Adjustment and mis-adjustment

Date- 15/06/2021
Time-9.00am
🕸समायोजन
समायोजन की प्रक्रिया से तात्पर्य व्यक्ति की आवश्यकताएं व उनको पूरा करने वाली परिस्थितियों के बीच तालमेल स्थापित करने से है जो व्यक्ति इन दोनों के बीच तालमेल स्थापित नहीं कर पाता है ऐसा व्यक्ति तनाव, चिंता ,कुंठा आदि का शिकार होकर आसमान्य व्यवहार करने लगता है।

इस परिस्थिति को कुसमायोजन अथवा मानसिक रोग कहते हैं।

🐢समायोजन एक अधिगम प्रक्रिया है➖ स्किनर
कुसयोजन /मानसिक के प्रकार ➖
तनाव
कुंठा /भागनासा
दुश्चिंता
द्वंद /संघर्ष
दबाव

🕸 जब व्यक्ति समय परिस्थिति आवश्यकता के अनुसार कार्य नहीं कर पाता तथा आसफल हो जाता है तो वह तनाव का शिकार हो जाता है।

🕸 दुश्चिंता➖ जब अचेतन मन की दमित इच्छा चेतन मन में आने का प्रयास करती है, या आ जाती है तो व्यक्ति दुश्चिंता का शिकार हो जाता है।

🕸दवाब ➖सफलता/ असफलता और आत्मसम्मान की रक्षा के समय व्यक्ति दबाव महसूस करता है।

🕸भागनासा/ कुंठा /निराशा ➖ बार-बार प्रयास करने के बाद भी असफल रह जाते हैं तो व्यक्ति की निराशा को मनोवैज्ञानिक भाषा में भग्नासा या कुंठा कहते हैं।

🕸 द्वंद्व/ संघर्ष➖ जब एक साथ दो अवसर उपस्थित हो जाता है और चयन किसी एक का करना होता है तो मानसिक द्वंद या संघर्ष उत्पन्न हो जाता है।

🐢 मानसिक मनो रचनाएं /समायोजन तंत्र /आत्म सुरक्षात्मक शक्तियां /आत्म सुरक्षा अभियंत्रिकाये/ प्रतिरक्षण प्रणाली तथा रक्षा तंत्र ➖

➖ मानसिक मनोरचना वे साधन है जिनको व्यक्ति मानसिक रोग से बचने या समायोजन स्थापित करने के लिए उपयोग में लाता है।

नोटस बाय➖निधि तिवारी🌿🌿🌿🌿🌿🌿

🌺🌼समायोजन🌼🌺

समायोजन की प्रकिया से तात्पर्य व्यक्ति की आवश्यकताएं व उनको पूरा करने वाली परिस्थितियो के बीच तालमेल स्थापित करने से है |
जो व्यक्ति इन दोनो के बीच तालमेल स्थापित नही कर पाता है ऐसा व्यक्ति तनाव , चिंता , कुंठा आदि का शिकार होकर असामान्य व्यवहार करने लगता है |
इस स्थिति को कुसमायोजन अथवा मानसिक रोग कहते है |

💫 समायोजन एक अधिगम प्रक्रिया है – स्किनर

कुसमायोजन / मानसिक रोग ➖
(1) तनाव
(2) कुंठा , भाग्नासा
(3) दुश्चिंता
(4) द्वन्द / संघर्ष
(5) दबाव
(6) निराशा , हताश

(1) तनाव ➖ जब व्यक्ति समय , परिस्थिति , आवश्यकता के अनुसार कार्य नही कर पाता है तथा असफल हो जाता है तो वह तनाव का शिकार हो जाता है |

(2) दुश्चिंता ➖ जब अचेतन मन की दमित इच्छा चेतना मन में आने का प्रयास करती है या आ जाती है तो व्यक्ति दुश्चिंता का शिकार हो जाता है |

(3) दबाव ➖ सफलता / असफलता और आत्मसम्मान की रक्षा के समय व्यक्ति दबाव महसूस करता है |

(4) भाग्नासा / कुंठा / निराशा ➖
बार – बार प्रयास करने के बाद भी अगर असफल रह जाते है तो व्यक्ति निराश हो जाता है निराशा को मनोवैज्ञानिक भाषा में भाग्नासा या कुंठा कहते है |

(5) द्वन्द / संघर्ष ➖ जब एक साथ दो अनुकूल अवसर उपस्थित हो जाते है और चयन किसी एक का करना होता है तो मानसिक द्वन्द या संघर्ष उत्पन्न हो जाता है |

मानसिक मनोरचनाएं / समायोजन तंत्र / आत्म सुरक्षात्मक शक्तियां आत्म सुरक्षा अभियंत्रिकाएं , प्रतिरक्षण प्रणाली तथा रक्षा तंत्र –
मानसिक मनोरचना वे साधन है जिनको व्यक्ति मानसिक रोग से बचने या समायोजन स्थापित करने के लिए उपयोग मे लाता है |

Notes by ➖Ranjana sen

समायोजन

समायोजन की प्रक्रिया से तात्पर्य व्यक्ति की आवश्यकताएं व उनको पूरा करने वाले परिस्थितियों के बीच तालमेल स्थापित करने से हैं।

जो व्यक्ति इन दोनों के बीच तालमेल स्थापित नहीं करते हैं ऐसा व्यक्ति तनाव ,चिंता ,कुंठा आदि का शिकार होकर असामान्य व्यवहार करने लगता है
इस स्थिति को कुसमायोजन अथवा मानसिक रोग कहते हैं

स्किनर के अनुसार -समायोजन एक अधिगम प्रक्रिया है।

कुसमायोजन या मानसिक रोग

  1. तनाव
  2. कुंठा या भाग्नाशा
  3. दुश्चिंता
  4. द्वन्द्व या संघर्ष
  5. दबाव
  6. निराशा या हताशा

तनाव-जब व्यक्ति समय परिस्थिति आवश्यकता के अनुसार कार्य नहीं कर पाता है तथा असफल हो जाता है तो वह तनाव का शिकार हो जाता है।

दुश्चिंता-जब अचेतन मन की दमित इच्छा चेतन मन में आने का प्रयास करते हैं या आ जाती हैं तो व्यक्ति दुश्चिंता का शिकार हो जाता है

दबाव-सफलता या असफलता और आत्मसम्मान की रक्षा के समय व्यक्ति दबाव महसूस करता है

भाग्नाशा/ कुंठा/निराशा-बार-बार प्रयास करने के बाद भी अगर असफल रह जाते हैं तो व्यक्ति निराश हो जाता है निराशा को मनोवैज्ञानिक भाषा में भाग्नाशा या कुंठा कहते हैं
द्वन्द्व या संघर्ष-जब एक साथ दो अनुकूल अवसर उपस्थित हो जाते हैं और चयन किसी एक का करना होता है तो मानसिक द्वंद्व या संघर्ष उत्पन्न हो जाता है

मानसिक मनो रचनाएं
समायोजन तंत्र
आत्म सुरक्षात्मक शक्तियां
आत्म सुरक्षा अभि यंत्रिकाऐ
प्रतिरक्षण प्रणाली
रक्षा तंत्र

मानसिक मनोरचना वे साधन हैं जिनको व्यक्ति मानसिक रोग से बचने या समायोजन स्थापित करने के लिए उपयोग में लाता है

Notes by Ravi kushwah

🔥समायोजन 🔥
⭐समायोजन का अर्थ -समायोजन का अर्थ व्यवस्था अथवा एक अच्छे ढंग से परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की प्रक्रिया है जिससे कि व्यक्ति की आवश्यकता है ।पूरी हो जाए और उसमें मानसिक द्वंद की स्थिति उत्पन्न ना हो

⭐समायोजन की प्रक्रिया-समायोजन की प्रक्रिया से तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की आवश्यकता एवं को पूरा करने वाली परिस्थितियों के बीच तालमेल स्थापित करने से है ।इसी प्रकार पर्यावरण की रचनाएं एवं बाधाओं को ध्यान में रखते हुए जो परिवर्तन किए जाते हैं उन्हें समायोजन कहते हैं।

🔥 जेम्स सी. कोलमैन के अनुसार-समायोजन व्यक्ति द्वारा तनाव से निपटने तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए किए गए प्रयासों का परिणाम है ।

🔥 समायोजन के प्रकार-5

⭐(1) व्यवहारिक समायोजन-जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तक व्यक्ति किसी न किसी रूप में समायोजन करता है।
जैसे-क्रोध ,ईर्ष्या, द्वेष, राग, प्रसन्नता आदि की अभिव्यक्ति परिस्थितियों के अनुकूल करता है। यह उसका व्यवहारिक समायोजन कहलाता है।
⭐(2) सामाजिक समायोजन-सामाजिक प्राणी होने के कारण बालक के समायोजन पर गहरा प्रभाव पड़ता है । सामाजिक वातावरण जैसे- जातीय संघर्ष ,धार्मिक उन्माद, ऊंच-नीच ,अमीर गरीब की भावना ,सामाजिक कुरीतियों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता व सुरक्षा का अभाव । जिससे बालक के मन में तनाव उत्पन्न होता है इससे निपटने के लिए बालक स्वयं को संतुलित करता है वह सामाजिक समायोजन कहलाता है।

⭐(3) पारिवारिक समायोजन-बालक का संपूर्ण विकास परिवार में होता है तथा वह बालक के विकास के पक्ष को प्रभावित करता है । जैसे-पारिवारिक अनुशासन, आर्थिक स्थिति, उच्च महत्वाकांक्षा‌‌ए ,परिवार के सदस्यों के परस्पर संबंध बालक के समायोजन क्षमता का सार्थक ढंग से प्रभावित करते हैं।
⭐(4) शारीरिक समायोजन-बच्चों में जन्मजात या दुर्घटना के कारण आई शारीरिक विकार भी व्यक्ति के समायोजन में कठिनाई पैदा करती है। शारीरिक दोष के कारण बालकों में प्राया हीन भावना उत्पन्न हो जाती है तथा वे अपने साथियों और समकक्षियो के साथ अपना समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं । बालक इस परिस्थिति में स्वयं को समायोजित करते हैं वह शारीरिक समायोजन कहलाता है।
⭐(5) शैक्षिक समायोजन-शैक्षिक समायोजन जैसे-विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय से है। विद्यालय बालक के समायोजन को मुख्य रूप से प्रभावित करता है। विद्यालय का वातावरण, पाठ्यक्रम ,सहपाठी ,अध्यापक का व्यवहार आदि बालको को विभिन्न तरीके से प्रभावित करते हैं ।शैक्षिक वातावरण में छात्रों को कठोर अनुशासन एवं दंड देने की प्रवृत्ति से हटकर एक स्नेह पूर्ण एवं नचले पाठ्यक्रम से युक्त सहयोगात्मक परिवेश बनाने से छात्रों के स्वस्थ शैक्षिक समायोजन का विकास होता है।

🔥कुसुमायोजित /मानसिक रोग
🌈 तनाव
🌈 दुश्चिंता
🌈 कुंठा ,भग्नासा
🌈 द्वंद /संघर्ष
🌈 दबाव
🌈 निराशा ,हताशा
🔥 कुसुमायोजित व्यक्तियों में संवेगात्मक स्थिरता, आत्मविश्वास की कमी ,निराशा उत्पन्न हो जाती है और वो असंतुलित हो जाते हैं। जिसके फलस्वरूप उनमें मानसिक विकार जैसे भग्नासा, मानसिक द्वंद ,तनाव, हीन भावना, चिंता आदि उत्पन्न हो जाती है ।

🔥 सुसुमायोजित व्यक्तियों में आत्मविश्वास की भावना प्रबल होती है ।वह अपनी क्षमताओं का मूल्यांकन ठीक ढंग से करते हैं ।वे अपने गुण -दोषों, विचारों, इच्छाओं आदि की उपयुक्तता तथा अनुप्रयुक्तता को अच्छे से समझते हैं तथा निष्पक्ष रूप से अपने व्यवहार के औचित्य का निर्णय करते हैं। सुसुमायोजित व्यक्तियों में प्रतिबल, तनाव ,दबाव ,चिंता, अंतर्द्वंद तथा कुंठा आदि से मुक्त होते है।

✍🏻✍🏻Notes by-
☘️☘️babita pandey☘️☘️

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