Pedagogy / शिक्षा शास्त्र कक्षा सारांश -2

Pedagogy class -2
Teaching methods/formulas
Essentials for best teaching method-
this is the name of all teaching methods

  1. Known to unknown:- whatever we know is the best way to understand an unknown things.
    {link the concepts from previous knowledge}
  2. from easy to complex:- if you know something , it is easy to understand but if you are unknown to something then it is complex for you.
    It depends on place time and situation. It vary person to person.
  3. macro to micro:- macro means large and micro means small.
    Micro is the conclusion/ perfection
    Macro is the deep study or huge knowledge
    Macro is necessary for micro teaching
    4.direct to indirect/ concrete to abstract:- [ pratyaksh – apratyaksh / moort – amoort]
    Link existing things to new things
  4. complete to fraction:- [poorn se ansh]
    When we know complete knowledge about something then only we go for a part
  5. uncertain to certain/ unpredictable to predictable:- in beginning some concepts are uncertain to us but when we got to know about the concept it will be certain to us.
  6. analysis to synthesis:- anylse the all aspects and then conclude it. It is very effective to understand something.
  7. specific to general:- specific things make a general statements . general is a rule.
  8. psychology to logic:- when you aware about the pattern/ psychology then you think is logically.
  9. experience to concept:- experience makes the concept

By – Chahita acharya


● शिक्षण :-

◆ “ शिक्षण एक उद्देश्य निर्देशित किया है”….. स्मिथ
◆ ” शिक्षण पुनर्बलन की आकस्मिकताओं का क्रम है ” ….. स्कीनर
• शिक्षण पशुवत प्रवृत्तियों का परिशोधन है ।
• शिक्षण शिक्षा में उद्देश्य प्राप्ति का साधन है ।
• शिक्षण बालक को संवेग नियंत्रण करना सिखाता है ।
• शिक्षण का मुख्य उद्देश्य बालक में आत्म विश्वास उत्पन्न करना है ।
• शिक्षण बालक में वातावरण के साथ समायोजन की योग्यता विकसित करता है ।

● शिक्षण के सिद्धान्त :-

1.क्रियाशीलता या करके सीखने के सिद्धान्त

  1. अभिप्रेरणा का सिद्धान्त
  2. रूचि का सिद्धान्त
  3. निश्चित उद्देश्य का सिद्धान्त
  4. नियोजन का सिद्धान्त
  5. व्यक्तिगत भिन्नताओं का सिद्धान्त
  6. चयन का सिद्धान्त
  7. लोक तांत्रिक सिद्धान्त
  8. आवृति का सिद्धान्त
  9. मनोरंजन का सिद्धान्त
  10. विभाजन का सिद्धान्त

● शिक्षण की प्रविधियाँ :-

  1. प्रश्नोत्तर प्रविधि
  2. वर्णन प्रविधि
  3. व्याख्या या भाषण प्रविधि
  4. स्पष्टीकरण प्रविधि
  5. निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि
  6. उदाहरण प्रविधि
  7. सामूहिक परिचर्चा प्रविधि
  8. प्रयोगार्थ प्रविधि
  9. वाद – विवाद प्रतिक्षि

● शिक्षण की विशेषताएँ :-

◆ शिक्षण किया के आधार पर शिक्षण तीन प्रकार के होते हैं । प्रस्तुतीकरण , प्रदर्शन और कार्य
◆ शिक्षण उद्देश्य के आधार पर शिक्षण तीन प्रकार के हैं । ज्ञनात्मक , भावात्मक , क्रियात्मक
◆ शिक्षण स्वरूप की दृष्टि से शिक्षण दो प्रकार के हैं । वर्णात्मक शिक्षण , उपचारात्मक शिक्षण
◆ शिक्षण को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख कारक हैं । आनुवांशिकता और वातावरण

प्रमुख शिक्षण सूत्र :-

  1. सरल से कठिन की ओर
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर
  4. पूर्ण से अंश की ओर
  5. अनिश्चित से निश्चित की ओर
  6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
  7. विशिष्ट से सामान्य की ओर
  8. संश्लेषण से विश्लेषण की ओर
  9. अनुभव से तर्क की ओर
  10. मूर्त से अमूर्त की ओर
  11. आगमन से निगमन की ओर
  12. प्रयोग से विवेक की ओर
  13. मनोवैज्ञानिकता से तर्कात्मक क्रम की ओर

🇧 🇾- ᴊᵃʸ ᴘʳᵃᵏᵃˢʰ ᴍᵃᵘʳʸᵃ


“शिक्षण सूत्र”➖इनका प्रयोग बच्चे को बेहतर रूप से सिखाने के लिए किया जाता है।

▪️ज्ञात से अज्ञात की ओर- जो चीजे हमे पहले से पता होती है या ज्ञात होती है उन ज्ञात चीजों की मदद से अज्ञात चीजों को या जो हम नहीं जानते है उन्हें जानना हमारे लिए बहुत आसान हो जाता है।

  • जब भी हम किसी विषय या वस्तु के बारे में बेहतर रूप से बताना चाहते है तो वह विषय या वस्तु उस व्यक्ति से जुड़ी हुई हो,उसकी उस विषय में रुचि हो, उसे कुछ पूर्व ज्ञान हो तब ही आप उसे आसान, प्रभावी और बेहतर और पूर्ण रूप से समझा पाएंगे।

▪️ सरल से जटिल की ओर➖
*दुनिया में किसी भी व्यक्ति स्थान, समय और परिस्थिति के अनुसार ही सरल और जटिल की परिभाषा अलग अलग प्रकार से होती है।
*जब हम चीजों के बारे में जानते है तो वह हमे काफी सरल लगने लगती है और जब हम इन्हीं सरल चीजो के द्वारा जटिल चीजों को जानने का प्रयास करते है तो फिर हमे यह चीजे भी काफी आसान लगने लगती है।
जैसे यदि हम गणित में छोटी छोटी गणना जैसे जोड़, गुणा, भाग,घटाव के बारे में जानते है तो हमे गणित की जटिल प्रक्रिया को समझना आसान हो जाता है।

▪️ स्थूल से सूक्ष्म की ओर➖

  • जब हम किसी चीज के बारे में बड़े रूप में, बेहतर रूप से , स्थूल रूप से जानते है तो उसे संक्षिप्त या सारांश के रूप में या छोटे रूप में बताना काफी आसान हो जाता है।
    *जैसे यदि हम किसी को बताए कि हमारी क्लासेस आज हुई थी,कल हुई थी, परसो हुई थी,आगे भी होगी…तो यह बड़े रूप से जानना हो जाएगा लेकिन इसी बात को हम बोले की हमारी क्लासेस रोज होती है तो यह छोटे रूप में या सूक्ष्म रूप में बताना हो जाता है ।सूक्ष्म रूप से बताने में चीजे आसानी से ओर बेहतर तरीके से समझ आ जाती हैं।
    *जैसे यदि हम बताए कि सभी अभाज्य संख्याएं एक से या खुद से ही विभाजित होती है तो यह सूक्ष्म रूप से बताना होगा लेकिन जब हम यह बोले कि 3 एक अभाजय है और वह 3,1,11,17,19 21….से विभाजित होती है तो यह स्थूल रूप से बताना हो जाता है।

▪️प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष/मूर्त सेअमूर्त➖
जो चीजे हमारे सामने है या प्रत्यक्ष रूप से या मूर्त रूप में होती है उन्हीं के द्वारा जब हम उन चीज़ों के बारे में बताते है जो हमारे सामने नहीं है,अमूर्त है या अप्रत्यक्ष है ,तब वहां बताना काफी आसान हो जाता है।

▪️पूर्ण से अंश की ओर➖
इसमें बच्चे को संपूर्ण ज्ञान से एक अंश की ओर के जय जाता है।
जब हम किसी विषय या वस्तु के बारे में समस्त जानकारी या ज्ञान को जानते है तब ही हम उस विषय के बारे में उसका बेहतर और आसान रूप से अंश बता पाएंगे।विषय के overview से किसी particular अंश को बेहतर तरीके से define किया जा सकता है।

▪️
अनिश्चित से निश्चित की ओर➖जो चीजे हमारे लिए निश्चित नहीं है या अनिश्चित है उन्हीं की द्वारा हम निश्चित चीजों के बारे में बेहतर जान पाते है।

  • जब हमे चीजे पता नहीं होती है या हमारे लिए अनिश्चित होती है लेकिन जब उसे बता दिया जाता है तब वह चीजे हमारे लिए निश्चित हो जाती है।ओर उन्हें समझना काफी आसान और बेहतर हो जाता है।

▪️ विश्लेषण से संश्लेषण की ओर➖किसी भी विषय या वस्तु के बारे में अलग अलग रूप से या टुकड़ों में या छोटे छोटे रूप में या उसका विखंडन करके बताया जाता है तो यह विश्लेषण कहलाता है ओर हम इसी विश्लेषण के द्वारा ही प्राप्त ज्ञान को जब एक सार कर एक रूप से निर्मित कर देते है तब यह संश्लेषण कहलाता है।

▪️ विशिष्ठ से सामान्य की ओर➖
जब किसी विशिष्ठ परिस्थिति में सीखा हुआ ज्ञान हमारे पास होता है तो उसे हम सामान्य रूप से बता पाते है।
जैसे यदि हमारे पास यह विशिष्ठ ज्ञान है कि हमारे यहां पर 1 घंटे के लिए बिजली आज गई थी,कल भी गई थी,परसो भी गई थी ,आगे दो दिन भी जाएगी ,या आगे भी जाती रहेगी यह सब बताने कि बजाय यह बता दिया जाए कि प्रतिदिन हमारे यहां पर बिजली एक घंटा जाती है तो यह सामान्य रूप में बताना हो जाता है। ज्ञान को विशिष्ठ से सामान्य रूप में बताने पर वह ज्ञान सरल ओर बेहतर तरीके से समझने योग्य हो जाता है।

▪️ मनो वैज्ञानिक से तार्किकता की ओर➖जब हमारे दिमाग में या हमारे मन में कोई बात या ज्ञान होता है और जब हम इसी ज्ञान पर तर्क लगाते है तो समझना काफी आसान हो जाता है।

  • जब हम अपने मन के ज्ञान का प्रयोग ,जिसे हमने देखा है उसी ज्ञान का प्रयोग ,जिसे हमने नहीं देखा है उस पर तर्क लगाने लगते है।

▪️ अनुभव से युक्ति की ओर➖
हमारे पास पूर्व से कुछ प्राप्त अनुभव होते है और इन्हीं अनुभव का प्रयोग हम युक्ति या concept को बेहतर तरीके से समझने में प्रयोग करने लगते है।
वैशाली मिश्रा..


शिक्षण सूत्र :- (1) ज्ञात से अज्ञात की ओर :- यह पूर्व ज्ञान पर आधारित है इसमें बच्चे को उस तरीके से सिखाया जाता है जो उनके पूर्व ज्ञान पर आधारित होता है.. (2) सरल से जटिल की ओर :- इसमें किसी विशेष व्यक्ति स्थान समय या समस्या के अनुसार बात की जाती है जो बच्चे के पूर्व ज्ञान पर आधारित होती है… (3) स्थूल से सूक्ष्म की ओर :- स्थूल (बडा़) सुक्ष्म (छोटा) इसमें उदाहरणों के अनुसार किसी विशेष समस्या को पेश किया जाता है और उसके अनुसार निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है जो कि बहुत ही सूक्ष्म होते हैं… (4) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर :- इसमें प्रत्यक्ष उदाहरण के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप को प्रस्तुत किया जाता है और उसके अनुसार परिणाम को प्राप्त किया जाता है… (5) पूर्ण से अश की ओर :- अर्थात किसी विशेष समस्या को पहचान कर उसके भाव को समझकर परिणाम तक पहुँचना ही पूर्ण से अश की ओर होता है… (6) अनिश्चित से निश्चित की ओर :- पहले किसी अनिश्चित वस्तु के बारे में जानना समझना और फिर निष्कर्ष निकालना ही अनिश्चित से निश्चित की ओर जाना है… (7) विश्लेषण से सशलेषण की ओर :- अनेक भागो में तोडकर समझना और एक निष्कर्ष निकालना…. (8) विशिष्ट से सामान्य की ओर :- कोई भी चीज़ एक विशेष स्थिति में सही मानी जाती है उस Situation के अनुसार सामान्यीकृत करना ही विशिष्ट से सामान्य की ओर जाना है.. (8) मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर :- किसी विशेष समस्या को मानसिक रूप से समझकर उसका तर्क लगाना ही मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर जाना है.. (10) अनुभूत से युक्ति युक्त :- अपने ज्ञान के अनुसार किसी Concept को विकसित करने की प्रक्रिया ही अनुभूति से युक्तियुक्त की ओर चलना है…….. 🌺🌺🌺

Rashmi savle🌸🌸🌸🌸


✍️27/08/20,✍️🌸 Topic – Teaching models/formulas 🌸( 1) ज्ञात से अज्ञात की ओर – जब हम किसी पॉइंट के बारे मेँ अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर किसी अज्ञात chiizo के बारे मेँ जानते है। 2- सरल से जटिल – किसी भी सरल यानी आसान बातो को जब हम समझ जाते है तो जटिल यानी मुश्किल chhizze/point/बातें आसान ही जाती है।जैसे:- छोटे – छोटे स्टेप्स (सरल ) से लक्ष्य (जटिल ) को पूरा करना।….. 3)स्थूल से सूक्ष्म :- किसी बड़ी baation की गहनता को जब हम समझ जाते है तो अंत मेँ उसका सार के रूप मे हम सूक्ष्म रूप से समझ सकते है। जैसे -किसी फ़िल्म का ट्रेलर देखकर उस मूवी का आईडिया लग जाना की मूवी कैसी hogi… 4) प्रतयक्ष से अप्रतयक्ष -इसमें चीजे मूर्त रूप से सामने रहती है ओर हम उसके बारे मे अमूर्त रूप से अध्ययन करते है। 5) पूर्ण से अंश की ओर – इसे हम स्थूल से सूक्ष्म रूप मे सम्बंधित करके समझ सकते है। 6)विश्लेषण से संष्लेशन – जब हम अननकेडेमी मे आये पढ़ने तो हमने बहुत सारे टीचर्स को देखा CDP के लिए विश्लेषण किया… फ़िर अंत मे हम 🥰दीपक सर के पास आये (संश्लेषन )….. 7)विशिष्ट से सामन्य – जैसे बिजली आज 5बजे गयी कल, परसो भी जाएगी यह विशिष्ट फ़िर हमने ये सामन्य रूल बना लिया बिजली रोज 5 बजे जाएगी अब। 8) मनोवैज्ञानिक से तार्किकता – किसी टॉपिक पर अपनी मन की विज्ञान / आत्मा से विचार करना फ़िर किसी अवधारणा तक अपनी राय बनाना। 9- अनुभव से युक्ति तक – अनुभव इंसान को उसे अपनेयुक्ति तक pauchane मे सहायक होता है। 10)- अनिश्चित से निश्चित की ओर – जब हम कोई कार्य करते है तो अनिश्चित होती है ( शुरुआत मे ) पर जब हम उसे कर लेते है तो निश्चिता आ जाती है। 🤟🌸 शिक्षन विधी ना सिर्फ हमारे किताब तक सिमित है बल्कि ये हमारे जीवन के हर छोटे बड़े पहलु मे शामिल है… ये हमें जीवन जीने को तरीके को / बच्चे को पढ़ाने (हम भावी शिक्षक को ) के तरीके को एक सुवयवस्थित रूप प्रदान करती है।🤟🌸💥…….

By -Akanksha kumari🤘🏻


शिक्षण विधियां :-

🌄एक सुव्यवस्थित शिक्षण अधिगम के लिए अपनाई जाने वाली अत्यंत आवश्यक एवं सुगम शिक्षण विधियां :-

  1. सरल से कठिन की ओर
  2. ज्ञात से अज्ञात की ओर
  3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर
  4. पूर्ण से अंश की ओर
  5. अनिश्चित से निश्चित की ओर
  6. प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर
  7. संश्लेषण से विश्लेषण की ओर
  8. मूर्त से अमूर्त की ओर
  9. विशिष्ट से सामान्य की ओर
  10. मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर
    11.अनुभूत से युक्तियुक्त की ओर

🌄इन शिक्षण – अधिगम विधियों का मुख्य उद्देश्य शिक्षार्थियों के अधिगम को बेहतर रूप में प्रेरित करना है,क्योंकि इसमें शिक्षार्थियों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है और उनकी सक्रिय रूप भागीदारी निहित होती है।

🏝️जैसे कि, हम इस दुनिया में अपने आस – पास जो कुछ भी प्रत्यक्ष या रोजाना की जिंदगी में देखते या अनुभव करते हैं,ये सारे ज्ञात चीजें हैं।इसी के आधार पर हम अपने अनुभवों द्वारा अज्ञात चीजों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर पाने में सक्षम हो पाते हैं।

🏝️जैसे जब हम किसी विषय वस्तु के बारे में किसी को बताना चाहते हैं,हम उस चीज़ को उस व्यक्ति को बताने से पहले उसके रुचि और सहज क्षमता ( पूर्व ज्ञान) के बारे में जान लेना चाहिए।क्योंकि,जब व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान से संबंधित करके किसी कार्य को करता या सीखता है तभी एक अच्छी मस्तिष्क कि विकास होती है और बेहतर शिक्षण – अधिगम हो पाती है फिर वह अपनी लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर पाते हैं।

🏝️शिक्षण इस बात पर भी निर्भर होती है कि हम कितना ज्ञान है और उसका उपयोग किस रूप में किया जा रहा है। जैसे कि बच्चे बहुत छोटे होते हैं तो उनमें तर्क करने या सोचने समझने की क्षमता बहुत कम होती है,धीरे – धीरे, जैसे – जैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं तो उनके तर्क – वितर्क और शाब्दिक क्षमता बढ़ने लगती है। इन विधियों में ठीक इसी प्रकार की प्रविधि होती है।

🏝️जैसे कि हम बच्चों को किसी कार्य शिक्षण में अनेक प्रकार की उदाहरणों को प्रस्तुत कर उनमें समस्याओं का समाधान करने की सहज प्रवृति विकसित करते हैं,तथा बच्चे सक्रिय होकर उसे यथावत रूप आत्मसात करने और उसपर विश्लेषण करने में सक्षम हो जाते हैं।इस प्रकार की विधियों द्वारा शिक्षण प्रक्रिया और भी मनोरंजक हो जाती हैं।

🌎इन शिक्षण सूत्रों के द्वारा( प्रयोग कर)हम शिक्षण – अधिगम को मनोरंजक,रूचिपूर्ण और सुव्यवस्थित बनाना चाहिए, तभी बच्चे सक्रिय रूप भागीदारी लेते हुए शिक्षण – अधिगम को रूप से सुव्यवस्थित रूप से आत्मसात् कर पाएंगे।

Neha Kumari


शिक्षण सूत्र (विधि)—-
किसी भी विषय को सीखने के लिए जिस विधि का प्रयोग किया जाता है उसे शिक्षण विधि कहते है!…
शिक्षण विधि के कई प्रकार है~~
१) ज्ञात से अज्ञात की ओर== बच्चे को उसके पूर्वज्ञान की सहायता से अज्ञात ज्ञान तक ले जाना , अर्थात् इसमें बच्चे के पास कुछ पूर्वज्ञान होता है जिससे रिलेट करके बच्चा अज्ञात ज्ञान को समझता है, पूर्वज्ञान के द्वारा अज्ञात को जानने में आसानी होती हैं।
२) सरल से जटिल की ओर== बच्चो को सरल चीजों से रिलेट करके जटिल पर ले जाना अर्थात् जो बच्चे को पता है वह उसके लिए सरल होता है एवं जो बच्चे को नहीं पता है वह उसके लिए जटिल होता है।जैसे समय और परिस्थिति के अनुसार जो काम एक बच्चे के लिए जटिल है वहीं कार्य दूसरे के लिए सरल होगा ।
३) स्थूल से सुष्म की ओर== बच्चो को किसी बात को बड़े पैमाने पर एक्सप्लेन करके समझाकर एक लाइन में उसके सारांश को बताना । किसी टॉपिक पर बड़ा एक्स्पलैनशन करके फिर सुश्म निष्कर्ष तक पहुंचना।
४) प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष ==
जो बच्चे के सामने है उससे रिलेट करके जो सामने नहीं है उसके बारे में बताना, अर्थात् जो सामने है वह प्रत्यक्ष ( मूर्त) है तथा जो सामने नहीं है वह अप्रत्यक्ष (अमूर्त) है।
५) पूर्ण से अंश की ओर==
बच्चे को किसी विषय पर चर्चा करने से पहले उसके पूर्ण रूप को बताएंगे फिर उसके भागो के बारे में चर्चा करेंगे ,जैसे – बच्चे को पहले पेड़ को बताएंगे फिर उसके भागो ( पत्ती, शाखा, जड़ इत्यादि) के बारे में बताएंगे।
६)अनिश्चित से निश्चित की ओर==
बच्चे को पहले किसी अनिश्चित वस्तु के बारे में बताना फिर एक निश्चित निष्कर्ष तक जाना ही अनिश्चित से निश्चित की ओर हैं।
७) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर==
किसी विषय को अनेक भागो में तोड़कर समझना और फिर उन्हें जोड़कर एक निष्कर्ष निकालना ही विश्लेषण से संश्लेषण की ओर हैं।
८) विशिष्ट से सामान्य की ओर==
किसी विषय पर अलग अलग विशिष्ट स्तिथि में बाते मानी जाती है उस स्तिथि के अनुसार विशिष्ट बातो का एक सामान्य रूप या निष्कर्ष निकालना ।
९) मनोविज्ञान से तार्किकता की ओर==
जब हमारे मन में कोई बात होती है उस पर मानसिक रूप से तर्क करके निष्कर्ष निकालना।
९०) अनुभव से युक्ति युक्त की ओर==
हमारे पूर्व अनिभवो का प्रयोग करके हम एक नया कॉन्सेप्ट बना सकते है जो हमें कॉन्सेप्ट को समझने मे मदद करता हैं।

अनामिका राठौर


ःशिक्षण सुत्र 🌸🌸🌸🌸
ःज्ञात से अज्ञात ़
जो बच्चे कोज्ञात होता है उसी के माध्यम से जो ज्ञात नहीं है बच्चे को बताते है इससे बच्चे आसानी से समझ जाते हैं जैसे बच्चे के मन में चित्र बन जाता है आसानी से रिलेट कर पाते है

सरल से जटिल 🌸🌸🌸
बच्चे पहले कोई भी कार्य सरल तरीके से करते हैं बाद में जटिल जैसे -पहले बच्चे क ल म सीखते है बाद में पुरा वाक्य कलम सीखते है
स्थूल से सूक्ष्म 🌸🌸🌸🌸
बड़ा से छोटा
किसी चीज को पहले हम बड़ा करके बताते है बाद में सक्षिपत मतलब छोटा करके बताते है जैसे -कोई पुछेगा क्लास कब कब हैं तो आज है कल हैं परसो हैं ये बड़ा हो गया और उसी को बोलेगे क्लास प्रतिदिन होती हैं ये छोटा

प्रत्यक्ष से प्रमाण 🌸🌸🌸
इसे मुत् से अमुत् भी बोलते है
कोई चीज सामने होती हैं तो बच्चे को समझाने में आसानी होती हैं अप्रत्यक्ष रूप से बताने सामने नहीं होता है
पूण् से अश की 🌸🌸🌸
इसमें बच्चे को सपूण् ज्ञान से अश की ओर जाते हैं जब हम किसी विषय के बारे में जानते हैं तो हम आसानी से बता सकते हैं

अनिशचित से निशिचित 🌸🌸🌸
जब हम किसी काय् को अनिशचित तरीके से जानते हैं उसी को फिर हम निशचित तरीके से करते हैं

विशलेषण से संश्लेषण 🌸🌸🌸🌸
विश्लेषण में किसी चीज को डिटेल में बताते है और सशलेषण में छोटा करके
ःविशलेषण मतलब तोड़ना
ःसशलेषण मतलब जोड़ना

विशिष्ट से सामान्य 🌸🌸🌸🌸
जब हम कोई काय् विशिष्ट तरीके से जानते है उसे सामान्य रुप में बताते है जैसे उसे Drawing बहुत अच्छी आती हैं

मनोविज्ञान से ताकिक्ता 🌸🌸🌸🌸

बच्चे की उतम विघि हैं ः

जब हम अपने मन से सोचते हैं उसपे तक्र करते है समझना काफी आसान हो जाता है

अनुभव से युक्ति 🌸🌸🌸🌸
हमारे पास कुछ अनुभव होते है इसी अनुभव के आधार पर हम
Concept लगाते है और बेहतर तरीके से सीखते हैं

Neha Roy

One thought on “Pedagogy / शिक्षा शास्त्र कक्षा सारांश -2

  1. thank you sir..🙏🙏

    nd my friend…🍫🍫.these notes are valuable assets for me and all other students as well as coming generations..

    shubhangi ☺🦋

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