🔆 पिछड़े बालकों की विशेषताएं 🔆
💠 1मंद गति से सीखते हैं:➖
पिछड़े बालक बहुत ही मंद गति से या धीमी गति से सीखते हैं अर्थात कोई भी कार्य तीव्र गति से नहीं कर पाते हैं।
💠 2 अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े:➖
अपनी उम्र के वर्ग के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए होते हैं एक ही कक्षा में कई साल भी लगा देते है शिक्षा के क्षेत्र में इस दोष को प्रभावहीन (Stagnation) कहा जाता है जिसके कई अन्य कारण और होते है ।
💠 3 पिछड़ेपन व बुद्धि लब्धि में संबंध होना आवश्यक नहीं:➖
पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए बुद्धि लब्धि (I Q) शब्द का प्रयोग नहीं होता केवल शैक्षिक लब्धि (EQ) का प्रयोग होता है।
💠 4 इन बालकों के पिछड़े होने के कारण ध्यान व रुचि थोड़े समय के लिए बनी रहती है:➖
सामान्यतः रुचि का तात्पर्य हमारी पसन्द से होता है। जिस वस्तु में हमारी रुचि नहीं होती है, उसमें हमारा ध्यान स्वाभाविक रूप से केन्द्रित नहीं हो पाता हैं।
💠 5 शैक्षणिक व सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं पाते:➖
कई शैक्षिक कार्यक्रम में जैसे विद्यालय चर्चा या सभा, खेल, प्रतियोगिता और साथ ही साथ सामाजिक कार्य जैसे- कई मेले ,जागरूक कार्यक्रम, मेले, उत्सवों में भाग लेने के लिए अपने आप को असमर्थ मानते है।
💠 6 समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते:➖
अपने कार्य में आने वाली समस्या पर समाधान के लिए सूक्ष्म रूप से विचार या गहन चिंतन या विचार मंथन अर्थात समस्या पर बारीकी से विचार नहीं कर पाते हैं।
💠 7 साधारण सी बातों या नियमों को भी समझ नहीं पाते:➖
छोटी-छोटी या साधारण सी बातों व नियमों को आसानी से समझ नहीं पाते हैं।
💠 8 वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते:➖
जब कोई व्यक्ति किसी संघर्ष या तनाव की स्थिति में कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह बाहर निकलकर सहयोग और समझौते की स्थिति में रहता है तब वह सामंजस्य कहलाता हैं।
लेकिन पिछड़े बालक अपने वातावरण के साथ समायोजित नहीं हो पाते है।
💠 9अंतर्मुखी होते हैं ,मित्र कम होते हैं:➖
अंतर्मुखी मतलब कम बोलते हैं, उनके दोस्त भी चुनिंदा या कम होते हैं। कभी वे अपने मन की बात को दूसरों के सामने आसानी से नहीं रख पाते ।वे आसानी से किसी के साथ घुल मिल नहीं पाते।
अर्थात अपने भावों की अभिव्यक्ति खुलकर नहीं कर पाते है।
💠 10 दूरदर्शिता कम होती है।:➖
दूरदर्शिता का मतलब दूर देखना ही नहीं होता बल्कि किसी भी विषय के बारे में नॉलेज है भविष्य की जो घटनाएं उनके बारे में सही-सही आकलन करना भी होता है।
पिछड़े बालकों में दूरदर्शिता काफी कम होती है।
💠 11 समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं अपनाते।:➖
अलग-अलग तरह से देखने पर एक ही विषय या वस्तु के अलग-अलग रूप देखने को मिल सकते हैं।
लेकिन पिछड़े बालक समाज के किसी विषय या वस्तु को किसी भी रूप या किस भी तरह से नहीं देख सकते हैं। अर्थात् यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रखते हैं।
💠 12 निराशावादी होते हैं।:➖
जीवन को नकारात्मक दृष्टि से देखते है। या हर काम को करने के बाद उससे प्राप्त होने वाले परिणामो के लिए निराशावादी होते है।
🔆 पिछड़े बालकों की शिक्षा 🔆
पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षकों अभिभावकों समाज सेवकों तथा विद्यालय चिकित्सकों को मिलकर एक साथ काम करना चाहिए ताकि पिछड़ेपन के कारणों की खोज कर उन बालकों के लिए उचित उपचारों का प्रयोग किया जा सके। इनके उपचार व शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए।
🔅 1 उपचार:➖ दोषों व रोगों का उपचार करना या समाधान ढूंढना।
जैसे यदि किसी बालक को कम सुनाई व कम दिखाई देता हो तो उसे कक्षा में आगे बैठाए।
🔅 आर्थिक सहायता : ➖
निर्धन परिवारों के छात्रों हेतु छात्रवृत्ति और नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था करें।
🔅 हस्त उद्योग : ➖
शैक्षणिक तौर पर पीछे रहने के कारण उच्च शिक्षा पाने में असमर्थ रहते हैं, अतः हस्त उद्योगों का प्रशिक्षण है ताकि कुछ व्यवसाय प्रारंभ कर सकें।
🔅 विशेष पाठ्यक्रम:➖
पाठ्यक्रम में विषय सरल,सरस व रुचि के अनुसार पाठ्यक्रम अधिक लचीला जीवन उपयोगी व व्यावसायिक उद्देश्य पूर्ण करें,इस तरह का बनाया जाए।
🔅 शेष शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग :➖
✓सरस, रुचिकर शिक्षण विधियों का प्रयोग।
✓दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग।
✓पढाने की गति धीमी रखी जाए।
✓एक बार में कम पाठ्यवस्तु पढ़ाई जाए।
✓मौखिक शिक्षण विधि का प्रयोग कम किया जाए।
✓अर्जित ज्ञान का अभ्यास बार-बार कराएं।
🔅 निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था :➖
बच्चों के व्यवहार को देखकर उन्हें उचित मार्गदर्शन या व्यवसायिक निर्देशन दिया जा सकता है। इसके लिए विद्यालय में निर्देशन सेवाओं का गठन हो, शैक्षिक व व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था हो, जिसके माध्यम से शैक्षिक व व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करें।
जिससे पिछड़े बालको को भी सामान्य बालक की श्रेणी में शामिल किया जा सके।
🔅 विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना :➖
इस प्रकार की विद्यालय से पिछड़े बालको को
✓पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है।
✓हीन भावना नहीं आती है।
✓अपने त्रुटि या गलती के कारण परेशान नहीं रहते है।
🔅 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना : ➖
विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना ना हो पाए तो विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था होनी चाहिए जहां अध्यापक इन वर्गों के शिक्षण पर विशेष ध्यान दे
🔅 व्यक्तिगत ध्यान :➖
अध्यापक व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रख कर शिक्षण करें ।
यदि व्यक्तिगत ध्यान नहीं रखा जाता तो बच्चे सहजता महसूस नहीं कर पाते है और अपनी बातो को या परेशानियों या समझ को नहीं बता पाते है, इसीलिए शिक्षक को व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान करना चाहिए।
🔅 स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना : ➖
अरुचि वह असफलता के कारण पिछड़े बालक स्कूल से भागना प्रारंभ कर देते हैं इसके लिए उन्हें उचित राह पर लाकर इस तरह की प्रवृत्ति पर नियंत्रण किया जाए।
✍🏻
Notes By-Vaishali Mishra
🍀🍁🦚 पिछड़े बालकों की विशेषताएं🦚🍁🍀
🌿🌿पिछड़े बालक मंद गति से सीखते हैं। तीव्र गति से नहीं सीख सकते।
🌿🌿 किसी क्षेत्रों में अपनी उम्र के बच्चों से पीछे होते हैं एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं।
🌿🌿प्रवाह विहीन :- इनके शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं।
🌿 🌿यह आवश्यक नहीं है कि पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो। पिछड़े बालक को का अर्थ स्पष्ट करते हुए IQका नहीं,बल्कि EQ का प्रयोग होता है।
🌿 🌿पिछड़े बालकों की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होता है।
🌿🌿 इस प्रकार के बालक शैक्षणिक/सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं पाते हैं।
🌿🌿 इस श्रेणी के बालक किसी भी समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते।
🌿🌿 ऐसे बच्चे साधारण सी बात तो तथा नियमों को नहीं समझ पाते हैं।
🌿🌿 ऐसे बच्चे वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते।
🌿🌿 ऐसे बालक अंतर्मुखी व्यवहार के होते हैं तथा उनके कम दोस्त भी होते हैं।
🌿🌿 ऐसे बालकों में दूरदर्शिता कम होती है।
🌿🌿 ऐसे बालक समाज में यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं।
🌿🌿 ऐसे बालक निराशावादी होते हैं।
🌸🌸 पिछड़े बालकों की शिक्षा 🌸🌸
🍀🍁🍀 पिछड़े बालक की शिक्षा में इन सब की महत्वपूर्ण भूमिका होती है🍀🍁🍀
🍁जैसे कि :-
🦚 शिक्षक
🦚 अभिभावक
🦚 समाज सेवक
🦚 विद्यालय
🦚 चिकित्सक।
🌳 इन सभी को एक साथ कार्य करना चाहिए।
🌳 पिछड़ेपन के कारणों को ढूंढना चाहिए।
🌳अंततःउचित उपचार भी किया जाना चाहिए।
🍀🍁🍀 उपचार /शिक्षा निम्न बातो का ध्यान देना आवश्यक होता है 🍀🍁🍀
🌿🌿उपचार 🌿🌿 🌸 बालक के दोष या रोग का उपचार करना है। 🌸 उसके समस्या का समाधान ढूंढना है। 🌸 अगर बालक को कम दिखता हो तो उसे आगे बैठाएंगे।
🌿🌿 आर्थिक सहायता 🌿🌿 🌸 निर्धन परिवार के बच्चे को छात्रवृत्ति व नि:शुल्क शिक्षा दिया जाना चाहिए।
🌿🌿 हस्त उद्योग🌿🌿 🌸 ऐसे बालकों के लिए हस्त उद्योग का व्यवस्था करना चाहिए ताकि उनका व्यवसाय हो सके।
🌿🌿 विशेष पाठ्यक्रम 🌿🌿 🌸 बच्चों के लिए पाठ्यक्रम सरल रुचिकर जीवन के लिए उपयोगी व्यावसायिक और उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए।
🌿🌿 विशेष शिक्षण पद्धति🌿🌿 🌸 इन कक्षाओं में सरल व रुचिकर शिक्षण विधि होनी चाहिए । 🌸इनके लिए दृश्य - श्रव्य सामग्री भी आवश्यक होती है। 🌸 ऐसे बालकों के लिए पढ़ाने की धीमी गति होनी चाहिए। 🌸 ऐसे बालकों को एक बार में एक से ज्यादा चीजें ना पढ़ाई जाए। 🌸 ऐसी कक्षाओं में विशेषकर मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम करना चाहिए। 🌸 ऐसे बालकों की अर्जित ज्ञान का कक्षाओं में अभ्यास अधिक से अधिक करवाना चाहिए।
🌿🌿 निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था🌿🌿 🌸स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन हो तथा शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन की व्यवस्था होना चाहिए तथा साथ इसके द्वारा शैक्षिक/व्यावसायिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालकों किस श्रेणी में लाना।इस प्रकार पिछड़े बालकों को भी सामान्य बालकों की श्रेणी में लाया जा सकता है।
🌿🌿 विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना🌿🌿 🌸 ऐसे बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना करना भी आवश्यक है ताकि उन्हें पढ़ने में रुचि मिल सकें। 🌸 उनमें हीन भावना उत्पन्न ना हो। 🌸 वे अपने त्रुटियों एवं गलतियों के कारण परेशान ना हो।
🌿🌿 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना🌿🌿 🌸 ऐसी बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना की जानी चाहिए किसी भी कारणवश अगर ऐसे विद्यालयों की स्थापना ना हो पाए।तो कम से कम उनकी कक्षा में हीं विशिष्टता का पालन करना चाहिए और इस प्रकार की विशिष्ट बालकों की शिक्षा पर पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
🌿🌿व्यक्तिगत ध्यान🌿🌿 🌸ऐसे बच्चों को, उनकी वैयक्तिक विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से से शिक्षा दी जानी चाहिए। अगर उन पर व्यक्तिगत ध्यान नहीं दिया गया।तो वे अपने - आप में असहज महसूस करने लगते हैं। तथा अपनी परेशानियों या विचारों का अभिव्यक्ति नहीं कर पाते हैं। इस से उन में हीनता की भावना पैदा हो जाती है। शिक्षकों को वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए हीं कार्य करना।
🌿🌿 स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना🌿🌿 🌸 इस प्रकार लगातार उनकी विचारों में अपने - आप के प्रति हीनता की भावना का विकास होता चला जाता है तथा वे स्कूल से भागने लगते हैं इसके लिए एक शिक्षक के लिए यह उचित है कि उन्हें सही दिशा निर्देश देकर उनके भागने पर नियंत्रण किया जाय।
🌸🌸Notes by :- Neha Kumari 😊
🌸🌸🌸🌸🌸धन्यवाद् 🌸🌸🌸🌸🌸
📖 पिछड़े बालकों की विशेषताएं 📖
🌿 मंद गति से सीखते हैं~
पिछड़े बालक किसी भी समस्या का समाधान करने की प्रक्रिया को बहुत ही मन गति से सीखते हैं, या हम यह भी कह सकते हैं, कि वह किसी भी कार्य को बहुत मंद गति से करते हैं। उनमें किसी भी कार्य को करने के लिए उत्सुकता नहीं पाई जाती है।
🌿 हम उम्र से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़ापन~
पिछड़े बालक अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े हुए होते हैं, एवं एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं । वह एक कक्षा को एक बार में पास नहीं कर पाते हैं, अपने उम्र के साथियों से शैक्षिक दृष्टि में पीछे होते हैं। उनके साथ साथ कक्षा के कार्यों को पूर्ण नहीं कर पाते हैं।
🎯 प्रवाहविहीन ( Stagnetion )~
इसके शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं।
🌿 पिछड़े बालकों का बुद्धि लब्धि एवं शैक्षिक लब्धि से संबंध~
पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है, पिछले बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए शैक्षिक लब्धि का प्रयोग नहीं करते हैं। अतः कहने का अर्थ यह है कि पिछड़े बालकों की बुद्धि लब्धि अधिक होने पर भी पिछड़ सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है, कि बुद्धि लब्धि का स्तर कम हो तभी बालक पिछड़ेगा।
🌿 ध्यान एवं रुचि~
पिछड़े बालकों का ध्यान एवं रुचि थोड़े समय के लिए होते हैं। वह किसी एक वस्तु या कार्य पर अधिक समय तक ध्यान नहीं दे पाते हैं। अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। ध्यान केंद्रित ना होने पर उस कार्य एवं वस्तु पर वह अपनी रूचि नहीं लेते हैं। अतः हम कह सकते हैं, कि पिछले बालकों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता नहीं होती है या कम होती है।
🌿 शैक्षणिक एवं सामाजिक क्रियाकलापों में असमर्थता~
पिछड़े बालक शैक्षिक व सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं पाते हैं, अतः वह इन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए इच्छुक नहीं होते हैं। परंतु ऐसा नहीं है, कि वह इन कार्यों को नहीं कर सकते हैं। लेकिन वह खुद को ही असमर्थ पाते हैं, या करने का प्रयास नहीं करते हैं।
🌿 समस्याओं पर सूक्ष्म विचार ना कर सकने की क्षमता~
पिछड़े बालक किसी भी समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते हैं। जैसा कि हम पहले देख चुके हैं, कि वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। किसी एक वस्तु पर वह रूचि नहीं रख पाते हैं। अतः जिसके कारण रहे किसी भी समस्या पर सूक्ष्म रूप से चिंतन नहीं कर पाते हैं।
🌿 पिछले बालक साधारण नियमों व बातों को भी नहीं समझ पाते हैं। वह दैनिक जीवन से संबंधित साधारण नियमों को समझने में असमर्थ होते हैं, एवं इन बातों को भी नहीं समझ पाते हैं।
🌿 पिछड़े बालक अपने वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं, क्योंकि वह अपने आसपास एवं अपने समाज के नियमों को एवं बातों को नहीं समझ पाते हैं। जिसके चलते वह अपने वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं, खुद को वातावरण के अनुरूप नहीं कर पाते हैं।
🌿 दूरदर्शिता~
पिछड़े वालों को में दूरदर्शिता कम होती है, वह केवल किसी भी समस्या के तत्कालिक पहलुओं को देखते है, एवं आगामी पहलुओं से वह संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं।अतः हम कह सकते हैं, कि पिछड़े बालक में दूरदर्शिता का गुण कम पाया जाता है ।
🌿 पिछले बालक समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं। वह समाज में अपने आप को निम्न स्तर का पाते हैं, जिससे उनमें हीन भावना जागृत हो जाती है।
🌿 पिछड़े बालक समाज के साथ संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं, एवं वातावरण के साथ भी संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं। जिसके फलस्वरूप वह निराशावादी प्रवृत्ति के हो जाते हैं,एवं स्वयं के बाद समाज के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण रखने लगते हैं। 🌺🌺 पिछड़े बालक की शिक्षा व्यवस्था🌺🌺 पिछड़े बालकओं की शिक्षा में शिक्षक, अभिभावक, समाज सेवक, विद्यालय एवं चिकित्सक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन सभी के योगदान के फलस्वरुप पिछले बालकों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर किया जा सकता है। इसके लिए सभी को एक साथ काम करना पड़ेगा एवं पिछड़ेपन के कारणों को खोजना पड़ेगा। फिर उनका उचित उपचार करना। यह शिक्षक, अभिभावक, चिकित्सक एवं विद्यालय की जिम्मेदारी रहेगी। इस जिम्मेदारी को पूर्ण करने के लिए बालक के सहपाठियों एवं हम उम्र की सहायता भी मुख्य भूमिका निभाती है।
🌻🌿🌻 उपचार एवं शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है 🌻🌿🌻
🍃🍂 उपचार करना~
पिछड़े बालकों की समस्या, दोष एवं रोग का उपचार करना या समाधान ढूंढना।
( जैसे- किसी बालक को कम दिखाई देता है तो उसके लिए हमें आगे बैठने की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि वह चीजों को देखकर ना सही लेकिन सुनकर समझ पाएगा इस प्रकार पिछले वाला को का उपचार किया जाना चाहिए।)
🍃🍂 आर्थिक सहायता~
पिछड़ा बालक अगर निर्धन परिवार से है, तो उस बच्चे को छात्रवृत्ति या निशुल्क शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। जिससे कि वह अपनी शिक्षा से वंचित न रह सके एवं अपनी शिक्षा को पूर्ण कर पाए।
🍃🍂 हस्त उद्योग~
पिछले बालकों को हस्तकलाओं का प्रशिक्षण देना चाहिए। जिससे कि वह अपना ही कुछ व्यवसाय कर सके।
हस्त कलाओं के माध्यम से उन्हें दैनिक जीवन से संबंधित क्रियाओं का ज्ञान कराया जाना चाहिए। जो कि उनके आगामी जीवन में सहायता प्रदान कर सके। जिससे कि वह अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाए।
🍃🍂 विशेष पाठ्यक्रम~
पिछले बालको के लिए विशेष पाठ्यक्रम का आयोजन किया जाना चाहिए। उनका पाठ्यक्रम सरल, रुचिकर, लचीला, जीवन के लिए उपयोगी एवं व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए।
जिससे कि वह पाठ्यक्रम को समय के चलते ही पूर्ण कर पाए एवं जीवन उपयोगी होने पर वह व्यवसाय के रूप में उसका प्रयोग कर पाए।
🍃🍂 विशेष शिक्षण पद्धति~
पिछले बालकों के लिए विशेष शिक्षण पद्धतियों का आयोजन किया जाना चाहिए जिनमें से कुछ का वर्णन निम्नलिखित हैं:-
🍁 इन बालकों के लिए सरल एवं रुचिकर शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए, जिससे कि वह विषय वस्तु को शीघ्र समझ पाए।
🍁 इन बालकों के लिए दृश्य एवं श्रव्य सामग्रियों का प्रयोजन किया जाना चाहिए। जिससे कि वह बालक जो देखने एवं सुनने संबंधी विकार से पीड़ित हो उन्हें सीखने में सरलता हो सके एवं वह शीघ्र सीखने का प्रयास कर सकें।
🍁 इन बालकों को पढ़ाने की गति धीमी होनी चाहिए। शिक्षक को द्रुतगामी गति से शिक्षण प्रक्रिया को नहीं कराना होगा। बल्कि इसकी जगह पर मंद गति से शिक्षण प्रक्रिया को कराने का प्रयास करना होगा । जिससे कि पिछड़े बालक विषय वस्तु को सफलतापूर्वक समझ पाए।
🍁 शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना होगा, कि पिछड़े बालकों को एक बार में ज्यादा चीजों को नहीं दिखाना चाहिए। एवं एक बार में अधिक इकाइयों या पाठों को नहीं कराया जाना चाहिए। बल्कि उनके लिए संपूर्ण पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे इकाइयों में विभक्त करके पढ़ाया जाना चाहिए।
🍁 मौखिक शिक्षण विधियों का उपयोग कम से कम करना चाहिए इसके स्थान पर करके दिखाने एवं करके सीखने पर अधिक बल दिया जाना चाहिए जिससे कि बालक विषय वस्तु को अधिक समय तक ध्यान में रख पाए।
🍁 पिछले बालकों को अधिक से अधिक अभ्यास कराने की आवश्यकता होती है। यह बालक जितना अधिक अभ्यास करेंगे विषय वस्तु को यह पाठ्यक्रम को उतने ही जल्दी से सीख पाएंगे।
🍁 बच्चों इसके लिए निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था~
स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन हो। शैक्षिक व व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था हो इसके द्वारा शैक्षिक व व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालक को की श्रेणी में लाया जाए।
अर्थात कहने का अर्थ यह है, कि बालक की कमियों को दूर करने के लिए शिक्षक को एक निर्देशक के रूप में कार्य करना चाहिए। उसे बालक को दिशा दिखाई जानी चाहिए उसी के आधार पर बालक अपने कार्यों की प्रक्रिया को करेगा, जिससे कि वह भी सामान्य बालको के स्तर तक आ पाए।
🍁 विशिष्ट विद्यालय की स्थापना~
पिछले वाले को के लिए विशिष्ट विद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए जिससे कि वह अपनी कमियों को दूर करके सामान्य स्तर पर आ सके।
विशिष्ट विद्यालय से पिछड़े बालकों को सीखने में कई प्रकार के लाभ मिलते हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं~
🌲 ऐसे विद्यालयों में पढ़ने मे बालकों को प्रोत्साहन मिलता है।
🌲बालकों में हीन भावना नहीं आती है।
🌲 अपने त्रुटियों के कारण परेशान नहीं होते हैं।
क्योंकि विशिष्ट विद्यालय में सभी बालक इसी प्रकार के होते हैं, जिससे कि वह सभी एक दूसरे का सहयोग करते हैं।
🍁 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना~
अगर किसी भी कारण वश विशिष्ट बालक होने के बाद भी वहां पर विशिष्ट विद्यालय नहीं खोला जा सकता है । तो इसके लिए सामान्य विद्यालय में ही विशिष्ट कक्षाओं का प्रबंध किया जाए, एवं उन कक्षाओं के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों का अभी प्रबंध किया जाए। जिससे कि विशिष्ट विद्यालय ना होने पर भी विशिष्ट बालक अपने शिक्षा को प्राप्त कर पाए। अतः उसकी शिक्षा में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो।
🍁 व्यक्तिगत ध्यान~
विशिष्ट बालकों को व्यक्तिगत ध्यान की आवश्यकता होती है, क्योंकि वह विशिष्ट हैं। इसलिए उन्हें विशिष्ट व्यवहार की भी आवश्यकता होती है। लेकिन सभी को एक साथ रखकर विशिष्ट व्यवहार नहीं दिया जा सकता। इसके लिए हमें व्यक्तिगत विभिन्नता पर ध्यान देना होगा। जिससे कि प्रत्येक बालक पर ध्यान दिया जा सके।
सामान्यतः सामान्य बालको पर भी व्यक्तिगत विभिन्नता की आवश्यकता होती है। अतः यह तो विशिष्ट बालक है, इनको तो व्यक्तिगत ध्यान की संपूर्ण आवश्यकता होती है।
🍁 स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को~
कई बालक ऐसे होते हैं, जो कि स्कूल से भाग जाते हैं। शिक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं:-
● शिक्षक का ठीक तरह से ना पढ़ाना,
● बालक के पास उपयुक्त शिक्षण सामग्री उपलब्ध ना होना,
● सबसे महत्वपूर्ण कारक यह होता है कि बालक की रूचि कक्षा के प्रति नहीं होती है।
अतः शिक्षक का यह कर्तव्य है, कि कक्षा को रुचिकर सरल एवं सरस बनाएं। जिससे कि प्रत्येक बालक कक्षा में रुचि ले पाए जब बालक कक्षा में रुचि से पड़ेगा तो शिक्षण प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होगी। इस तरह से हम स्कूल से भागने वाले बालकों को कक्षा में ही शिक्षण करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
🌺🌺समाप्त 🌺🌺
✍ PRIYANKA AHIRWAR ✍
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🍁⭐🍁 पिछड़ा बालक🍁⭐🍁
🎯 पिछड़े बालक की विशेषताएं
✍🏻 पिछड़ा बालक मंद गति से सीखता है तीव्र नहीं कर सकता है हिना की गति धीमी होती है
✍🏻 बच्चे अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं एक ही कक्षा में कई साल लग जाते हैं
प्रवाह विहीन – इनके शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं
✍🏻पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध है आवश्यक नहीं है पिछड़े बालक का अर्थ स्पष्ट करते हुए i.q. का प्रयोग नहीं होता है बल्कि शैक्षिक लब्धि का प्रयोग होता है
✍🏻 पिछड़े बालक का ध्यान और रुचि थोड़ी समय के लिए ही होता है ध्यान हर समय एक वस्तु पर नहीं रहता है नाही रुचि मैं बदलती रहती है
✍🏻 शैक्षिक सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थन नहीं कर पाते हैं वह अपने आप को पिछड़ा हुआ समझते हैं और किसी भी क्रियाकलाप में भाग नहीं लेते
✍🏻 समस्या पर सूचना रूप से विचार नहीं कर पाते हैं इनकी सोचने की शक्ति विकसित नहीं होती है गहन चिंतन की क्षमता नहीं होती ह
✍🏻 साधारण सी बातों या नियमों को भी समझ नहीं पाते हैं इन बच्चों को छोटी छोटी बातों कोई सामान हमें कठिनाई होती है
✍🏻 अंतर्मुखी होते हैं मित्र कम होते हैं पिछड़े बालक अपने मन में ही बात करते हैं उन्हें घुलना मिलना पसंद नहीं होता उनके मित्र भी कम होते हैं वह अकेले रहना पसंद करते हैं
✍🏻 दूरदर्शिता कम होती है पिछड़े बालक भविष्य के बारे में नहीं सोच पाते हैं उनकी दूरदर्शिता क्षमता कम होती है वह भविष्य के निर्णय लेने में अक्षम होते हैं
✍🏻 समाज के स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं अपनाते
पिछले वाला समाज के किसी भी विषय वस्तु किसी भी तरह से नहीं देख सकते हैं अर्थात अर्थात दृष्टिकोण नहीं रखते हैं
✍🏻 निराशावादी होते हैं इन्हें जीवन को नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं और हर काम को करने के बाद प्राप्त परिणाम से निराशा होती है
🍁 पिछड़े बालकों की शिक्षा :–
पिछले बालकों के लिए शिक्षक अभिभावक समाज सेवक विद्यालय चिकित्सा सभी मिलकर एक साथ काम करना चाहिए पिछड़ेपन के कारण को खोजना चाहिए ताकि पिछड़ेपन के कारणों की खोज कर उन बालकों के लिए उचित उपचार कर सके शिक्षा हेतु निम्न ध्यान देना चाहिए
🎯 उपचार:- दोषों व रोगों का उपचार करना या समाधान ढूंढना जैसे की यदि किसी बालक को कम सुनाई देता है या कम दिखाई देता है तो उसे आगे बिठाने की व्यवस्था करना
🎯 आर्थिक समस्या:–
निर्धन परिवार के बच्चों को छात्रवृत्ति या निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए
🎯 हस्त उद्योग :–
शारीरिक तौर पर पीछे रहने के कारण उचित शिक्षा पाने में असमर्थ रहते हैं इसीलिए इन बालकों के लिए हस्त उद्योग का प्रशिक्षण है ताकि वह व्यवसाय आरंभ कर सके
🎯 विशेष पाठ्यक्रम:– पाठ्यक्रम सरल सहज व रूचि के अनुसार होना चाहिए कथा पाठ्यक्रम लचीला जीवन उपयोगी और व्यवसाय उद्देश्य पूर्ण करें
🎯 विशेष शिक्षा पद्धति:-
⭐ सरल सहज रुचिकर शिक्षा विधि का प्रयोग
⭐दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग
⭐पढ़ाने की गति धीमी रखनी चाहिए एक बार में कम वस्तु पढ़ाएं जाए
⭐ मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम
⭐ अर्जित ज्ञान का अभ्यास ज्यादा से ज्यादा कराएं
🎯 निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था:–
स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन है बच्चों के शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था इसके द्वारा शैक्षिक व्यवसायिक समस्या का समाधान करके बालक को श्रेणी में शामिल किया जाए
🎯 विशिष्ट विद्यालयों की व्यवस्था:–
🍁 पढ़ाने में प्रोत्साहन मिलता है
🍁हीन भावना नहीं आती है
🍁अपनी त्रुटि के कारण परेशानी नहीं रहते हैं
🎯 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना:– आकर विशिष्ट विद्यालय की स्थापना ना हो सके तो विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था सामान्य विद्यालय में करें
🎯 व्यक्तिगत ध्यान:–
व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान करें यदि व्यक्तिगत ध्यान नहीं रखा जाता है तो बच्चे सहज महसूस नहीं कर पाते हैं और अपनी बातों या अपनी परेशानियों को नहीं बता पाते हैं
🎯 स्कूल से भागने की प्रवृति को रोकना:– बच्चे में आरुषि और असफलता के कारण स्कूल से भागने की कोशिश करते हैं इसीलिए उन्हें रुचिकर शिक्षा विधि बनाना तथा उचित राह पर लाकर इस तरह की प्रवृत्ति पर नियंत्रण किया जाए
✍🏻✍🏻notes By Menka patel ✍🏻✍🏻
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पिछड़ा बालक की विशेषताएं
1️⃣ पिछड़ा बालक मंदबुद्धि से सीखते हैं तीव्र नहीं सीख सकता
2️⃣ अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षणिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं
3️⃣ एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं
(प्रवाह विहीन ) =इसमें शैक्षणिक पिछड़ेपन में अनेक कारण हो सकते हैं
((यहां हम कह सकते हैं कि बुद्धि लब्धि कम हो ऐसा जरूरी नहीं है शैक्षणिक लब्धि भी कम हो सकती है ))
4️⃣ पिछड़े बालक की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होती है
5️⃣ शैक्षणिक सामाजिक क्रिया कलाप में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं कर पाते
6️⃣समस्या पर शुद्ध रूप से विचार नहीं कर सकते l
7️⃣साधारण सी बातें और नियमों को समझ नहीं पाते
8️⃣वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते
9️⃣ अंतर्मुखी होते हैं कम दोस्त होते हैं
🔟 दूरदर्शिता कम होती है
⏸️समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते l
1️⃣2️⃣ पिछड़े बालक निराशावादी होते हैंll
पिछड़े बालक की शिक्षा
1) शिक्षक
2)अभिभावक
3)समाज सेवक
4)विद्यालय परिवेश
5) चिकित्सक
पिछड़े बालक की शिक्षा में यह सभी की जिम्मेदारी होती है यह सब लोगों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए और पिछड़ेपन के कारणों को खोजना चाहिए
कारणों को खोजने के बाद उचित उपचार किया जाना चाहिए
“शिक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान देना आवश्यक है”-
1) उपचार = दोष / रोग का उपचार करना ही समाधान ढूंढना है
जैसे कोई आंख से कमजोर या कान से कमजोर बालक है तो उसको आगे बैठा देंगे ताकि वह अच्छे से समझ सके, आंख से कमजोर बालक देखकर आसानी समझ जाएगा और कान से बहरा बालक आपकी होठ की गति को देखकर समझ जाएगा कि आप क्या बोल रहे हैंl
2) आर्थिक सहायता = निर्धन परिवार के बच्चे को छात्रवृत्ति या निशुल्क शिक्षा दी जाए ताकि वह अपनी शिक्षा प्राप्त कर सके ,मान लीजिए कोई निर्धन परिवार का बच्चा है वह शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता तो आप उसको निशुल्क शिक्षा दें इसके माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकेl
4) हस्त उद्योग =हस्त उद्योग का परीक्षण दिया जाए ताकि वह व्यवसाय कर सकेl
5) विशेष पाठ्यक्रम= इनका पाठ्यक्रम सरल हो ,रुचिकर हो, लचीला हो, जीवन के लिए उपयोगी हो, और व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण हो l
6) विशेष शिक्षा पद्धति =
➡️शिक्षा पद्धति मे सरल और रुचिकर शिक्षण विधि,,,,,,,,
➡️ दृश्य श्रव्य सामग्री ,,,,,,,,,,पढ़ाने की गति धीमी,,,,, ,,
➡️ इस बात का विशेष ध्यान रखेंगे कि उनको एक बार में ज्यादा चीज ना पढ़ाएं,,,,,,,,,,
➡️मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम करना चाहिए
➡️अधिक से अधिक अभ्यास करवाना चाहिए
6) निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था =
स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन है बच्चों के शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था करना इसके द्वारा शैक्षिक व्यवसायिक समस्या का समाधान करके बालक को सामान्य बालक की श्रेणी में शामिल किया जा सके।
🌺 विशिष्ट विद्यालयों की व्यवस्था =
➡️ पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है।
➡️हीन भावना नहीं आती है ।
➡️अपनी त्रुटि के कारण परेशान नहीं रहते हैं।
🌺 *विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना= अगर विशिष्ट विद्यालय की स्थापना ना हो सके तो विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था विद्यालय में कर सकते है।
जैसे कोई मुख बधिर बालक या नेत्र रहित बालक है उसके लिए विशिष्ट कक्षा की व्यवस्था करना।
🌺 व्यक्तिगत ध्यान =
व्यक्तिगत विभिन्नता का का सम्मान करना चाहिए ताकि प्रत्येक बच्चे की समस्या को समझ सके तथा उसे हल कर सके ।
➡️छात्रों की संख्या कम रखनी चाहिए
स्कूल से भागने की प्रवृति को रोकना =
बच्चे में रुचि और असफलता के कारण बच्चे स्कूल से भागने की कोशिश करते हैं भागने की प्रवृत्ति रोकने के लिए रुचिकर पाठ्यक्रम तथा असफलता पर नियंत्रण रखना चाहिए
पाठ्यक्रम जितना रुचिकर होगा दैनिक जीवन पर आधारित होगा बच्चा उतना ही रुचि से पड़ेगा और जीवन से आधारित पाठ्यक्रम को बच्चा आसानी से समझेगा और असफल भी नहीं होगा जिससे यह स्कूल से नहीं भागेगा।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
Notes by malti sahu
✍🏻manisha gupta✍🏻
🌺 पिछड़े बालकों की विशेषताएं➖
🌴 पिछड़े बालक मंद गति से सीखते हैं➖ पिछड़े बालक को में सीखने ,समझने की गति धीमी होती है या किसी भी चीज को सीख कर जल्दी भूल जाते हैं।यह भी कह सकते हैं कि ऐसे बालको में किसी भी कार्य को करने की बहुत मंद गति होती है इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए क्रियाशीलता नहीं पाई जाती है।
🌴 हम उम्र से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़ापन➖ पिछड़े बालक अपने हम उम्र के बालको से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े हुए होते हैं ऐसे बालकों की मानसिक आयु अपने समकक्ष छात्रों से कम होती है।
पिछड़े बालक अपने साथियों से शैक्षिक क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए होते हैं एक ही कक्षा में कई बार पास नहीं होते हैं शैक्षिक क्षेत्र में इस प्रकार के दोष को प्रवाहविहीन ( stagnation) कहा जाता है जिसके अनेक कारण हो सकते हैं।
🌴 पिछड़े बालकों का बुद्धि लब्धि एवं शैक्षिक लब्धि में संबंध होना आवश्यक नहीं है➖ पिछड़े बालकों के लिए बुद्धि लब्धि शब्द का प्रयोग नहीं होता है केवल शैक्षिक उपलब्धि का ही प्रयोग होता है और ऐसे बालकों की शैक्षिक उपलब्धि सामान्य या औसत से कम होती है।
🌴 ध्यान एवं रुचि➖ ऐसे बालकों के पिछड़ेपन के कारण ध्यान एवं रुचि भी कम समय के लिए ही बनी रहती है इनका ध्यान अधिक देर तक किसी कार्य में नहीं लगता है।
ऐसे बालकों की सामान्यतः रुचि भी कम होती है यह बालक स्वाभाविक रूप से किसी भी कार्य के लिए रुचि पूर्ण या ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
🌴 शैक्षणिक व सामाजिक क्रियाकलापों में असमर्थता➖
पिछड़े बालक शैक्षणिक व सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं पाते हैं अनेक शैक्षिक कार्यक्रम जैसे विद्यालय में सभा संगोष्ठी, प्रतियोगिता, चर्चाएं, सांस्कृतिक कार्यक्रम और साथ ही साथ सामाजिक कार्य जैसे जागरूकता कार्यक्रम, मेले, समाज सेवा वाले कार्य में भाग लेने के लिए स्वयं को असमर्थ मानते हैं।
🌴 समस्या पर विचार ना कर सकने की क्षमता➖
पिछड़े बालक किसी भी समस्या के समाधान के लिए सूक्ष्म रूप से विचार या गहन चिंतन नहीं कर पाते हैं ये बालक किसी भी कार्य को करने में गहनता से चिंतन नहीं कर पाने के कारण समस्या का समाधान भी नहीं कर पाते हैं।
🌴 पिछड़े बालकों का साधारण नियमों व बातों का नहीं समझ पाना➖ ऐसे बालक साधारण सी बात व नियमों को सहजता से नहीं समझ पाते हैं इनके लिए कोई भी साधारण नियम कठिन लगता है।
🌴 वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं➖ पिछड़े बालक वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं क्योंकि पिछड़े बालक समाज के साथ या वातावरण के प्रति स्वयं को समायोजित नहीं कर पाते हैं। कोई बालक यदि तनाव और संघर्ष की स्थिति में होता है तो वह व्यक्ति वह समाज से समझौते एवं सहयोग की स्थिति में रहता है तब वह सामंजस्यता की स्थिति में होता है।
🌴 पिछड़े बालक स्वभाव से अंतर्मुखी होते हैं➖ पिछड़े बालक के मित्र भी कम होते हैं यह अपनी बातों को दूसरों के सामने रख पाने में असमर्थ होते हैं यह किसी भी बालक के साथ आसानी से घुल मिल नहीं पाते हैं अर्थात अपने विचारों को अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं और स्वभाव से कम बोलते हैं।
🌴 दूरदर्शिता➖ पिछड़े बालकों की दूरदर्शिता कम होती है ऐसे बालको मे किसी भी विषय के बारे में गहराई से ज्ञान नहीं होता है।
🌴 पिछड़े बालक समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं➖ पिछड़े बालक समाज में किसी भी विषय या वस्तु के बारे में किसी भी रूप में नहीं देख सकते हैं या समाज मे कार्य के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं।
🌴 पिछड़े बालक समाज के साथ संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं
🌴 निराशावादी➖ पिछड़े बालक निराशावादी होते हैं किसी भी कार्य के लिए नकारात्मक दृष्टिकोण होता है।
🌺 पिछड़े बालकों की शिक्षा🌺➖ पिछड़े बालकों की शिक्षा में शिक्षक ,अभिभावक ,समाज सेवक, विद्यालय, चिकित्सक का योगदान होना महत्वपूर्ण होता है जिससे ये सभी एक साथ मिलकर पिछड़े बालकों की पहचान करके उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयत्न करें। पिछड़े बालकों की पहचान करके उनकी समस्या को जानकर उनकी समस्या को दूर करने या उपचार किया जाना चाहिए। पिछड़े बालकों के उपचार व शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है➖
☘️ उपचार➖ ऐसे बालकों के पिछड़ेपन के कारण को जानकर उपचार करना चाहिए
जैसे यदि किसी बालक को कम दिखाई देता है या कम सुनाई देता है या किसी चीज को जल्दी से नहीं समझ पाते हैं तो उन्हें कक्षा में आगे बैठाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
☘️ आर्थिक सहायता➖ निर्धन परिवारों के छात्रों हेतु निशुल्क शिक्षा या छात्रवृत्ति की व्यवस्था की जाए या उनकी विद्यालय की फीस माफ कर देनी चाहिए।
☘️ हस्त उद्योग ➖ जैसा कि हम जानते हैं कि पिछड़े बालक शैक्षिक तौर पर पीछे होते हैं उच्च शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं अतः उन्हें हस्त उद्योगों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि हस्त उद्योगों के माध्यम से वे कुछ व्यवसाय कर सके ।
☘️ विशेष पाठ्यक्रम➖ पिछड़े बालको के लिए विशेष पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए । पाठ्यक्रम में विषय सरल ,रुचिकर ,अधिक लचीला और कम बोझिल एवं कम विस्तृत होना चाहिए एवं जीवन के लिए उपयोगी होना चाहिए पाठ्यक्रम में ऐसे विषय शामिल किए जाने चाहिए जो इन बालको के व्यवसाय में भी उपयोगी हो।
☘️ विशेष शिक्षण विधि➖ ऐसे बालकों के लिए विशेष शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिए-
✔️ सहज ,रुचिकर शिक्षण पद्धतियों का प्रयोग।
✔️ दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग
✔️ पढ़ाने की गति धीमी रखी जानी चाहिए
✔️ एक समय में या एक बार में कम पाठ्यवस्तु पढ़ाई जानी चाहिए।
✔️ मौखिक शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए
✔️ अर्जित ज्ञान का अभ्यास बार-बार कराया जाना चाहिए।
☘️ निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था➖
विद्यालय में निर्देशन सेवा का गठन और शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिए। अर्थात बालकों के व्यवहार को देखकर उन्हें सही मार्गदर्शन या व्यवसायिक निर्देशन दिया जाना चाहिए इसके माध्यम से शैक्षिक या व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करके पिछड़े बालकों को, सामान्य बालकों की श्रेणी में लाया जा सके।
☘️ विशिष्ट विद्यालय की स्थापना➖ इस प्रकार के विद्यालय की स्थापना करने से
✔️ पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है
✔️ हीन भावना नहीं आती है
✔️ अपनी त्रुटियों के कारण परेशान नहीं रहते हैं।
इस विशिष्ट विद्यालय में उन्हें अपनी कमियों का कम ज्ञान होगा और वे अपने सामान बालकों के समूह में अधिक सुरक्षा का अनुभव करेंगे।
☘️ विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना➖ अगर पिछड़े बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालय की स्थापना ना हो सके तो सामान्य या नियमित विद्यालय में विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना या व्यवस्था की जानी चाहिए।
☘️ व्यक्तिगत ध्यान➖अध्यापक को ऐसे बालकों के व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षण प्रदान करना चाहिए➖
यदि बालकों के प्रति व्यक्तिगत ध्यान नहीं रखेंगे तो बच्चे स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाते हैं और वे अपनी बातों को या परेशानी को नहीं बता पाते हैं इसलिए अध्यापक को प्रत्येक बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान करना चाहिए।
और एक कक्षा में छात्रों की संख्या कम रखनी चाहिए।
☘️ स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना➖पिछड़े बालकों की स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना चाहिए । बालको की अरुचि एवं असफलता के कारण पिछड़े बालक विद्यालय से भागना प्रारंभ कर देते हैं इसके लिए उन्हें उचित राह पर लाकर या सही दिशा में लाकर इस तरह की प्रवृत्ति पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।
☘️ अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए
🍂🌴 समाप्त🌴🍂
●● पिछड़े बालक (Backward child) की विशेषताएं:➖
(1) बहुत ही मंद गति से सीखते हैं तीव्र नहीं कर सकता है:-
ऐसे बालक पढ़ाई के साथ साथ किसी भी काम के प्रति तीव्र नहीं होते है इनकी सोचने समझने की गति बहुत मंद होती है यह कोई भी चीज आसानी से नहीं सीख पाते।
(2) अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पीछे होते हैं:➖
पिछड़ा बालक अपने वर्ग में सभी बच्चों से पीछे रहता है फिर वह पढ़ाई हो खेलकूद हो या कोई अन्य गतिविधियां हो उनके साथ वाले बच्चे काफी आगे निकल जाते हैं लेकिन वह एक ही कक्षा में कई साल लगा लेते हैं इसी को Stagnetion ( प्रवाह विहीन) कहते हैं!
दूसरी ओर, ऐसे बच्चों के शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं।
(3) पिछले बालक का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है:➖
पिछले बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए बुद्धि लब्धि ( IQ) का प्रयोग नहीं होता है बल्कि शैक्षणिक लब्धि (EQ) का प्रयोग होता है! पिछड़ेपन और बुद्धि लब्धि का संबंध होना जरूरी नहीं है अर्थात पिछड़ेपन का कारण IQ कम है यह जरूरी नहीं है कारण कुछ भी हो सकता है!
(4) पिछड़े बालक की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होता है :➖
ऐसे बालकों को किसी भी काम में मन नहीं लगता उनके दिमाग में कुछ से कुछ चलते रहता है इसका ध्यान और रुचि किसी भी काम में बहुत ही थोड़े समय के लिए ही होता है उसका ध्यान तुरंत तुरंत टूट जाता है अर्थात् चित्त स्थिर नहीं रहता।
[5] शैक्षणिक /सामाजिक क्रियाकलाप में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं पाते हैं:➖
शैक्षणिक व सामाजिक रूप से हुए गए क्रियाकलाप में भाग नहीं ले पाते हैं उसको ऐसा लगता है कि वह नहीं कर पाएंगे मुझसे नहीं होगा तथा व समाज में हो रहे किसी भी क्रियाकलाप से दूर रहते हैं लेकिन ऐसा होना किसी प्रकार का दाग धब्बा नहीं है।
[6] समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते:➖
ऐसे बच्चे किसी भी चीज में सूक्ष्मता से विचार नहीं कर पाते हैं
[7] साधारण नियम बातों को भी ना समझ पाना:-
ऐसे बालक छोटी छोटी साधारण सी बातों को आसानी से नहीं समझ पाते हैं
[8] वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते :-
ऐसे बालक वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं क्योंकि वह समाज के वातावरण के अनुरूप खुद को ढाल नहीं पाते
[9] अंतर्मुखी हो ,कम दोस्त हो:➖
ऐसे बालक दूसरों के साथ आसानी से घुल मिल नहीं पाते तथा किसी से ज्यादा बातें करना उनके साथ समय बिताना पसंद नहीं करते और ऐसे बालकों को दोस्त बनाना भी पसंद नहीं होता है
[10] दूरदर्शिता कम होती है:➖
बालों में दूरदर्शिता काफी कम होती है।
[11] समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं;➖
ऐसे बालक को समाज में अनेक प्रकार की विषय वस्तु देखने को मिलती हैं लेकिन वह उस समाज में खुद की भागीदारी नहीं रख पाते ना उसके अनुसार खुद का दृष्टिकोण रखते हैं।
[13] निराशावादी होते हैं:➖
ऐसे बालकों के अंदर किसी भी काम के के लिए नकारात्मक सोच होती हैं।
🐾🐾 पिछड़े बालक की शिक्षा🐾🐾
🔅 पिछले बालक की शिक्षा के लिए:➖
💧शिक्षक
💧अभिभावक
💧समाजसेवक
💧 विद्यालय
💧 चिकित्सक
इन सभी का काफी योगदान होता है! इन्हें एक साथ काम करना चाहिए पिछड़ेपन के कारणों को खोजना चाहिए तथा उचित उपचार करना चाहिए।
🌼 उपचार शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है➖➖
1️⃣ उपचार करना:➖
अगर किसी बालकों के अंदर किसी भी प्रकार का दोष हो तो खोज कर उस दोस्त का उपचार यह समाधान ढूंढना होगा
जैसे यदि कोई बच्चा को देखने या सुनने में समस्या है तो हम उसे आगे बैठ आएंगे।
2️⃣ आर्थिक सहायता:➖
साधारणतया देखा जाता है ऐसे बच्चे काफी निर्धन परिवार से संबंध रखते हैं जिसके पास पढ़ने के लिए किताबें,कलमें या कई बार आर्थिक स्थिति के कारण वह विद्यालय नहीं जा पाते हैं ऐसे में यह कर्तव्य बनता है कि उन बच्चों को छात्रवृत्ति निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था कराई जाए
3️⃣ हस्त उद्योग:➖
ऐसे बच्चे कई बार अपनी शिक्षा और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हस्त उद्योग का प्रशिक्षण करते हैं आजकल जगह-जगह कई निशुल्क प्रशिक्षण दिए जाते हैं ताकि बच्चे वहां से कुछ सीख सके और व्यवसाय कर सके।
जैसे हमारी सरकार मुफ्त में कई योजनाओं का निर्माण की है जिसके अंतर्गत विद्यार्थी मुफ्त में कामों को सीखते हैं और फिर वह व्यवसाय करते हैं।
4️⃣ बच्चे के लिए विशेष पाठ्यक्रम:➖
ऐसे बच्चों को काफी सरल रुचिकर लचीला पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है जो उसके जीवन के लिए उपयोगी या व्यावसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण हो
5️⃣ विशेष शिक्षण पद्धति:➖
पिछड़े बालकों को पढ़ाने के लिए सरल रुचिकर शिक्षण विधि दृश्य श्रव्य सामग्री का उपयोग करना चाहिए ताकि बच्चे जल्दी समझ सके और सीख सके ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए हमें पढ़ाने की गति धीमी रखनी चाहिए अन्यथा बच्चों को सीखने और समझने में कठिनाई उत्पन्न होगी !
बच्चों को एक समय पर एक ही चीज पढ़ानी चाहिए एक से ज्यादा नहीं और ऐसे बच्चे मौखिक रूप से पढ़ाई हुई चीजों को जल्दी समझते हैं इसलिए हमें मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग करना चाहिए! साथ ही साथ अभ्यास ज्यादा से ज्यादा कराना चाहिए।
🌻 निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था:➖
स्कूलों में पिछड़े बालकों के लिए निर्देशन सेवा का गठन तथा शैक्षिक व्यावसायिक निर्देशन की व्यवस्था होनी चाहिए!
बच्चों को सामान्य श्रेणी में लाया जा सके!
🌻 विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना:➖
ऐसे बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालय की स्थापना होना अनिवार्य है ताकि वहां उनके अनुसार शिक्षक उपलब्ध होते हैं अगर हम ऐसे बालकों को सामान्य बालकों की श्रेणी में रखेंगे तो विशिष्ट बालकों को हमेशा यह आभास होते रहेगा कि वह सामान्य बालक से पीछे है तथा उसके अंदर कमियां है। इस विशिष्ट विद्यालय का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि उसके अंदर बच्चों को:-
🍂 पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है।
🍂 हीन भावना नहीं आती है।
🍂 अपनी त्रुटि के कारण परेशान नहीं होते।
🌻 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना:➖
अगर सामान्य विद्यालयों में विशिष्ट बालक है तो ऐसे बालकों के लिए उसी विद्यालय में विशिष्ट कक्षा की व्यवस्था होना अनिवार्य है।
🌻 व्यक्तिगत ध्यान:➖
ऐसे बालकों के अंदर हमेशा यह भावना रहती है कि शिक्षक उसके ऊपर ज्यादा ध्यान दें ताकि बालक शिक्षा के सामने बेझिझक अपनी परेशानी बातों को रख सके वहीं दूसरी ओर शिक्षकों का भी यह कर्तव्य होता है कि कि वह ऐसे बालको पर ज्यादा ध्यान दें और उसकी विभिन्न परेशानियों का समाधान करें। शिक्षकों का दायित्व होता है कि ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए व्यक्तिगत विभिनता का सम्मान करें और वर्गों में छात्रों की संख्या कम रखे ताकि वह सभी छात्रों पर बराबर ध्यान दे पाए!
🌻 स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना:➖
पिछड़े बालकों को अपने अंदर की कमियां हमेशा झलकती रहती है जिसके कारण उसे विद्यालय में रुचि ,निराशा, असफलता और उचित राह न मिल पाने के कारण उसे विद्यालय में मन नहीं लगता और वह स्कूल से भागने लग जाते हैं।
ऐसे में एक शिक्षक का दायित्व है कि वह ऐसे बच्चों को विद्यालय में रुकने के लिए उचित राह मार्गदर्शन और उनकी रूचि के हिसाब से कार्यक्रम आयोजित करे!
🌸🌸MAHIMA KUMARI🌸🌸
🏵️ पिछड़े बालक की विशेषताएं🏵️
🔘 पिछड़े बालक मंद गति से सीखते हैं ➖ ऐसे बालकों को अधिगम कराते समय मंद गति से अधिगम कराना चाहिए क्योंकि तीव्र गति से अधिगम कराने पर यह विषय वस्तु को सही तरीके से नहीं समझ पाते और अधिगम पिछड़ जाता है ।
🔘 शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े ➖ऐसे बालक अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं।
प्रवाह विहीन (stagnation)- इनके शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं।
🔘 पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध➖ऐसे बालकों के पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है।
पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए IQ का प्रयोग नहीं होता है EQ का प्रयोग होता है।
🔘 ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए➖ पिछड़े बालकों का ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होता है इसके बाद इनका ध्यान भटक जाता है।
यह कुछ समय के लिए ही एकाग्रचीत हो पाते हैं और इनकी रूचि थोड़े समय के लिए ही अधिगम में लगती है उसके बाद इनका ध्यान भटक जाता है।
🔘 सामाजिक क्रियाकलापों में भाग न लेना ➖ पिछड़ा बालक शैक्षणिक रूप से या सामाजिक रूप से जो क्रियाकलाप होते हैं उनमें भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं कर पाते हैं । उनके अंदर एक भय रहता है कि वह समाज के सामने कहीं कोई गलती ना कर दे। उनके अंदर झिझक बनी रहती है।
🔘 समस्या पर चिंतन ना कर पाना➖पिछड़ा बालक समस्याओं पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते। वह गहन चिंतन, विचारों पर मंथन नहीं कर सकते, क्योंकि वह एकाग्र चित्त नहीं होते इसलिए समस्या समाधान नहीं कर पाते।
🔘 बातो और नियमों को ना समझ पाना ➖ ऐसे बालक साधारण सी बातें और नियमों को नहीं समझ पाते हैं।
🔘 वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते➖ ऐसे बालक वातावरण के बदलने पर सामंजस्य नहीं कर पाते उन्हें अलग-अलग वातावरण में सामंजस्य करने में कठिनाई आती है।
🔘 अंतर्मुखी होते हैं➖ऐसे बालक अंतर्मुखी होते हैं इस कारण से वह किसी से ज्यादा मिलते जुलते नहीं है और उनके कम दोस्त होते हैं।
🔘 दूरदर्शिता कम होती है➖ ऐसे बालको की दूरदर्शिता कम होती है वह आगे आने वाले समय या भविष्य के लिए नहीं सोच पाते हैं कम चिंतन कर पाते है।
🔘 यथार्थ दृष्टिकोण ना रख पाना➖ ऐसे बालक समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते।
🏵️ पिछड़े बालकों की शिक्षा 🏵️
पिछड़े बालकों की शिक्षा के लिए➖
शिक्षक
अभिभावक
समाज सेवक
विद्यालय
चिकित्सा
▪️इन सब को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए।
▪️बालकों के पिछड़ेपन के कारणों को खोजना चाहिए।
▪️उचित उपचार दिया जाना चाहिए।
🏵️ उपचार / शिक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान देना आवश्यक है🏵️
◼️ उपचार➖ ऐसे बालकों के दोष/ रोग का उपचार करना चाहिए है या समाधान ढूंढना चाहिए है जैसे अगर किसी को कम दिखाई पड़े तो उसे आगे बैठाए।
◼️ आर्थिक सहायता➖ जो पिछड़े बालक निर्धन परिवार से होते हैं उन बच्चों को छात्रवृत्ति देना, उन को आर्थिक सहायता प्रदान करना या उनकी फीस माफ करना जिससे वह आगे की पढ़ाई पूरी कर सके।
◼️ हस्त उद्योग➖ पिछड़े बालकों के लिए हस्त उद्योगों से संबंधित कार्यों को सिखाना जिससे वह छोटे-मोटे व्यापार शुरू कर सकें और अपनी जीविका के लिए अर्जन कर सके।
◼️ विशेष पाठ्यक्रम➖ऐसे
बालकों के लिए सरल, रुचिकर, लचीला, जीवन यापन के लिए उपयोगी ,व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण पाठ्यक्रम की व्यवस्था करनी चाहिए।
◼️ शिक्षण पद्धति➖
- ऐसे बालकों के लिए सरल ,रूचि कर शिक्षण विधि का उपयोग करना चाहिए जिससे उन्हें सरलता से पाठ समझ आ सके।
- दृश्य श्रव्य सामग्री का ज्यादा से ज्यादा उपयोग जिससे अधिगम कराए गए पाठ उन्हें याद हो जाए।
-पढ़ाने की गति धीमी होनी चाहिए जिससे क्या शब्द बोले जा रहे हैं उनको समझ में आयेगा। - एक बार में ज्यादा चीजों को ना पढ़ाई जाए।
- मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम।
- अर्जित ज्ञान का अभ्यास ज्यादा से ज्यादा करवाया जिससे उनको पढ़ाया गया पाठ याद हो जाए।
◼️ बच्चों के लिए निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था➖
-एक सही निर्देशन देना।
- स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन हो शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था करनी चाहिए।
-इसके द्वारा शैक्षिक/ व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालक की श्रेणी में लाया जाए।
◼️ विशिष्ट विद्यालय की स्थापना➖ऐसे बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना करनी चाहिए जिससे
- बालको में पढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है ।
-उनके अंदर हीन भावना नहीं आती है क्योंकि सभी बच्चे समान ही होते हैं।
-अपनी त्रुटि के कारण परेशान नहीं रहते।
◼️ विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना➖ऐसे बालकों के लिए अगर विशिष्ट विद्यालय की स्थापना ना हो सके तो सामान्य विद्यालयों में ही विशेष कक्षाओं की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे वह सामान्य विद्यालय में ही विशिष्ट शिक्षा प्राप्त कर सकें।
◼️ व्यक्तिगत ध्यान➖ शिक्षकों को पिछड़े बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान करना चाहिए कभी इस तरीके का व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे उनमें हीन भावना आए। उन्हें ऐसा लगे कि वह दूसरों से कम है।
- विशिष्ट कक्षाओं में छात्रों की संख्या कम रखनी चाहिए जिससे प्रत्येक छात्र के ऊपर पूर्ण रुप से ध्यान दिया जा सके, उनकी समस्याओं को देखा जा सके।
◼️ स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना➖ पिछड़े बालकों को विद्यालय में अच्छा नहीं लगता है क्योंकि वह असफल होते हैं , उनकी अच्छी पढ़ाई में नहीं होती है, इसलिए उन्हें कक्षा में मन नहीं लगता है और वह स्कूल से भागना शुरू कर देते हैं हमें समय पर उन्हें उचित राह दिखाकर नियंत्रण करना चाहिए।
धन्यवाद
द्वारा-
वंदना शुक्ला
🎄🌸Meenu Chaudhary 🌸🎄
🌈पिछड़े बालक की विशेषताएं :-
🏵ऐसे बालक बहुत ही मन्द गति से सिखते हैं तीव्र गति से नहीं कर पाते हैं और सीखकर जल्दी भूल जाते हैं |
🏵ऐसे बालक अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं ये एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं पिछड़ेपन के अनेक हो सकते हैं |
🏵पिछड़े बालकों का बुद्धि लब्धि से ही सबंध हो, ये जरूरी नहीं है क्योंकि बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए IQ का प्रयोग नहीं होना चाहिए | पिछड़े बालकों में EQ का प्रयोग होता है |
🏵पिछड़े बालकों की ध्यान और रुचि थोडे़ समय के लिए होती है ये ज्यादा देर तक किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं |
🏵ऐसे बालक चाहे शैक्षिक हो या सामाजिक किसी भी क्रियाकलापों में भाग नहीं लेते हैं कोई भी कार्यक्रम हो या उत्सव हो ये उसमें भाग लेने कतराते हैं |
🏵पिछड़े बालक किसी भी कठिन समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर पाते हैं ये समस्या सुलझाने में लम्बा समय लगते हैं |
🏵ये किसी भी साधारण सी बातों और नियमों नहीं समझ पाते हैं ये बातों को देरी से समझते हैं|
🏵ऐसे बालक वातावरण के साथ अपना ताल- मेल नहीं बैठा पाते हैं |
🏵इनकी सोचने की क्षमता बहुत ही कम होती है ये किसी भी बात को समझने में समय लगते हैं |
🏵ऐसे बालक निराशावादी होते हैं ये अपनी अपनी असफलताओ से बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं |
🌈पिछड़े बालक की शिक्षा :-
पिछड़े बालकों के लिए चाहिए की शिक्षक , अभिभावक, समाजसेवक , चिकित्सक ये सब लोग एक साथ मिलकर पिछड़े बालकों के कारणों की खोज करे | और उसी के अनुसार पिछड़े बालकों की समस्याओं को दुर करने का प्रयास करे |
👉उपचार या शिक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान देना आवश्यक है –
1🚥उपचार :- पिछड़े बालकों के रोग या दोष का पता लगाएंगे और उनका उपचार करेगें | अगर उन्हें धीरे सुनाई दे या कम दिखाई दे तो उन्हें आगे बैठाएंगे |
2🚥आर्थिक सहायता : – ऐसे निर्धन परिवार के बच्चों को छात्रवृत्ति व निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये |
3🚥हस्त उद्योग :- ऐसे बालकों को हस्त कलाएँ सिखाने की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि वह अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर सके |
4🚥विशेष पाठ्यक्रम :- ऐसे बालकों के लिए पाठ्यक्रम को सरल, रुचिकर, लचीला
और जीवन के लिए व्यवसाय के रूप में उपयोगी हो |
5🚥विशेष शिक्षण पद्धति :-
🌷सरल , रुचिकर शिक्षण विधि का प्रयोग |
🌷दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग |
🌷पढ़ाने की गति धीमी रखनी चाहिए |
🌷एक बार में ज्यादा चीजे नहीं पढ़ाये जाए |
🌷मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम किया जाए |
🌷अर्जित ज्ञान का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करवाना चाहिए |
6🚥निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था : – विद्यालयों में निर्देशन सेवा का गठन हो ,
शैक्षिक और व्यवसाय निर्देशन की व्यवस्था हो | इसके द्वारा शैक्षिक या व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालक की श्रेणी में लाया
जाए|
7🚥विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना :-
ऐसे विद्यालयों से बच्चों को –
🌷पढ़ने प्रोत्साहन मिलता है |
🌷हीन भावना नहीं आती है|
🌷अपनी गलती के कारण परेशान नहीं
होते हैं |
8🚥विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना :- अगर विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना न हो सके तो विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना करनी चाहिए ताकि उनको शिक्षा मिल सके |
9🚥व्यक्तिगत ध्यान :- अध्यापक व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखकर शिक्षण करे | सबको एकसमान शिक्षा दे सारे बच्चों पर ध्यान दें और छात्रों की सख्यां कम रखनी चाहिए |
10🚥बच्चों की विद्यालयों से भागने की प्रवृत्ति को रोकना चाहिए | बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए
🌺🏵Thank you🏵🌺
🌹Meenu Chaudhary🌹
📌 पिछड़े बालक की विशेषताएं:–
📍 १. मंद गति से सीखना–
पिछड़े बालक मंद गति से या बहुत धीमी गति से सीखते हैं तथा यह अपने किसी भी कार्य को शीघ्रता से नहीं कर पाते हैं।
📍 २. अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पीछे रहना–
शैक्षिक क्षेत्र में बच्चा अपने उम्र के बच्चों से एक ही कक्षा में पीछे रह जाते हैं तथा इसमें बच्चे को सीखने में कई साल भी लग जाते हैं । इसी प्रक्रिया को “प्रभावहीन” ( stagnation) कहा जाता है, जिसके कारण शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं।
📍 ३. पिछड़ेपन का बुद्धि– लब्धि से आवश्यक संबंध ना होना–
पिछड़े बालकों में पिछड़ेपन का बुद्धि –लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है अर्थात् पिछड़े बालक का अर्थ स्पष्ट करते हुए बच्चे की बुद्धि –लब्धि (I.Q.) का प्रयोग नहीं होता है। इसमें विशेष रुप से बच्चे की शैक्षिक लब्धि ( E.Q.) को महत्व दिया जाता है ।
★ IQ= (Intelligence Quotient) मानसिक स्तर पर होती है । जबकि EQ =(Educational Quotient) शैक्षिक स्तर पर होती है।
📍 ४. पिछड़े बालक में ध्यान और रुचि का अभाव–
पिछड़े बालक में ध्यान और रुचि कुछ समय के लिए ही स्थिर रह पाती है, ज्यादा समय के लिए यह अपना ध्यान एक जगह पर केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
📍 ५. शैक्षणिक/सामाजिक क्रियाकलाप में अपने आप को सामर्थ न कर पाना–
पिछड़े बालक शैक्षणिक या सामाजिक क्रियाकलाप में अपना योगदान नहीं दे पाते हैं जैसे:– विद्यालय कार्यक्रम खेलकूद, प्रतियोगिता , वाद –विवाद , सामाजिक कार्यों आदि में भाग लेने में अपने आप को असमर्थ महसूस करते है ।
📍 ६. किसी समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार/गहन चिंतन न कर पाना–
पिछड़े बालक अपने जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान तथा सूक्ष्म रूप से विचार, गहन चिंतन या समस्याओं पर विश्लेषण नहीं कर पाते हैं।
📍 ७. साधारण सी बातों या नियमों को न समझ पाना–
पिछड़े बालक साधारण सी बातों या नियमों को आसानी से समझ नहीं पाते हैं
📍 ८. वातावरण के साथ सामंजस्य न कर पाना–
पिछड़े बालक वातावरण या अपनी परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं।
📍 ९. अंतर्मुखी होते हैं–
ऐसे बच्चों में ज्यादातर अंतर्मुखी होने की संभावना पाई जाती है इनके बहुत ही कम दोस्त होते हैं तथा किसी से अपनी बातों की अभिव्यक्ति नहीं कर पाते हैं और अकेले रहना पसंद करते हैं।
📍 १०. दूरदर्शिता कम होती है–
ऐसे बच्चे में दूरदर्शिता बहुत ही कम होती हैं यह किसी चीज पर ज्यादा दूर तक नहीं सोच पाते हैं।
📍 ११. समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण न बना पाना–
पिछड़े बालक समाज मैं स्वयं के प्रति किसी भी तरह का यथार्थ दृष्टिकोण नहीं बना पाते है।
📍 १२. निराशावादी होते हैं–
ऐसे बच्चे निराशावादी होते हैं तथा अपने जीवन को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं अगर यह कोई कार्य नहीं कर पाते हैं तो इनके अंदर निराशा उत्पन्न हो जाती है।
📌 पिछड़े बालकों की शिक्षा–
पिछड़े बालकों की शिक्षा के लिए निम्न लोगों की सहयोग की आवश्यकता पड़ती है जिसमें शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है ये इस प्रकार से है–
१. शिक्षक
२. अभिभावक
३. समाज सेवक
४. विद्यालय
५. चिकित्सक
सभी को एक साथ मिल कर काम करना चाहिए ,जिससे वे बच्चे के पिछड़ेपन के कारणों को खोज सके और बालक का उचित तरीके से उपचार/ शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान दे सके जो आवश्यक है–
📍 १. उपचार–
बच्चे के दोषों व रोगों का उपचार करना या समाधान खोजना, जैसे किसी बच्चे को कम दिखाई या कम सुनाई पड़ता है तो उस बच्चे को आगे बिताएंगे और उचित प्रकाश की व्यवस्था करेंगे।
📍 २. आर्थिक सहायता–
आर्थिक स्थिति से पिछड़े हुए बच्चे या निर्धन परिवार के बच्चे को छात्रवृत्ति या नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
📍 ३. हंसते उद्योग–
पिछड़े बालकों को हस्त उद्योग का परीक्षण दिया जाए जिससे बच्चे कुछ हस्त उद्योग या लघु व्यवसाय प्रारंभ कर सकें।
📍 ४. विशेष पाठ्यक्रम–
विशेष पाठ्यक्रम से अर्थात तात्पर्य है कि पाठ्यक्रम को सरल, रुचिकर, लचीला, जीवन के लिए उपयोगी अथवा व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण हो।
📍 ५. विशेष शिक्षण पद्धति–
विशेष शिक्षण पद्धति में पिछड़े बच्चे को पढ़ाने के तरीकों की बात की गई है जो निम्न है–
★सरल, रुचिकर शिक्षण विधियों का प्रयोग।
★दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग।
★पढ़ाने की गति धीमी रखी जाए।
★मौखिक शिक्षण विधियों का प्रयोग कम किया जाए।
★अर्जित ज्ञान का अधिक से अधिक अभ्यास करवाया जाए।
इन सब से बच्चे अच्छे और बेहतर तरीके से पढ़ व सीख पाएंगे।
७. निर्देशित सेवाओं की व्यवस्था–
बच्चे का उचित मार्गदर्शन करने के लिए स्कूल में निर्देशित सेवाओं का गठन हो, शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था हो किसके द्वारा शैक्षिक/ व्यवहारिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालक की श्रेणी में लाया जा सके।
📍 ७. विशिष्ट विद्यालय की स्थापना–
★इस प्रकार के विद्यालय में पिछड़े बालकों को पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है।
★बच्चों में हीन भावना नहीं आती है।
★अपनी त्रुटि या कमियों के कारण परेशान नहीं रहते हैं।
📍 ८. विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना–
अगर पिछड़े बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालय की स्थापना न हो सके तो विशिष्ट कक्षा की स्थापना सामान्य विद्यालय में करें जिससे उनको अपनी कक्षा कक्ष में अनुकूलन लगे।
📍 ९. व्यक्तिगत ध्यान–
व्यक्तिगत विभिन्नता निम्न है
★व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान करें।
★छात्रों की संख्या कम रखे जिससे प्रत्येक बालक पर ध्यान दिया जा सके।
★अध्यापक को नेचुरल रहना बहुत जरूरी है।
📍 १०. स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना–
पिछड़े बालक रूचि और असफलता के कारण विद्यालय से भाग जाते हैं इसके लिए अध्यापक को बच्चों को उचित राह पर लाएंगे और उन पर नियंत्रण करेंगे।
✍🏻 Notes by – Pooja
👨💼पिछड़े बालक की विशेषताएं👨💼
- पिछड़ा बालक मंद गति से सीखता है यह किसी भी कार्य हो धीमी गति से करता है वा सीखता है।
- अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं, ऐसे बालक एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं।
प्रवाह विहीन:-इनके शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं। - ऐसे बालकों का बुद्धि लब्धि से संबंध हो जरूरी नहीं है लेकिन शैक्षिक लब्धि कम होती है। यह बालक पढ़ने में सामान्य बालक ओं की अपेक्षा पीछे रहते हैं।
हमें पिछड़े बालक ओं का अर्थ स्पष्ट करते हुए आईक्यू का प्रयोग नहीं करना चाहिए। - पिछड़े बालक की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होती है। यानी हम कह सकते हैं कि उनको बताई गई बातें उन्हें कुछ समय के लिए ही याद रहती हैं या वह किसी चीज में रुचि रखते हैं तो वह रुचि बहुत कम समय के लिए होती है।
- शैक्षिक/सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आपको समर्थ नहीं मानते। उन्हें यह लगता है कि मैं यह काम नहीं कर पाऊंगा या मैं यह नहीं पढ़ पाऊंगा।
- पिछड़े बालक समस्या पर सूक्ष्म या महीन रूप से विचार नहीं कर सकते हैं
- पिछड़े बालक साधारण सी बातें और नियमों को नहीं समझ पाते हैं उन्हें इन बातों को समझने में समय लगता है या फिर वह किसी तरह बातों को समझ भी लेते हैं तो कुछ समय के बाद वह इन बातों को भूल जाते हैं।
- पिछड़े बालक वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं। उन्हें लोग हीन भावना से देखते हैं जिसके कारण वह वातावरण के साथ सामंजस्य करने में असमर्थ रहते हैं वह चाह कर भी समाज के साथ या वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता है।
- पिछड़े बालक अंतर्मुखी होते हैं तथा इनके कम दोस्त होते हैं।
- समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं ऐसे बालक अपने भविष्य या वर्तमान के बारे में चिंतन नहीं कर पाते हैं।
- समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते हैं:-ऐसे बालक उनके सामने उपस्थित समस्या का सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते हैं उन्हें उस विषय पर चिंतन करने में समय लगता है तथा वह गहराई से उस बात को नहीं समझ पाते हैं।
- पिछड़े बालक निराशावादी होते हैं क्योंकि यह सामान्य बालकों की अपेक्षा पीछे होते हैं तो वह सामान्य बालको के जैसे किसी समस्या पर इतना चिंता नहीं कर पाते जितना सामान्य बालक कर लेता है यही सब देखकर वह खुद को सामान्य बालक से अलग समझने लगता है और उसके मन में निराशा जैसे भाव उत्पन्न हो जाते हैं।
- पिछड़े बालकों में दूरदर्शिता काफी कम होती है।
🔅 पिछड़े बालक की शिक्षा🔅
पिछड़े बालक की शिक्षा के लिए मुख्य रूप से हमारे वातावरण में 5 प्रमुख स्त्रोत हैं
🌱 शिक्षक
🌱 अभिभावक
🌱 समाज सेवक
🌱 विद्यालय
🌱 चिकित्सक
1️⃣ इन सभी को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए।
2️⃣ इन सभी को पिछड़े बालक के पिछड़ेपन के कारण को खोजना चाहिए
3️⃣ इन सभी को पिछड़ेपन के कारण को खोजने के बाद उनका उचित उपचार किया जाना चाहिए।
🔆उपचार/शिक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान देना आवश्यक है🔆
🔅 उपचार:- दोष/रोग का उपचार करना चाहिए या उस बालक में जो समस्या है उसका समाधान ढूंढना चाहिए या यदि विद्यालय में कोई ऐसा बालक है जिसे कम दिखाई देता है शिक्षक को चाहिए कि उस बालक को वह आगे की पंक्ति में बिठाए ताकि बालक को श्यामपट्ट पर लिखी हुई लाइने स्पष्ट दिखाई दें तथा वह अपने कार्य को बिना किसी समस्या के पूरा करें।
🔅आर्थिक सहायता:-निर्धन परिवार के बच्चों को छात्रवृत्ति व नि निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाए।
🔅हस्त उद्योग:- ऐसे बालक को हस्त उद्योग का प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वह किसी व्यवसाय को कर सकें तथा आगे चलकर अपने जीविकोपार्जन मैं लग सके।
🔅 विशेष पाठ्यक्रम:-ऐसे बालक बालिकाओं के लिए पाठ्यक्रम सरल रुचिकर लचीला जीवन के लिए उपयोगी व्यवसायिक रूप से उद्देश पूर्ण होना चाहिए।
🔅 विशेष शिक्षण पद्धतियां:-शिक्षक को कक्षा में शिक्षण कराते समय विशेष शिक्षण पद्धतियों का उपयोग करना चाहिए
१) सरल रुचिकर शिक्षण विधि,
२)दृश्य श्रव्य सामग्रियों का उपयोग, ३)शिक्षक को चाहिए कि वह पिछड़े बालक ओं को पढ़ाते समय अपने पढ़ाने की गति धीमी रखें,
४)शिक्षक को एक बार में ज्यादा चीजें नहीं पढ़ाना चाहिए क्योंकि पिछड़ा हुआ बालक किसी चीज को तुरंत तो याद रख सकता है लेकिन बाद में वह इन बातों को भूल जाता है इसलिए शिक्षक को चाहिए कि वह ज्यादा चीजें ना पढ़ाएं
🔅मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम करना चाहिए।
🔅 निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था :-विद्यालय में निर्देशन सेवाओं का गठन और शैक्षिक व्यावसायिक निर्देशन की व्यवस्था की जानी चाहिए बालको को मार्गदर्शन या व्यावसायिक निर्देश दिया जाना चाहिए इसके माध्यम से शैक्षिक व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करके पिछड़े बालक को सामान्य बालकओं के साथ खड़ा किया जा सकता है।
🔅 विशिष्ट विद्यालय की स्थापना:- हमें पिछड़े बालकओं के लिए विशिष्ट विद्यालय की स्थापना करना चाहिए जिससे बालक को
1️⃣ पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है।
2️⃣ हीन भावना नहीं आती है।
3️⃣ अपनी त्रुटियों के कारण परेशान नहीं रहते हैं।
विशिष्ट विद्यालय की स्थापना से बालक में हीन भावना नहीं आएगी क्योंकि वहां उसके ही समान उसके साथी होंगे वहां का वातावरण उसके अनुकूल होगा।
🔅 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना:-किसी कारणवश यदि हम विशिष्ट विद्यालय की स्थापना नहीं कर सकते तो हमें विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना करनी चाहिए ताकि पिछड़ा बालक भी सामान्य बालक की तरह शिक्षा ग्रहण कर सके।
🔅 व्यक्तिगत ध्यान:-ऐसी बालकों के लिए अध्यापक को व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षा प्रदान करना चाहिए।
🔅 स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना:-पिछड़े बालक को स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना चाहिए।बालक जब स्कूल में अपने अनुकूल वातावरण को नहीं पाता है तो वह स्कूल से किसी भी हाल में छुटकारा पाना चाहता है और वह स्कूल से भागने का एक रास्ता अपनाता है जो कि गलत है हमें चाहिए कि हम बालक को समझाएं तथा उसे सही राह दिखा कर उसकी इस प्रवृत्ति को कम करने का प्रयास करें।
✍🏻✍🏻Notes by Raziya khan✍🏻✍🏻
🌷 पिछड़े बालकों की विशेषतायें 🌷
पिछड़े बालकों में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं –
- पिछड़े बालक मंद गति से सीखते हैं ऐसे बालक तीव्र गति से नहीं सीख पाते हैं, अर्थात सामान्य बालकों की अपेक्षा पिछड़े बालकों में समझने और सीखने का गुण बहुत ही निम्न स्तर का पाया जाता है इसीलिए पिछड़े बालक जल्दी सीखने में असमर्थ पाए होते हैं।
- पिछड़े बालक अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं, इस कारण से पिछड़े बालक एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं। अतः शैक्षिक क्षेत्र में इस दोष को (Stagnation) प्रवाहविहीन कहते हैं जिसमें शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं।
- पिछड़ेपन का मात्र बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है। पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए [ ‘IQ’ intelligence Quotient बुद्धिलब्धि ] का प्रयोग नहीं होता है बल्कि [‘EQ’ educational Quotient शैक्षिक लब्धि] का प्रयोग होता है। अर्थात पिछड़े बालकों की बुद्धिलब्धि को पूर्णतः महत्व न देकर बल्कि उनकी शैक्षिक लब्धि को महत्व दिया जाता है।
- पिछड़े बालकों में रुचि और ध्यान कम समय के लिए ही होता है। ऐसे बालक अपने कार्यों, अपनी चीजों से जल्दी भटक जाते हैं। पिछड़े बालकों में एकाग्रता Concentration ( चित्त स्थिरता ) की कमी पाई जाती है।
- शैक्षणिक / सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को सामर्थ्य नहीं पाते हैं। अतः पिछड़े बालकों की शैक्षिक लब्धि और आत्मविश्वास Confidence कम होने के कारण ये बालक अपने मानसिक रूप से ही खुद को पीछे समझ लेते हैं।
- ऐसे बच्चे समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर पाते हैं। पिछड़े बालकों में किसी भी समस्या पर गहन चिंतन, या किसी भी बात में विचार मंथन करने की क्षमता नहीं होती है। अर्थात इनमें सोचने, समझने की क्षमता बहुत मंद होती है।
- साधारण सी बातों को और नियमों को जल्दी नहीं समझ पाते हैं। जैसे कि इनकी शैक्षिक लब्धि कम होने के कारण ये बातें, नियमों आदि को तुरंत नहीं समझ पाते हैं।
- पिछड़े बालक वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं। अतः ये किसी भी माहौल में खुद को जल्दी समायोजित, Adjustment करने में असमर्थ, Uncomfortable होते हैं।
- पिछड़े बालक अंतर्मुखी होते हैं एवं इनके कम दोस्त होते हैं। अर्थात पिछड़े बालक Reserve nature के होते हैं।
- पिछड़े बालकों में दूरदर्शिता कम होती है। ये आगे का अर्थात अपने भविष्य तक का नहीं सोच पाते हैं।
- पिछड़े बालक समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोंण नहीं रख पाते हैं। अर्थात पिछड़े वालक खुद ही वास्तविकता का जीवन नहीं जीते हैं।
- पिछड़े बालक निराशावादी होते हैं। ऐसे बच्चों में नकारात्मकता अधिक पाई जाती है।
पिछड़े बालक की विशेषताएं निम्न है
1– पिछड़े बालक मन्द गति से सीखते है ,,यह धीमी गति से सीखते है किसी भी कार्य को सीखने में समय लेते है
2– पिछड़े बालक अपनी उम्र के बच्चो की तुलना में कम और धीमी गति से सीखने के साथ साथ एक ही कक्षा में कई साल लगा देते है जिस कारण इनके आगे बड़ने की गति प्रवाह विहीन हो जाती है और इस प्रवाह विहीनता के कई कारण हो सकते है
अगर हम बात करे पिछड़ेपन कि तो पिछड़ेपन का बुध्दि लब्दि से कोई सम्बन्ध नहीं होता यह बालक भी सामान्य बालक की तरह आइक्यू वाले होते है यह शैचिक स्तर कम (EQ) या पिछड़े होते है
पिछड़े बालक का ध्यान एवं रूचि थोड़े समय के लिए ही होता है अर्थात् हम कह सकते है कि इनमें एकाग्रता की कमी और रहती है और रूचि बदलती रहती है
सामाजिक और सांस्कृतिक क्रिया कलाप में भी यह सक्रियता के साथ कार्य करने या भाग लेने मे असहज महसूस करते है ओर जिस कारण यह मन कहीं ना कहीं हीन भावना से ग्रसित हो जाते है और अपने आप को पिछड़ा महसूस करने लगते है ।
अर्थात् इनमें आत्मविश्वास की कमी रहती है
किसी समस्या पर या समस्या समाधान के लिए यह सुछम रूप से विचार नहीं कर पाते इनके सोचने की क्षमता या विश्लेषण करने की क्षमता में मानसिक शक्ति का गहराई से चिंतन नहीं कर पाते
यह बालक साधारण बात या नियम या को भी नहीं समझ पाते ।
यह बालक अंतर्मुखी तो होते हैं जिस कारण इनके मित्र भी कम ही होते है और यह तुरंत ओरो में नहीं घुल मिल पाते
अंतर्मुखी होना पिछड़ेपन को इंगित नहीं करता लेकिन वैज्ञानिकों ने इस बात को स्वीकार किया है कि पिछड़े बालक भी अंतर्मुखी होते है
इनमें दूरदर्शिता कम होती है भविष्य के बारे में नहीं सोच पाते और यह किसी भी बात का जो भविष्य पर आधारित है उसका निर्णय लेने में खुद को असहज या अचम रहते है
यह बालक समाज में स्वंम के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं अपनाते क्युकी यह वास्तविकता को नहीं समझ पाते
यह बालक निराशावादी तो होते ही है ओर जीवन के प्रति भी इनका दृष्टिकोण भी नकारात्मक होता है और यह किसी भी कार्य के परिणाम के प्रति भी असफलता या निराशा ही देखते है ।
पिछड़े बालक की शिक्षा —
टीचर
मातापिता
अभिभावक
समाज सेवक
विद्यालय
चिकित्सक
इन सभी को पिछड़े बालक की पहचान कर उन्हें सहयोग ओर उपचार देना चाहिए ताकि यह बालक भी सामान्य बालक की तरह पढ़े ओर बढ़े।
इन बालक की पहचान के बाद निम्न प्रकार से शिक्षा देना चाइए
1– हस्त उद्योग
2–आर्थिक सहायता
3– विशेष पाठ्यक्रम
4– विशेष शिक्षण विधि
5– दृश्य श्रव्य सामग्री
6–मौखिक रूप से कम ओर लिखित रूप से ज्यदा समझाए
7– एक बार में बहुत ज्यादा पढ़ाने की कोशिश नहीं करें
8– अधिक से अधिक अभ्यास करवाए
9– शारीरिक रूप से पिछड़े बालक को क्लास में सबसे आगे बैठाए
निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था स्कूल में करवाए ताकि बालक को निर्देशन की सहायता से व्यावसायिक ओर जीवन उपयोगी निर्देशन देकर उन्हें सामान्य बालक की श्रेणी में लाया जा सके
विशिष्ट विद्यालय की व्यवस्था करे ताकि bxhhe अपने जैसे ही ओर बच्चो में खुद को समान महसूस करे हीन भावना ना आए और पड़ने का प्रोत्साहन भी मिले
अपने जैसे ही बालको के बीच रहने से वह अपनी त्रुटि पर jyda परेशान नहीं होगे ओर आराम से सीखने में समर्थ होगे ओर धीरे धीरे आत्मविश्वासी होगे
अगर विशिष्ट विद्यालय की व्यवस्था नहीं होती तो सामान्य विद्यालय में ही विशिठ क्लास की व्यवस्था करे
प्रत्येक बालक ओर व्यक्तिगत ध्यान दे
छात्रों की संख्या कम रखे
Schhol से भागने का कारण भी जाने और उस समस्या का समाधान कर बालक का विद्यालय में मन लगाए ताकि bxhhe धीरे धीरे सामान्य बालक की श्रेणी में आए ।।
💌 आन्या 💌
पिछड़े बालक की विशेषताएं-
- ऐसे बालक बहुत ही मंद गति से सीखते हैं। अर्थात यह तीव्र काम नहीं कर सकते हैं ।
- अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं जिससे कि यह एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं इस प्रक्रिया को प्रवाहविहीन कहा जाता है। इनके शैक्षिक पिछड़ेपन के कई कारण हो सकते हैं।
3.बालकों के पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए बुद्धि लब्धि(IQ )का प्रयोग नहीं होता है इसके लिए शैक्षणिक लब्धि(EQ )का प्रयोग होता है ।
4.पिछड़े बालक की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होती है अर्थात यह लंबे समय तक अपनी एकाग्रता को नहीं बनाए रख सकते हैं।
5.ऐसे बालक शैक्षणिक और सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ नहीं समझते हैं क्योंकि इनमे आत्मविश्वास की कमी होती है की यह उस कार्य को कर सकते हैं। - समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते है क्योंकि इनकी ध्यान क्षमता और रूचि थोड़े समय के लिए होने के कारण यह गहन चिंतन, विचारों का मंथन नहीं कर सकते हैं।
- यह साधारण सी बातें और नियमों को भी नहीं समझ पाते हैं ।
- यह वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं।
- यह अंतर्मुखी होते हैं और इनके दोस्त कम ही होते हैं।
- इनकी दूरदर्शिता कम होती है यह वर्तमान में चल रहे कार्य के भविष्य मे परिणाम के बारे में सोच नहीं पाते हैं।
- समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं क्योंकि इनको खुद पर विश्वास नहीं रहता है कि यह उस कार्य को कर सकते हैं या नहीं कर सकते।
- यह निराशावादी होते हैं।
पिछड़े बालक की शिक्षा-
इनकी शिक्षा के लिए शिक्षक ,अभिभावक ,समाजसेवक, विद्यालय ,चिकित्सक सभी को एक साथ काम करना चाहिए और इन के पिछड़े कारणों को खोजना चाहिए और उचित उपचार किया जाना चाहिए।
उपचार और शिक्षा हेतु निम्न बातों का ध्यान आवश्यक है-
1.उपचार -ऐसे बालकों को पढ़ाते समय इनकी कमजोरियों का ,उसके कारणों को खोज कर उसका उपचार और समाधान करना चाहिए ।
जैसे किसी बालक को दिखने में या सुनने में समस्या होती है तो उसे कक्षा में ऐसे स्थान पर बैठाये है जहां से वह आराम से शिक्षक की बातों को सुन सके और श्यामपट्ट में लिखे हुए शब्दों को या अक्षरों को देख सके।
2.आर्थिक सहायता -निर्धन परिवार के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति और निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए
- हस्त उद्योग – इनको पढ़ाते समय ऐसे हस्त उद्योगों का प्रशिक्षण देना चाहिए जिससे कि वह भविष्य में अपना गुजारा करने के लिए व्यवसाय कर सके।
- विशेष पाठ्यक्रम -इनका पाठ्यक्रम सरल, रुचिकर, लचीला ,जीवन के लिए उपयोगी तथा व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए जिससे की वह आगे भविष्य में अपना स्वयं का व्यवसाय कर सके।
- विशेष शिक्षण पद्धति-
👉ऐसे बालकों को पढ़ाने के लिए शिक्षक को सरल और रुचिकर शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए
👉दृश्य श्रव्य सामग्री का उपयोग करना चाहिए
👉 यह बच्चे धीमी गति से सीखते हैं इसलिए इन्हें धीमी गति से सिखाया जाना चाहिए क्योंकि इनकी एकाग्रता में कमी होती है ।
👉इसलिए इन्हें एक बार में ज्यादा चीजें नहीं पढाई जानी चाहिए
👉शिक्षक को मौखिक विधि का उपयोग कम करना चाहिए
👉अर्जित ज्ञान का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास कराना चाहिए।
6.बच्चों के लिए निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था -स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन हो। बच्चों के लिए शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था हो। जिससे कि इनकी शैक्षिक और व्यावसायिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य श्रेणी में लाया जा सके।
- विशिष्ट विद्यालय की स्थापना -इससे बच्चों को पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है, उनमें हीन भावना नहीं आती है ,अपनी त्रुटि के कारण परेशान नहीं रहते
- विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना- यदि विशिष्ट विद्यालय की स्थापना नहीं हो सकती हैं तो सामान्य विद्यालय में ही विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए
- व्यक्तिगत ध्यान-ऐसे बालकों को पढ़ाते समय शिक्षक को विशेष रूप से व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान करना चाहिए ।प्रत्येक छात्र पर व्यक्तिगत रूप से निर्देशन और ध्यान देना चाहिए ।ऐसे बच्चों को पढ़ाते समय कक्षा में इनकी संख्या को कम रखनी चाहिए।
- स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना-ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए सरल और रुचिकर शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिए जिससे कि इनकी पढ़ने में रुचि उत्पन्न हो और उनकी असफलता दूर हो सके उचित राह पर लाया जा सके जिससे उनकी भागने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण हो और वह आगे बढ़े और पढ़ें।
Notes by Ravi kushwah
🔅पिछड़े बालकों की विशेषताएं➖
ऐसे बालक जो किसी ना किसी प्रकार से पिछड़े होते हैं पिछड़े बालक कहलाते हैं इनकी विशेषताएं निम्न है ➖
🎯 मंद गति से सीखते हैं➖
इनके सीखने की गति या क्षमता बहुत धीमी होती है मंद गति से सीखते हैं यह तीव्र कार्य नहीं सकते हैं ये उनकी रुचि पर भी निर्भर करता है कि उनकी रूचि किस प्रकार की है |
🎯 अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पीछे होते हैं ➖
ऐसे बच्चे अपनी उम्र के वर्ग के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं जैसे कोई बच्चा 8 क्लास में होते हुए भी वह 7 क्लास का कार्य नहीं कर पाता है अर्थात एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं और पीछे हो जाते हैं इस अवस्था को प्रभावहीन अवस्था कहते हैं जो कि शिक्षा के क्षेत्र में एक दोष है शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे मानसिक, शारीरिक ,आर्थिक, आदि |
🎯 पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है ➖
पिछड़ेपन का और बुद्धि लब्धि का संबंध हो ऐसा आवश्यक नहीं है सिरिल बर्ट के अनुसार बुद्धि लब्धि अधिक होने पर भी वह पिछड़ सकता है लेकिन शैक्षिक लब्धि का संबंध पिछड़ेपन से है क्योंकि ये शिक्षा की बात करता है शैक्षिक स्तर की बात करता है अतः पिछडे़ बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए IQ का प्रयोग नहीं होता है |
🎯 पिछड़े बालकों की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होती है ➖
पिछड़े बालकों की ध्यान और रूचि बहुत ही कम समय के लिए रहती है अधिक समय के लिए नहीं रहती है किसी भी काम को करते समय उसमें ध्यान नहीं लगा पाते हैं |
🎯 शैक्षणिक / सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थ्य नहीं पाते हैं ➖
शैक्षणिक रूप से या सामाजिक रूप से जो क्रियाकलाप होते हैं उसने स्वयं को समर्थ्य नहीं कर पाते हैं उनको ऐसा लगता है कि वह नहीं कर सकते लेकिन आवश्यक नहीं है कि वह नहीं कर सकते ,कर सकते हैं शर्त है कि उनके अंदर उस कार्य को करने की रुचि हो |
🎯 किसी समस्या पर गहन चिंतन नहीं कर पाते हैं ➖
ऐसे बच्चे किसी समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर पाते हैं वह मंथन नहीं कर पाते हैं किसी समस्या को बारीकी से विश्लेषित नहीं कर सकते उनमें विश्लेषण करने की क्षमता नहीं होती है |
🎯 साधारण सी बातें और नियमों को नहीं समझ पाते हैं ➖
ऐसे बच्चे छोटी-छोटी बातों को, साधारण नियमों को नियमों को आसानी से नहीं समझ पाते हैं |
🎯 वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते हैं ➖
जब कोई व्यक्ति किसी संघर्ष या तनाव की स्थिति में रहता है तो वह अपने आप में या किसी समूह के जिसका वह हिस्सा होता है के व्यक्तियों के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता है ठीक इसी प्रकार पिछड़े बालक अपने आपको वातावरण के साथ समायोजित नहीं कर पाते हैं |
🎯 अंतर्मुखी होते हैं उनके कम मित्र होते है ➖
यह पिछड़े बालकों की एक विशेषता हो सकती है लेकिन यह विशेषता रचनात्मक और प्रतिभाशाली बालकों की भी हो सकती है ऐसा पिछड़े बालकों के साथ इसलिए होता है क्योंकि वह कम बोलते हैं दूसरों के साथ आसानी से घुल मिल नहीं पाते हैं अर्थात अपने भावों की अभिव्यक्ति खुलकर नहीं कर पाते हैं |
🎯 दूरदर्शिता कम होती है ➖
ऐसे बच्चे दूर का नहीं सोच सकते हैं उनकी सीमित सोच होती है वह अपने लक्ष्य के प्रति ज्यादा स्थिर नहीं हो पाते हैं और उसके बारे में अधिक देर नहीं सोच पाती है वे भविष्य की घटनाओं के बारे में सही आकलन नहीं कर पाते हैं |
🎯 समाज या स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण से नहीं रख पाते ➖
ऐसे बच्चों को स्वयं के प्रति विश्वास नहीं होता है ना तो अपने मूल्यों, कर्तव्यों, और ना ही अपने अधिकारों के प्रति सजग रहते हैं स्वयं के प्रति दृष्टिकोण नहीं रखते हैं जो कि अति आवश्यक है|
🎯 निराशावादी होते हैं ➖
ऐसे बच्चे अपने जीवन को निराशा की दृष्टि से देखते हैं या उनके हर काम के प्रति होने वाले परिणामों के लिए निराश रहते हैं |
🍀 पिछड़े बालकों की शिक्षा 🍀
कोई भी शिक्षक यदि बच्चों को इस नजरिए से देखता है कि यह सीख सकता हैं और यह नहीं सीख सकता तो वह एक सफल शिक्षक नहीं है ऐसे बालकों की शिक्षा में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इनकी शिक्षा में समाज ,शिक्षक, अभिभावक, समाज सेवक ,चिकित्सक या विद्यालय का वातावरण सभी को एक साथ कार्य करना चाहिए |
पिछड़ेपन के कारणों को खोजना चाहिए और उनका उचित उपचार करना चाहिए |
उपचार हेतु निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ➖
🔸 उपचार करना➖
दोषों या रोगो का उपचार करना एवं उनका समाधान खोजना है |
जैसे यदि कोई बच्चा जिस को कम सुनाई ,या कम दिखाई देता है उसको आगे बैठाएंगे ताकि उसको सुनने और देखने में कठिनाई का अनुभव ना हो और वह सहज रूप से शिक्षा ग्रहण कर सके |
🔸 आर्थिक सहायता ➖
निर्धन परिवार के बच्चों को छात्रवृत्ति का निशुल्क शिक्षा दी जाए|
🔸 हस्त उद्योग ➖
कुछ बच्चे शैक्षणिक तौर पर पीछे रहने के कारण उच्च शिक्षा ग्रहण करने में या पाने में असमर्थ रहते हैं अतः उनको हस्त उद्योगों का प्रशिक्षण दें ताकि वह कुछ व्यवसाय कर सकें |
🔸 विशेष पाठ्यक्रम ➖
ऐसे बच्चों के लिए इस प्रकार का पाठ्यक्रम तैयार किया जाए जो कि सरल ,रुचिकर ,लचीला, जीवन के लिए उपयोगी या व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण हो |
🔸 विशेष शिक्षण पद्धति➖
ऐसे बच्चों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिए जो कि
1 सरल रुचिकर शिक्षण विधि |
2 ऐसे बच्चों के लिए दृश्य श्रव्य सामग्री का उपयोग करना चाहिए |
3 पढ़ाने की गति धीमी हो |
4 एक बार में ज्यादा चीजें नहीं पढ़ाई जाएं |
5 मौखिक शिक्षण विधि का कम से कम उपयोग |
6 अर्जित ज्ञान का अभ्यास अधिक से अधिक करवाएं |
ताकि इन सब तरीकों से बच्चे बेहतर रूप से सीख सकें |
🔸 निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था ➖
ऐसे बच्चों को उचित शिक्षा देकर स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन करना ताकि शिक्षक स्वयं शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था कर सके जिससे वह अपने भविष्य के प्रति उजागर हो सके इसके द्वारा शैक्षिक व व्यवसाय की समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालक की श्रेणी में लाया जा सकता है क्योंकि यह एक शिक्षक की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे बच्चों को उचित शिक्षा देकर सामान्य बच्चों की श्रेणी तक पहुंचा सके |
🔸 विशेष विद्यालयों की स्थापना ➖
हर बच्चे को उसकी आवश्यकता के अनुसार शिक्षा देना उनको अलग विद्यालय में शिक्षा देना ताकि वे अपने आप को कंफर्ट अनुभव कर सके उनमें हीन भावना ना आए |इससे उनको➖
1 पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है |
2 हीन भावना नहीं आती |
3 अपनी त्रुटि के कारण परेशान नहीं रहते हैं |
इसलिए विशिष्ट विद्यालय आवश्यक है जिससे बच्चों में भेदभाव की भावना नहीं आती है |
🔸 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना ➖
यदि विशिष्ट विद्यालय की स्थापना नहीं कर सकते हैं तो अपने सामान्य विद्यालय में ही विशिष्ट कक्षा की व्यवस्था की जा सकती है अतः यदि विशिष्ट विद्यालय की स्थापना नहीं हो सके तो विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था करें |
🔸 व्यक्तिगत ध्यान ➖
व्यक्तिगत विभिन्नता का सम्मान करें क्योंकि भेदभाव करना गलत है |
जैसे बालिकाओं के बारे में सोचना की वह कमजोर होती है पढ़ नहीं सकती ऐसी मानसिकता सरासर गलत है यदि पिछड़े बालकों की विभिन्नता का सम्मान नहीं किया जाए तो वे सहज फील नहीं करेंगे यदि व्यक्तिगत विभिन्नता का ध्यान रखा जाए तो सहज अनुभव करेंगे | इसके लिए ➖
छात्रों की संख्या कम रखनी चाहिए, जिससे सभी की समस्याओं को सुना जा सके और उनका समाधान किया जा सके |
🔸 स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना ➖
कोई भी बच्चा भागता क्यों है, इसका कारण जानना, की क्या उसको रुचि नहीं है ,या किसी प्रकार से असफल तो नहीं है जो कि समस्या उत्पन्न करता है | इसलिए इन सभी प्रवृत्ति को दूर करके उन्हें उचित राह पर लाकर नियंत्रण करना और उनमें रुचि उत्पन्न करना |
इन सभी तरीकों से उनके भागने की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है और उचित राह पर लाया जा सकता है |
𝙉𝙤𝙩𝙚𝙨 𝙗𝙮➖ 𝙍𝙖𝙨𝙝𝙢𝙞 𝙎𝙖𝙫𝙡𝙚
🌺✍🏻 पिछड़े बालक की विशेषताएं—🌺
पिछड़े बालकों की सीखने की गति अन्य बालकों की तुलना में धीमी होती है यह तीव्र गति से सीखने में अक्षम होते है इनकी सोचने समझने की क्षमता अन्य बालकों की अपेक्षा धीमी होती है अर्थात है चीजों को समझने में ज्यादा समय लेते हैं।
🌺 अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्रों में पिछड़े होते हैं जिससे यह समझाई गई बातों को जल्दी अर्जित नहीं कर पाते हैं जिसके कारण यह एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं जिसे प्रवाह विहीन कहां जाता है।
पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं। जैसे– किसी कारणवश पढ़ाई न कर पाना, आर्थिक स्थिति कमजोर होना, बीमारी के कारण, परिवारिक सहयोग न मिलना ,आदि।
🌺 पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है जरूरी नहीं कि कोई बालक अगर पिछड़ा है तो उसकी बुद्धि लब्धि कमजोर है पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए lQ का प्रयोग नहीं होता EQ का प्रयोग होता है। जरूरी नहीं है कि पिछड़ा बालक है तो उसका IQ कम होगा लेकिन अगर IQ कम है तो पिछड़ेपन का कारण हो सकता है।
🌺 पिछड़े बालक का ध्यान और रुचि कुछ समय के लिए ही होता है- पिछड़े बालक सीखने एवं समझने में एकाग्रता नहीं बना पाते हैं उनकी रुचियां और ध्यान थोड़े समय के लिए स्थिर होती है।
🌺शैक्षणिक व सामाजिक क्रियाकलाप में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थन नहीं पाते हैं वह सामान्य बालकों की तुलना में शैक्षणिक व सामाजिक क्रियाकलाप का निष्पादन भलीभांति नहीं कर पाते हैं।
🌺 समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते हैं-अर्थात यह कह सकते हैं कि ऐसे बालक किसी समस्या के आने पर गहन विचार बारीकी से समझ का प्रयोग नहीं कर पाते हैं उनमें समस्या को सभी क्षेत्रों में सोचने समझने की क्षमता नहीं होती है।
🌺 साधारण से नियम को नहीं समझ पाते हैं।
🌺वातावरण के साथ सामंजस्य- पिछड़े बालक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते हैं समस्या के आ जाने पर उस स्थिति में खुद को समायोजित नहीं कर पाते हैं और ना ही तर्क एवं निर्णय का उपयोग कर समस्या का समाधान ढूंढ पाते।
🌺 अंतर्मुखी एवं कम दोस्त होते हैं पिछड़े बालक अंतर्मुखी होते हैं अपने मनोभावों को दूसरों के सामने व्यक्त करना पसंद नहीं करते मिलनसार नहीं होते और ऐसे बालकों क के दोस्त बहुत कम होते हैं।
🌺 दूरदर्शिता कम होती है-पिछले बालकों में दूरदर्शिता का अभाव होता है यह भविष्य की योजनाओं को बनाने में सक्षम नहीं होते हैं ।
🌺 ऐसे बच्चे निराशावादी होते हैं।
✍🏻✍🏻 पिछड़े बालक की शिक्षा——
🌺 पिछड़े बालकों की शिक्षा में निम्न का योगदान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
🌺. शिक्षक
🌺 अभिभावक
🌺 समाज सेवक
🌺 विद्यालय का वातावरण
🌺 चिकित्सक
इन सब की जिम्मेदारी होती है कि बालकों के पिछड़ेपन का कारण खोजें और निदान के उपरांत उसका उचित उपचार करें जिससे बालक का अन्य सामान्य बालकों की भाति संपूर्ण विकास हो सके।
✍🏻 पिछड़े बालकों के उपचार व शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान आवश्यक है।
🌺 उपचार-🌺 ऐसे बालकों की समस्याओं का पता कर उसका उचित उपचार किया जाना चाहिए इसके लिए आवश्यक है कि बालकों को जिस क्षेत्र में समस्याएं है उसका पता किया जाए और उसके समाधान के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं
जैसे-किसी बालक को पढ़ाई के दौरान शिक्षक द्वारा लिखे गए अक्षरों को देखने -सुनने में कठिनाई होती है तो उसे ऐसे स्थान पर बैठाना जिससे लिखे गए शब्द वाक्य छात्रों को स्पष्ट रूप से दिखाई दे
🌺 आर्थिक सहायता🌺-जिन बालकों की पारिवारिक आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है जिससे आर्थिक स्थिति उनकी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न करते हैं इसके लिए आवश्यक है कि निर्धन परिवार के बच्चे को छात्रवृत्ति दी जाए निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए जिससे वह शिक्षित हो सके।
🌺 हस्त उद्योग🌺-पिछड़े बालकों को हस्त उद्योग का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वह कुछ व्यवसाय कर सके और आर्थिक रूप से संपन्न हो सकें।
🌺 विशेष पाठ्यक्रम🌺 पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बच्चों के हिसाब से सरल रुचिकर लचीला हो व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण हो पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो बच्चों की क्षमता को ध्यान में रखकर निर्मित किया जाए जिससे बालक आसानी पूर्वक समझ सके।
🌺 विशेष शिक्षण पद्धति🌺
✍🏻 बालकों को पढ़ाए जाने वाली शिक्षण विधि सरल और रुचिकर हो जिससे बालक को पढ़ने में जिज्ञासा उत्पन्न हो और समझ योग्य हो
✍🏻 दृश्य श्रव्य सामग्री का उपयोग करके अधिगम में आ रही परेशानी को दूर करना
✍🏻 पढ़ाने की गति धीमी रखेंगे जिससे बच्चे पढ़ाए गए विषय को भलीभांति समझ पाए
पिछड़े बालकों को पढ़ाते समय यह बात ध्यान रखना अति आवश्यक है कि उन्हें एक बार में ज्यादा चीजों को ना पढ़ा कर अनेक खंडों में विभाजित कर विषय को समझाया जाए जिससे मैं आसानी पूर्वक सीख सकें।
✍🏻 मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम करें बालकों को करके सीखने हैं का अवसर अधिक प्रदान करें जिससे बालक सक्रिय होकर कार्य को निष्पादित कर सके और अधिक से अधिक सीखने का अवसर प्राप्त हो।
✍🏻 निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था- स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन करना है बच्चों के शैक्षिक व व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था करना जिसके द्वारा शैक्षिक व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करके पिछड़े बालक को सामान्य श्रेणी में लाया जा सके निर्देशन सेवाओं के माध्यम से बालक अपनी प्रतिभा को पहचान सकते हैं और उसी क्षेत्र में अपने भविष्य की योजना का निर्धारण कर सकते हैं।
✍🏻 विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना- बालक की योग्यता के अनुसार विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना करना चाहिए इससे बालक में पढ़ाई के प्रति प्रोत्साहन मिलता और उनका मनोबल बना रहता है तथा हीन भावना नहीं आती ।
अपनी त्रुटि के कारण परेशान नहीं रहते।
✍🏻 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना- कई बार विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना ना होने पर सामान विद्यालय में ही विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना होनी चाहिए जिससे उसे सामान्य विद्यालय में ही विशिष्ट शिक्षा प्राप्त हो सके।
✍🏻 व्यक्तिगत ध्यान-बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नता को स्वीकार करना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए उनकी निर्योग्यता के आधार पर उन्हें शिक्षा दी जाने चाहिए
🌺 व्यक्तिगत विभिन्नता के अंतर्गत यह महत्वपूर्ण है कि छात्रों की संख्या कम हो जिससे प्रत्येक छात्र पर उचित निगरानी रखकर अधिगम में आ रही कठिनाई का समाधान किया जा सके।
✍🏻 स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना- बालकों को उचित श्रव्य दृश्य जिज्ञासु पूर्ण सामग्री का उपयोग कर शिक्षा दी जानी चाहिए उन्हें ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे उनका पढ़ाई के प्रति रुचि और जिज्ञासा बनी रहे जिससे वह पढ़ने के लिए अधिक से अधिक उत्सुक हो शिक्षण विधि रुचिकर हो जिससे बालक की पढ़ाई में रुचि उत्पन्न हो और विद्यमान असफलता दूर हो इन सब के माध्यम से स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है।
🌺🌺🌺🌺 धन्यवाद🌺🌺🌺🌺
Notes by- Abhilasha pandey
पिछड़े बालक की विशेषताएं
1 पिछड़े बालक मंद गति से सीखते हैं तीव्र नहीं सीख सकते:– जो बालक पिछड़े होते हैं वह मंद गति से सीखते हैं शिक्षक को उनकी गति के अनुसार उनको शिक्षा देनी चाहिए
2 अपनी उम्र के बच्चों से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं
stagnation (प्रवाह विहीन) शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण हो सकते हैं3 " पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है पिछले बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए आई क्यू IQका प्रयोग नहीं होना चाहिए EQ इ क्यू का प्रयोग होता है"
4 पिछड़े बालक की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होती है
पिछड़े बालक की और रुचि थोड़े समय के लिए होती है किसी भी कार्य को करने मैं रुचि कम रुचि कम होने के कारण उनका ध्यान भी कम समय के लिए लगता है
5 शैक्षिक सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए वह अपने आप को समर्थ नहीं पाते पिछड़े बच्चों में आत्मविश्वास की कमी होती है जिसके कारण अपने आप को किसी भी कार्य को करने में समर्थ नहीं पाते हैं उन्हें लगता है कि यह कार्य नहीं कर सकते
6 समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते पिछड़े बालक किसी भी समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते उसमें उस समस्या पर वह गहन चिंतन नहीं कर सकते हैं उस समस्या को वह तोड़ मरोड़ कर तर्क वितर्क लगाकर सॉल्व नहीं कर सकते
7 साधारण सी बातों और नियमों को नहीं समझ पाते
8 वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते पिछड़े बालक वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते वह उस वातावरण में अपने आप को अनुकूल नहीं पाते हैं तथा उसमें अनुकूलन नहीं कर पाते हैं
9 अंतर्मुखी होते हैं इस निभाना अंतर्मुखी होते हैं ज्यादातर देखा जाता है कि इनके दोस्त बहुत ही कम होते हैं गिने-चुने लोगों को यह अपना दोस्त बनाते हैं
10 दूरदर्शिता कम होती है पिछड़े बालक दूरदर्शिता कम होती है किसी भी समस्या को सोचने समझने की क्षमता दूर तक नहीं होती है
11 समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते पिछड़े बालक समाज में अपने विचारों को व्यक्त नहीं कर पाते हैं वह अपने तर्क वितर्क को समाज के सामने नहीं रख पाते हैं
12 निराशावादी होते हैं पिछड़े बालक निराशावादी होते हैं
नोट
कोई एक ही पॉइंट पर हम बच्चों को जज नहीं कर सकते हैं हमें सारे प्वाइंटों को देखना होगा उसके बाद डिसाइड करना होगा कि बालक पिछड़ा है या नहीं 🔰 पिछड़े बालक की शिक्षा 🔰
पिछड़े बालक की शिक्षा में निम्न का महत्वपूर्ण योगदान है
1 शिक्षक
2अभिभावक
3समाज सेवक
4 विद्यालय
5चिकित्सा
1 शिक्षक
पिछड़े बालक की शिक्षा के लिए यह मुख्य भूमिका निभाते हैं शिक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं तथा अपने कार्य को ईमानदारी से निभाते हैं
2 अभिभावक
पिछड़े बालक को सामान्य बालक की श्रेणी में लाने के लिए शिक्षक के साथ-साथ माता-पिता को भी एक साथ काम करना चाहिए तथा उनके पिछड़ेपन के कारणों को खोजना चाहिए
3 समाज सेवक
4 विद्यालय
5 चिकित्सा
पिछले बालकों का उचित उपचार किया जाना चाहिए
पिछड़े बालक के उपचार शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है 1 उपचार
दोस्त या रोग का उपचार करने के लिए समाधान को ढूंढना बच्चे को कम दिखता है तो उसे आगे बिठाना। 2 आर्थिक सहायता
निर्धन परिवार के बच्चों को छात्रवृत्ति अनुकूल को शिक्षा दी जाए जिस से पिछड़े बालक बीच शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं और अपने में सुधार कर सकें 3 हस्त उद्योग
पिछड़े बालकों को हस्त उद्योग का प्रशिक्षण भी देना चाहिए जिससे बाहर कुछ व्यवस्था कर सकते हैं अपना जीवन कर सके जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4 विशेष पाठ्यक्रम
पिछड़े बालकों के लिए पाठ्यक्रम सरल रुचिकर लचीला जीवन के लिए उपयोगी एवं व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण होना चाहिए 5 विशेष शिक्षा पद्धति
a सरल रुचिका शिक्षण विधि
b दृश्य श्रव्य सामग्री
cपढ़ाने की गति धीमी रखेंगे एक बार में एक से ज्यादा टॉपिक नहीं बताएंगे
d मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम करना चाहिए
e अर्जित ज्ञान का ज्यादा से ज्यादा अभ्यास
6 निर्देशन सेवा की व्यवस्था
स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन हो बौद्धिक और व्यवसायिक एक निर्देशन की व्यवस्था उसके द्वारा शैक्षिक व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालक की श्रेणी में लाया जा सकता है
7 विशिष्ट विद्यालय की स्थापना
a विशिष्ट विद्यालय की स्थापना से बच्चों को पढ़ने में प्रोत्साहन मिलता है
b विशिष्ट विद्यालय में बच्चों को हीन भावना नहीं आती
c विशिष्ट विद्यालय में सारे बच्चे विशिष्ट बालक एक से होते हैं इसलिए पर अपनी त्रुटि के कारण परेशान नहीं होते
8 विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना
पिछड़े हुए बालकों के लिए विशिष्ट विद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए परंतु यदि विशिष्ट विद्यालय की स्थापना संभव नहीं है तो विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना तो जरूर होनी चाहिए
9 व्यक्तिगत ध्यान
पिछले बालकों की व्यक्तिगत भिन्नता का सम्मान करना चाहिए
छात्रों की संख्या कम रखनी चाहिए जिससे प्रत्येक बच्चे पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान रखा जा सके
10 स्कूल से भागने की प्रगति को रोकना जो बच्चे स्कूल से भाग जाते हैं उनको उचित राह पर लाना चाहिए
विद्यालय में उनकी रूचि के अनुसार शिक्षण कराना चाहिए
बच्चों की असफलताओं पर नियंत्रित करने की जरूरत है
🙏🙏🙏notse by sapna sahu🙏🙏🙏
🔅(Backward child)🔅
*पिछड़े बालक की विशेषताये *
पिछड़ा बालक मंदगति से सीखता है और तीव्र नहीं सीखता – वह बालक पढ़ाई के साथ-साथ भी काम के तीव्र गति से नहीं सीख पाते सोचने समझने की गति बहुत मंद होती है कोई होती है कोई चीज आसानी से नहीं सीख पातेहै|
- अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते है – पिछड़ा बालक अपने वर्ग में सभी बच्चों से पीछे रहता है पढ़ाई खेलकूद या कोई अन्य गतिविधि हो उनके साथ वाले बच्चे आगे निकल जाते हैं पिछड़ा बालक एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं
- पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से संबंध हो यह आवश्यक नहीं है – पिछड़े बालकों का अर्थ स्पष्ट करते हुए IQ का प्रयोग नहीं होता है EQ का प्रयोग होता है शैक्षणिक लब्धि का प्रयोग करते हैं पिछड़ेपन और बुद्धि लब्धि का सम्मान होना जरूरी नहीं अर्थात पिछड़ेपन का कारण IQ कम है यह जरूरी नहीं है कारण कुछ भी हो सकता है
- पिछड़े बालक की ध्यान और रुचि थोड़े समय के लिए ही होती है – बालक को किसी भी काम में मन नहीं लगता उसके दिमाग में कुछ ना कुछ चलता रहता है ध्यान स्वाभाविक रूप से केंद्रित नहीं हो पाता और चित स्थिर नहीं रहता है|
- शैक्षणिक सामाजिक क्रियाकलापो में भाग लेने के लिए अपने आप को समर्थन नहीं पाते है – शैक्षणिक सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने हेतु कार्यक्रम जैसे विद्यालय चर्चा बालसभा खेल प्रतियोगिता और सामाजिक कार्य जैसे कई बालमेला जागरूकता कार्यक्रम मैं भाग लेने में असमर्थ होते है |
- ऐसे बच्चे जो समस्या पर सूक्ष्म में रूप से विचार नहीं कर सकते – बालक जो कार्य करते हैं जिसमें जो समस्या का समाधान करने के लिए सूक्ष्म रूप से विचार या गहन चिंतन या विचार मंथन अर्थात समस्या पर बारीकी से विचार नहीं कर पाते है|
- साधारण सी बातों को नियमों को नहीं समझ पाते है – पिछड़े बालक छोटी-छोटी बातों या साधारण सी बातों और नियमों को नहीं समझ पाते है|
8 .वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते है| – बच्चे आस-पास एवं अपने समाज के नियमों का एवं बातों को नहीं समझ पाते हैं जिसके चलते वह अपने वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते खुद को वातावरण वातावरण के अनुरूप नहीं कर पाते है| - अंतर्मुखी हो कम दोस्त हो – पिछडे़ बालक मित्र नही बनाते हैं वह अपनी बातों को और दूसरों के सामने रखने में असमर्थ होते हैं वह किसी भी बालक के साथ आसानी से घुल मिल नहीं पाते हैं अपने विचारों को व्यक्त नहीं कर पाते है|
- दूरदर्शिता कम होती है – पिछड़े बालक लम्बा दूर तक नहीं सोच पाते हैं उनकी दूरदर्शिता कम होती है
- समाज में स्वयं के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं – पिछड़े बालक समाज में किसी भी विषय वस्तु के बारे में किसी भी रूप में नहीं देख सकते या समाज में कार्य के प्रति दृष्टिकोण नहीं रखते |
- निराशावादी होते हैं – ऐसे बच्चे जो किसी कार्य को करने के प्रति नकारात्मक सोच रखते है वह निराशावादी होते हैं पिछड़े बालक की शिक्षा
- शिक्षक
- अभिभावक
- समाज सेवक
- विद्यालय
- चिकित्सक
एक साथ काम करना चाहिए और पिछड़ेपन के कारणों को खोजना चाहिए उचित उपचार किया जाना चाहिए पिछड़े बालको के दोषो को दूर करना चाहिए
“उपचारात्मक शिक्षा हेतु निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है “
- उपचार – दोष /रोग का उपचार करना है या समाधान करना होगा जिस बालक को कम दिखाई देता है तो उसे आगे बठाएंगे |
- आर्थिक सहायता – कोई बच्चा अगर निर्धन परिवार से है तो उस बच्चों को छात्रवृत्ति या निशुल्क शिक्षा दी जाए तो आर्थिक पिछड़ेपन को दूर किया जा सकता हैं |
- हस्त उद्योग – पिछड़ा बालक अगर शैक्षणिक तौर से बच्चा पीछे हैं तो उसे हस्त उद्योग का प्रशिक्षण दिया जाये ताकि वह कोई भी व्यवसाय कर सके |
- विशेष पाठ्यक्रम – वह पाठ्यक्रम है जो उसे सरल रूचिकर लचीला जीवन के लिए उपयोगी व्यवसायिक रूप से उद्देश्य पूर्ण हो सके |
- विशेष शिक्षण पद्धति – १. पढ़ाने का तरीका सरल रुचिकर शिक्षण विधि के द्वारा पढ़ाना चाहिए
२ .दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग करके सिखाएंगे जिससे आसानी से सीख सकते आसानी से सीख सकते हैं
३ . पढ़ाने की गति धीमी रखना चाहिए
४ .एक बार में ज्यादा चीज है है है ना पढ़ाई जाए
५ .मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम करें |
६ .अभ्यास ज्यादा से ज्यादा करवाएं | - निर्देशन सेवाओं की की व्यवस्था – स्कूल में निर्देशन सेवा का गठन हो शैक्षिक और व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था उसके द्वारा शैक्षिक व्यावसायिक समस्याओं का समाधान करके सामान्य बालक को श्रेणी में लाया जाए |
- विशिष्ट विद्यालयों की की स्थापना – इस प्रकार की विद्यालय में पढ़ने प्रोत्साहन मिलता मिलता प्रोत्साहन मिलता है
हीन भावना नहीं आती है
जो उनकी अपने त्रुटि के कारण परेशान नहीं होते हैं | - विशिष्ट कक्षाओं की स्थापना – विशिष्ट विद्यालय की स्थापना नहीं कर सकते हैं तो सामान्य विद्यालयों में ही विशेष कक्षाओं की व्यवस्था करनी चाहिए
- व्यक्तिगत ध्यान – व्यक्तिगत भिन्नता का सम्मान करें सबको एक दृष्टि से देखें पिछड़े बालक मैं छात्रों की संख्या कम रहती है |
- स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकना – जब कोई भी बच्चा स्कूल से भागता है तो वह पिछड़ा बालक होता है वह रूचि और असफलता के डर के कारण स्कूल से भागता है बच्चे को उचित राह पर लाना चाहिए |
Notes by – Ranjana sen
🌻पिछडे बालक की विशेषताः
🌱मंद गति से सीखते हैं #पिछडा बालक मंद गति से सीखते हैं तीवृ गति से नहीं सीखते है उन्हें जल्दी सीखने मे दिक्कत का सामना करना प!ड़ता है
🌴अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पिछडे होते हैं
अपनी आयु के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पीछे होते है एक ही कक्षा में कई साल लगा देते हैं #प्रवाहविहीन -इसके शैक्षिक पिछडेपन के अनेक कारण बहुत हो सकते हैं मगर पिछड़ा बालक पिछड़ा ही कहलाएगा जैसे किसी बच्चे के पास किताब नहीं होना, किसी कारणवश पढाई में मन नहीं लगना ,बिमार पर जाना, घर की स्थिति के कारण हो सकते हैं
🌴पिछड़ेपन का बुद्धि लब्धि से सबंघ होना ये ज़रूरी नहीं -पिछड़े बालको का बताते हुए IQ का प्रयोग नहीं होता है EQ का प्रयोग किया जाता है
🌴पिछड़े बालक का घयान और रूचि थोड़े समय के लिए होती हैं -#🌸बालक को जिस काम में नहीं लगता है वो कम घयान और रूचि देते हैं
🌴शैक्षणिक /सामाजिक क्रियाकलापो में भाग लेने के लिए अपने आप को समथ् नहीं पाते हैं -#🌸पिछड़े बालक शैक्षणिक सामाजिक क्रियाकलापो में समथ् नहीं पाते हैं जैसे विघालय में कोई सभा हो तो, खेल परिसर में अपने आप को समथ् नहीं पाते
🌴समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर सकते – अपने कार्य में समस्या समाधान के लिए सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर पाते अर्थात समस्या पर गहन चिंतन नहीं कर पाते हैं
🌴साघारण सी बातो या नियमो को भी समझ नहीं पाते – छोटी छोटी बातो को भी समझने में उन्हें दिक्कत होती हैं
🌴वातावरण के साथ सामंजस्य नहीं कर पाते -पिछड़े बालक को वातावरण के साथ सामंजस्य करने दिक्कत होती है वो अन्य बच्चो के साथ मिल नहीं पाते है
🌴अंतमुखी होते है मित्र कम बनाते हैं – अंतमुखी मतलब बहुत कम बोलते हैं उनके दोस्त भी कम होते है कयोंकि वो आसानी से अपनी बातों को नहीं बताते है सभी से घुल मिल नहीं पाते 🌴दूरदर्शिता र्कम होती हैं – दूरदर्शिता का मतलब दूर देखना ही नहीं होता है जो हमे ज्ञान है उसका सही सही आकलन करना भी होता है
🌴समाज में स्वय के प्रति यथार्थ दृष्टिकोण नहीं रख पाते -पिछड़े बालक समाज के प्रति अपने अपने दृष्टिकोण नहीं रख पाते हैं
🌴निराशावादी होते है – पिछड़े बालक अपने हर काम को करने के बाद निराशा होते हैं
🌻पिछड़े बालक की शिक्षा 🌻
पिछड़े बालक की शिक्षा के लिए शिक्षको अभिभावको समाजसेवक विघालय चिकित्सक सभी को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए और पिछड़ेपन के कारण को खोजना चाहिए ताकि पिछड़ेपन के कारण को खोजकर उन बच्चो को उपचार का प्रयोग किया जा सके
🌸उपचार शिक्षा हेतु निम्न बातो का घयान देना चाहिए-
🌱उपचार 🌱
जो दोष,रोग है उनका उपचार करना है या समाघान ढूँढना है कम दिखता है तो उसे बेंच की आगे वाली सीट पे बैठायेगे अगर बच्चे को देखने में परेशानी है तो उसे sign language के माघ्यम से पढायेगे अगर बच्चे को सुनने में दिक्कत है तो उन्हें lipsing के माध्यम से बतायेगे
🌱आथिक सहायता 🌱
निर्धन परिवार के बच्चो को छात्रवृत्ति या निशुलक शिक्षा दी जाए
🌱हस्त उघोग 🌱
हस्त उघोग का प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि आगे जाकर व्यवसाय कर सके
🌱 विशेष पाठयक्रम🌱
पाठ्यक्रम सरल, रुचिकर, लचीला, जीवन के लिए ऊपयोगी, व्यवसायिक रूप से पूर्ण इस तरह का बनाया जाए
🌱विशेष शिक्षण पद्धति 🌱
सरल, रूचिकर शिक्षण विघि।
पढाने की गति घीमी रखेगे
एक बार मे ज्यादा चिज ना पढाया जाए
मोखिक शिक्षण विघि का उपयोग कम करे
अभ्यास ज्यादा से ज्यादा करवाए
🌱निदेशन सेवाओं की व्यवस्था #स्कूल मे निदेशन सेवा का गठन हो शैक्षिक और व्यवसायिक निदेशन की व्यवस्था हो
उनके द्रारा शैक्षिक वयवसायिक समसयाओ का समाघान करके सामान्य बालक श्रेणी में लाया जाए
🌱विशिष्ट विघालय की स्थापना
इस प्रकार की विघालय से पिछड़े बालक को पढने में प्रोत्साहन मिलता है
हीन भावना नही आती हैं
अपने त्रुटि या गलति के कारण परेशान नहीं रहते
🌱विशिष्ट कक्षाओ की स्थापना
अगर विशिष्ट विघालय की सथापना ना हो सके तो विशिष्ट कक्षाओ की व्यवस्था करे ल
ताकि पिछड़े बालक को सहायता मिल सके
🌱वयकितगत घयान 🌱
वयकतिगत विभिन्नता का सम्मान करे ।
छात्रो की संख्या कम रखनी है ताकि बच्चे पे घयान दे सके।
🌱स्कूल से भागने की प्रवृति को रोकना
अरूचि और असफलता के कारण बच्चे भागते है कयोंकि उन्हें डर लगता है बच्चो मे समस्या उत्त्पन्न करता है बच्चे को उचित राह पर लायेगे और नियंत्रण करेगे
Notes By -Neha Roy
पिछड़े बालक की विशेषताएं
1) पिछड़े बालक मंद गति से सीखते हैं उनको किसी भी क्षेत्र के अधिगम मे समय अधिक लगता है!
2) अपनी उम्र के बच्चे से शैक्षिक क्षेत्र में पिछड़े होते हैं!एक ही कक्षा मे उनको कयी वर्ष लग जाते है!प्रवाह विहीन होते है और इनके शैक्षिक पिछड़ेपन के अनेक कारण होते है! ये क अवस्थायों मे पिछड़े हो सकते है कभी कभी एक ही क्षेत्र मे ज्यादा पिछड़ जाते है!
3)पिछड़ेपन की वजह से इनका बुद्धि लब्धि से संबंध नहीं होता है, क्योकि शिक्षा मे पिछड़े बालक की शैक्षिक लब्धि पर प्रभाव पड़ता है, क्योकि जरूरी नहीं कि शिक्षा मे पिछड़ा बालक जीवन के हर क्षेत्र मे पिछड़ा हो, इसीलिए ये कहा जाता है कि पिछड़े बालकों के लिए बुद्धि लब्धि का प्रयोग नहीं होता है बल्कि शैक्षिक लब्धि का होता है!
4)शिक्षा मे पिछड़े बालक का ध्यान और उसकी रुचि थोड़े समय के लिए होती है इसका आशय ये हुआ कि उनके मष्तिष्क मे शैक्षिक ज्ञान की स्थिरता और उसमे रुचि की कमी होती है!
5)शैक्षिक पिछड़ेपन की वजह से पिछड़े बालकों मे शैक्षणिक और सामाजिक क्रिया कलापों मे रुचि की कमी देखने को मिलती है वे अपने आप को असमर्थ समझने लगते है!
6)समस्या पर सूक्ष्म रूप से विचार नहीं कर पाते है किसी भी समस्या की जड़ तक उसको समझने की कला मे कमी महसूस करते है और उसके संपूर्ण हल को सही रूप देने मे असमर्थ होते है!
7)इस प्रकार के बालक साधारण से नियमों और बातों को नहीं समझ पाते है उनको समझने मे कठिनाई आती है और वे इसी कारण समस्या को पूर्ण हल प्रदान करने मे रुचि नहीं लेते है!
8) इन बालकों मे परिस्थिति अनुसार वातावरण के साथ सामंजस्य कर पाने की क्षमता कम पायी जाती है और इनको सामंजस्य बिठाने मे सहजता का अनुभव नहीं होता है!
9) पिछड़े बालक अंतर्मुखी होते है अपने आप मे रहते है किसी से ज्यादा बात या चर्चा करने मे इनकी रुचि कम होती है इसी वजह से इनके दोस्त बहुत कम होते है!
10)इन बालकों मे दूरदर्शिता की कमी पायी जाती है ये ज्यादा भविष्य की योजनाओं के प्रति क्रियाशीलता को नहीं दर्शाते और ना ही भविष्य के प्रति वर्तमान मे सजगता को महत्व नहीं देते है!
11) समाज मे उनका खुद का क्या स्थान है इसके प्रति उनको कोई भावना का अनुभव नहीं होता है, और खुद को वास्तविक जीवन से नहीं जोड पाते है, इसके विपरीत वो अपनी ही काल्पनिक दुनिया बनाके जीना पसंद करते है!
12)पिछड़े बालक नकारात्मक सोच रखते है और निराशावादी दृष्टिकोण को दर्शाते है!
👉पिछड़े बालक की शिक्षा✍️
पिछड़े बालक की शिक्षा मे सबसे अहम भूमिका
1) शिक्षक 2)अभिभावक 3)समाजसेवी 4)विद्यालय 5)चिकित्सक
होती है! इन सबको एकसाथ काम करना चाहिए और बालक के पिछड़ेपन के कारणों का पता लगाना चाहिए! फिर उन कारणों के श्रोत को रोक कर और बच्चे का उचित उपचार करना चाहिए!
👉 उपचार हेतु निम्न बातों का ध्यान देना आवश्यक है ✍️
1)उपचार =>
पिछड़े बालक किसी भी दोष या रोग से ग्रसित है तो उसका उपचार /समाधान तात्कालिक रूप से पता लगा कर और उसका उचित उपचार करना अति आवश्यक है!
2)आर्थिक सहायता =>
आर्थिक रूप से पिछड़े बालकों को और निर्धन परिवार के बालकों को आर्थिक सहायता दी जाए उनको छात्रवृत्ति और निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करायी जाये!
उनको हस्त उद्योग की शिक्षा दी जाए जिसमे बच्चों को औद्योगिक शिक्षा दी जाए जिससे वो कुछ ऐसे कौशलों मे पारंगत हो जाए जिससे उनको धन कमाने का कौशल आने लगे!
इसके लिए प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना अभी हमारे देश मे औद्योगिक कौशल के लिए क्रियान्वित है!
3)विशेष पाठ्यक्रम =>
पिछड़े बालकों को सरल, रुचिकर, लचीला, जीवन के लिए उपयोगी, व्यवसायिक रूप से उद्देश्यपूर्ण पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया जाना चाहिए!
4)विशेष शिक्षण पद्यति =>
a) इस पद्यति मे पिछड़े बालक को सरल, रुचिकर, शिक्षण विधि से पढ़ाना चाहिए!
b) पढ़ाने की गति धीमी होनी चाहिए!
c)पढ़ाने के दौरान दृश्य, श्रव्य सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए!
d) विषय की इकाइयों को छोटे – छोटे भागों मे पढ़ाया जाना चाहिए!
5)मौखिक शिक्षण विधि का उपयोग कम और लिखित विधि का उपयोग करना चाहिए जिससे बच्चे मे लेखन कौशल का भी सुधार हो!
6)पिछड़े बालकों को उनके अर्जित ज्ञान का periodically revision कराया जाना चाहिए जिससे उनके ज्ञान का ह्रास ना हो बल्कि व्रद्धी हो!
7)निर्देशन सेवाओं का गठन =>
स्कूलों में निर्देशन सेवाओं का गठन हो जिसमे शैक्षिक एवँ व्यवसायिक निर्देशन की व्यवस्था की जाए, इसके जरिए बालक अपनी उचित दिशा चुन पाएंगे!
8) विशिष्ठ विद्यालयों की स्थापना=>
ऐसे विद्यलयों की स्थापना की जाए जिसमे बालकों को उनके स्तर को समझने का कौशल मिले और उसमे सुधार करने का जिससे उनमे हीनभावना ना आपाये और उनको पड़ने मे प्रोत्साहन मिले!
9)विशिष्ठ कक्षाओं की स्थापना =>
अगर विशिष्ठ विद्यालयों की स्थापना ना हो सके तो विशिष्ठ कक्षाओं की स्थापना की स्थापना जरूर की जानी चाहिए जिससे उनको कयी तरीके से सुधार मिले!
10)व्यक्तिगत ध्यान की चाह =>
हर एक बच्चे की व्यक्तिगत भिन्नता का सम्मान करें और हर एक को ऐसा ना महसूस होने दे कि आप का उस पर या किसी पर भी कम ध्यान है! ज्यादातर पिछड़े छात्रों की संख्या कक्षा कक्ष मे कम रखे जिससे हर एक बच्चे की समान ध्यान की अनुभूति हो!
11)स्कूल से भागने की प्रवृत्ति को रोकने के लिए बच्चों की रुचि का व्यक्तिगत भिन्नता के अनुसार ध्यान रखना और उनकी असफलता को नियंत्रित रूप से सही मार्गदर्शन के बल पर उचित राह देकर सफलता मे बदलना!
NOTES BY ASHWANY DUBEY