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💥💥 *मधुबनी पेंटिंग*

✨बिहार में मधुबनी नामक जिला है।

✨ त्योहारों और खुशियों के मौकों पर वहां की घर की दीवारों पर वह आंगन में चित्र बनाए जाते हैं।

✨यह चित्र पिसे हुए चावल के घोल के रंग में मिलाकर बनाए जाते हैं।

✨ इन रंगों को बनाने के लिए नील हल्दी फूल पेड़ों के रंग आदि का इस्तेमाल किया जाता है।

✨चित्रों में इंसान जानवर पेड़ फूल पक्षी मछलियां आदि जीव जंतु साथ में बनाए जाते हैं।

💥💥 *बेलनिका का गांव*

✨जुलाई के महीने में प्याज उगाने का काम शुरू होता है।

✨खूंटी की मदद से खेत की मिट्टी को नरम किया जाता है।

✨कर्नाटक में हल को “कुरिगे” को कहा जाता है।

✨ समय से प्याज ना खो दी जाए तो वह जमीन के अंदर ही सड़ जाती हैं।

✨ कर्नाटका में हंसिआ को “इलिगे” कहा जाता है।

✨जमीन से खरपतवार निकालना जरूरी होता है नहीं तो सारा पानी खाद वही ले लेगी और पैदावार कम होगी।

💫 उत्तर प्रदेश में कचनार के फूलों की सब्जी बनाई जाती है।

💫 केरल मैं केले के फूल की सब्जी बनती है।

💫 महाराष्ट्र में सहजन के फूल की सब्जी प्रसिद्ध है।

💫 गुदावरी, जीनिया से रंग बनाए जाते हैं व इनसे कपड़े भी रंगे जाते हैं।

💫 उत्तर प्रदेश का कन्नौज जिला इत्र के लिए प्रसिद्ध है।

💫 यहां पर गुलाब जल केवड़ा वह गुलाब के इत्र बनाया जाता है।

💫 मिट्टी में गोबर मिलाने से मिट्टी में कीड़ा नहीं लगता है।

💫 लकड़ी को दीमक से बचाने हेतु नीम व कीकर की लकड़ियां फ्रेम पर बिछा दी जाती हैं।

💫 सोहना गांव हरियाणा में है।

💫 सोहना से दिल्ली जाने में रास्ते में गुड़गांव मिलता है।

💫 पानी को साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है उबालना।

💫 *कलचिडी/ इंडियन रोबिन* इसके घोसले में पौधे के नाजुक जड़े, टहनी, रूई, ऊन, बाल बिछा होता है।
जो छोटे-छोटे कीड़े खाते हैं इनकी जांच अंदर से लाल होती है।

💫 कौवे के घोसले में लोहे के तार व लकड़ी जैसी शाखाएं भी होती है।

💫 *शक्कर खोरा* किसी छोटे पेड़ या झाड़ी की लटकती डाली पर अपना लटकता घोंसला बनाती है इनका घोंसला बाल बारीक घास सूखे पत्ते रुई पेड़ की छाल के टुकड़े कपड़ों के चिथड़े मकड़ी के जालों से बना होता है।

💫 नर वीवर पक्षी अपने अपने घोसले बनाते हैं मादा वीवर उन सभी दोस्तों को देखते हैं उन में से उनको जो सबसे अच्छा लगता है उसमें ही अंडे देती हैं।

💫पक्षी केवल अंडे देने के लिए घोंसला बनाते हैं जब अंडों से बच्चे निकल आते हैं तो वह घोंसला छोड़ कर उड़ जाते हैं।

💫 घोंसला छोड़कर पक्षी अलग-अलग जगह चले जाते हैं जैसे पानी में जमीन पर पेड़ों आदि पर।

💫 गाय के आगे के दांत पत्तों को काटने के लिए छोटे होते हैं वही घास जलाने के लिए पीछे के दांत चपटे और बड़े होते हैं।

💫 बिल्ली के दांत नुकीले होते हैं जो मांस को फाड़ने व काटने के लिए काम आते हैं।

💫 सांप के दांत भी नुकीले होते हैं पर वह अपने शिकार को चबाकर नहीं खाता, पूरा निकल जाता है।

💫गिलहरी के दांत हमेशा बढ़ते रहते हैं दांतो से कुतरने व काटने के कारण इनका दांत गिर जाता है।

💫 *दर्जिन चिड़िया* अपने नुकीले चोंच से पत्तों को सी लेती है और उसके बीच के बने थैली को अंडे देने हेतु तैयार करती है।

💫 कोयल अपना घोंसला नहीं बनाती वह कव्वे के घोसले में अपना अंडा देती है वह अपने अंडे के साथ कोयल के अंडे को भी सेता है।

💫कौवा पेड़ की ऊंची डाल पर घोंसला बनाता है।

💫 फाख्ता पक्षी कैक्टस के कांटे के बीच या मेहंदी के पेड़ पर अपना घोंसला बनाती है।

💫 गोरिया अलमारी के ऊपर आईने के पीछे अपना घोंसला बनाती है।

💫 कबूतर पुराने मकान या खंडहर में।

💫 बसंत गौरी पक्षी गर्मियों में टुकटुक करते रहते हैं पेड़ के तने में गहरा छेद बनाकर उसमें अंडे रखते हैं।

💫 पर्यावरण शिक्षा केंद्र-अहमदाबाद, गुजरात

💫 नल्लामडा- आंध्र प्रदेश

💫 बाजारगांव- महाराष्ट्र

💫 होली गुंडी – कर्नाटका

💫 बच्चों की पंचायत- भीमा संघ,होलगुंडी गांव( कर्नाटका)

💫गंदा पानी पीने से फैजाबाद दस्त हो जाता है फिर दस्त या उल्टी से शरीर का पानी बाहर निकल जाता है इसलिए पानी की कमी को पूरा करने हेतु थोड़ा-थोड़ा पानी पीते रहना चाहिए।

💫 घास की जड़े बहुत मजबूत होती हैं इन्हें खुरपी से खोदकर ही निकाला जा सकता है इनकी जड़ें जितनी जमीन से बाहर निकली हुई होती हैं उससे कहीं ज्यादा जमीन के अंदर फैली होती हैं।

💫 बिहार के मुजफ्फरपुर में लोचाहा गांव की लीची की खेती प्रसिद्ध है।

💫बरगद के पेड़ की लटकन उसकी जड़े होती हैं वह टहनियों से निकलती हैं और बढ़ते बढ़ते जमीन के अंदर चली जाती हैं ‌। यह जड़े मजबूत खंभों की तरह पेड़ को सहारा देते हैं।

💫 ऑस्ट्रेलिया में रेगिस्तानी ओक पाया जाता है इसकी ऊंचाई 11 से 12 फिट होती है और इसमें पत्तियां बहुत कम होती हैं इनकी जड़ें जमीन में 250 से 300 सीट तक जाती हैं जब तक वह पानी तक ना पहुंच जाए यह पानी पेड़ के तने में जमा होता रहता है जब कभी इस इलाके में पानी नहीं होता है तो वहां के लोग इसके तने के अंदर पतला पाइप डालकर पानी निकाल कर पीते हैं।

*💥💥बिहू का त्योहार* यह त्योहार चावल की नई फसल कटने पर आसाम में मनाया जाता है। भेला घर घास व बास से बनाया जाता है । उरूका बिहू से पिछले दिन की शाम को कहते हैं। बोरा,व चेवा चावल के दो प्रकार हैं जो पकने के बाद चिपचिपी हो जाते हैं इसे आसाम में खाया जाता है।

💫 पोचमपल्ली गांव आंध्र प्रदेश में है इस जिले में अधिकतर लोग बुनकर हैं और इसी बुनाई को पोचमपल्ली के नाम से जाना जाता है ।

💫 – कुल्लू की शाल, मधुबनी पेंटिंग, आसाम की सिल्क, कश्मीरी कढ़ाई।

💫 पहली महिला जिन्होंने पूरी परेड की कमान संभाली थी । ले कमांडर वहीदा प्रिज्म, जब परेड होते हैं तो पीछे चार तोगड़िया चलते हैं वही पूरी परेड में 36 निर्देश देने होते हैं।

💫 स्किपटो पुल – लद्दाख का एक गांव (लद्दाख में मां को आमाले, पिता को आबाले , दादी जी को मेमेले कहां जाता है)।

💫 *स्लाथ* भालू जैसे दिखाई देते हैं लेकिन भालू नहीं होते यह दिन में करीब 17 घंटे पेड़ों से उल्टे सिर लटक कर मस्ती से सोते हैं सप्ताह में एक बार शौच के लिए पेड़ों से नीचे उतरते हैं जिस पेड़ पर रहते हैं उसी की पत्तियां खाते हैं और इनकी आयु 40 वर्ष होती है यह अपने जीवन में 8 पेड़ों पर घूमने की तकलीफ उठाते हैं।

💫 *बाघ* यह अंधेरे में हम से 6 गुना बेहतर देखते हैं बाघ की मूछें हवा में हुए कंपन को भाप लेती है और उससे शिकार की सही स्थिति का पता चलता है अंधेरे में रास्ता खोज सकते हैं मौके के हिसाब से आवाज में परिवर्तन कर लेते हैं बाघ का गुराना 3 किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ता है यह अपने इलाके में मूत्र करके अपनी गंध छोड़ते हैं दूसरा भाग इसी से उसकी पहचान करता है भाग हवा से पत्तों का हिलना व शिकार के झाड़ियों में हिलने से हुई आवाज में अंतर भाग लेता है बाग के दोनों कान बाहर की आवाज इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग दिशाओं में काफी घूम भी जाते हैं।

💫 *हाथी* एक बड़ा हाथी 1 दिन में 100 किलोग्राम से ज्यादा पत्ते व झाड़ियां खा जाता है यह बहुत कम आराम करता है दिन में 2 से 4 घंटे केवल । इन्हें पानी व कीचड़ में खेलना पसंद है शरीर को ठंडक मिलती है इससे। इनके कान पंखे जैसे होते हैं गर्मी लगने पर कान हिलाकर हवा करते हैं। 3 माह के हाथी का वजन 200 किलोग्राम होता है। हाथी के झुंड में केवल हथिनिया व बच्चे ही रहते हैं। झुंड की सबसे बुजुर्ग हथिनी पूरे झुंड के नेता होती है। झुंड में 10 से 12 हथिनी वह बच्चे होते हैं। 14 से 15 साल तक हाथी इस झुंड में रहता है वह बाद में झुंड छोड़ देता है। हाथी परेशानी आने पर एक दूसरे की मदद करते हैं।

💫 *लोचाहा गांव मुजफ्फरपुर बिहार* लीची की खेती हेतु प्रसिद्ध है लीची के पेड़ मधुमक्खियों को बहुत दुख आते हैं इसलिए इस क्षेत्र के लोग मधुमक्खी पालन कर शहद निकालते हैं। मधुमक्खी पालन का सरकारी कोर्स भी होता है। अक्टूबर-नवंबर मधुमक्खी के अंडे देने का समय और मधुमक्खी पालन शुरू करने का उपयुक्त समय है ‌ मधुमक्खी के एक बक्से में 12 किलोग्राम शहद प्राप्त होता है।

💫 *मधुमक्खी का छत्ता* हर छत्ते में एक रानी मक्खी होती है जो अंडे देती है। छत में कुछ नर मक्खी भी होते हैं । छत्ते में बहुत सारी काम करने वाली मक्खियां भी होती हैं । यह दिन भर काम करते हैं और शहद हेतु फूलों का रस खोजती हैं । जब किसी मक्खी को रस मिल जाता है तो वह एक तरीके का नाच करती हैं उससे दूसरे मक्खी को पता चल जाता है कि रस कहां पर है। वे रस से शहद बनाती हैं वही छत्ता बनाने का काम भी इन्हीं का होता है और बच्चों को पालना भी नर मक्खी छत्ते के लिए कुछ खास काम नहीं करती।

💫 *चीटियां* चीटियां भी मिलजुल कर रहती हैं। इनमें भी सब का काम अलग अलग होता है। रानी चींटी अंडे देती है सिपाही चीटियां बिल का ध्यान रखती हैं काम करने वाली चीटियां भोजन खोज कर बिल तक लाती हैं।

💫नोट – दीमक व ततैया भी समूह में रहते हैं।

*Notes by Shreya Rai📝🙏*

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