Mental development in Infancy notes by India’s top learners

📚🔰 मानसिक विकास ( mental development)📚🔰

📖 शैशवास्था ➖

💫 सोरेन्सन ➖ जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रतिमाह और प्रति वर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती हैं।

🎲 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण➖
ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं

संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन

अपरिचित अपरिचित का भेज दो-तीन तीन वर्ष में होता है

इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है

किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है

🎲 सम्प्रत्यय निर्माण ➖
शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती

धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है

प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है।

🎲 स्मरण शक्ति का विकास ➖

जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है

प्रारंभ में बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है

5-6 वर्ष में बच्चा पूर्व सुनी कहानियां या पूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं

🎲 समस्या समाधान क्षमता का विकास ➖

सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है

बच्चे का सुक्ष्म विचार नहीं होता है

स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है।

📝🔰 Notes by ➖
✍️ Gudiya Chaudhary

🔥🐣 मानसिक विकास🐣🔥

🐣संवेदना व प्रत्यक्षीकरण।
🐣 संप्रत्यय निर्माण।
🐣 स्मरण शक्ति का विकास।
🐣 समस्या समाधान योग्यता का विकास।

🌹💥शैशवावस्था 💥🌹

📚सोरेन्सन के अनुसार :-

🔥जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन,प्रतिमाह और प्रतिवर्ष बढ़ता है, वैसे – वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है।

💥संवेदना व प्रत्यक्षीकरण :-

🌸 ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है।

🌸 संवेदना व प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन।

🌸२-३ वर्षों में परिचित तथा अपरिचित का भेद होने लगता है।

🌸 इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाते हैं।

🌸 किसी भी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है।

💥संप्रत्यय निर्माण :-

🌸 शैशवावस्था के आरंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है।

🌸 धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है।

🌸 प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है।

💥स्मरण शक्ति का विकास :-

🌸 जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुभव नहीं होता।

🌸प्राय: बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है।

🌸 5 से 6 वर्ष की उम्र में पूर्व में सुनी गई कहानी या पूर्व अनुभव को सुनाने में सामर्थ होते हैं।

💥समस्या समाधान की क्षमता का विकास :-

🌸 सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता बच्चों में ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है।

🌸 इस उम्र में बच्चों में सूक्ष्म में विचार नहीं होता।

🌸 इस उम्र में उनमें स्थूल विचारों में सक्षम होने लगता है।

🦚🦚समाप्त🦚🦚

🔥🔥Notes by :- Neha Kumari 😊

🙏🙏 धन्यवाद् 🙏🙏

🔥🔥💥💥🔥🔥

🌾🌷Mental development🌸💥
🌻मानसिक विकास🥀

🌷शैशवावस्था ~~

🌾🌸शैशवावस्था के संबंध में सोरेन्सन का कथन~~जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन ,प्रतिमास,और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे – वैसे उसकी मानसिक शक्तियों भी बढ़ती है।

🌺🥀संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ~~

🌻ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है इसका मतलब ये नहीं है कि आंख, कान ,नाक ,जीव, त्वचा, जन्म के समय बच्चे में नहीं आते है।
🌈संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन । मतलब संवेदना जो बाद में होता है वो इस समय में नहीं आ पाती है। जैसे ~दर्द होगा तो बच्चा रोएगा पर बता नहीं पाएगा कि किस जगह चोट लगा है।

👉🌈बच्चों में परिचित और अपरिचित का भेद 2 से 3 साल में आ जाता है ।
👉2 साल तक वस्तु स्थायित्व का गुण आ जाता है ।

👉बच्चे इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है।
👉 किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है।

🥀🌺सम्प्रत्यय निर्माण~~~

🔥⭐शैशवावस्था में प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है।
🌿🥀बच्चा इस समय में अपने कार्य को concept से नहीं कर पाते हैं।

⭐धीरे-धीरे बच्चों में विभेद करने की योग्यता विकसित होती है जैसे- बच्चा किसी दो वस्तु मैं अंतर करने की योग्यता विकसित होती है।

🌺🥀प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर समान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करता है। मतलब बच्चा छोटे-छोटे चीजों से, (object) से निष्कर्ष निकालने की कोशिश करता है।

💥🌷स्मरण शक्ति ~~

🥀🌺जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं है।

💥बच्चा इस समय खाली स्लेट की तरह होता हैं।

🌿⭐प्रारंभ में बच्चों के स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है मतलब बच्चों को जितना सा सिखाया जाता है वह उतना ही बोल पाते हैं।

🌿⭐5 से 6 वर्ष में पूर्व सुनी कहानी, पूर्व अनुमान को सुनाने में समर्थ होती है।

🌈समस्या समाधान की क्षमता का विकास ~~~

🌿💥🌺सामान्य बातों पर सोचने, चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता, ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है।

🌾🌸बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है।
🥀🌷बच्चे इस समय में स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है।

🙏🌻🌿🌾Notes by-SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸🌺🙏

📖 📖 मानसिक विकास 📖 📖

🌻🌿🌻 शैशवावस्था में बालकों का मानसिक विकास 🌻🌿🌻

📝 सोरेन्सन के अनुसार मानसिक विकास की परिभाषा ~
जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन, प्रतिमाह, प्रतिवर्ष बढ़ता है, वैसे- वैसे उसकी मानसिक शक्तियों की बढ़ती है।

🍂🍃 संवेदना / प्रत्यक्षीकरण~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण की शक्ति का विकास:-

👉🏻 शैशवावस्था में बालक की ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं। वह चीजों को या किसी भी अन्य पदार्थों को छूता तो है, मगर उससे जैसी अभिव्यक्ति एक सामान्य मनुष्य करता है, वैसी अभिव्यक्ति बालक नहीं कर पाता है। क्योंकि बालक में संवेदना का विकास पूर्ण रूप से नहीं होता है।

👉🏻 बालक चीजों के बारे में समझ नहीं पाता है। व उसे ज्ञान नहीं होता है, जिसके कारण वह संवेदनाएं और प्रत्यक्षीकरण में पीछे हो जाता है।

👉🏻 परिचित एवं अपरिचित का भेद 2 से 3 वर्ष में होता है~ बालक 2 वर्ष से पूर्व किसी भी प्रकार से ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग नहीं कर पाता है। वह चीजों को महसूस नहीं कर पाता है। लेकिन 2 से 3 वर्ष के बीच बालको में यह विकास होने लगता है। वह परिचित व्यक्तियों व अपरिचित व्यक्तियों दोनों में अंतर समझने लगता है।

👉🏻 इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है~ शैशवावस्था के अंत तक बालक यह जाने लगता है, कि वह कहां रह रहा है? वह अपने आसपास के स्थानों को पहचानने लगता है। और वह पूर्ण रूप से अपने वातावरण से परिचित हो जाता है। उसे यह ज्ञान देता है, कि मेरे आस-पास किस प्रकार की वस्तुएं है। इसी के चलते बालक में वस्तु स्थायित्व का गुण भी प्रदर्शित होने लगता है।

👉🏻 किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है~ बालक के सामने कई प्रकार की स्थितियां आती है, कई बार बालक स्थितियों को समझने में असमर्थ हो जाता है। वह समझ नहीं पाता है। लेकिन इस अवस्था में बालक हर प्रकार की स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने का प्रयास करता है।

🍃🍂 संप्रत्यय निर्माण~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में संप्रत्यय निर्माण की योग्यता का विकास:-

👉🏻 शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता नहीं होती है~ बालक ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से चीजों से अपना संबंध बनाता है। उन्हें महसूस करने की कोशिश करता है, लेकिन उसके बाद वह उन चीजों के बारे में अपना संप्रत्यय निर्माण नहीं कर पाता है। क्योंकि शैशवावस्था में बालक में यह योग्यता नहीं होती है, कि वह किसी भी प्रकार का संप्रत्यय निर्माण कर पाए।

👉🏻 विभेद करने की योग्यता का विकास ~ बालक धीरे-धीरे वस्तुओं में व्यक्तियों में व अन्य चीजों में अंतर स्पष्ट करने लगता है। उसमें यह योग्यता विकसित होती है, कि इस चीज में एवं दूसरी चीज में किस प्रकार का अंतर है। अर्थात बच्चे में विभेद की योग्यता विकसित होने लगती है। बच्चा अपने माता-पिता एवं परिवारिक व्यक्तियों को तो जानता है। लेकिन उनके अलावा भी अन्य व्यक्तियों में भी अंतर स्थापित कर लेता है।

👉🏻 प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव~ बच्चा कई प्रकार चीजों को देखता है। उन्हें समझने का प्रयास करता है। तत्पश्चात वह उनसे संबंधित अनुभव प्राप्त करता है। इस अनुभव के आधार पर वह एक सामान्य से निष्कर्ष निकालने का भी प्रयास करता है। बालक इसी प्रकार के कार्य को होते हुए देखता है। उससे वह अनुभव के माध्यम से एक अपना संप्रत्यय निर्माण करता है।

🍂🍃 स्मरण शक्ति का विकास~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में स्मरण शक्ति का विकास:-

👉🏻 जन्म के समय स्मरण शक्ति का संबंध~
जब बालक अपनी मां के गर्भ से जन्म लेता है, उस समय बच्चे में किसी भी प्रकार की स्मरण शक्ति नहीं होती है। क्योंकि उसे कोई अनुभव नहीं होता है। हम जानते हैं, कि बच्चा अनुभव से ही स्मरण शक्ति प्राप्त करता है। लेकिन जन्म से पहले बच्चे में किसी भी प्रकार के अनुभव ऐसे अनुभव नही होते है, जो कि उसके जन्म के पश्चात के वातावरण में होते हैं। अतः बच्चे में जन्म के समय स्मरण शक्ति नहीं पाई जाती हैं।

👉🏻 प्रारंभ में स्मरण शक्ति रटन्त होती है~
जन्म के पश्चात जब बालक अपने बाहरी वातावरण के संपर्क में आता है। तो उसकी स्मरण शक्ति इस प्रकार की होती है, कि जैसा उसे बोलने के लिए कहा जाएगा वह उसी प्रकार की बातों को बोलेगा। अर्थात कहने का अर्थ यह है, कि बालक में रखने जैसी प्रवृत्ति होती है। जिस प्रकार हम एक तोते को चीजें हटवा देते हैं। उसी प्रकार बालक भी चीजों को रख लेता है।

👉🏻 पूर्व अनुभवों को सुनने में समर्थता~
जब बालक 5 से 6 वर्ष की आयु में होता है, तब वह पूर्व में सुनी हुई कहानियों एवं बातों को अपने अनुभवों के द्वारा बताने का प्रयास करता है, वह पूर्व मैं हुए अनुभवों को सुनाने में समर्थ होता है। वह पुरानी बातों को याद करके हमें बताने का प्रयास करता है।
उदाहरण के लिए वह कभी किसी जगह पर घूमने गया हो, तो कुछ समय के पश्चात हम उससे पूछ है, कि हम कहीं गए थे? तो वह बता पाता है, कि हम इस जगह पर गए थे। इस तरह की स्मरण शक्ति का विकास बच्चे में होने लगता है।

🍃🍂 समस्या समाधान की योग्यता का विकास~ शैशवावस्था के अंतर्गत बालक में समस्या समाधान कौशल की योग्यता का विकास:-

👉🏻 सोचने व तर्क करने की क्षमता का विकास~
बच्चे में ढाई से 3 वर्ष के बीच सामान्य बातों में भी चिंतन करने का विकास होने लगता है। वह हर छोटी-छोटी चीजों में सोचने लगता है। उन पर विचार करने का प्रयास करता है, और अपना तर्क भी लगाता है। कई बार बालक हम से कई प्रकार के प्रश्नों को पूछता है। ऐसा क्यों हुआ? ऐसा किस लिए हुआ? कब होगा? कैसे होगा? इस तरह के प्रश्न बालक करने लगता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं, कि बालक में समस्या समाधान की योग्यता विकसित होने लगी है।

👉🏻 सूक्ष्मता से विचार नहीं कर पाता है~
बालक में से शैशवावस्था के चलते चीजों के बारे में जानने का प्रयास तो करता है, लेकिन उन चीजों मैं बस सूक्ष्मता से चिंता नहीं कर पाता है। केवल वह उत्सुक रहता है, लेकिन उनके बारे में जनता से चिंतन नहीं कर पाता है। वह केवल उसके बाहरी चीजों को ही देख पाता है।

👉🏻 बालक इस अवस्था में चीजों के बारे में अपने विचारों को कुछ इस प्रकार से विकसित करता है~
● स्थूल से सूक्ष्म की ओर,
● ज्ञात से अज्ञात की ओर,
● मूर्त से अमूर्त की ओर,
इत्यादि सभी के आधार पर बालक शैशवावस्था में अपनी समस्या समाधान की योग्यता को विकसित करता है। और धीरे-धीरे इसका विकास बड़ता जाता है।

📚 📚 📘 समाप्त 📘 📚 📚

✍🏻 PRIYANKA AHIRWAR ✍🏻

🌻🌷🌿🙏🏻🌺🌻🌷🌿🙏🏻🌺🌻🌷🌿🙏🏻🌺🌻🌷🌿🙏🏻
————————————————————————————

🔆 मानसिक विकास

➡️ सोरेन्स के अनुसार:-
जैसे-जैसे शिशु प्रति माह प्रति दिन और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है।

⚜️ संवेदना व प्रत्यक्षीकरण—
ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है कह सकते हैं कि बच्चे में आंख, कान, जीभ, त्वचा जन्म के समय बच्चे में नहीं आते हैं।

⚜️ संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन— इस समय बच्चे को यह नहीं पता है कि जब उन्हें चोट लगती है तो कहां चोट लगी है और कैसे चोट लगी चीज का उन्हें ज्ञान नहीं होता है।

⚜️ परिचित परिचित का भेद 2- 3 वर्ष में होता है
ः2 साल तक के बच्चे में वस्तु स्थायित्व का गुन आ जाता है।
बच्चे इस अवस्था तक अपने पराए में अंतर करने लगते हैं अगर बच्चे जो उन्हें पसंद नहीं होता है तो उन्हें देखकर वह छिप जाते हैं नहीं तो अपना चेहरा का हाव भाव से उनको दिखाते हैं।
ः अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है।
ः किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करते हैं।

⚜️ संप्रत्यय निर्माण—
शैशवास्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है।
इस समय कार्य को करने में सक्षम नहीं होते हैं।
ः धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है जैसे बच्चा दो चीजों में अंतर करना सीख जाता है उसे क्या चाहिए नहीं चाहिए इसकी समझ में आ जाती है।

ः प्रत्याक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करता है बच्चे किसी चीज को देखकर निष्कर्ष निकालते हैं।

⚜️ स्मरण शक्ति का विकास —
ः जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान ही नहीं होता है। बच्चे मे इस उनके स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है।
ः प्रारंभ में बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है जो बच्चे को दे दो वह उसी चीज को रटते रहते हैं जो उसे चाहिए उसी चीज को बोलते रहेंगे जब तक नहीं मिलता है उसी चीज को बोलते रहते हैं।
ः 5 से 6 वर्ष में पूर्व सुनी कहानी पूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं जैसे बच्चे को कोई कहानी सुना दिया जाए उसी चीज को सोचकर उस चीज को आगे कहानी बनाकर या अनुभव करके उस चीज को बताने में समर्थ होते हैं।

⚜️ समस्या समाधान की क्षमता का विकास —
ः सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता 2 से ढाई साल से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है। बच्चे जब 2 से ढाई साल या 3 साल के होते हैं तब वह सोचते हैं उन्हें क्या चाहिए नहीं चाहिए वह कुछ सोच कर ही चिंतन करते हैं वह बदमाशी भी करते हैं या किसी चीज को छुपा देते हैं तर्क लगाते हैं या उन्हें पढ़ने का जब मन नहीं रहता है तो वह कुछ ना कुछ बहाना करते हैं।
ः। बच्चों का सूक्ष्म विचार नही होता है।
ः स्थूल विचार में सक्षम होने लगते हैं। बड़े विचार में वह धीरे-धीरे सक्षम होने लगते हैं और अपने कार्य को आसानी से करने लगते हैं।

Notes By:-Neha Roy 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🔆 बच्चे का मानसिक विकास 🔆

🎯 शैशवावस्था में मानसिक विकास ➖

सारेन्सन के अनुसार ➖

जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रति माह और प्रतिवर्ष पड़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है |

अर्थात जब बच्चा जन्म लेता है तो उसकी मानसिक शक्तियां कमजोर होती है वह प्रतिदिन बढ़ती जाती है उम्र के साथ आती है इस अवस्थाओं को 4 अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है ➖

🔅 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ➖

1) इस समय में बच्चे की ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हुई धीरे-धीरे विकसित होने लगती है |

2) संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन होता है क्योंकि वह किसी बात को समझने में असमर्थ रहना है अनुभव तो करता है लेकिन उसे प्रकट नहीं कर पाता है |

3) परिचित अपरिचित का भेद
2-3 वर्ष में समझने लगता है बच्चे अपने परिवार की व्यक्तियों एवं आस-पड़ोस के करीबियों, रहने को समझने लगता है |
4) इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है |

5) वर्ष की उम्र तक किसी भी स्थिति में अंदर के अर्थ समझने की कोशिश करने लगता है |

6) अर्थात इस अवस्था में बच्चे की संवेदनाएं पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाती है |

🎯 संप्रत्यय निर्माण ➖

1) शैशावस्था के प्रारंभ में संप्रत्यय निर्माण की योग्यता विकसित नहीं हो पाती है |

2) धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है |

जन्म के समय बच्चे के पास कोई अर्थ नहीं होता है लेकिन धीरे-धीरे सीखता, और अपनी योग्यता विकसित करता है |

3) प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव है उसके आधार पर सामान निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है |

🎯 स्मरण शक्ति का विकास➖

जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि जन्म के समय बच्चे कोरी स्लेट की तरह होता है धीरे-धीरे अनुकरण करके सीखता है |

2) प्रारंभ में बच्चे के स्मरण शक्ति शक्ति तोते की तरह होती है जो सिखाया जाता है वही सीखता है |

3) लगभग 5 से 6 वर्ष के बीच बच्चा पूर्व में सुनी हुई कहानी अपूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं |

🎯 हमारा समस्या समाधान की योग्यता का विकास ➖

1) बच्चा जन्म के समय कोई भी समस्या समाधान नहीं करता है समस्या को समस्या के समाधान में सक्षम नहीं हो पाता है लेकिन वह 3 से 4 वर्ष की उम्र में अपना मस्तिष्क लगाने लगता है |

2) सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से तीन वर्ष के बीच शुरू होने लगती है वह तथ्यात्मक चिंतन नहीं कर पाता है |

3) बच्चे का सूक्ष्म में विचार नहीं हो पाता है वह विभेद नहीं करता है वह महीनता के साथ सोच नहीं सकता है वह सूक्ष्म विचार करने में सक्षम नहीं हो पाता है |

4) स्थूल विचारों में तत्कालिक विचारों में सक्षम होने लगता है अर्थात हम कह सकते हैं कि बच्चा इस अवस्था में संवेदी गाम अवस्था में होता है और इस अवस्था में वस्तु स्थायित्व का प्रदर्शन होने लगता है |

𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚

🌻🌻🌼🌼🍀🍀🌺🌺🌸🌸🌼🌼🌻🌻

🌷 मानसिक विकास 🌷

शैशवावस्था में बच्चे का मानसिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है :-

*🌺 ” सॉरेन्सन ” के अनुसार :-*

जैसे – जैसे शिशु प्रतिदिन ,प्रतिमास , प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे – वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती जाती हैं।

*1.🌲 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण :-*

👉इस समय ज्ञानेंद्रियां पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती है।

अर्थात इस उम्र में बच्चे अपनी ज्ञानेन्द्रियों का पूर्ण रूप से अनुभव (अहसास) नहीं समझ पाते हैं।

👉संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन होता है
इस समय बच्चे अपनी संवेदनाओं को प्रत्यक्ष (बाहरी) रूप से नहीं बता पाते हैं।

👉परिचित और अपरिचित का भेद 2-3 वर्ष में होता है।
अपने पराये का भेद समझने लगता है।

👉इस अवस्था के अंत तक वातावरण से परिचित हो जाता है । अर्थात बच्चे अपने आसपास के वातावरण, लोगों से परिचित हो जाते, पहचानने लगते हैं।

👉किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है।अर्थात बच्चा हर स्थिती को जानने , समझने और मतलब जानने की कोशिश करता है।

*2. 🌲 संप्रत्यय निर्माण :-*

👉शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है ।

👉धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती है।

👉प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करता है।

*3. 🌲 स्मरण शक्ति का विकास :-*

👉जन्म के समय स्मरणशक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है।
इस समय बच्चा स्मरणशक्ति (याद) का अनुमान नहीं लगा पाता है।

👉प्रारंभ में बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह (रटन्त विद्या) होती है ।
अर्थात इस समय जब बच्चे को जो भी याद करवा देते , सिखा देते हैं बच्चा बिल्कुल उसी तरह याद करलेता है।

👉5 – 6 वर्ष में बच्चे पूर्व में सुनी हुयी कहानियों , पूर्व अनुभवों को सुनाने में समर्थ होते हैं।
अर्थात इस समय बच्चा जो पहले सुनता है, देखता है, करता है उसे याद हो जाता है तो अब वह उसे अपने शब्दों में दूसरों को सुनाने लगता है।

*4. ,🌲 समस्या समाधान की क्षमता का विकास :-*

👉सामान्य बातों पर सोचने , चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता “ढाई से 3” साल के बीच शुरू होने लगती है।

👉बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है।
अर्थात इस उम्र बच्चा बहुत ज्यादा गहराई से नहीं सोच पाता है।

👉स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है।
बताया गया है कि सूक्ष्म रूप से नहीं सोच पाता अर्थात वह अपनी छोटी उम्र के अनुसार अपनी सोच विचार के आधार पर छोटे , साधारण रूप से विचार करने में सक्षम हो जाता है।

🌺✒️ Notes by- जूही श्रीवास्तव ✒️🌺

🌹मानसिक विकास🌹

शैशवावस्था में मानसिक विकास

🌹सोरेनसन के अनुसार🌹👈
-जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रति माह और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती है

अर्थात जब बच्चा जन्म लेता है तो उसकी मानसिक शक्तियां कमजोर होती है वह प्रतिदिन बढ़ती है उम्र के साथ आती इस अवस्था को 4 अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है

(1) संवेदना और प्रत्यक्षीकरण
(2) संप्रत्यय निर्माण
(3) स्मरण शक्ति का विकास
(4) समस्या समाधान की क्षमता का विकास

🌹(1)संवेदना और प्रत्यक्षीकरण

🌸इस समय में बच्चे ज्ञानेंद्रियों विकसित नहीं होती l —अर्थात इस उम्र में बच्चे अपने ज्ञानेंद्रियों का पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर पाते l

🌸 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन l—अर्थात इस समय बच्चे अपनी संवेदना ओं को प्रत्यक्ष रूप से नहीं बता पाते l

🌸परिचित /अपरिचित का भेद दो-तीन वर्ष में होता है l— इस समय बच्चे अपने परिवार के सभी सदस्यों को पहचानने लगते हैं और अनजान लोगों से घबरा जाते हैं l

🌸 इस अवस्था के अंत तक वातावरण में परिचित हो जाना l— इस अवस्था के अंत तक बच्चा वातावरण से परिचित हो जाता है जैसे आदर्श का पालन करना माता-पिता के कार्यों में सहायता करना

🌸 किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करना l — अर्थात छोटे-बड़े में भेद करना चित्रों के बारे में बात करना/ पूछना /अक्षर लिखना /वस्तुओं को कर्म में रखना सीखने लगते हैं

(2)🌹संप्रदाय निर्माण

🌸शैशवावस्था के प्रारंभ से यह योग्यता विकसित नहीं होती l— इस समय बालक कार्य करने में सक्षम नहीं होते l

🌸 धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती हैl— अर्थात छोड़ के बरे में भेद करना सीख लेते हैंl

🌸 प्रत्याक्षीकरण संबंधी अनुभव l— अर्थात बालक बहुत प्रकार के चीजों को देखता है उसे समझने का प्रयास करता है जिसके बाद बालक कुछ अनुभव प्राप्त करता है l

🌹(3) स्मरण शक्ति का विकास

🌸 जन्म के समय स्मरण शक्ति का संबंध l—
अर्थात बालक जब जन्म लेता है उस समय बालक में किसी भी प्रकार का स्मरण शक्ति नहीं होती है lबालक कोरी स्लेट की तरह होते हैं जो आगे चलकर धीरे-धीरे अपने वातावरण से अनुकरण सीखते हैं l

🌸 बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है l— अर्थात बालक को जो कुछ सिखाया जाता है वही बोलते हैं l
🌸 5 से 6 वर्ष पूर्व मैं सुनी हुई कहानियों, पूर्व अनुभवों को सुनाने में समर्थ होते हैं l— बालक कुछ समय पहले सुनी हुई कहानियों को दूसरों के सामने सुनाने में समर्थ होते हैं l

(4)🌹 समस्या समाधान की क्षमता का विकास

🌸 सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से 3 साल के बीच शुरू होने लगती है l— शिशु वाक्यों की रचना वस्तुओं का नाम बताना, अपनी आवश्यकताओं को बताना ,वस्तुओं यथा स्थान पर रखना सीख जाते हैं l

🌸 बच्चे बच्चे का सोच विचार नहीं होते l— बालक के इस उम्र मैं सही ढंग से सोचने की क्षमता विकसित नहीं होती l

🌸 स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है l— अर्थात बालक में क्षेत्र समिति तथा सीखने की गति तीव्र होती है
💐 ✍️NOTE BY —SANGITA BHARTI✍💐

🤔 मानसिक विकास🤔
शैशवावस्था

सोरेनसन 👉अनुसार जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रति माह और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी बढ़ती जाती हैं

🤔संवेदना और प्रत्यक्षीकरण🤔

1 ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं:- शैशवावस्था में हमारी ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती हैं जिससे हम किसी प्रकार का अनुभव कर सकते हैं

2 संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण में पिछड़ापन : शैशवावस्था में हमारी संवेदनाएं पिछड़ी हुई होती हैं हम किसी कार्य को करते हैं और तुरंत ही उसे भूल जाते हैं

3 परिचित अपरिचित का भेद 2 से 3 वर्ष में होता है:- शैशवावस्था में बच्चे जिस से परिचित होते हैं उन्हीं के पास जाते हैं तथा जिन से परिचित नहीं होते हैं उसके पास में जाने पर वह रोज रोने लगते हैं 3 से 4 वर्षों में बच्चे व्यक्तियों को पहचाने लगते हैं जो हमारे आसपास होते हैं उन्हें बच्चे जानने लगते हैं

4 शैशवावस्था की अवस्था के अंत तक बच्चे वातावरण से परिचित हो। :- बच्चे अपने परिवेश को समझने लगते हैं उस पर समायोजन करना सीख लेते हैं

5 किसी स्थिति को अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है

6 संवेदना पूर्ण रूप से विकसित नहीं होती हैं:-

🤔संप्रत्यय निर्माण🤔
शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है:- शैशवावस्था के प्रारंभ में संप्रत्यय निर्माण की योग्यता विकसित नहीं होती है

धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होती जाती है

प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर इस सफलता निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है

🤔 स्मरण शक्ति का विकास🤔

जन्म के समय में शक्ति का कोई अनुमान नहीं होता है

बच्चे की स्मरण शक्ति तोते की तरह होती है

5 से 6 वर्ष में पूर्व सुनी कहानी पूर्व अनुभव को सुनाने में समर्थ होते हैं बच्चे तो दुनिया में कहानियों को सुना सकते हैं एवं नई कहानी के साथ उसका संबंध है जोड़ सकते हैं
🤔 समस्या समाधान की क्षमता का विकास🤔

सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करना:- सामान्य की बातों को लेकर बच्चे सोचने लगते हैं उसमें तर्क उतारकर करने लगते हैं उसके बारे में चिंतन करने लगते हैं क्या क्यों कैसे क्वेश्चन आने लगते हैं बच्चों के मन में

बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है बच्चा छोटी-छोटी बातों पर विचार नहीं कर सकता है

स्थूल विचार में सक्षम होने लगता है बच्चा बड़ी बातों पर अपनी समाज एवं विचार देने के लिए सक्षम होने लगता है

🙏🙏🙏🙏sapna sahu 🙏🙏🙏🙏

❇✴ मानसिक विकास ❇✴
शैशवावस्था में बालको का मानसिक विकास ➡
सोरेन्सन के अनुसार :- जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन प्रतिमाह और प्रतिवर्ष बढ़ता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियां भी पड़ती है |
🔅 संवेदना और प्रत्यक्षीकरण ➡ बच्चे की ज्ञानेंद्रियां विकसित नहीं होती है शारीरिक अवस्था में इस समय में संवेदना एवं प्रत्यक्षीकरण मे पिछडा़पन होता है | इस उम्र में संवेदना नहीं होती है |
दसवीं माह से 1 वर्ष तक वह बोलने का अनुकरण करता है |
दूसरे वर्ष से शब्द व वाक्य बोलने लगता है |
परिचित अपरिचित का भेद 2 से 3 वर्ष में होता है |
किसी स्थिति के अर्थ को ग्रहण करने की कोशिश करता है|
🔅 संप्रत्यय निर्माण ➡
शैशवावस्था के प्रारंभ में यह योग्यता विकसित नहीं होती है जब बच्चा जन्म के समय शिशु का पूर्णतया अविकसित होता है और वह अपने वातावरण को नहीं जानता है शैशवावस्था में शिशुओ की मानसिक योग्यता का विकास अत्यंत तीव्र गति से होता है |
बच्चों में धीरे-धीरे विभेद करने की योग्यता विकसित होने लगती है तीसरी वर्ष में पूछे जाने पर अपना नाम बताने लगता है छोटी छोटी कविता या कहानी सुनाता है और अपने शरीर के अंग पहचानने लगता है चौथे वर्ष तक वह चार पांच तक गिनती गिनना अक्षर लिखना जानने लगता है और पांचवे वर्ष मे शिशु हल्की और भारी वस्तुओं में अंतर करने लगता है व विभिन्न रंग पहचानने लगता है वह अपना नाम लिखने लगता है | भार आयतन में अन्तर नही कर पाता हैं |
प्रत्यक्षीकरण संबंधी अनुभव के आधार पर सामान्य निष्कर्ष निकालने का प्रदान करता है |
🔅स्मरणशक्ति का विकास ➡ जन्म के समय स्मरण शक्ति का कोई अनुमान नहीं है जो बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होता है तो कुछ क्रियाएं करने लगता है बच्चा जन्म से 3 माह तक शिशु केवल अपने हाथ पैर हिलाता है भूख लगने पर रोना हिचकी लेना दूध पीना कष्ट का अनुभव करना चौकना चमकदार चीजों को देखकर आकर्षित होना या कभी-कभी हंसना आदि क्रियाएं करता है |
प्रारंभ में बच्चे की स्मरणशक्ति तोते की तरह होती है |
पांच से छह वर्ष में बच्चा इस समय में पूर्व में सुनी कहानी पूर्व अनुभव को सुनाने मे समर्थ होते हैं |
🔅समस्या समाधान की क्षमता का विकास ➡ सामान्य बातों पर सोचने चिंतन करने या तर्क करने की क्षमता ढाई से तीन साल के बीच शुरू होने लगती है |
बच्चे का सूक्ष्म विचार नहीं होता है
धीरे-धीरे स्थूल विचार में सक्षम होने लगते है |
इस प्रकार शैशवावस्था में मानसिक विकास शीघ्रता से होता है इस अवस्था में बच्चे कल्पना जगत में रहते हैं वे अधिकतर अनुभव निरीक्षण व अनुभव द्वारा सीखते हैं |
Notes by – Ranjana Sen

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *