षमता के अनुसार होना चाहिए बच्चों पर किसी भी प्रकार का बोझ नहीं डालना चाहिए

12 सहायक शिक्षण कार्यक्रम भ्रमण खेलकूद नाटक संगीत के द्वारा समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है

13 आत्मविश्वास जागृत करना:- हम बच्चों में आत्मविश्वास जागृत करना चाहिए उनको कार्य करने के लिए प्रेरणा देनी चाहिए स्वमं से किसी कार्य को करते हैं और यदि वह उस कार्य में सफल हो जाते हैं तो उनका आत्मविश्वास जागृत हो जाता है अतः हमें बच्चों से शैक्षिक कार्य कराना चाहिए तथा उसको गाइड करते रहना चाहिए

🙏🙏🙏 सपना साहू 🙏🙏🙏

-: समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप :-
🔆माता पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें| समस्यात्मक बालक ऐसे बालक जो मानसिक रूप से कमजोर होता है और उसको मानसिक सबलता की जरूरत होती है है जो बालक समस्यात्मक बालक हो उसके माता-पिता से मिले और बच्चों के साथ प्रेम पूर्वक या सहानुभूति का व्यवहार यह सुनिश्चित होता है बच्चों का कोई भी कारण अपने माता पिता को ही बताता है और माता-पिता भी अपने बच्चों को जानते हैं बच्चे पर माता-पिता या परिवार का प्रभाव बहुत अधिक पड़ता है जिससे कि सकारात्मक सोच रखते हैं जिससे बच्चों का बाहर भी व्यवहार अच्छा होगा जिस घर में नकारात्मक होगी तो बच्चों पर भी प्रभाव गलत पडे़गा|
🔆 उनकी मूल प्रवृति का दामन ना करें अगर बच्चो की मूल प्रवृत्ति का दमन करते है तो बच्चे झगड़ालू चिड़चिडे़ मानसिक रूप से अच्छे नहीं लगते हैं मूल प्रवृत्तियां जैसे सोना भूख लगना अगर उनको दमन करते है तो ऐसा बालक समस्यात्मक बालक है उसे समस्या का समाधान करना पड़ता है|
🔆 अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराएं| समस्यात्मक बालकों का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो मानसिक चिकित्सा कराना चाहिए जिससे बालकों के शिक्षा के स्तर को सुधारा जा सके
🔆 बच्चों को उचित कार्य हेतु प्रेरित प्रोत्साहित और पुरस्कार देना अगर बच्चा कक्षा में उचित कार्य करता है तो उसकी प्रशंसा या उसे प्रेरित करना चाहिए जिससे बच्चे को प्रोत्साहन मिलता है और अगर जरूरत पड़े तो पुरस्कार भी देना चाहिए जिससे बच्चों की सकारात्मक मनोबल बढ़ता है|
🔆 उन्हें नैतिक शिक्षा दें| बच्चों का बेसिक व्यवहार है कि उसकी शिक्षा बच्चों को देनी चाहिए कब क्या कैसे करना है यह बच्चों को बताना चाहिए जैसे झूठ नहीं बोलना गंदी नहीं करना अपराध नही करना|वह बालक जो दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करता है नैतिकता बच्चों में देनी चाहिए बच्चों को क्या करना है यह पता होना चाहिए उनमें नैतिकता का भाव होना चाहिए|
🔆 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान बच्चों को उनकी बाहरी वातावरण का प्रभाव बहुत अधिक पड़ता है बच्चों में संगति का असर जल्दी पढ़ता है कोई अच्छा है तो अच्छा प्रभाव पड़ेगा अगर कोई बच्चा गलत है तो दूसरे बच्चों पर धीरे-धीरे गलत प्रभाव पड़ता है इसलिए विशेष ध्यान देना आवश्यक है अगर उनकी संगति समस्यात्मक है या खराब है
🔆 बच्चों का मनोरंजन का उचित अवसर दें| बच्चों को मनोरंजन का मौका देना चाहिए कि बच्चा अलग-अलग तरह से क्रिएटिव दिखाना चाहिए|
🔆 अध्यापक का दृश्य पूर्वक व्यवहार करे अध्यापक का एक छात्र के प्रति ऐसा व्यवहार होना चाहिए जो आदर्श पूर्वक हो और बच्चों के लिए अनुकरणीय हो|
🔆 बच्चों को संतुलित जेब खर्च दें अगर बच्चों को जरूरत से ज्यादा जेबखर्च दे तो वह गलत काम में मैं प्रयोग करेगा इसलिए बच्चों को उनकी जरूरत के हिसाब से ही जेब खर्च देना चाहिए|
🔆 शिक्षण विधि मनोरंजक हो बच्चों को शिक्षण कार्य कराते समय बच्चों को कार्य के प्रति रुचि जागृत करनी चाहिए जिससे वह और आनंद का अनुभव करता है और शिक्षण विधि मनोरंजक होनी चाहिए अगर शिक्षण विधि मनोरंजक नहीं हुई तो बच्चा स्कूल से भाग जाएगा या बंक मार देगा|
🔆 संतुलित (पाठ्यक्रम) कार्यक्रम हो अनावश्यक बोझ ना हो शिक्षक कक्षा मे लगातार पढ़ाता है और लिखवाता है तो बच्चे पढ़ाई को बोझ समझने लगता है इसलिए शिक्षक को बढ़ाने का पाठ्यक्रम संतुलित या लचीला रखना चाहिए जिससे कि बच्चों पर अनावश्यक बोझ ना पड़े|
🔆 सहायक शिक्षण कार्यक्रम भ्रमण खेलकूद नाटक संगीत के द्वारा समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है जिससे बालक के प्रकार के समय -समय पर गतिविधियों में शामिल होकर शिक्षण कार्य कराना चाहिये

🔆 आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व में पूर्ण कार्य सौंपे समस्यात्मक बालक ने आत्मविश्वास जाग्रत करने के लिए उनके उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य दिया जाना चाहिए जिससे मैं अपने कार्य को पूर्ण जिम्मेदारी से करे समस्यात्मक बालक किसी कार्य को करने के लिए जागृति उत्पन्न नहीं करता है वह दूसरे बच्चों को परेशान करता है
उपरोक्त तथ्थो के अनुसार समस्यात्मक बालकों उनकी क्षमता के अनुसार शिक्षण कार्य कराया जाए जिससे कि उनकी समस्याओं को समाप्त कर सकें|
Notes by – Ranjana Sen

समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप-

समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप देखने से पहले हमें उसकी कमियों के बारे में, कारणों के बारे में, समस्याओं के बारे में जानना पड़ता है फिर उसके बाद हम उसको उचित रूप से शिक्षा दे पाएंगे।

समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप-

1.ज्यादातर समय बालक अपने माता पिता के साथ बिताता है इसलिए माता-पिता को अपने बच्चे के साथ प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करना चाहिए जिससे कि वह समस्यात्मक बालक ना बने

2.यदि बालक की मूल प्रवृत्ति का दमन होता है तो वह असामाजिक व्यवहार की ओर बढ़ने लगता है इसलिए बालक को उसकी मूल प्रवृत्ति के अनुसार व्यवहार करने के लिए स्वतंत्र रखना चाहिए ।

3.अगर यदि बालक में कोई दोष का पता चले तो संभव हो तो उसे उसकी मानसिक चिकित्सा करवाएं।

4.बच्चों को उचित कार्य करने के लिए प्रोत्साहित ,प्रेरित करें और संभव हो तो पुरस्कार भी दे।

5.समस्यात्मक बालक में नैतिक शिक्षा का अभाव होता है इसलिए इनकी नैतिक शिक्षा पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दें

6.हम जैसी संगति करते हैं हमारा व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है इसलिए ऐसे बालक की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

7.बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर देना, ऐसे बच्चे मानसिक द्वंद्व और हीन भावना से ग्रसित होने के कारण अपने आप तक सीमित रहते हैं इसलिए इन्हें ज्यादा से ज्यादा मनोरंजक पूर्ण तरीके से पढ़ाया जाए ताकि यह विषयवस्तु में रुचि ले सके।

8.ऐसे बालक के अध्यापक का व्यवहार आदर्श होना चाहिए जिससे कि बालक उसके व्यवहार का अनुकरण कर सके।

9.ऐसे बच्चों को संतुलित जेब खर्च देना चाहिए क्योंकि यदि ज्यादा जेब खर्च होगा तो उन्हें लगेगा कि अभी तो बहुत है और वह क्षमता से ज्यादा खर्च करेंगे।

10.ऐसे बालकों को पढ़ाने के लिए शिक्षण विधि मनोरंजक होनी चाहिए।

11.ऐसे बालकों के लिए पाठ्यक्रम संतुलित होना चाहिए और अनावश्यक बोझ नहीं होना चाहिए
इनका पाठ्यक्रम भी इनकी क्षमता के अनुसार होना चाहिए शिक्षक को भी बालकों की क्षमता को देखते हुए ही पढ़ाना चाहिए। 1 दिन में जितना बालकों को समझ में आए उतना ही पढ़ाना चाहिए उससे ज्यादा नहीं।

12.ऐसे बालकों के लिए सहायक शिक्षण कार्यक्रम जैसे भ्रमण, खेलकूद, नाटक, संगीत प्रतियोगिताओ का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे कि इनके समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सके क्योंकि कार्यक्रम में भाग लेने पर यह अपने समस्यात्मक व्यवहार को नहीं कर पाएंगे क्योंकि उसकी तैयारी में जुटे रहेंगे या व्यवस्त रहेगे।

13.ऐसे बालकों में आत्मविश्वास जागृत करने के लिए इन्हें उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपना चाहिए।

Notes by Ravi kushwah

🌈 समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप🌿➖
ऐसे बालक जो हर हमेशा समस्या खड़ा करता हो उन बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना अति आवश्यक है नहीं तो बच्चा समाज के लिए, विद्यालय के लिए और खुद के व्यक्तित्व के लिए बोझ बन जाएगा। इन्हीं सब कारणों को सुधारने के लिए समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप निम्नलिखित रुप से करना अति आवश्यक है।
🌿 माता -पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें➖ समस्यात्मक बालक के प्रति माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों के साथ प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें। क्योंकि बच्चे का अधिकतर समय माता- पिता के साथ बीतता होता है बच्चों की probability मां- बाप के पास जाता हैं। सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करने से बालक के अंदर आत्मविश्वास जगता है
🌿 बच्चों की मूल प्रवृत्ति का दमन ना करें
हम किसी के बेसिक नेचर में खलन करते हैं। अभिभावक को चाहिए कि समस्यात्मक बालक के प्रति उसके बेसिक नेचर का खलन ना करें हैं जैसे- बच्चे को भूख लगा है तो उसको टाइम पर खाना मिलना चाहिए। नहीं तो बच्चे के मस्तिष्क में नेगेटिविटी उत्पन्न हो जाती है
🌿 अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराएं
अगर कोई बच्चा मानसिक रूप से समस्यात्मक हो तो शिक्षक को चाहिए की यथाशीघ्र बच्चों को मानसिक चिकित्सक के पास ले जाएं और उपयुक्त उपचार कराएं ताकि बच्चों को इस दोष से मुक्ति मिल सके। बच्चों को बच्चों को अलग -अलग तरीके से co-operate करें।

🌿 उचित कार्य हेतु प्रेरित/ प्रोत्साहित करें और पुरस्कार दे➖ इसमें बच्चों को समय-समय पर खेल-कद, नाटक, इत्यादि मनोरंजन कार्य में शामिल करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करें तथा बच्चों को पुरस्कार भी प्रदान करें।
🌿 उन्हें नैतिक शिक्षा दें ➖जो बेसिक beheviour या तौर -तरीके हैं वह उसको उसी के हिसाब से सुधारा जाए ताकि बच्चे में नैतिकता का गुण विकसित हो।
🌿 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान
अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को, तथा उनकी संगति का ध्यान रखना चाहिए, कि मेरा बच्चा किस संगत में पड़ा हुआ है कहीं गलत संगत में तो नहीं पड़ गया है
🌿 बच्चों के मनोरंजन का भी उचित अवसर दें➖समस्यात्मक बालक को मनोरंजन के प्रति प्रेरित करने के लिए उचित अवसर दें, ताकि बच्चे समस्या उत्पन्न करने वाले व्यवहार को भुल सके
🌿 अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करें ➖अध्यापक को चाहिए कि बच्चों के सामने मधुर वाणी का प्रयोग करें ताकि बच्चे उनका अनुकरण कर सके और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें।
🌿 बच्चों को संतुलित जेब खर्च दें➖बच्चों को पैसा जरूरत से ज्यादा मिलने पर वह दुरुपयोग करने लगता है इसलिए बच्चों का जेब खर्च लिमिट देना चाहिए
🌿 शिक्षण विधि मनोरंजक हो➖ बच्चौ के हिसाब से शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने चाहिए ताकि बच्चे प्रेरित हो सकें
🌿 संतुलित कार्यक्रम हो अनावश्यक बोझ ना हो
बच्चो को होमवर्क ना दें या लिमिट में देना चाहिए ताकि बच्चे को बोझ ना लगे
🌿 सहायक शिक्षण कार्यक्रम ➖बच्चे को भ्रमण पर ले जाएं, खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रेरित करें ताकि बच्चे की समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सके।
🌿 आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपे➖ इसमें बच्चों को जिम्मेदारी सौंपे ताकि बच्चे उन कार्यों को करने के लिए प्रेरित हों ताकि बच्चों को अन्य समय ना मिले की समस्या उत्पन्न कर सकें। notes by–SRIRAM PANJIYARA

📒 समस्यात्मक बालक के शिक्षा का स्वरूप
Problem of child education

▪️ समस्यात्मक बालक की शिक्षा सरल एवं स्वभाविक हो ,ताकि उनमें परिवर्तन ला सके ,और वह समाज में अच्छा व्यवहार कर सकें। और किसी भी तरह की समस्या उत्पन्न ना करें सके ।

1️⃣ माता – पिता प्रेम और सहानुभूति पूर्व व्यवहार करें।
🔹समस्यात्मक बालक की नींव घर के वातावरण से ही पड़ चुकी होती है
सबसे ज्यादा बच्चा माता-पिता के व्यवहार से ही सीखता है और माता पिता की वह सुनता है
माता पिता ही बच्चे को मानसिक रूप से मजबूत कर सकते हैं अगर वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करें ,प्रेम पूर्वक रहे हैं तो समस्यात्मक बालक को रोका जा सकता है

2️⃣ उनकी मूल प्रवृत्ति का दामन ना करें

🔹 हर बच्चे का व्यवहार स्वभाविक एवं एक जैसा होता है अगर हम उन्हें बार-बार परेशान करते हैं किसी काम को करने के लिये उन्हे डांटते , चिल्लाते तो वह चिड़चिड़े हो जाते हैं और वह समस्या उत्पन्न करते हैं इसलिए हमें उनकी मूल प्रवृत्ति, का ध्यान रखना चाहिए ।

3️⃣ अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराए
🔹 अगर किसी बच्चे को मानसिक रूप से कोई दोष हो ,तो उसे मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए ताकि उसका सही समय पर इलाज हो सके।

4️⃣ बच्चों को उचित कार्य हेतु प्रेरित या प्रोत्साहित करें । और जरूरत पर उन्हें पुरस्कार भी दे।
🔹 इससे उनमें अच्छी आदतों का विकास होगा और वह कार्य करने में रुचि लेंगे

5️⃣ उन्हें नैतिक शिक्षा दे

🔹 बच्चों को बेसीक व्यवहार ,बेसिक तौर तरीके की शिक्षा दें ,कहां क्या करना है कहां क्या नहीं करना है किसी के बारे में क्या सोचना है क्या नहीं सोचना है कैसे समाज में अपना व्यवहार को बनाना है आदि बातो से शिक्षित करना चाहिए

6️⃣ बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए
🔹 वातावरण हर व्यक्ति को प्रभावित करता है जो कुछ भी हम सीखते है वातावरण से ही सीखते हैं जैसे लोग रहेंगे वैसे ही हम होंगे,अगर हम अच्छे लोगों के साथ रह रहे तो हमारा व्यवहार भी अच्छा ही होगा ,अगर हम खराब लोगों के साथ रह रहे तो हमारा व्यवहार भी खराब होगा ,संगति का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है एक शिक्षक को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

7️⃣ बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर दें

🔹 बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर देना चाहिए ताकि वह अपने कार्य को उत्साह पूर्वक कर सकें ।

8️⃣ आदर्श पूर्व व्यवहार करें जो बच्चों के लिए अनुकरणीय हो
🔹एक शिक्षक का व्यवहार आदर्श पूर्ण होना चाहिए ।बच्चा शिक्षक का अनुकरण करके ही आदर्श पूर्ण व्यवहार करना सिखता है

9️⃣ बच्चों को संतुलित जेब खर्च दे
🔹 बच्चों को कम से कम पैसे देना चाहिए

🔟 शिक्षण विधि मनोरंजक हो

🔹 बच्चों को ऐसे शिक्षण विधि से पढ़ाया जाना चाहिए है जिसमें उनको बहुत मजा आया , उनके दैनिक जीवन के कार्यों को जोड़कर शिक्षण पकरकया जाए

1️⃣1️⃣ संतुलित कार्यक्रम हो अनावश्यक बोझ ना
बच्चों को कम-से-कम पढ़ाया जाए, उतना ही पढ़ाया जाए जितना वह ग्रहण कर सके ,बच्चे की क्षमता के अनुसार ही पढ़ा जाए, ताकि बच्चे को पढ़ाई बोझ ना लगे ,

1️⃣2️⃣ सहायक शिक्षण कार्यक्रम
बच्चे को सहायक शिक्षण कार्यक्रम करवाते,
भ्रमण पर ले जाए ,खेल ,कूद ,नाटक, संगीत प्रतियोगिता करवाई , ताकि बच्चे का समस्यात्मक व्यवहार बदला जा सके।

1️⃣3️⃣ आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य रूप से सौंपा
🔹समस्यात्मक बालक को उनके क्षमता के अनुसार उत्तरदायित्व का कार्य देना चाहिए ताकि वह व्यस्त रहें और उनको मजा भी आए , इससे बच्चों में आत्मविश्वास का विकास होगा,

📒 Notes Sanu sanwle

♦️ समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप♦️
समस्यात्मक बालक का शिक्षा का स्वरूप निम्न आधार पर होना चाहिए

1- माता-पिता का व्यवहार –/ माता-पिता को चाहिए कि वह बच्चे के साथ प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें ना कि कठोर व्यवहार!
उनकी मानसिक स्थिति एवं उनके भावों को समझें, उनकी परेशानियों को जाने तथा उनसे प्रेम पूर्वक वार्तालाप करें!
2- मूल प्रवृत्ति -/
समस्यात्मक बालक की मूल प्रति का दमन नहीं करना चाहिए उनकी इच्छाओं का दमन ना करें
3- मानसिक चिकित्सा -/
अगर कोई दोस या परेशानी का पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराएं अगर वह मानसिक चिकित्सा से सही होने वाला रोग होगा तो चिकित्सा से ठीक हो जाएगा
4- बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित तथा प्रोत्साहित और पुरस्कार दे-/
बच्चा अगर अच्छा काम करता है तो उसका प्रोत्साहन करना चाहिए उसे अच्छे कार्य के लिए अग्रसर करना चाहिए प्रेरित करना चाहिए जरूरत पड़ने पर उसे पुरस्कार भी देना चाहिए जिससे उसका प्रोत्साहन बढ़ता है
5- नैतिक शिक्षा -/
समस्यात्मक बालकों को नैतिक शिक्षा देनी चाहिए जिससे उनमें अच्छे आचरण आ सके अपनों से बड़ों का सम्मान कर कर सके अपने से छोटों के साथ स्नेह पूर्ण व्यवहार कर सके सभी की भावनाओं को समझने की क्षमता प्राप्त हो सके
6- संगति पर ध्यान -/
ऐसे बच्चों की संगति पर ध्यान देना चाहिए कि वह कैसे बच्चों के साथ उठना बैठना कर रहा है ! ऐसे बच्चों के लिए अच्छे बच्चों के साथ अच्छी संगति करना चाहिए ताकि उनमें अच्छी संगति से अच्छे गुण विकसित हो सके अगर वह गलत बच्चों के साथ संगति कर रहा है तो उसमें वैसे ही गुण आएंगे
संगति के बारे में कहा गया है कि..
‘ संगत का असर पड़ता है किसी के साथ रहने से रूप नहीं तो गुन आ ही जाते हैं ‘
चाहे वह अच्छे हो या बुरे इसीलिए बच्चों को अच्छी संगति करना चाहिए ताकि अच्छे गुण आ सके!
7- बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर-/
ऐसे बच्चों को मनोरंजन के लिए समय दिया जाना चाहिए जिससे कि बच्चे बोर ना हो
8- अध्यापक का व्यवहार –/अध्यापक आदर्श पूर्ण व्यवहार करें जो बच्चों के लिए अनुकरणीय हो अध्यापक जैसा व्यवहार आचरण करेंगे बच्चे भी उनसे सीखेंगे
तो अध्यापक को चाहिए कि वह अपना उचित और आदर्श पूर्ण व्यवहार रखें
9 बच्चे का जेब खर्च-/ ऐसे बच्चों को जेब खर्च पर्याप्त मात्रा में ही दिया जाना चाहिए जिससे कि वह पैसों का सही उपयोग कर सके अधिक जेब खर्च देने से वह उन पैसों का गलत काम में भी उपयोग कर सकते हैं
10- शिक्षण विधि-/
ऐसे बच्चों के लिए शिक्षण विधि मनोरंजक होना चाहिए जिससे कि बच्चे बोर ना हो अगर शिक्षण विधि रुचिकर होगी तो बच्चे जल्दी और बेहतर सीखेंगे
11- संतुलित कार्यक्रम हो-/ बच्चों का कार्यक्रम व पाठ्यक्रम संतुलित होना चाहिए जिससे कि बच्चों पर अनावश्यक बोझ ना हो
12- सहायक शिक्षण कार्यक्रम-/ bhraman Vidhi, खेलकूद, नाटक, संगीत के द्वारा समस्यात्मक व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है
13- आत्मविश्वास जागृत करना-/ ऐसे बच्चों में आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सोचें उन्हें उत्तरदायित्व पूरा करने के लिए कार्य दें जिससे कि वह उन कार्य में व्यस्त रहें और समस्या उत्पन्न ना करें!
🙏🏻 रितु योगी🙏🏻

💫 समस्यात्मक बालकों की शिक्षा का स्वरूप

ऐसे बालक जो किसी न किसी रूप से समस्या उत्पन्न करते हो चाहे वह सामाजिक रुप में हो या शिक्षा के क्षेत्र में हो, इसके साथ-साथ उनकी स्वाभाविक समस्या भी होती है जो उनके व्यवहार में दिखाई देती है यदि समय रहते इन समस्याओं का निराकरण नहीं किया गया तो बालक समस्यात्मक या अपराधी हो जाता है और उसे समायोजन करने में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है |

इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमें समस्यात्मक बालकों की शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए | अतः उनकी शिक्षा का स्वरूप निम्न प्रकार का होना चाहिए —-

🎯 माता-पिता प्रेम पूर्वक और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें
ऐसे बच्चों की समस्या को दूर करने के लिए उनके माता-पिता से मिलकर उनको बताना कि वे अपने बच्चों से प्रेम पूर्वक व सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें क्योंकि वह हर एक समय उनके साथ ही रहता है |
उन्हें अच्छी तरह से पता होता है कि उसका व्यवहार कैसा है क्या उसे पसंद है क्या नहीं है इसलिए माता-पिता की सहभागिता बहुत आवश्यक है |
क्योंकि बालक मानसिक रूप से समस्या ग्रस्त है उसका मानसिक स्तर कमजोर है इसलिए उसके लिए माता पिता और परिवार के वातावरण का स्वरूप अच्छा होना चाहिए |

🎯 समस्यात्मक बालकों की मूल प्रवृत्ति का दमन ना करें
यदि किसी के बेसिक नेचर या मूल प्रवृत्ति में हमेशा खलल या बाधा डालते हैं तो उससे उसका मानसिक स्तर कमजोर होने लगता है और इससे समस्या उत्पन्न होने लगती है जो कि मानसिक स्तर से उत्पन्न करती है |
अर्थात उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन होने से भी समस्या उत्पन्न होती है अत: उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन नहीं होना चाहिए| क्योंकि उससे समस्या उत्पन्न ही होगी ,कम नहीं होगी |
मूल प्रवृत्ति हमारी जन्मजात होती है उससे जो क्रियाएं होती है वे स्वाभाविक होती है यदि किसी की मूल प्रवृत्ति का दमन होता है तो वह चिड़चिड़ा ,झगड़ालू प्रवृत्ति, असामाजिक व्यवहार, गुस्सा करना या चीजों को इधर-उधर फेंकने लगता है जोकि दूसरों के लिए समस्या का कारण बनता है |

🎯 अगर कोई दोष या समस्या पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा करवाएं

समस्यात्मक बालक की समस्या या दोष का उचित एवं सही रूप से कारण पता चलने पर या उसकी पहचान हो जाने पर मानसिक रूप से चिकित्सक से उसका इलाज करवाया जा सकता है जिससे बालक की इस समस्या का निदान हो सके और उसका समय पर उपचार हो सके इसलिए उनका मानसिक स्तर पर इलाज करवाकर उनकी समस्या का निदान करेंगे ताकि वह सामान्य बच्चों की तरह हो सकें |

🎯 बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरणा , प्रोत्साहन और पुरस्कार दे

प्रेरणा, प्रोत्साहन या पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को प्रेरित करने के लिए एक पॉजिटिव संकेत है जिससे वह प्रेरित हो सकता है और उसमें सकारात्मक प्रवृत्ति का विकास होता है और सकारात्मक मनोबल भी बढ़ता है और वह प्रभावी रूप से काम करना या अपने कार्य में काफी अच्छे से प्रदर्शन करने की कोशिश करता है इसलिए शिक्षक को समय-समय पर आंशिक रूप से बच्चों को प्रोत्साहन देना चाहिए या या प्रेरणा देकर या पुरस्कार देकर बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए|
ठीक इसी प्रकार यदि समस्यात्मक को साधारण बच्चे की तरह व्यवहार नहीं किया गया या उन्हें प्रेरित नहीं किया गया तो उनके मन में नकारात्मकता बढ़ेगी और यदि ऐसा होगा तो बच्चे का स्वभाव समस्यात्मक प्रवृत्ति का रहेगा |

🎯 नैतिक शिक्षा देना

समाज में कोई भी व्यक्ति दो चीजों से पहचाना जाता है एक उसका ज्ञान ,और दूसरा उसका नैतिक व्यवहार|
व्यक्ति के सर्वांगीण विकास या संपूर्ण विकास के लिए इन दोनों चीजों का होना अतिआवश्यक है यदि ज्ञान से सफलता मिलती है तो नैतिक शिक्षा उस सफलता को पाने में मदद करती है अर्थात कहा जा सकता है कि नैतिक शिक्षा एवं ज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है|
बच्चे का नैतिक विकास उसके जन्म के पश्चात ही आरंभ हो जाता है और यह जीवन भर चलता रहता है यदि बच्चे की नैतिक शिक्षा ठीक नहीं है तो वह समस्यात्मक प्रवृत्ति का हो जाता है और बाल अपराधी भी बन सकता है |
यदि उसको उचित नैतिक शिक्षा नहीं दी जाए जो की अति आवश्यक है तो वह समस्यात्मक हो जाता है | क्योंकि यदि व्यक्ति को समाज में रहना है तो उसे नैतिक तो होना पड़ेगा, क्योंकि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है और नैतिकता ही उसको सही या गलत की पहचान करवाने में मदद करती है |

🎯 बच्चों की संगति पर विशेष ध्यान

यदि बच्चों की अच्छी संगति है तो वह अच्छा करेगा और संगति यदि अच्छी नहीं है तो अच्छा करने की सोच भी नहीं सकता |
क्योंकि संगति एक ऐसी चीज है जो नया करने किया नया सोचने में मदद करती है या उसकी प्रेरणा देती है यदि किसी बच्चे की संगति चोरी करने वाले बच्चे के साथ है तो यह आवश्यक है कि वह चोरी करना सीख लेगा और यदि उसकी संगति एक अच्छे व्यक्ति से है तो वह अपनी चोरी की प्रवृत्ति को भी सुधार सकता है इसलिए यह आवश्यक है कि बच्चों की संगति पर अधिक या विशेष ध्यान दिया जाए ताकि उनके समस्यात्मक होने के कम अवसर हो |

🎯 बच्चों को मनोरंजन के उचित अवसर दें

बच्चों को समय-समय पर मनोरंजन के अवसर दें ताकि वह अपनी शिक्षा को निरंतर रूप से प्रभावी रूप से ग्रहण कर सकें और इसके साथ साथ ही उनका ऐसा वातावरण हो जिससे उनके मन में रचनात्मकता सृजनात्मकता का विकास हो जिससे उनको अपनी प्रतिभा को दिखाने का या उसका प्रदर्शन करने का अवसर मिल सके|
और यदि कोई बालक समस्यात्मक है तो उसके लिए यह अति आवश्यक है कि उसको मनोरंजन करने का अवसर भी दिया जाना चाहिए जिससे कि वह अपनी अलग अलग सृजनात्मकता दिखा सके और उसका प्रदर्शन कर सकें |

🎯 अध्यापक आदर्श पूर्ण व्यवहार करें

अध्यापक को चाहिए कि वह बच्चों के सामने आदर्श व्यवहार करें जो कि बच्चों के लिए अनुकरणीय हो |
शिक्षक की प्रत्येक क्रिया प्रतिक्रिया एक आदर्श रूप में होनी चाहिए क्योंकि शिक्षक की प्रत्येक प्रतिक्रिया का प्रभाव बच्चे पर मानसिक रूप से पड़ता है क्योंकि वह उसका अनुकरण करता है इसलिए शिक्षक द्वारा ऐसा व्यवहार प्रदर्शित किया जाना चाहिए जो बच्चे के लिए अनुकरणीय हो और उनके लिए एक आदर्श हो |

🎯 बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें

बच्चे को संतुलित जेब खर्च देना चाहिए क्योंकि बच्चे जेब खर्च के पैसों का गलत इस्तेमाल भी कर सकते हैं जिसका दुष्प्रभाव माता पिता को समस्यात्मक बालक के रूप में झेलना पड़ सकता है उनके लिए समस्या उत्पन्न हो सकती है इसलिए आवश्यक है कि उनको उनकी आवश्यकता के अनुसार जेब खर्च दिया जाए आवश्यकता से अधिक ना दिया जाए |

🎯 शिक्षण विधि मनोरंजक हो ➖यदि हम किसी ज्ञान को अधिक रूचि या मनोरंजन के अनुसार करती हैं तो वह ज्ञान अधिक समय के लिए स्थाई हो जाता है इसलिए समस्यात्मक बालकों की शिक्षा में उनके कक्षा का वातावरण मनोरंजक होना चाहिए जो उनके दैनिक जीवन से जुड़ा इसलिए शिक्षक को ऐसी शिक्षण विधियां उपयोग करना चाहिए जो बच्चों के अनुसार प्रभावी हों |

🎯 पाठ्यक्रम संतुलित और अनावश्यक बोझ ना हो

समस्यात्मक बालकों का पाठ्यक्रम संतुलित या लचीला होना चाहिए न तो जरूरत से ज्यादा और न तो जरूरत से कम |
अर्थात संतुलित होना चाहिए यदि असंतुलित हुआ तो छात्रों को बोझ लगेगा |

🎯 सहायक शिक्षण कार्यक्रम भ्रमण ,खेलकूद, नाटक ,संगीत प्रतियोगिता के द्वारा भी समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है

समस्यात्मक बालकों को विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जैसे भ्रमण , खेलकूद, नाटक ,संगीत प्रतियोगिता तथा अन्य क्रियाकलापों आदि के द्वारा उनके इस व्यवहार को रोका जा सकता है क्योंकि यदि उनका मन अधिक क्रियाकलापों में लगेगा तो वह व्यस्त हो जाएंगे तथा अपने कार्य को मन लगाकर करेंगे और जिस से दूसरों के लिए समस्या उत्पन्न नहीं कर पाएंगे |

🎯 बच्चे में आत्मविश्वास जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व विभाग कार्य सौंपा जाए

यदि ऐसी बातें जो समस्यात्मक हैं उन बालकों में जिम्मेदारी किया कोई उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य को सौंपा जाए जिससे उनकी अंदर आत्मविश्वास की भावना विकसित हो सके और इस प्रकार उनके समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

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🏵️ समस्यात्मक बालक की शिक्षा का स्वरूप 🏵️

✳️ माता-पिता से प्रेम और सहानुभूति

सबसे पहले समस्यात्मक बालक के माता-पिता से मिलेंगे और उसके माता पिता और परिवार के सदस्यों द्वारा यह सुनिश्चित करेंगे कि वह उस बालक के साथ प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करें क्योंकि बच्चा अगर प्रेम और सहानुभूति पूर्ण वातावरण में रहता है तो उसका व्यवहार सकारात्मक होता है और वह यह महसूस करता है कि उससे भी कोई प्रेम करता है। क्योंकि बच्चा स्कूल से भी ज्यादा समय अपने परिवार में या घर में व्यतीत करता है।

✳️ उनकी मूल प्रवृत्ति का दमन ना करें ➖
सभी बच्चे एक दूसरे से भिन्न होते हैं और सभी बालकों की मूल प्रवृत्ति भिन्न होती है ।सभी बालकों का व्यवहार करने का तरीका कार्य करने का तरीका भी भिन्न होता है। अगर हम किसी बालक की मूल प्रवृत्ति को बदल देंगे तो हम उसको ही बदल देंगे इसलिए हमें समस्यात्मक बालकों की समस्याओं का निदान करना चाहिए ना कि उनकी मूल प्रवृत्तियों को ही बदल देना चाहिए। मूल प्रवृत्तियों को बदलने से बच्चा परेशानियों का अनुभव करेगा परेशान होगा और परेशान होने के बाद दूसरों के लिए भी समस्या उत्पन्न करेगा।

✳️अगर कोई दोष पता चले तो संभव हो तो मानसिक चिकित्सा कराये ➖
माता पिता को नियमित अपने बच्चों का अवलोकन करना चाहिए, अगर बच्चों में कोई असाधारण बात (अति सक्रियता पूछे गए प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाना, Reflex action मे problem) हो तो या कोई मानसिक दोष हो तो उन्हें उसका पता चल जाने के बाद दोनों ही स्थितियों में माता-पिता को या अभिभावकों को मनोचिकित्सकों को दिखाना चाहिए।

✳️ बच्चे को उचित कार्य हेतु प्रेरित करें प्रोत्साहित करें और पुरस्कार दें ➖
बच्चों को कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और कई बार प्रेरणा देने के लिए कार्यों पर पुरस्कार भी रखना चाहिए इससे उन्मे उत्साह आता है और वह उत्साहित होकर कार्य को करने करते।

✳️उन्हें नैतिक शिक्षा दें ➖

हमें बच्चों को विद्यालय में शिक्षा देने के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी देनी चाहिए उन्हें यह बताना चाहिए क्या सही है और क्या गलत।
उन्हें सही गलत के बीच का फर्क बताना चाहिए। कैसे सम्मान करना है बड़ों के साथ बोलना है बात करना है इन सब चीजों का ज्ञान देना चाहिए।

✳️बच्चों की संगति का विशेष ध्यान रखें ➖
हमें बच्चों की संगति का भी विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए क्योंकि अगर बच्चा सामान्य बालक है और उसकी संगति में कोई समस्यात्मक बालक है तो बच्चा उस संगति के कारण भी समस्या उत्पन्न करने लगता है और अपने साथी मित्रों के जैसा ही व्यवहार प्रकट करने लगता है।

✳️बच्चों को मनोरंजन का उचित अवसर दें➖
बच्चों को दिन-रात सिर्फ पढाई ही नहीं करानी चाहिए उन्हें उनके मनोरंजन के लिए भी समय प्रदान करें। कई बार बच्चे खेलकूद के द्वारा भी अपने अंदर की नकारात्मकता को निकाल देते हैं

✳️अध्यापक आदर्श पूर्वक व्यवहार करें जो बच्चे के लिए अनुकरणीय हो ➖
आध्यपक होने के नाते आपको चाहिए कि आप बच्चो के साथ आदर्श पूर्ण व्यवहार करे जिससे बच्चे भी आपको देखकर या आपकी कही गई बातों का अनुकरण कर अपने जीवन को यथोचित आदर्श बनाए।

✳️बच्चे को संतुलित जेब खर्च दें

बच्चे को संतुलित जेब खर्च देना चाहिए जिससे वह अपने खर्चों को नियंत्रित कर सके। अधिक जेब खर्च मिलने से अपने वह उन पैसों का गलत तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं।

✳️शिक्षण विधि मनोरंजक हो➖
समस्यात्मक बालकों के लिए शिक्षण विधि मनोरंजक होनी चाहिए । उदाहरण उनकी वास्तविक जिंदगी से भी मिले जुले होने चाहिए जिसमें वह अपने आपको relate कर सके और कनेक्ट कर सके। बच्चों की शिक्षा उनको वातावरण से जोड़ कर होनी चाहिए।

✳️संतुलित पाठ्यक्रम हो ,बच्चे के ऊपर अनावश्यक बोझ ना आए ➖बालकों की शिक्षा संतुलित होनी चाहिए उनकी उम्र एवं उनकी मानसिक क्षमता को देखते हुए उनका पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए व पाठ्यक्रम उनके ऊपर बोझ ना बन जाए इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

✳️सहायक शिक्षण कार्यक्रम, भ्रमण , खेलकूद , नाटक , संगीत के द्वारा भीम समस्यात्मक व्यवहार को रोका जा सकता है➖
बच्चों को सहायक शिक्षण के द्वारा ,खेलकूद ,नाटक ,संगीत के द्वारा भी हम उनकी सोच को परिवर्तन कर सकते हैं बच्चे खेलकूद संगीत के समय अपने आप को स्वतंत्र महसूस करते हैं और उनका मन इन कार्यों में बहुत लगता है इसलिए समय-समय पर बच्चों को यह सारी सुविधा मुहैया करानी चाहिए जिससे वह अपने अंदर की नकारात्मकता को इन के माध्यम से या इन में लीन होकर निकाल सके। एवं यह उनके स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।

✳️बच्चे में आत्मअनुशासन जागृत करने के लिए उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य सौंपे ➖
हमें बच्चों को कार्य सौंपने चाहिए जिसमें बच्चे अपने आपको व्यस्त रखे उस कार्य को यह सोच कर कि करें कि हमारा उत्तरदायित्व है इससे उनके अंदर आत्म अनुशासन की भावना जागृत होगी है और वह खाली नहीं रहेंगे तो दूसरे बच्चों के लिए या समाज के लिए किसी प्रकार की समस्या उत्पन्न नहीं करेगें, और उस कार्य में अपना 100% देने की कोशिश करेंगे।

धन्यवाद

द्वारा➖
वंदना शुक्ला

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