cognition and emotion संज्ञान तथा मनोभाव
संज्ञान का अर्थ ➡️जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक बच्चा सीखता है क्योंकि वह समय और ज्ञान के साथ बढ़ता है, वह अपने विचारों, अनुभवों, इंद्रियों आदि के माध्यम से प्राप्त करता है ये सभी संज्ञान है। बच्चे का संज्ञान परिपक्व हो जाता है जैसे ही वह बढ़ता है। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि संज्ञान कृपण, याद रखने, तर्क और समझने की बौद्धिक क्षमता है।संज्ञान ( Cognition ) : संज्ञान से तात्पर्य एक ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें संवेदन ( Sensation ) , प्रत्यक्षण (Perception ) , प्रतिमा ( Imagery ) , धारणा , तर्कणा जैसी मानसिक प्रक्रियाएँ सम्मिलित होती हैं । ➡️ संज्ञान से तात्पर्य संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करके उसका रूपांतरण , विस्तरण , संग्रहण , पुनर्लाभ तथा उसका समुचित प्रयोग करने से होता है । ➡️ संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य बालकों में किसी संवेदी सूचनाओं को ग्रहण करके उसपर चिंतन करने तथा क्रमिक रूप से उसे इस लायक बना देने से होता है जिसका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में करके वे तरह – तरह की समस्याओं का समाधान आसानी से कर लेते हैं । ➡️ संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में तीन सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं ⬇️⬇️⬇️( a ) पियाजे का सिद्धांत ( b ) वाइगोट्स्की ( Vygostsky ) का सिद्धांत ( c ) ब्रुनर ( Bruner ) का सिद्धांत
संज्ञान के तत्व:
संज्ञान के तत्व निम्नलिखित हैं:👇👇👇👇👇
1. अनुभूति: यह इंद्रियों के माध्यम से किसी चीज़ को देखने, सुनने या जागरूक होने की क्षमता है।
2. स्मृति: स्मृति संज्ञान में संज्ञानात्मक तत्व है। स्मृति जब भी आवश्यकता हो, अतीत से जानकारी को स्टोर, कोड या पुनर्प्राप्त करने हेतु मानव मस्तिष्क को अनुमति देती है।
3. ध्यान: इस प्रक्रिया के तहत हमारा मस्तिष्क हमारी इंद्रियों के उपयोग सहित विभिन्न गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है।
4. विचार: विचार सोच की क्रिया प्रक्रियाएं हैं। विचार हमें प्राप्त होने वाली सभी सूचनाओं को एकीकृत करके घटनाओं और ज्ञान के बीच संबंध स्थापित करने में हमारी सहायता करते हैं।
5. भाषा: भाषा और विचार एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। भाषा बोले जाने वाले शब्दों की सहायता से हमारे विचारों को व्यक्त करने की क्षमता है।
6. अधिगम: अधिगम अध्ययन, अनुभव और व्यवहार में संशोधन के माध्यम से ज्ञान या कौशलों का अधिग्रहण है।
बच्चों की संज्ञानात्मक विशेषताएं:
संज्ञानात्मक विकास सोचने और समझने की क्षमता है। पियागेट के अनुसार संज्ञानात्मक विकास में चार चरण शामिल हैं:
1. संवेदिक पेशीय अवस्था: यह आयु जन्म से 2 वर्ष तक होती है। इस स्तर पर बच्चा अपनी इंद्रियों के माध्यम से सीखता है।
2. पूर्व-संक्रिया अवस्था: यह अवस्था 2 वर्ष की आयु से 7 वर्ष की आयु तक होती है। इस अवस्था में एक बच्चे की स्मृति और कल्पना शक्ति विकसित होती है। यहां बच्चे की प्रकृति आत्मकेंद्रित होती है।
3. मूर्त संक्रिया अवस्था: यह अवस्था 7 वर्ष की आयु से 11 वर्ष की आयु तक होती है। यहां आत्मकेंद्रित विचार शक्तिहीन हो जाते हैं। इस अवस्था में संक्रियात्मक सोच विकसित होती है।
4. औपचारिक संक्रिया अवस्था: यह अवस्था 11 वर्ष की आयु तथा उससे ऊपर की आयु से शुरू होती है। इस अवस्था में बच्चे समस्या हल करने की क्षमता और तर्क के उपयोग को विकसित करते हैं।
मनोभाव:
मनोभाव किसी की परिस्थितियों, मनोदशा या दूसरों के साथ संबंधों से व्युत्पन्न होने वाली मजबूत भावना होती हैं। मनोभाव मन की स्थिति का एक भाग है।
मनोभाव की प्रकृति और विशेषताएं:
1. मनोभाव व्यक्तिपरक अनुभव है।
2. यह एक अभिज्ञ मानसिक प्रतिक्रिया है। मनोभाव और सोच विपरीत रूप से संबंधित हैं।
3. मनोभाव में दो संसाधन अर्थात् प्रत्यक्ष धारणाएं या अप्रत्यक्ष धारणाएंशामिल हैं।
4. मनोभाव कुछ बाह्य परिवर्तन बनाता है जिन्हें दूसरों द्वारा हमारे चेहरे की अभिव्यक्तियों और व्यवहार पैटर्न के रूप में देखा जा सकता है।
5. मनोभाव हमारे व्यवहार में कुछ आंतरिक परिवर्तन करताहै जिन्हें केवल उस व्यक्ति द्वारा समझा जा सकता है जिसने उन मनोभाव का अनुभव किया है।
6. अनुकूलन और उत्तरजीविता के लिए मनोभावआवश्यक हैं।
7. सबसे विचलित मनोभाव समरूप या असमान होना है।मनोभाव के घटक तथा कारक:
मनोभाव के मुख्य घटकों में से एक अभिव्यक्तिपूर्ण व्यवहार है। एक बहुमूल्य व्यवहार बाहरी संकेत है कि एक मनोभाव का अनुभव किया जा रहा है। मनोभाव के बाह्य संकेतों में मूर्च्छा, उत्तेजित चेहरा, मांसपेशियों में तनाव, चेहरे का भाव, आवाज का स्वर, तेजी से सांस लेना, बेचैनी या अन्य शरीर के हाव-भाव इत्यादि शामिल हैं।
शिक्षा में मनोभाव का महत्व:
निम्नलिखित बिन्दु मनोभाव के महत्व का उल्लेख करते हैं:
1. सकारात्मक मनोभाव बच्चे के अधिगम को सुदृढ़ करते हैं जबकि नकारात्मक मनोभाव जैसे अवसादइत्यादिअधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
2. किसी भी मनोभाव की तीव्रता अधिगम को प्रभावित कर सकती है चाहे वह सुखद या कष्टकरमनोभाव हो।
3. जब छात्र मानसिक रूप से परेशान नहीं होते हैं तो अधिगम सुचारू रूप से होता है।
4. सकारात्मक मनोभाव एक कार्य में हमारी प्रेरणा को बढ़ाते है।
5. मनोभाव व्यक्तिगत विकास के साथ-साथ बच्चे के अधिगम में भी मदद करतेहैं।