*🌸विकास का रूप🌸*
*(Form of development)*
*04 march 2021*
जैसा कि हम सभी जानते हैं विकास की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है।
विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक, क्रियात्मक, संज्ञानात्मक, भाषागत, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास होता है। बालक में क्रमबद्ध रुप से होने वाले सुसंगत परिवर्तन की श्रृंखला को ही विकास कहते हैं।
👉विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित रूप से होते हैं जो निम्नलिखित है-
*१.आकार में परिवर्तन-*
शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों के विकास के बीच देखा जा सकता है।
शरीर के विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के आकार और भार में परिवर्तन आता है क्योंकि आकार बढ़ेगा तो भार निश्चित रूप निश्चित रूप से बढ़ेगा ही यह हम जानते हैं।
उदाहरण के लिए कोई बच्चा जब 2 वर्ष का होता है तो उसके शरीर का आकार छोटा एवं भार में कमी होती है एवं जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाती है उसके शरीर का आकार भी बढ़ता है और साथ-साथ भार में भी वृद्धि होती है।
*२.अनुपात में परिवर्तन-*
आकार में परिवर्तन एक अनुपात में होता है।
हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते और सभी अंगों का विकास एक निश्चित अनुपात में होता है।
उदाहरण के लिए संपूर्ण विकास काल में मनुष्य के हृदय का भार जन्म से 13 गुना बढ़ जाता है।
जबकि मस्तिष्क का भार 1:4 होता है या जन्म से 4 गुना बढ़ता है।
अतः विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है।
👉 शैशवावस्था में बालक स्वयं केंद्रित होता है जबकि बाल्यावस्था आते-आते वह अपने आसपास और वातावरण में भी रुचि लेने लगता है।
*३.पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन -*
प्राणी के विकास क्रम मे पुरानी विशेषताओं का लोप वह नई विशेषताओं का उदय होता है
जैसे – बचपन के बालों और दांतो का समाप्त हो जाना तथा नए बाल व दांतों का आना।
*४.नए गुणों की प्राप्ति -*
विकास क्रम में जहां एक ओर पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन होता है वहीं उसका स्थान, नए गुण प्राप्त कर लेते हैं
जैसे – स्थाई दांत आना, स्पष्ट उच्चारण करना, उछलना, कूदना, भागना, दौड़ना आदि की नई क्षमता का उदय होना।
👉यह सारे नए गुण प्राणी को विकास क्रम में प्राप्त होते हैं।
उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि आकार में परिवर्तन से अनुपात में परिवर्तन होता है और अगर अनुपात में परिवर्तन होता है तो पुरानी रूपरेखा में भी परिवर्तन होता है और पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन होने से नए गुणों की प्राप्ति होती है।
Notes bye Shivee Kumari
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
🔆विकास का रूप 🔆
(Form of Development)
🔸विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित होते हैं जिनके द्वारा विकास का रूप निर्धारित होता है यह चारों परिवर्तन निम्न प्रकार है।
1 आकार में परिवर्तन
2 अनुपात में परिवर्तन
3 पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन
4 नए गुणों की प्राप्ति
🌠 1 आकार में परिवर्तन ➖
शरीर के आकार में परिवर्तन अक्षर बच्चों की विकास के बीच में देखा जा सकता है।
शरीर की विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के आकार और भार में परिवर्तन आता है।
🌠 2 अनुपात में परिवर्तन ➖
आकार में परिवर्तन अनुपातिक या एक अनुपात में होता है। हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते है। और सभी अंगों का विकास एक निश्चित अनुपात में नहीं होता है।
जैसे – जिस अनुपात में हाथ या पैर का विकास हुआ है ठीक उसी अनुपात में ही नाक या आंख का विकास नहीं होगा ।
सभी अंग अलग-अलग अनुपात में आगे बढ़ते हैं।
यह अनुपात में परिवर्तन शरीर के बाह्य अंगों के साथ-साथ आंतरिक अंगों में भी होता है।
जैसे – संपूर्ण विकास काल में हृदय का भार जन्म के भार से 30 गुना बढ़ जाता है जबकि मस्तिष्क का भार केवल चार गुना बढता है।
अतः विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है।
सभी अंगों का अनुपात एक जैसा नहीं होता इसीलिए जब संपूर्ण अंग विकसित हो जाते हैं तत्पश्चात सभी अंग एक आकार या एक भार या एक जैसे नहीं दिखाई देते है।
शैशवावस्था में बालक स्व केंद्रित होता है जबकि बाल्यावस्था में आते-आते अपने आसपास और वातावरण में भी रुचि लेने लगता है।
🌠 3 पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन ➖
प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्व या पुरानी विशेषताओं का लोप होता है।
जैसे:- बचपन के बालों और दांतो का समाप्त हो जाना , बचपन की अस्पष्ट ध्वनि ,खिसकना, घुटनों के बल चलना, रोना ,चिल्लाना जैसी क्रियाएं।
🌠 4 नई गुणों की प्राप्ति ➖
विकास क्रम में जहां एक और पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उसका स्थान नए गुण प्राप्त कर लेते हैं।
जैसे:- स्थाई दांत आना, स्पष्ट उच्चारण करना, उछलना, कूदना, भागना, दौड़ना जैसी नई क्षमताओं का उदय या जन्म होता है।
यह सभी नए गुण प्राणी को विकास में प्राप्त होते हैं।
✍️
Notes By-‘Vaishali Mishra’
⭐❇️ विकास का रूप ❇️⭐
विकास अनेक प्रकार प्रकार के रूपों में होते हैं , लेकिन विकास के ऐसे 4 परिवर्तन जो निश्चित ही होते हैं।
❇️⭐आकार में परिवर्तन❇️⭐
✍️शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों में विकास के बीच देखा जा सकता है।
✍️शरीर के विकास में क्रम से आयु के बढ़ने से शरीर के आकार और भार में भी परिवर्तन आता है।
उदाहरण – छोटा होता है तो उसकी लंबाई छुट्टी होती है और भाड़ में भी कमी होती है जिससे बच्चा बड़ा होता है उसकी लंबाई के साथ-साथ भाड़ में भी परिवर्तन आता है।🌠जैसे -जब बच्चा जन्म लेता है तो 3 से 4 किलो का होता है और जब बड़ा होता है तो उसके किलो दर भी बढ़ जाती है।
⭐❇️अनुपात में परिवर्तन❇️⭐
✍️आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते और ना ही सभी अंगों का विकास एक निश्चित अनुपात में हो।
जैसे संपूर्ण विकास काल में हृदय का भार जन्म से 13 गुणा बढ़ जाता है जबकि मस्तिष्क का भार केवल 4 गुणा होता है।
🌠हृदय काअनुपातिक दर-1:13
🌠मस्तिष्क का अनुपातिक दर-1:4
✍️अतः विकास क्रम शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है
✍️शैशवा अस्था में बालक स्व केंद्रित होता है जबकि बाल्यावस्था में आते-आते अपने आस-पास और वातावरण में भी रुचि लेने लगता है।
⭐❇️पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन❇️⭐
✍️प्राणी में विकास कर्म से नवीन विशेषताओं का उदय होते ही पूर्व पुरानी विशेषताओं का लोप होता है 🌠जैसे -बचपन के बालों और दांतो का समाप्त हो जाना इसी प्रकार बचपन की अस्पष्ट धनिया सिखाना, घुटनों के बल चलना ,रोना चिल्लाना,यह सब सारे विशेषताएं हैं पुरानी हो जाती है और फिर हमारे जीवन में वापस नहीं मिलती है।
❇️⭐नए गुणों की प्राप्ति❇️⭐
✍️विकास क्रम से जहां एक ओर पुराने रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उसका स्थान नए गुणों को प्राप्त करता है
🌠जैसे -स्थाई दांत का आना स्पष्ट उच्चारण करना उछलना कूदना भागना ,दौड़ने, आदि क्षमता का उदय होता है सारे गुण प्राणी में विकास के क्रम में प्राप्त होते हैं।
✍️✍️🙏Notes by Laki 🙏✍️✍️
⛲ ℱℴ𝓇𝓂 ℴ𝒻 𝒟ℯ𝓋ℯ𝓁ℴ𝓅𝓂ℯ𝓃𝓉 ⛲
Ꙭविकास का रूप Ꙭ
➡️विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित ही होते हैं।
1️⃣➡️ आकार में परिवर्तन
➡️शरीर के आकार में परिवर्तन अक्षर बच्चों के विकास के बीच देखा जा सकता है;
➡️शरीर के विकास के क्रम में आगे बढ़ने से शरीर के आकार और भार में परिवर्तन आता है;
⛲जैसे-जैसे बालक की उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे ही उसकी आकार वा भार में वृद्धि होती जाती है;
2️⃣➡️अनुपात में परिवर्तन
➡️आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है हमारे शरीर के सभी अंग के एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं और सभी अंगों का विकास एक ही निश्चित अनुपात में नहीं होता है;
➡️जैसे हृदय का जन्म के समय और पूर्ण अवस्था के दौरान का अनुपात १:१३ होता है;
मस्तिष्क जन्म के समय वह पूर्ण अवस्था के बाद का अनुपात १:४ होता है;
➡️संपूर्ण विकास काल में हृदय का भार जन्म के भार से 13 गुनाबढ़ जाता है जबकि मस्तिष्क का भार केवल ४ गुणा ही बढ़ता है, अतः विकास क्रम शारीरिक अंगों के अनुपात में आ जाता है।
➡️शैशवावस्था में बालक स्व केंद्रित होता है और जबकि बाल्यावस्था आते-आते अपने आसपास और वातावरण में भी रूचि लेने लगता है;
3️⃣➡️- पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन
प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पुरानी विशेषताओं का लोप हो जाता है;
🌊जैसे÷ बचपन के बालों और दातों का समाप्त हो जाना;
ठीक इसी प्रकार बचपन की अस्पष्ट ध्वनियों का स्पष्ट होना,
🌊लुढ़कना वा खिसकना ,घुटनों के बल चलना ,रोना ,चिल्लाना इत्यादि क्रियाएं एक अवस्था के बाद खत्म हो जाती है।
4️⃣➡️नए गुणों की प्राप्ति
➡️विकास क्रम में जहां एक ओर पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उसका स्थान में गुण प्राप्त कर लेते हैं।
🌊जैसे स्थाई दांत का आना, स्पष्ट उच्चारण करना उछलना ,कूदना ,भागना ,दौड़ना वह नई क्षमताओं का उदय होना इत्यादि
यह सारे नए गुण प्राणी को विकास क्रम में प्राप्त होता है।
➡️हस्तलिखित-शिखर पाण्डेय🎉
🎯विकास का रूप 🎯
(From of development)
विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित ही होते हैं।
🌼(1) आकार में परिवर्तन —
➡️शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों के विकास के बीच देखा जा सकता है।
शरीर के विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के आकार और भार में परिवर्तन आता है।
➡️2)अनुपात में परिवर्तन—-
💫आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं और सभी अंग का विकास एक निश्चित अनुपात में नहीं होता है।
जैसे- संपूर्ण विकास काल के हृदय का भार जन्म के समय का भार से 13 गुना बढ़ जाता है जबकि मस्तिष्क का भार केवल 4 गुणा बढ़ता है।
अतः विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है।
➡️(3)पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन—-
💥प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्व पुराने विशेषताओं का लोप होता है।
जैसे- बचपन के बालों और दांतो का समाप्त हो जाना।
इसी प्रकार बचपन की अस्पष्ट ध्वनियों, खिसकना, घुटनों के बल चलना, रोना ,चिल्लाना इत्यादि होते हैं।
➡️(4) नए गुणों की प्राप्ति—
🌺विकास क्रम में जहां एक ओर पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उनका स्थान नए गुण प्राप्त कर लेते हैं।
जैसे — स्थाई दांत आना ,स्पष्ट उच्चारण करना, उछलना ,कूदना, भागना ,दौड़ना, की नई क्षमता का उदय होना।
यह सारे नए गुण प्राणी के विकास क्रम में प्राप्त होते हैं।
🥀🌹🌸🙏Notes by- SRIRAM PANJIYARA 🌈🌸💥🌺🙏
🔆 विकास का रुप (from of Development ) ➖
विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित ही होते हैं जो कि हमारे विकास के रूप को निर्धारित करते हैं जो कि निम्न हैं ➖
1) आकार में परिवर्तन
2) अनुपात में परिवर्तन
3) पुरानी रुपरेखा में परिवर्तन
4) नए गुणों की प्राप्ति
🔷 आकर में परिवर्तन➖
शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों के विकास के बीच देखा जा सकता है जैसे जैसे बच्चे बड़े होते हैं उनके आकार और भार में भी परिवर्तन होने लगता है शरीर के विकास के क्रम में आयु में बढ़ने के साथ बच्चे के शरीर के आकार और भार में भी परिवर्तन आता है |
🔷 अनुपात में परिवर्तन➖
आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है हमारे शरीर के अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं और सभी अंगों का विकास एक निश्चित अनुपात में नहीं होता है |
संपूर्ण विकास काल में हृदय का भार जन्म के बाहर से लगभग 13 गुना बढ़ जाता है अर्थात अनुपात 1:13 हो जाता है जबकि मस्तिष्क का भार 4 गुना बढ़ जाता है अर्थात मस्तिष्क के भार का अनुपात 1:4 हो जाता है |
शारीरिक विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात व्यापक अंतर आता है |
शैशावस्था में बच्चा स्वकेंद्रित होता है स्वयं के बारे में सोचता है अर्थात शून्य में होता है और कल्पनाओं में रहता है लेकिन जब बच्चा बाल्यावस्था में वह अपने आसपास के वातावरण और व्यक्तियों में रुचि लेने लगता है |
🔷 पुरानी रुपरेखा में परिवर्तन➖
प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्व पुरानी विशेषताओं का लोप हो जाता है विशेषताएं समाप्त हो जाते हैं कभी लौट कर नहीं आती हैं जैसे बचपन के बालों और दातों का समाप्त हो जाना |
इसी प्रकार बचपन की अस्पष्ट ध्वनियाँ, पैरों के बल खिसकना,घुटनों के बल चलना, रोना और चिल्लाना इत्यादि |
🔷 नए गुणों की प्राप्ति ➖
विकास के क्रम में जहां एक ओर पुरानी रुपरेखा में परिवर्तन होता है तो वही उसका स्थान नए गुण प्राप्त कर लेते हैं |
जैसे स्थाई दांतों का आना, स्पष्ट उच्चारण करना, उछलना, कूदना, भागना और दौड़ने की क्षमता का उदय होना इत्यादि |
यह सारे नए गुण प्राणी को विकास क्रम में ही प्राप्त हो जाते है जो कि एक निश्चित क्रम में होते हैं जो उम्र के साथ जीवन पर्यन्त चलते रहते हैं |
नोट्स बाय➖ रश्मि सावले
🌻🌹🌼🌸🍀🌺🌻🌹🍀🌼🌸🌻🌺🌹🍀🌼🌻🌹🌺🌼🍀🌸
🌻🌸🌹 विकास का रूप🌹🌻
👉 विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित ही होते हैं
▫️ आकार में परिवर्तन
▫️ अनुपात में परिवर्तन
▫️ पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन
▫️ नई गुणों की प्राप्ति
🔸 आकार में परिवर्तन:- शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों के विकास के बीच में देखा जा सकता है।
शारीरिक विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के ‘आकार’ और ‘भार’ में परिवर्तन आता है।
🔸 अनुपात में परिवर्तन:- आकार में परिवर्तन आनुपातिक होता है हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं वह धीरे-धीरे परिपक्व होते हैं और एक निश्चित अनुपात में नहीं होता है।
जैसे :- हाथ का आकार और अनुपात अलग होता है।
कान का आकार और अनुपात अलग होता है। पूरे शरीर का आकार और अनुपात एक निश्चित क्रम में नहीं होता है।
Note:- जन्म से हृदय का भार 13 गुना बढ़ जाता है, जबकि मस्तिष्क का भार केवल चार गुना बढ़ता है।
सबका अपना-अपना अनुपात होता है और अनुपात के हिसाब से दर भी अलग-अलग होती है।
अतः विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है।
शैशवावस्था में बालक स्व केंद्रित होता है जबकि बाल्यावस्था में आते आते अपने आस-पास के वातावरण में भी रुचि लेने लगता है।
🔸 पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन:- प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्व पुरानी विशेषताओं का लोप हो जाता है।
जैसे बचपन की बाल और दांतों का समाप्त हो जाना।
इसी प्रकार बचपन की और स्पष्ट ध्वनि या खिसकना घुटनों के बल चलना आदि का लोप हो जाता है।
🔸 नए गुणों की प्राप्ति:- विकास क्रम में जहां एक ओर रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उसका स्थान नए गुण प्राप्त कर लेते हैं।
जैसे स्थाई दांत आना और स्पष्ट, उच्चारण करना, उछलना, कूदना, भागना, दौड़ना आदि नई क्षमताओं का उदय होता है।
यह सारे नए गुण प्राणी को विकास क्रम में प्राप्त होता है।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
Notes by
Shashi chaudhary
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
💫🌸 विकास का रूप🌸💫
👉🏼 विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित ही होते हैं।
🌼 आकार भी परिवर्तन
🌼 अनुपात में परिवर्तन
🌼 पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन
🌼 नए गुणों की प्राप्ति
🌼 आकार में परिवर्तन➖
शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों के विकास के बीच देखा जा सकता है ।
शरीर के विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के ‘आकार ‘और ‘भार’ में परिवर्तन आता है।
🌼 अनुपात में परिवर्तन➖आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं।
सभी अंगों का विकास एक निश्चित अनुपात में नहीं हो पाता है। जैसे—
संपूर्ण विकास में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है।
शैशवास्था में बालक स्व केंद्रित होता है जबकि बाल्यावस्था आते-आते अपने आप -पास और वातावरण में भी रुचि से लगता है।
🌼 पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन➖प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्ण पुरानी विशेषताओं का लोप होता है। जैसे–
बचपन के बालों और दातों का समाप्त हो जाना।
इसी प्रकार बचपन की अस्पष्ट ध्वनियों, खिसकना, घुटनों के बल चलना, रोना ,चिल्लाना
🌼 नए गुणों की प्राप्ति➖विकास क्रम में जहां एक और पुराने रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उसका स्थान नए गुण प्राप्त कर लेता है जैसे–स्थाई दांत, अस्पष्ट उच्चारण करना, उछलना, कूदना ,भागना ,दौड़ना की नई क्षमताओं का उदय होता है यह सारे नए-नए गुण प्राणी को विकास क्रम में प्राप्त होता हैं।
✍🏻📚📚 Notes by…..
Sakshi Sharma📚✍🏻
💥 विकास का रूप💥
विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन अवश्य होते हैं
जो इस प्रकार है➖
♻️आकार में परिवर्तन- बच्चों में विकास के द्वारा ही शरीर के आकार में परिवर्तन देखा जा सकता है
शरीर के विकास के क्रम में आयु बढ़ने के साथ-साथ आकर और भार में भी परिवर्तन होता जाता है जैसे जैसे आयु बढ़ेगी आकार और भार भी बढ़ता जाता है
♻️अनुपात में परिवर्तन- आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है हमारे शरीर के अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं और शरीर अंगों का विकास एक निश्चित अनुपात में नहीं होता है
जैसे संपूर्ण विकास काल में हृदय का भार जन्म के भार से तीन गुना ही बढ़ता है
अतः विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में आ जाता है शेष अवस्था में बालक स्व केंद्रित होता है जबकि बाल्यवस्था आते-आते अपने आसपास और वातावरण में भी रुचि लेने लगता है
♻️पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन- प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्व पुरानी विशेषताओं की समाप्ति हो जाती है जैसे बचपन में बालों का और दांतों का समाप्त होकर नए आना इसी प्रकार बचपन की स्पष्ट ध्वनि खिसकना घुटनों के बल चलना रोना चिल्लाना आदि
♻️नए गुणों की प्राप्ति- विकास क्रम में जहां एक और पुरानी रूपरेखा का परिवर्तन होता है वही उसका स्थान नए गुण प्राप्त कर लेता है जैसे स्थाई दांत आना दौड़ने की नई क्षमता का उदय होना स्पष्ट उच्चारण करना यह सारे नए गुण प्राणी के विकास क्रम में परिवर्तन प्राप्त होते हैं
सारांश➖
1- आकार में परिवर्तन
2- अनुपात में परिवर्तन
3- पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन
4- नए गुणों की प्राप्ति
Notes by sapna yadav
विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित ही होते हैं
1. आकार में परिवर्तन
2. अनुपात में परिवर्तन
3. पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन
4. नए गुणों की प्राप्ति
1. आकार में परिवर्तन
शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों के विकास के बीच देखा जा सकता है
शरीर के विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के आकार और भार में परिवर्तन होता है।
जैसे जन्म के समय बच्चे का वजन 6 से 8 पाउंड के बीच होता है उसके बाद 5 वर्ष में बच्चे का वजन 43 पाउंड हो जाता है ऐसे ही जन्म के समय बच्चे की लंबाई 19 से 21 इंच होती है लेकिन 5 वर्ष के बाद 43 इंच हो जाती है।
2. अनुपात में परिवर्तन
आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है
हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं
और सभी अंग का विकास एक निश्चित अनुपात में नहीं होता है जैसे
संपूर्ण विकास काल में हृदय का भार जन्म के बाद से 13 गुना बढ़ता है जबकि मस्तिष्क का भार केवल चार गुना बढ़ता है
हृदय 1:13
मस्तिष्क 1:4
अतः विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर पाया जाता है।
शैशवावस्था में बालक स्व केंद्रित होता है जबकि बाल्यावस्था में आते आते बालक अपने आसपास और वातावरण में भी रुचि लेने लगता है।
3. पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन-
प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्व पुरानी विशेषताओं का लोप होता है
जैसे बचपन के बालों और दातों का समाप्त हो जाना इसी प्रकार बचपन की स्पष्ट ध्वनियां, खिसकना घुटनों के बल चलना, रोना, चिल्लाना आदि
4. नए गुणों की प्राप्ति
विकास क्रम में जहां एक ओर पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उसका स्थान नये गुण प्राप्त कर लेते हैं
जैसे स्थाई दांत आना ,स्पष्ट उच्चारण करना ,उछलना, कूदना, भागना ,दौड़ने की नई क्षमता का उदय होना
यह सारे नए गुण प्राणी को विकास क्रम में प्राप्त होते हैं।
Notes by Ravi kushwah
🌴🌻🌻🌺🌻🌻🌺🌴
विकास के रूप- विकास की प्रक्रिया में चार प्रकार के परिवर्तन निश्चित प्रकार से हुए हैं।
🌤️आकार में परिवर्तन
🌤️अनुपात में परिवर्तन
🌤️पुरानी रूप रेखा में परिवर्तन
🌤️नये गुणों की प्राप्ति
🌴➡️ आकर में परिवर्तन- शरीर के आकार में परिवर्तन , उसके भार में परिवर्तन विकास के बीच देखा जाता है। शरीर के विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के आकार और भार में परिवर्तन होते है।
जैसे कि बच्चे की 5 वर्ष में उनका भार 20kg होता है जबकि 10 वर्ष की आयु में लगभग 25kg होता है।
🌴➡️ अनुपात में परिवर्तन- शरीर के आकार में जो परिवर्तन होता है वह एक अनुपात में होता है लेकिन एक निश्चित अनुपात नही होता है। हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नही होते है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर के अंगों का जो अनुपात होता है वह अलग अलग होता है।
जैसे सम्पूर्ण विकास काल मे हृदय का भार जन्म के समय की अपेक्षा 13गुना हो जाता है।
👉अतः विकास के क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है।
🌴➡️ पुरानी रूप रेखा में परिवर्तन- प्राणी के विकास के क्रम मे ,नवीन विशेषताओं का उदय होता है और जो पुरानी विशेषता है उनका लोप हो जाता है जैसे – जन्म के समय के बाल,दांत का समाप्त होना । इसी प्रकार बचपन की अस्पष्ट ध्वनियों ,खिसकना ,घुटनो के बल चलना ,रोना चिल्लाना ।
🌴➡️ नए गुणों की प्राप्ति- विकास के क्रम में जहाँ एक ओर रूपरेखा में परिवर्तन होता है वही उसका स्थान नये गुण प्राप्त कर लेते हैं। जैसे- स्थायी दाँत का आना, चलना,उछालना, भागना ,दौड़ना आदि सभी नए क्षमताओं का उदय होता है।
💥यह सारे नये गुण प्राणि के विकास क्रम से प्राप्त किये जाते हैं।
💥💥💥 Notes by Poonam sharma📚📚📚📚
विकास के रूप
💥💥💥💥💥💥
4 march 2021
विकास के रूप को चार प्रकार से परिवर्तित किया गया है :-
1. आकार में परिवर्तन
2. अनुपात में परिवर्तन
3. पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन
4. नए गुणों की प्राप्ति
उपर्युक्त परिवर्तनों के बारे में निम्नलिखित तौर पर विस्तारित रूप से जानते हैं :-
1. 🌺 आकार में परिवर्तन :-
शरीर के आकार में परिवर्तन अक्सर बच्चों के विकास के बीच देखा जा सकता है।
शरीर के विकास के क्रम में आयु के बढ़ने से शरीर के आकार और भार में परिवर्तन आता है।
💐 अर्थात् बच्चों के बाह्य और आंतरिक शारीरिक अंगों में परिवर्तन जैसे – हाथ – पैर, वक्षस्थल, सिर आदि में बढ़ती उम्र के अनुसार जो विकासात्मक परिवर्तन होता है उसे ही आकार में परिवर्तन कहते हैं।
2. 🌺 अनुपात में परिवर्तन :-
आकार में परिवर्तन अनुपातिक होता है।
हमारे शरीर के सभी अंग एक साथ परिपक्व नहीं होते हैं।
और सभी अंग का विकास एक निश्चित अनुपात में नहीं होता है।
मनुष्य के संपूर्ण विकास काल में *हृदय का भार* जन्म के भार से 13 गुना बढ़ जाता है अर्थात *1 : 13* हो जाता है।
और *मस्तिष्क का भार* जन्म के भार से 4 गुना बढ़ जाता है अर्थात *1 : 4* हो जाता है।
अतः विकास क्रम में शारीरिक अंगों के अनुपात में अंतर आ जाता है।
शैशवावस्था में बालक स्व – केंद्रित होता है ,
जबकि बाल्यावस्था में आते- आते अपने आसपास और अन्य वातावरण में भी रुचि लेने लगता है।
3. 🌺 पुरानी रूपरेखा में परिवर्तन :-
प्राणी के विकास क्रम में नवीन विशेषताओं का उदय होने से पूर्व पुरानी विशेषताओं का लोप हो जाता है।
💐 जैसे :- बचपन के बाल और दांत एक समय- सीमा तक समाप्त हो जाते हैं।
इसी प्रकार बचपन की अस्पष्ट ध्वनियां , खिसकना – रेंगना , घुटनों के बल चलना , रोना , चिल्लाना आदि एक समय तक ही होता है।
4. 🌺 नए गुणों की प्राप्ति :-
विकास क्रम में जहां एक ओर पुरानी रूप-रेखाओं में परिवर्तन होता है , तो वहीं उसका स्थान नए गुण प्राप्त कर लेते हैं ।
💐 जैसे :- स्थाई दांत आना , स्पष्ट उच्चारण करना , उछलना , कूदना , भागना , दौड़ना आदि की नई क्षमता का उदय होता है ।
अर्थात् ये जो नये गुणों की प्राप्ति होती है बो जीवन पर्यन्त व्यक्ति में समाहित होती है।
🌻 ये सारे नये गुण प्राणी को विकास क्रम में प्राप्त होते हैं।
✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️