21. CDP – Growth and Development PART- 2

🔆विकास🔆

 (Development) 

🔸विकास एक प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत बिना रुके या सतत या निरंतर व सार्वभौमिक रूप से अविराम चलती रहती है।

🔸 विकास वृद्धि को अपने आप में समाहित करता है अर्थात वृद्धि विकास का ही एक भाग है।

🔸विकास के अन्य पहलुओं को देखा जाए तो हर एक पहलू की विशेषता शारीरिक विकास से थोड़ी अलग है इसीलिए शारीरिक वृद्धि को एक अन्य नाम “वृद्धि” दिया गया है।

🔸 अर्थात् वृद्धि विकास का अंग है लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर ही संकेत नहीं करता बल्कि इसके अंतर्गत शारीरिक,मानसिक ,सामाजिक संवेगात्मक इत्यादि परिवर्तन शामिल है।

🔸 शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास की जो भी अंग हैं वह जीवन भर चलते रहते हैं।

🔸 विकास की प्रक्रिया में होने वाले सभी परिवर्तन हर व्यक्ति में एक समान नहीं होते सभी में व्यक्ति भिन्नता होती है।

🔸 हमारी क्षमता धीरे धीरे बढ़ते हुए या उसमें कई भिन्नता वह परिवर्तन होते हैं जैसे-जैसे हम वयस्क अवस्था तक आते हैं वैसे वैसे हमारे शरीर में कई तरह की क्षमताएं बढ़ती जाती हैं और धीरे-धीरे आगे बढ़कर अर्थात वृद्धावस्था तक पहुंचते-पहुंचते हमारी इस क्षमता का धीरे धीरे क्षय या हास होने लगता है

🔸 अर्थात एक समय अंतराल या 40 वर्ष के बाद धीरे-धीरे हमारे इस क्षमता का क्षय होता चला जाता है उसमें परिवर्तन होता चला जाता है।

🔸जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्ध या बाद में आगे आने वाले समय में होने वाले परिवर्तन विनाशत्मक होते हैं।

🔸 क्षमता के साथ साथ अवस्था में होने वाली विभिन्नता में भी  कई परिवर्तन होने लगता है।

🔸 आज के समय में  वास्तविक रूप से यह देखा जाता है कि कम उम्र में ही व्यक्ति कई बीमारियों से ग्रसित होने लगते हैं इस बीमारी से कम उम्र में ग्रसित होने का कारण लोगों के एंबिशन को पाने या उन्हें हासिल करने की तेजी में काफी फ्रस्ट्रेशन बड़ा है जिसके परिणाम स्वरूप इस तरह की कई बीमारियों से व्यक्ति ग्रसित हो रहे है।

🔸 रचनात्मकता व्यक्ति में परिपक्वता या वयस्कता लाती है और जो विनाश आत्मक परिवर्तन है वह व्यक्ति को वृद्धावस्था तक ले जाती है।

🔸 अतः विकास के कई मायने हैं और विकास बहुत व्यापक शब्द है।

🔸 विकास को ही क्रमिक परिवर्तन की श्रंखला कहा जाता है इसी कारण से हमारे अंदर कुछ ना कुछ नहीं विशिष्टता आती है और यह नई विशिष्टता से पुरानी विशेषता को समाप्त करती हैं।

🔸 दूसरे रूप में हम कह सकते हैं कि नई विशेषताएं पुरानी विशेषताओं को ओवरलैप करती हैं।

🔸विकास एक अवस्था जिसमें जो भी विशेषता व्यक्ति के अंदर होती है उसके गुजर या निकल जाने पर विकास की आगे आने वाली अवस्था जिसमें जो भी विशेषता है वह आती चली जाती है।

🔸अर्थात विकास की पूर्ण अवस्था में प्राप्त विशेषता धीरे-धीरे विकास की आने वाली अवस्था में प्राप्त होने वाली विशेषता कई परिवर्तन के कारण खत्म होती चली जाती है।

🔸कई बार रूचि खत्म होने के कारण ,आवश्यकता के खत्म होने के कारण या परिपक्वता आ जाने के कारण आदि ऐसे कई कारक हैं जिनकी वजह से नई विशेषताओं का उदय या जन्म होने पर पुरानी विशेषताएं खत्म या समाप्त या लुप्त होती चली जाती है।

🔸हर उम्र में अपनी अलग अलग विशेषता रहती है यह आवश्यक नहीं कि हमेशा ज्यादा होगी या हमेशा ही कम।

🔸 किसी भी उम्र यह समय के निकल जाने पर उसके साथ उस समय की विशेषता भी पीछे रह जाती है जिसे आगे आने वाले समय या उम्र में प्राप्त नहीं किया जा सकता।

🔸 हम जिस भी उम्र में हैं उस उम्र के हर एक पल या हर एक समय उस उम्र की विशेषता है ।

🔸 हम जिस भी कार्य को जिस समय कर रहे हैं उस समय में कार्य को पूरी लगन, आनंद से करेंगे तभी हम उस कार्य की विशिष्टता और महत्व को समझ पाएंगे।

🔸 बचपन में हम हर एक छोटी बात या छोटी चीज के मिल जाने पर बहुत बड़ी खुशी का अनुभव करते थे जैसे-जैसे आगे बढ़ते गए या उम्र में बदलाव आता गया वैसे वैसे हमारी आवश्यकता व जरूरतों में भी परिवर्तन होता गया।

🔸 हर परिस्थिति या समय के अनुसार ही किसी भी चीज का सही महत्व समझ आता है।

🔸 जब हम कोई कार्य करते हैं तो उसमें कई तरह की परेशानी आती है इन परेशानियों का सामना करके हम उस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा कर लेते हैं।

अब आगे जब भी कभी भी हम उस कार्य को करेंगे तो कार्य के दौरान बिना परेशानी आए आसानी से बेहतर रूप से कर पाएंगे क्योंकि पूर्व में हमें उस कार्य के दौरान जो भी परेशानी का सामना करना था उन परेशानियों का अनुभव प्राप्त हो चुका है।

🔸 प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन भी गुणों से परिपक्व मानता है वह सब विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम है।

🔅 विकास के संदर्भ में कुछ मनोवैज्ञानिक कथन निम्नानुसार हैं।

❇️ हरलॉक के अनुसार ➖

“विकास केवल वृद्धि तक ही सीमित नहीं है वरण यह वह व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है, जिसके परिणाम स्वरूप नवीन योग्यताएं व विशेषताएं प्रकट होती हैं।”

❇️ मुनरो के अनुसार ➖

“विकास परिवर्तन श्रंखला की वह अवस्था है जिसमें बच्चन भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है विकास कहलाता है”।

❇️ जेम्स ड्रेवर के अनुसार ➖

“विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती है यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूण अवस्था से प्रौढ़ावस्था तक होता है यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से विकसित करता है यह प्रकृति का मानदंड और इसका आरंभ शून्य से होता है।

✍️

            Notes By-‘Vaishali Mishra’

⛲ℳℯ𝒶𝓃𝒾𝓃ℊ ℴ𝒻 𝒟ℯ𝓋ℯ𝓁ℴ𝓅𝓂ℯ𝓃𝓉⛲

         🎡 विकास का अर्थ🎡

⛲विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत तक बिना रुके सतत अथवा निरंतर सार्वभौमिक रूप से अविराम चलते रहती है;

वृद्धि

⛲वृद्धि विकास का अंग है विकास वृद्धि का अंग नहीं लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर संकेत नहीं करता अपितु इसके अंतर्गत शारीरिक मानसिक सामाजिक संवेगात्मक भावनात्मक इत्यादि परिवर्तन भी शामिल है

⛲शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास के अंग वह सब जीवन पर्यंत तक चलते रहते हैं

⛲विकास की प्रक्रिया में होने वाले सारे परिवर्तन सभी में एक समान नहीं होते हैं (एक साथ जन्म में 2 बच्चे रंग-रूप आकार व वजन में भिन्न होने के साथ-साथ उनका विकास भी भिन्न-भिन्न ही होता है)

जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्द्ध (क्षयकारी) में होने वाले परिवर्तन विनाशात्मक होते हैं।

⛲विनाशात्मक परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाती है।

⛲विकास को ही “क्रमिक परिवर्तन की क् श्रृंखला ” कहा जाता है।

⛲प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति की विभिन्न विशेषताएं वा गुण होते हैं जो एक अवस्था में आती है और फिर संभवत दूसरी अवस्था में नहीं रह जाती है इत्यादि क्रियाएं जीवन पर्यंत तक चलती रहती हैं।

                                 इससे व्यक्ति में हर स्तर पर नहीं विशेषता आती है और पुरानी विशेषता खत्म हो जाती है।

⛲प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से संपन्न पाता है या विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है।

🌊हरलाक के अनुसार “विकास की परिभाषा”

विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन यह वह  व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील काम निहित रहता है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं एवं योग्यताएं प्रकट होती हैं।

🌊मुनरो के अनुसार “विकास की परिभाषा”

विकास परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था है जिसमें बच्चा भूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है विकास कहलाता है।

🌊जेम्स ड्रेवर के अनुसार “विकास की परिभाषा”

विकास वह  दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती है ,यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भूणावस्थ से प्रौढ़ावस्था तक होती है । यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रकृति का मानदंड है और इसका आरंभ शून्य से होता है।

🌊Written by -$hikhar

💥🌈 🌻विकास का अर्थ🌻🌈

🌈  विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत बिना रुके, सतत, निरंतर, सार्वभौमिक एवं अविराम चलने वाली प्रक्रिया है।

✍🏻 वृद्धि विकास का अंग है, लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर भी संकेत नहीं करता इन के अंतर्गत शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक ,भावनात्मक इत्यादि परिवर्तन शामिल है।

✍🏻 शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास के अंग व जीवन पर्यंत  चलते रहते हैं।

✍🏻 विकास की प्रक्रिया में होने वाले सारे परिवर्तन सभी में एक समान नहीं होते हैं।

✍🏻 जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्द्ध में होने वाले परिवर्तन विनाशात्मक ( क्षय)  होते हैं।

✍🏻 रचनात्मकता हमारे नया परिपक्वता लाती है विनाशात्मक परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाती है।

✍🏻 अतः विकास बहुत व्यापक शब्द है

🌻विकास को ही “क्रमिक परिवर्तन की श्रृंखला” कहा जाता है जाता है।

✍🏻 इससे व्यक्ति ने हर स्तर पर नई विशेषताएं होती हैं और पुरानी विशेषताएं खत्म हो जाती है।

प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से संपन्न पाता है यह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है।

🔸✍ हरलॉक के अनुसार-

                        🌸” विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन यह वह व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं एवं योग्यता प्रकट होती हैं।”🌸🌸

🔸✍🏻 मुनरो के अनुसार-

               🌸” विकास परिवर्तन श्रृंखला की व्यवस्था है जिसमें बच्चा भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है ,विकास कहलाता है।🌸

🔸✍🏻जेम्स ड्रेवर के अनुसार –

              🌸🌸” विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती है यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था तक होता है, यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यही प्रगति का मानदंड है और इसका आरंभ शून्य से होता है।🌸🌸

🌸Notes by

          Shashi Chaudhary🌸

          🙏🙏🙏🙏🙏🙏

💥विकास का अर्थ💥

❇️विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन प्रयत्न चलती रहती है जो गर्व से लेकर जीवन  तक चलती रहती ह यह कभी रुकती नहीं है सर्व भौमिक रूप से चलती रहती है

❇️वृद्धि ➖विकास का ही रूप है लेकिन विकास केवल शारीरिक रूप में वृद्धि नहीं करता विकास शारीरिक मानसिक भावात्मक संवेगात्मक सभी रूपों में परिवर्तन करता है

 ❇️विकास शारीरिक परिपक्वता होने के अलावा बाकी विकास जीवन भर निरंतर चलता रहता है शारीरिक विकास अकेला रुक जाता है बाकी विकास चलते रहते हैं यह परिवर्तन सभी के समान नहीं होते हैं ❇️हर व्यक्ति में शारीरिक परिवर्तन अलग-अलग होते हैं

जीवन के प्रारंभ में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक और उत्तरार्ध में होने वाले परिवर्तन विनाश आत्मक होते हैं रचनात्मक का मतलब हमारे शरीर में परिपक्वता लाना होता है विनाश आत्मक का मतलब हमारे शरीर में वृद्धावस्था लाना होता है इससे शरीर की विकास रुक जाती है

❇️ विकास बहुत ही व्यापक है यह बहुत ही बड़ा होता है विकास को क्रमिक परिवर्तन की श्रंखला कहा जाता है इससे व्यक्तियों में नहीं विशेषता उत्पन्न होती है प्राणी विशेषताएं खत्म हो जाती है प्रौढ़ावस्था तक मनुष्य जिन गुणों को पाता है वह विकास की प्रक्रिया का परिणाम होता है

🖊हरलॉक के अनुसार ➖विकास केवल अभिवृद्धि तक ही सीमित नहीं वरन यह व्यवस्थित परिवर्तन है जिससे प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम नहीं करता है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति मैं नवीन विशेषता और नवीन योग्यता प्रगट होती है 🖊मुनरो के अनुसार➖ विकास परिवर्तन श्रंखला की वह अवस्था है जो भ्रूण अवस्था से  प्रौढ़ावस्था तक गुजरती है विकास कहलाता है🖊 गेम्स ड्रवर के अनुसार➖ विकास वही दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप में व्यक्त होती है यह परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूण अवस्था से पूर्ण अवस्था तक होता है यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रगति का मानदंड है और उसका आरंभ शून्य से ही होता है

📝Notes by sapna yadav

💥विकास का अर्थ💥 ( meaning of development)

💫विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवनपर्यन्त बिना रूके सतत् निरंतर सार्वभौमिक रूप से अविराम चलते रहती है |

💫वृद्धि विकास का अंग है लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर संकेत नही करता है इनके अंतर्गत शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , संवेगात्मक , भावनात्मक इत्यादि परिवर्तन शमिल है |

💫 शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकि विकास के अंग वह जीवनपर्यन्त चलते रहते है |

  💫विकास की प्रक्रिया में होने वाले सारे परिवर्तन सभी में एक समान नही होते है|

जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते है और उत्तरार्द्ध में होने वाले परिवर्तन विनाशात्मक होते है |

रचनात्मकता हमारे में परिपक्वता लाती है |

विनाशात्मक परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाती है |

अत: विकास बहुत व्यापक शब्द है |

विकास को ” क्रमिक परिवर्तन की श्रंखला ” कहा जाता है |

इससे व्यक्ति में हर स्तर पर नई विशेषता आती है और पुरानी विशेषता खत्म हो जाती है |

प्रौढा़वस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वंय को जिन गुणों से सम्पन्न पाता है | यह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है |

🌼हरलाॅक के अनुसार ” विकास की परिभाषा ” ➖ विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नही है , वरन् यह वह व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें प्रौढा़वस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनो का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं एंव योग्यताएं प्रकट होती है |

🌼मनुरो के अनुसार ➖ विकास परिवर्तन श्रंखला की वह अवस्था है जिसमें बच्चा भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढा़वस्था तक गुजरता है विकास कहलाता है |

🌼जेम्स ड्रेवर के अनुसार ➖ विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत् रूप से व्यक्त होती है | यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूणावस्था से प्रौढा़वस्था तक होता है | यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रगति का मानदंड है और इसका आरम्भ शून्य से होता है |

✍️✍️ Notes by➖ Ranjana sen

🔆 विकास का अर्थ ( Meaning of Development) ➖

🔷 विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत बिना रुके, सतत या निरंतर सार्वभौमिक रूप से अविराम चलते रहती है |

🔷 विकास ऐसी प्रक्रिया है जो बिना रुके निरंतर रूप से चलती रहती है विकास गुणात्मक परिवर्तन पर निर्भर करता है इसको मापा नहीं जा सकता है जो कि व्यक्ति की कार्यकुशलता, क्षमता ,व्यवहार आदि पर निर्भर करता है जो व्यक्ति के आंतरिक गुणों पर निर्भर करता है तथा विकास गर्भावस्था से शुरू होकर मृत्यु तक जीवन पर्यंत चलते रहता है तथा अप्रत्यक्ष रूप से होता है |

🔷 वृद्धि विकास का अंग है लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर ही संकेत नहीं करता है इसके अंतर्गत शारीरिक, मानसिक ,सामाजिक, संवेगात्मक तथा भावनात्मक इत्यादि परिवर्तन शामिल होते हैं |

🔷 शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास के अंग वह जीवन पर्यंत चलते रहते हैं लेकिन शारीरिक विकास परिपक्वता की अवस्था तक  पूरा हो जाता है जो कि गर्भावस्था से शुरू होकर किशोरावस्था तक चलता है |

🔷 विकास की प्रक्रिया में होने वाले सभी परिवर्तन सभी व्यक्तियों में एक समान नहीं होते हैं यह वैयक्तिक विभिन्नता के अनुसार होते हैं हर व्यक्ति की वैयक्तिक विभिन्नता अलग-अलग होती है इसलिए हर व्यक्ति में विकास भी अलग अलग तरीके से होता है लेकिन समान रूप से होता है |

🔷 जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्ध में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक नहीं होती बल्कि विनाशात्मक होते हैं | जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है वह उन्नति की ओर अग्रसर होता है अर्थात उसका विकास बढ़ता जाता है लेकिन जब  वह प्रौढ़ावस्था से वृद्धावस्था की ओर बढ़ता है तो उसके शरीर का क्षय होने लगता है अर्थात उसकी ऊर्जा का ह्रास होने लगता है जिससे उसका विनाशात्मक विकास होने लगता है इसलिए उत्तरार्ध में होने वाले परिवर्तन विनाशात्मक  होते हैं  |

🔷  रचनात्मकता हमारे में परिपक्वता लाती है और विनाविनाशात्मक  परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाते हैं अतः हम कह सकते हैं कि विकास बहुत ही व्यापक शब्द है |

🔷 विकास को ही ” क्रमिक परिवर्तनों की श्रंखला ” कहा जाता है इससे व्यक्ति में हर स्तर पर नई विशेषता आती है और पुराने विशेषता खत्म हो जाती है | 

🔷 प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से संपन्न मानता है वे विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम है यदि व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बनाता है तो वह वृद्धावस्था में स्वयं को संपूर्णता की स्थिति में पाता है लेकिन यदि वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति अपने लक्ष्य की पूर्ति नहीं कर पाता है तो वृद्धावस्था में पहुंचकर निराशा का अनुभव करता है |

🍀 विकास के संबंध में मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने पक्ष स्पष्ट कीजिए जो कि निम्न है ➖ 

🎯 हरलॉक के अनुसार ➖

 विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है बल्कि वह एक व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें वृद्धावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम नहीं रहता है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं एवं योग्यताएं प्रकट होती है  |

🎯  मुनरो के अनुसार➖

 विकास परिवर्तन श्रंखला की व्यवस्था है जिसमें भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है विकास कहलाता है |

🎯  जेम्स ड्रेवर के अनुसार➖

 विकास वह दिशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती है यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूण अवस्था से प्रौढ़ावस्था  तक होती है यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रकृति का मानदंड है और इसका आरंभ शून्य से होता है |

नोट्स बाय➖ रश्मि सावले

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💫🌻 विकास का अर्थ🌻💫

🪐विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत बिना रुके सतत् निरंतर सार्वभौमिक रूप से अविराम चलती रहती है।

🪐विकास केवल शारीरिक वृद्धि ही संकेत नहीं करता बल्कि इसके अंतर्गत सभी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, और संवेगात्मक परिवर्तन शामिल रहता है।

🪐 शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास के अंग व जीवन पर्यंत चलते रहते हैं जो गर्भ काल से लेकर मृत्यु पर्यंत तक निरंतर प्रगट होते रहते हैं।

🪐विकास की प्रक्रिया में होने वाले सारे परिवर्तन सभी में एक समान नहीं होता है जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्द्ध में होने वाले परिवर्तन विनाशात्मक होते हैं।

🪐रचनात्मकता हमारे में परिपक्वता लाती है विनाशात्मक परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाती है।

💫 विकास को” क्रमिक परिवर्तन की श्रंखला” कहा जाता है।

🪐इससे व्यक्ति में हर स्तर में नए विशेषताएं आती हैं और पुरानी विशेषताएं खत्म हो जाती हैं।

🪐 प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से संपन्न पाता है यह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है।

💫🌻 हरलॉक(Hurlock) के अनुसार विकास की परिभाषा➖

विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन यह व्यवस्था परिवर्तन है जिसमें प्रवस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं एवं योग्यताएं प्रगट होती हैं।

💫🌻मुनरो➖विकास परिवर्तन श्रृंखला की व्यवस्था है जिसमें बच्चा भ्रूणवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक  गुजरता है विकास कहलाता है।

💫🌻जेम्स ड्रेवर➖विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत् रूप से व्याप्त होता है यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूणवस्था  से प्रौढ़ावस्था  तक होता है यह विकास तंत्र की सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रगति का मानदंड है और इसका आरंभ शून्य से होता है।

✍🏻📚📚 Notes by…. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

,🌈🌈 विकास 🌈🌈

  🌠 विकास का अर्थ🌠

विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भावस्था से लेकर जीवन पर्यन्त बिना रुके सतत निरंतर सार्वभौमिक रूप से अभिराम चलती रहती है।

वृद्धि और विकास का अंग है लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर ही संकेत नहीं करता है इसके अंतर्गत शारीरिक व सामाजिक भावात्मक संवेगात्मक इत्यादि परिवर्तन शामिल है।

🌠शारीरिक परिपक्वता के अलावा बल्कि विकास के अंग का एक जीवन पर्यंत चलते रहते हैं , और विकास जीवन के पर्यंत तक चलता और दिखता रहता है।

विकास की प्रक्रिया में होने वाले सारे परिवर्तन सभी एक समान नहीं होते हैं।

🌠जीवन के प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्ध में होने वाले परिवर्तन विनाश आत्मक होते हैं

🌠रचनात्मक हमारे में परिपक्वता लाती है, विनाश आत्मक परिवर्तन हमें वृद्धा की ओर ले जाती है।

अतः विकास बहुत व्यापक शब्द है। 

🌠विकास  को क्रमिक परिवर्तन की श्रृंखला कहा जाता है।

💫अवस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं के गुणों में समन्वय आता है और यह विकास की प्रक्रिया का परिणाम होता है।

❇️ हरला के अनुसार विकास की परिभाषा ❇️

विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन  वह व्यवस्थित परिवर्तन है जिससे प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तन का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है जिसे के परिणाम स्वरूप व्यक्ति के नवीन विशेषताएं एवं योग्यताएं प्रकट होती हैं।

🌈 मुनरो अनुसार विकास की परिभाषा,🌈

विकास परिवर्तन की सिजरा कि वह व्यवस्था है जिसमें बच्चा भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है विकास कहलाता है।

 ❇️ जेम्स ड्रेवर के अनुसार विकास की परिभाषा❇️

विकासवाद ऐसा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप में व्यक्त होती है या प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूण अवस्था से पूर्ण अवस्था तक होता है यह विकास तंत्र को समान रूप से निर्मित करता है यह  प्रगति का मापदंड है और इसका आरंभ शुन्य से होता है।

 🙏✍️✍️Notes by Laki 🙏✍️

🌻🌻🌻💥💥💥💥💥 विकास की परिभाषा-

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🌈👉विकास को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।

💫🌻 विकास एक सतत प्रक्रिया है।

🌻💫विकास जीवन पर्यन्त चलता है।

🌻💫विकास अविराम अर्थात बिना विराम के यह चलता रहता है।

🌻💫 विकास सार्वभौमिक है।अर्थात विकास सभी मे होता है और यह आवश्यक भी है।

🌈👉 बृद्धि जो होती है वह विकास का अंग है लेकिन विकास बृद्धि की ओर संकेत नही करता है , विकास के अंतर्गत शारीरिक मानसिक ,सामाजिक ,संवेगात्मक और भावात्मक विकास भी शामिल हैं।

   🌈👉 शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास के अंग जो जीवन पर्यन्त चलते रहते हैं।

🌈👉विकास की प्रक्रिया में होने वाले सारे परिवर्तन सभी मे एक समान नही होते हैं अर्थात विकास सभी मे अलग अलग होता है।

🌈👉जीवन के प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं जो हमे परिपक्वता की ओर ले जाते हैं। और उत्तरार्ध में होने परिवर्तन विनाशात्मक होते हैं जो  मनुष्य को वृद्धावस्था की ओर ले जाते हैं।

🌈👉 अतः हम कह सकते हैं कि विकास बहुत ही व्यापक शब्द है।

🌈👉 विकास को “क्रमिक परिवर्तन” की श्रृंखला कहा जाता है।इसी की वजह से हमारे अंदर नई- नई विशेषता आती है।और जो पुरानी विशेषताओं को समाप्त करती है।

🌈👉 इससे व्यक्ति में हर स्तर पर नई विशेषता आती है।और पुरानी विशेषता खत्म हो जाती है।

🌈👉 प्रौढ़ावस्था में पहुचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से सम्पन्न पाता है यह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता हैं।

👨‍✈️🌈 हरलाक के अनुसार- विकास  केवल अभिवृद्धि तक सीमित नही  है वरन यह वह व्यवस्थित परिवर्तन है जिससे प्रौढ़ावस्था को लक्ष्य की ओर परिवर्तनो का प्रगतिशील का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है।

👨‍✈️👉मुनरो के अनुसार – विकास परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था है जिसमे बच्चा भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है।

👨‍✈️👉 जेम्स ड्रेवर के अनुसार – विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप से व्यक्त होती है यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था तक होता है।यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रगति का मानदंड है और इसका आरम्भ शून्य से होता है।

📚📚📚 Notes by Poonam Sharma🌻🌻🌻

विकास का अर्थ

   Meaning Of Development

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2 March 2021

👉 विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन – पर्यन्त बिना रुके सतत , निरंतर , सार्वभौमिक रूप से अविराम चलती रहती है।

👉 वृद्धि , विकास का ही अंग है ।

लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर ही संकेत नहीं करता है , बल्कि इनके अंतर्गत शारीरिक , मानसिक ,  सामाजिक , संवेगात्मक , भावनात्मक इत्यादि परिवर्तन शामिल होते हैं।

👉 शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास के सभी अंग जीवन पर्यंत चलते रहते हैं।

👉 विकास की प्रक्रिया में होने वाले संपूर्ण परिवर्तन सभी में एक समान नहीं होते हैं।

👉 जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं ।

👉 और जीवन के उत्तरार्ध से होने वाले परिवर्तन विनाशकारी ( क्षय – पूर्ण ) होते हैं।

👉 रचनात्मकता मनुष्यों में परिपक्वता लाती है।

        तथा विनाशकारी परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाते हैं।

👉 अतः विकास बहुत व्यापक शब्द है ।

👉 विकास को ” क्रमिक परिवर्तन की श्रृंखला ”  कहा जाता है।

👉 इससे व्यक्ति में हर स्तर पर नयीं विशेषतायें आती है और पुरानी विशेषताएं खत्म हो जाती हैं।

👉  प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों में संपन्न पाता है , वह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है।

🌹🌹  विकास की परिभाषाएं  🌹🌹

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विकास के संबंध में निम्नलिखित परिभाषायें दी हैं :-

” हरलॉक ”  के अनुसार   :-

विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन् यह व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है जिसके परिणामस्वरुप व्यक्ति में ” नवीन विशेषताएं ” एवं            ” योग्यताएं ” प्रकट होती हैं।

” मुनरो ”  के अनुसार   :-

विकास परिवर्तन श्रृंखला की वह व्यवस्था है जिसमें बच्चा ” भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता ”  है  ,  यही विकास कहलाता है।

 ” जेम्स ड्रेवर ”   के अनुसार  :-

” विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती है ,  यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था तक होता है।  

यह ” विकास तंत्र ” को सामान्य रूप से ” नियंत्रित ” करता है।  

यही ” प्रगति का मानदंड ” है और इसका ” आरंभ शून्य  से ” होता है। “

✍️ Notes by –  जूही श्रीवास्तव ✍️💥विकास का अर्थ💥

विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत बिना रुके सतत ,निरंतर ,सार्वभौमिक ,रूप से अभिराम चलते रहता है।

✨ वृद्धि -विकास का अंग है लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर संकेत नहीं करता है इन के अंतर्गत शारीरिक, मानसिक, सामाजिक ,संवेगात्मक, भावनात्मक, इत्यादि परिवर्तन शामिल हैं।

✨ शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकि विकास के अंग वह जीवन पर्यंत चलते रहता है विकास की प्रक्रिया में होने वाले सारे परिवर्तन सभी में एक समान नहीं होते हैं।

✨  जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्ध में होने वाले परिवर्तन विनाशात्मक होते हैं।

✨ रचनात्मकता हमारे में परिपक्वता लाती है विनाशात्मक परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाती है अतः विकास बहुत व्यापक शब्द है।

✨ विकास को ही “क्रमिक परिवर्तनों की श्रृंखला” कहा जाता है। 

✨ इससे व्यक्ति हैं हर स्तर पर नई विशेषता आती है और पुरानी विशेषता खत्म हो जाती है। प्रौढा अवस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से संपन्न पाता है यह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है।

💥 हरलाँक के अनुसार विकास की परिभाषा 💥

💫 विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन यह वह व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें प्रोढावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं एवं योग्यताएं प्रकट होती है।

 💥मुनरो💥  विकास परिवर्तन श्रृंखला की वह अव्यवस्था है जिसमें बच्चा भूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है विकास कहलाता है।

💥जेम्स डेवर💥– विकास वह दशा  है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती है यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भूणावस्था से प्रोढावस्था तक होता है यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रगति का मानदंड है और इसका आरंभ शून्य से होता है।

 📝📝📝Notes by suchi Bhargav….

विकास का अर्थ

विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर जीवन पर्यंत बिना रुके /सतत/ निरंतर /सार्वभौमिक रूप से/ अविराम चलती रहती हैं।

वृद्धि विकास का अंग है लेकिन विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर ही संकेत नहीं करता है इसके अंतर्गत शारीरिक ,मानसिक ,सामाजिक ,भावनात्मक, संवेगात्मक इत्यादि परिवर्तन शामिल है।

शारीरिक परिपक्वता के अलावा बाकी विकास के अंग जीवन पर्यंत चलते रहते हैं।

जीवन की प्रारंभिक अवस्था में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं और उत्तरार्द्ध में होने वाले परिवर्तन विनाशात्मक होते हैं।

रचनात्मकता हमारे में परिपक्वता लाती हैं

विनाशात्मक परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाते है।

अतः विकास बहुत व्यापक शब्द है।

विकास को “क्रमिक परिवर्तन की श्रृंखला” कहा जाता है।

इससे व्यक्ति में हर स्तर पर नई विशेषता आती है और पुरानी विशेषता खत्म हो जाती है

प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों से संपन्न पाता है यह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है।

हरलॉक के अनुसार विकास की परिभाषा

विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन यह “व्यवस्थित परिवर्तन” है जिसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर “परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम” निहित रहता है जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में “नवीन विशेषताएं एवं योग्यताएं” प्रकट होती है।

मुनरो के अनुसार विकास

विकास “परिवर्तन श्रृंखला” की वह अवस्था है जिसमें बच्चा “भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक” गुजरता है विकास कहलाता है।

जेम्स ड्रेवर के अनुसार-

विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती हैं यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था तक होता है यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है यह प्रगति का मानदंड है और इसका आरंभ शून्य से होता है।

Notes by Ravi kushwah

*विकास*

           *Development*

🐤 विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो गर्भ से लेकर मृत्यु बिना रुके सतत , निरंतर , सार्वभौमिक रूप से चलती रहती है।

🐤 वृद्धि , विकास का ही एक अंग है। विकास केवल शारीरिक वृद्धि की ओर ही संकेत नहीं करता है , बल्कि इनके अंतर्गत शारीरिक , मानसिक ,  सामाजिक , संवेगात्मक , भावनात्मक इत्यादि परिवर्तन शामिल होते हैं।

🐤शारीरिक परिपक्वता को छोड़कर विकास जीवन पर्यंत चलती रहती हैं।

🐤विकास की प्रक्रिया में होने वाले परिवर्तन सभी में असमान होते हैं।

 🐤जीवन की प्रारंभिक अवस्था(0-40 वर्ष लगभग) में होने वाले परिवर्तन रचनात्मक होते हैं ।

 तथा जीवन के उत्तरार्ध (40 से मृत्यु तक) में होने वाले परिवर्तन विनाशकारी ( कमजोरी ) होते हैं।

 👶🏻 *रचनात्मकता मनुष्यों में परिपक्वता लाती है। तथा विनाशकारी परिवर्तन हमें वृद्धावस्था की ओर ले जाते हैं।*

विकास बहुत व्यापक शब्द है ।

👶🏻विकास को *क्रमिक परिवर्तन की श्रृंखला* कहा जाता है।

🐤इससे व्यक्ति में हर स्तर पर नयीं विशेषतायें आती है और पुरानी विशेषताएं खत्म हो जाती हैं।

 🐤प्रौढ़ावस्था में पहुंचकर मनुष्य स्वयं को जिन गुणों में संपन्न पाता है , वह विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है।

       *विकास की परिभाषाएं*

 *Definition of Development*

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विकास के संबंध में अपने विचार प्रकट किए हैं—-

👾 *हरलॉक के अनुसार*   :-

विकास केवल अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है वरन् यह व्यवस्थित परिवर्तन है जिसमें प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर परिवर्तनों का प्रगतिशील क्रम निहित रहता है जिसके परिणामस्वरुप व्यक्ति में *नवीन विशेषताएं  एवं            ” योग्यताएं* प्रकट होती हैं।

👾 *मुनरो  के अनुसार*   :-

विकास *परिवर्तन श्रृंखला की वह व्यवस्था है जिसमें बच्चा *भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था* तक गुजरता  है, यही विकास कहलाता है।

👾 *जेम्स ड्रेवर  के अनुसार*  :-

” विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में सतत रूप से व्यक्त होती है ,  यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में *भ्रूणावस्था से प्रौढ़ावस्था* तक होता है। यह *विकास तंत्र* को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है।  

*यही प्रगति का मानदंड है और इसका आरंभ शून्य  से होता है।*

👀 📝🗒 Notes by – Deepika Ray ✍️ 📖📕📘📗📓📚

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