#15. CDP – Abstract Operational Stage PART-2

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किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण –

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🌈💥शरीरिक परिवर्तन- किशोरावस्था में शरीरिक परिवर्तन तीव्र होते है। विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होते हैं। जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं जिसका सीधा सम्बन्ध यौन विकास से है।

💫 बच्चे की मानसिक स्थिति के अनुसार शारीरिक परिवर्तन होते हैं।

🌈💥 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन- 

👉  किशोरावस्था  मानसिक ,भौतिक और भावात्मक परिपक्वता के विकास की भी अवस्था है। 

👉 इस अवस्था में बच्चा माता पिता पर वक बच्चे की तरह निर्भर रहना चाहता है। और प्रौढ की तरह स्वतंत्र भी रहना चाहता है।

👉 इस अवस्था मे विपरीत लिंग की ओर आकर्षित भी होता है। 

👉 इस अवस्था में बच्चे के अंदर तनाव ज्यादा होता है चिड़चिड़ा पन ज्यादा होता है थोड़ी थोड़ी सी बातों में उसे गुस्सा आता है ।  

👉इसे अन्य नाम से भी जानते हैं जैसे – तनाव की अवस्था, वीर पूजा , संघर्ष की अवस्था, जीवन का अनोखा काल तूफान की अवस्था अन्य कई नामो से जाना जाता है।

👉इस अवस्था की अत्यंत संवेदनशील माना जाता है।

🌈💥 सामाजिक सांकृतिक परिवर्तन-

 👉 इस अवस्था मे बच्चा समाज की बातों को बहुत गहराई से देखता है। समाज से मेलजोल बनाता है। 

 👉समाज मे किशोरों की भूमिका को परिभाषित नही किया गया है। जिसके फलस्वरूप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आ जाता है । वह समझ नही पता है कि उसे किस स्थिति में किस तरह से निराकरण करना चाहिये।

👉किशोरों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज द्वारा कोई महत्व नहीं दिया जाता है जिसके कारण यही है कि बच्चा गलत दिशा में जा रहा है। उम्र की परिपक्वता से पहले ही वह चीज़ों को कर रहा है और सीख रहा है।

👉 बच्चे में इस अवस्था मे कई प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जिसके कारण बच्चे में तनाव की,तथा क्रोध की प्रवृत्ति उत्तपन्न होती है ।

👉किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

🌺🌹📚📚Notes by Poonam sharma💥💥💥

🔆 किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण ➖

किशोरावस्था शारीरिक, भावनात्मक और क्रियात्मक व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है इसमें चाहे शारीरिक परिवर्तन , या मानसिक परिवर्तन हो उनमें बहुत तीव्र गति से परिवर्तन होता है  | 

🎯 शारीरिक परिवर्तन➖

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं और विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त होते हैं इसका सीधा संबंध यौन विकास से होता है | किशोरावस्था में ऐसे परिवर्तन होते हैं जो इससे पहले कभी नहीं होते हैं किशोरावस्था में जो भी परिवर्तन होते हैं वे हार्मोनल विकास के परिवर्तन के कारण होते हैं जिनका प्रभाव गौंण यौन लक्षणों के साथ-साथ शारीरिक परिवर्तन से होता है |

🎯 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन➖

🍀किशोरावस्था मानसिक ,भौतिक, और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है |

🍀इस अवस्था में बच्चे छोटे बच्चे की तरह दूसरों पर निर्भर रहने की या अपने माता-पिता पर निर्भर रहने की उपेक्षा करता है वे निर्भर नहीं रहना चाहते हैं बल्कि प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं क्योंकि अभी  वह ना ही बच्चा है और ना ही बड़ा हुआ है उसमें अच्छी तरह से परिपक्वता नहीं आई है |

🍀इस अवस्था में बहुत सारे हार्मोनल परिवर्तन होते हैं जिसके कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है |

🍀इस अवस्था में बच्चे के अंदर अत्यधिक गुस्सा, अत्यधिक चिड़चिड़ापन और  समायोजन की क्षमता कम पाई जाती है इसलिए इसमें बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है |

🍀इस अवस्था को तूफान की अवस्था संघर्ष की अवस्था तनाव की अवस्था या बीज पूजा आदि नाम से भी जाना जाता है क्योंकि  इस अवस्था में बच्चे तनाव से ग्रसित होते हैं और स्वयं में संघर्ष करते हैं अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करते हैं इसलिए इस अवस्था को संघर्ष की अवस्था कहा जाता है |

🍀 यह अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी गई है क्योंकि इसमें बच्चे अत्यधिक भावुक होते हैं और स्वयं को माता-पिता से दूर रखना चाहते हैं यदि वे माता पिता के साथ मानसिक रूप से सहज नहीं होते हैं तो वह दूसरों का सहारा लेते हैं जहां उन्हें मानसिक रूप से सहज महसूस होता है |

🎯 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन➖

🍀 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है इसके फलस्वरूप बच्चा खुद को बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच अपने आपको असमंजस की स्थिति में पाता है यहां तक की माता-पिता भी अपने बच्चों से प्रत्यक्ष रूप से विचार – विमर्श नहीं करते हैं जिसके कारण बच्चा अपने प्रश्नों के उत्तर खोजने की कोशिश करता है लेकिन उसके प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं रहता इसलिए बच्चा अपने आप से बाल्यावस्था और प्रौढ़ अवस्था के बीच असमंजस की स्थिति में पाता है |

🍀 किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है बच्चे अपनी खुद की पहचान बनाना चाहते हैं वे अपना वजूद बनाना चाहते हैं खुद को योग्य बनाना चाहते हैं यदि उनकी प्रशंसा नहीं होती है तो वे स्वयं को हीन दृष्टि से देखने लगते हैं क्योंकि उनकी मनोवैज्ञानिक  आवश्यकताओं को महत्व नहीं दिया जाता है  |

🍀 यदि बच्चे के परिवर्तन या स्वभाव को समाज स्थान नहीं देता है या उनकी उपेक्षा की जाती है उनके पक्ष  की अवहेलना की जाती है तो ऐसी स्थिति में बच्चे में क्रोध और तनाव की प्रकृति उत्पन्न होती है |

🍀 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल रहती है क्योंकि इसमें बच्चे अत्याधिक भावुक होते हैं और अपने भावनात्मक व्यवहार के कारण निर्णय लेने लगते हैं जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव होते हैं |

नोट्स बाय ➖ रश्मि सावले

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💫💫🌺 किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण🌺💫💫

🌼🌻 शारीरिक परिवर्तन➖

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होता है विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करता है इसका सीधा संबंध यौन विकास से है।

👉🏼 किशोरावस्था को शारीरिक विकास का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है।

🌼🌻 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन➖ किशोरावस्था मानसिक, भौतिक और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की व्यवस्था है।

👉🏼 छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं।और प्रौढ़ व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

👉🏼 विपरीत लिंग के प्रति आकर्षक होते हैं।

👉🏼

बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है उसे छोटी सी छोटी बातों पर गुस्सा आ जाता है।

👉🏼किशोरावस्था को अन्य नाम से भी जाना जाता है जैसे- तनाव की अवस्था, संघर्ष की अवस्था, तनाव की अवस्था, वीर पूजा, और संधि काल और कई अन्य नामों से जाना जाता है।

👉🏼 यह अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी जाती है।

🌼🌻 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन➖

👉🏼 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है।

जिसके फलस्वरूप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में जाता है।

👉🏼 किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

👉🏼 क्रोध, तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

👉🏼 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

✍🏻📚📚 Notes by….. Sakshi Sharma📚📚✍🏻

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 किशोरावस्था की प्रकृति और लक्षण

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👉 किशोरावस्था  तीव्र शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है।

👉 किशोरावस्था में कई परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोनल विकास के कारण होते हैं।

👉किशोरावस्था में बालक अपने माता-पिता से थोड़ी दूरी बना लेते हैं क्योंकि वह उनसे स्वतंत्र रूप से अपनी आंतरिक बातों को शेयर नहीं कर पाते हैं या वह सहज नहीं होते हैं इसीलिए वह अपने सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करना पसंद करते हैं क्योंकि वहां वह अपनी बातों को करने में सहज अनुभव करते है।

👉   व्यवहार में स्थिरता इसी अवस्था में आती है।

 ✍🏻किशोरावस्था को अन्य नामों से भी जाना जाता है।

 जैसे:-  उलझन की आयु, वीर पूजा

           तनाव की अवस्था, तूफान की         अवस्था, संघर्ष की अवस्था।

▫️ किशोरावस्था को “स्वर्ण काल” भी कहते हैं।

🔥 शारीरिक परिवर्तन🔥

▫️ किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं।

▫️ विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं जिसका सीधा संबंध यौन विकास से है।

▫️ किशोरावस्था में लड़कों की आवाज में परिवर्तन जैसे आवाज भारी हो जाना।

🔥🔥 मनोवैज्ञानिक परिवर्तन🔥

▫️ किशोरावस्था मानसिक भौतिक और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है।

▫️ इस अवस्था में  बालक छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं, वह अपने कार्य स्वयं करना पसंद करते हैं किसी अन्य का हस्तक्षेप उन्हे अच्छा नहीं लगता है।

▫ प्रौढ़ व्यक्ति के तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

▫️ किशोरावस्था में बालकों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है और वह भावी जीवनसाथी की तलाश भी करते हैं।

▫️ इस अवस्था में बालक व बालिकाओं को सजना और सवरना बहुत पसंद होता है।

▫️ किशोरावस्था में बालक मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है।

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🔥 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन

👉 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप में परिभाषित नहीं कर सकता है।

👉 फल स्वरुप 12 से 18 में बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आता है।

👉 किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज के द्वारा नहीं दिया जा सकता है।

👉 क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

👉 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल हो जाती।

👉 किशोरावस्था में बालक को समूह का नेतृत्व करना बहुत अच्छा लगता है।

      🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌻Notes by :-

               Shashi chaudhary🌻

🌻 किशोरावस्था के प्रवृत्ति और लक्षण 🌻

आस्था के प्रवृत्ति और लक्षण हर अवस्था की अपेक्षा बिल्कुल अलग होते हैं इस अवस्था में बच्चे में भावात्मक,  सामाजिक ,मानसिक परिवर्तन के कारण इनके प्रवृत्ति अलग होती है। 

प्रवृत्ति- लक्षण-इस अवस्था में बच्चों में कुछ अलग करने की प्रवृत्ति दिखने लगती है इस अवस्था में बच्चे कुछ नया और अपना नाम करना चाहते हैं,।इस अवस्था में बच्चे परिपक्व और अपरिपक्व होते हैं इस अवस्था में बच्चों में बिगड़ने और बनने के  लक्षण  दिखने लगती है।

🌻 शारीरिक परिवर्तन 🌻

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं इसका सीधा संबंध यौन विकास से होता है किशोरावस्था ऐसी परिवर्तन होते हैं जो इससे पहले कभी नहीं हुए होते हैं किशोरावस्था में भी जो भी परिवर्तन होते हैं हार्मोनल में विकास के कारण होते हैं जिनका प्रभाव गौण  यौन और लक्षण के साथ शारीरिक परिवर्तन में होता है।

✨✨ मनोवैज्ञानिक परिवर्तन ✨✨

🌻 किशोरा आस्था मानसिक या भौतिक और भावात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है।

 किशोर छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते प्रौढ़ की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

 इस अवस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है। में परीवर्तन हार्मोन के कारण तो होते ही हैं ,पर जो जो स्वतंत्रता और प्यार उन्हें अपने परिवार से मिलना चाहिए ना मिलने के कारण भी , इस आकर्षक को बढ़ावा मिलता है। बच्चे जहां पर आप उसे तंत्र महसूस करते हैं और को महत्व दिया जाता है उसे  अच्छा समझने लगते हैं।

🌻बच्चे मानसिक तनाव से ग्रस्त रहते हैं इसलिए इन्हें तनाव की अवस्था संघर्ष की अवस्था तूफान की अवस्था और वीर पूजा की अवस्था में क्या कहा जाता है।

🌻 अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी गई है।

 🌺💫 सामाजिक परिवर्तन 💫🌺

💫समाज किशोर की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करते हैं

💫फल स्वरुप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आता है

💫किशोर की मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

💫इसलिए उनमें तनाव क्रोध की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।

 अन्य अवस्था की अपेक्षा किशोरावस्था में उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है क्योंकि शैशवास्था  की तरह इस अवस्था में भी शारीरिक मानसिक व बौद्धिक विकास अधिक तीव्र होता है।

✍️✍️,Notes by Laki 🙏🙏🙏

💐💐 किशोरावस्था की प्रवृति और लक्षण💐💐

                   🍃🍃शारीरिक परिवर्तन🍃🍃

👉 किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होता है विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रश्न परिपक्वता को प्राप्त करते हैं इसका सीधा संबंध यौन विकास से होता है

             🍃🍃मनोवैज्ञानिक परिवर्तन🍃🍃

👉 किशोरावस्था मानसिक भौतिक और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की अवस्था है

👉 किशोरावस्था  के बच्चे छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं यह बच्चे कौन व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं

👉 किशोरावस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है जैसे लड़के का लड़की के प्रति एवं लड़की का लड़के के प्रति आकर्षण होना

👉 किशोरावस्था में बच्चा बहुत से कारणों से बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है

बच्चे में अनेक प्रकार के अंतर्द्वंद आते हैं जिससे बच्चा बहुत ही तनाव महसूस करता है

👉 किशोरावस्था को तनाव की अवस्था ,संघर्ष की अवस्था, तूफान की अवस्था, वीर पूजा, क्रोध की अवस्था ,उत्तेजना की अवस्था एवं दिवास्वप्न की अवस्था कहा जाता है

👉  किशोरावस्था को अत्यंत संवेदनशील अवस्था मानी गई है

🍃🍃🍃🍃 सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन

👉समाज किशोरों की भूमिकाओं को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है

👉 फल स्वरुप बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था  के बीच असमंजस की स्थिति में आ जाता है( इस उम्र में बच्चा ना तो बच्चा रहता है और ना ही वह पूरी तरह परिपक्व होता है)

 👉 किशोर की मनोवैज्ञानिक अवस्था को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है

👉 किशोरावस्था में क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है

👉 किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है

🍃🍃🍃🍃🍃🍃sapna sahu

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*किशोरावस्था की प्रकृति और लक्षण*

👾किशोरावस्था  तीव्र शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहार संबंधी परिवर्तन का काल है।

🥺 किशोरावस्था में कई परिवर्तन शरीर में होने वाले हार्मोनल विकास के कारण होते हैं।

🥶किशोरावस्था में बालक अपने माता-पिता से थोड़ी दूरी बना लेते हैं क्योंकि वह उनसे स्वतंत्र रूप से अपनी आंतरिक बातों को शेयर नहीं कर पाते हैं या वह सहज नहीं होते हैं इसीलिए वह अपने सम आयु समूह में अधिक समय व्यतीत करना पसंद करते हैं क्योंकि वहां वह अपनी बातों को करने में सहज अनुभव करते है।

😒   व्यवहार में स्थिरता इसी अवस्था में आती है।

 ✍🏻किशोरावस्था को 

 उलझन की अवस्था/वीर पूजा /तनाव की अवस्था, तूफान की अवस्था/ संघर्ष की अवस्था/स्वर्ण काल भी कहते हैं।

 *शारीरिक परिवर्तन*

💪🏻 किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं।

🤯 विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं जिसका सीधा संबंध यौन विकास से है।

🤢🥴 किशोरावस्था में बालक के गौण शारीरिक परिवर्तन देखे जा सकते है |

 *मनोवैज्ञानिक परिवर्तन*

🧠😍💪🏻 किशोरावस्था मानसिक भावनात्मक और शारीरिक परिपक्वता के विकास तीव्र होती है।

 🦹🏻‍♂️👸🏻इस अवस्था में  बालक छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं, वह स्वतंत्रता पसंद करते हैं किसी अन्य का हस्तक्षेप उन्हे अच्छा नहीं लगता है।

🥳🤓 प्रौढ़ व्यक्ति के तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

🧐👀 किशोरावस्था में बालक व बालिकाओं  में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता है और वह अच्छे दोस्त की तलाश करते हैं।

🥰 इस अवस्था में बालक व बालिकाओं को अच्छा दिखाना बहुत पसंद होता है।

🧠 किशोरावस्था में बालक मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है।

*सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन*

👨‍👨‍👧‍👧 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप में परिभाषित नहीं कर सकता है। फलस्वरुप 12 से 18 में बच्चा बाल्यावस्था और प्रौढावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में आता है।

 😭किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज के द्वारा नहीं पूरा किया जाता है।

😡क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

👶🏻किशोरावस्था में अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती हैं |

📝Note by :- Deepika Ray

🌸🌸किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण🌸🌸

 1.शारीरिक परिवर्तन-  किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं विकास की प्रक्रिया के कारण  अंगों में भी परिवर्तन होता है जो व्यक्तिगत प्रजनन परिपक्वता को प्राप्त करते हैं इसका सीधा संबंध  यौन विकास से है

👩‍🔬- मनोवैज्ञानिक परिवर्तन-

 🌟🌟किशोरावस्था ,मानसिक ,भौतिक ,और भावनात्मक परिपक्वता के विकास की व्यवस्था है।

💫 छोटे बच्चे की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहता है।

💫  प्रौढ़ व्यक्ति की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

💫 विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है।

💫 बच्चा मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है।

💫 तनाव की अवस्था, संघर्ष की भावना ,तूफान की अवस्था ,वीर पूजा, आदि…….

💫यह अवस्था अत्यंत संवेदनशील मानी गई है।

 🌸  सामाजिक  सांस्कृतिक परिवर्तन 🌸

💥 समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिमार्जित नहीं करता है।

💥 फलस्वरुप बच्चा, बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था (12 -18 )के बीच असमंजस की स्थिति में आ जाता है।

💥  किशोर की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

💥 इस समय क्रोध तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होगी।

💥 किशोरावस्था की अन्य अवस्था की अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

 by suchi Bhargava

किशोरावस्था की प्रवृत्ति और लक्षण

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🌹  शारीरिक परिवर्तन :-

किशोरावस्था में तीव्रता से शारीरिक परिवर्तन होते हैं ।और विकास की प्रक्रिया के कारण अंगों में भी परिवर्तन होते हैं जो व्यक्तिगत परिपक्वता को प्राप्त करते हैं ।

अतः इस परिपक्वता का सीधा संबंध यौन विकास से होता है।

 🌹  मनोवैज्ञानिक परिवर्तन  :-

  🏵️  किशोरावस्था मानसिक , भौतिक , भावनात्मक परिपक्वता के विकास की भी अवस्था है।

        🏵️ अतः किशोरावस्था में किशोर बच्चे , छोटे बच्चों की तरह दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं बल्कि प्रौढ़  की तरह स्वतंत्र रहना चाहते हैं।

🏵️  किशोरावस्था में किशोरों में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होता है।

🏵️ इस अवस्था में बच्चे मानसिक तनाव से ग्रस्त रहते हैं।

🏵️ अतः किशोरावस्था को –

👉 तनाव की अवस्था

👉 संघर्ष की अवस्था

👉 तूफान की अवस्था

👉 वीर पूजा की अवस्था

आदि भी कहा जाता है।

🏵️ किशोरावस्था अत्यंत संवेदनशील अवस्था मानी गई है।

किशोरावस्था में सामाजिक , सांस्कृतिक परिवर्तन

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किशोरावस्था में बच्चों में विभिन्न प्रकार के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होते हैं क्योंकि उनके समाज का स्तर बढ़ता है – भिन्न – भिन्न लोगों से मिलते हैं और इस अवस्था में वह विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों से भी परिचित होते हैं जैसे :-

👉  समाज किशोरों की भूमिका को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं करता है।

अर्थात किसी भी कार्य या बातचीत आदि में यदि किशोरावस्था के बच्चे भूमिका देते हैं अपनी बात रखते हैं तो समाज उनकी बात को या उनकी सोच को महत्व नहीं देते हैं।

👉 फलस्वरुप बच्चा स्वयं को बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस की स्थिति में पाता है।

 अर्थात किशोरावस्था में बच्चे कुछ हद तक अपनी सामाजिक परिवेश से परिचित हो जाते हैं और जब वह किसी चर्चा में या काम में अपनी भूमिका देते हैं और नहीं मानी जाती है समाज के द्वारा तब हुआ है अपने बाल्यावस्था और प्रौढ़ावस्था के बीच असमंजस रहते हैं।

👉 किशोरों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकता को समाज के द्वारा महत्व नहीं दिया जाता है।

अर्थात किशोरावस्था के बच्चों में जो मनोवैज्ञानिक आवश्यकता होती है जैसे किसी तथ्य पर अपनी बात रखने की,  नई-नई जानकारियां जानने की दूसरों से साझा करने की अपनी मन की बात दूसरों से साझा करने की आदि विभिन्न प्रकार की बातों को समाज महत्व नहीं देता है।

👉 इस अवस्था में किशोरों में क्रोध , तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है।

अर्थात किशोरावस्था में जब बच्चों की मन की बात नहीं सुनी जाती है या उनकी बात को सही या गलत में फर्क ना करके उनको शांत करवा दिया जाता है ।

अतः जिससे किशोरों में क्रोध और तनाव की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।

👉 किशोरावस्था में अन्य अवस्थाओं के अपेक्षा उत्तेजना और भावना अधिक प्रबल होती है।

जैसे कि विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने में , चीजों को पाने में कुछ काम करने में , किसी से लगाव हो तो बहुत घनिष्ठ, ऐसे अनेक कामों में किशोरावस्था में अवस्थाओं की अपेक्षा उत्तेजना और भावना बहुत प्रबल होती है।

🌺✍️Notes by – जूही श्रीवास्तव✍️🌺

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